रविवार, 29 सितंबर 2013

''श्री खाटू श्याम जी'' भाग 1.

दिल्ली से बाहर कहीं भी जाना हो तो सुबह सुबह का समय उत्तम रहता है , इस बार खाटू श्याम जी जाने के लिए समय अभाव के कारण हम दोपहर 2 बजे निकल पाए इसलिए हम भोजन करके ही निकले थे और फिर जाकर सीधा रुके जयपुर हाईवे पर बने किंग्स होटल पर ,जो कुछ  विश्राम करने और खाने के लिहाज से उत्तम जगह है हर प्रकार के  भोजन की बहुत ही उत्तम व्यवस्था है क्योंकि ज्यादा ट्रैफिक नहीं मिला था इसलिए हम ठीक 5 बजे यहाँ पहुँच गए थे रास्ते में सिर्फ टोल चुकाने के लिए रुके थे ,जोकि किस लिए और क्यों लिया जाता है वो समझ से बाहर है क्योंकि हर जगह अव्यवस्था फैली हुई है सडकों का बुरा हाल है और टोल पहले से दोगुना हो चुका है इतनी गाड़ियाँ निकलती हैं उनसे 20 रुपये या 25 रुपये लेना तो कुछ समझ आता है पर कहीं कहीं तो टोल 114रुपये तक है | 
                यहाँ से हमें  जयपुर होते हुए खाटू श्याम जी धाम जाना था ,वैसे तो 4..5 बार वहां जाना हुआ है हर बार का अनुभव अलग रहा है आज उन्हीं अनुभवों को आपके साथ बांटने जा रही हूँ |
खाटू श्याम जी 
...........................

प्रवेश द्वार 
स्थिति :----
खाटूश्यामजी भारत देश के राजस्थान राज्य के सीकर जिले में एक प्रसिद्ध कस्बा है, जो रींगस से 17 किलोमीटर दूर है ,जहाँ पर बाबा श्याम का जग विख्यात मन्दिर है,यहाँ विराजित हैं भगवान श्री कृष्ण के कलयुगी अवतार खाटू श्याम जी | खाटू श्याम जी दिल्ली से लगभग 300 किलोमीटर व राजस्थान की राजधानी जयपुर से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं|



कैसे पहुँचें : -----

सड़क मार्ग : खाटू धाम से जयपुर, सीकर आदि प्रमुख स्थानों के लिए राजस्थान राज्य परिवहन निगम की बसों के साथ ही टैक्सी और जीपें भी यहाँ आसानी से उपलब्ध हैं।
रेलमार्ग : निकटतम रेलवे स्टेशन रींगस जंक्शन (15 किलोमीटर) है।
वायुमार्ग : यहाँ से निकटतम हवाई अड्‍डा जयपुर है, जो कि यहाँ से करीब 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
जैसा की विदित हुआ यहाँ तक कोई सुविधाजनक रेल यात्रा नहीं है केवल कुछ ही गाड़ियाँ यहाँ रूकती हैं | 

परिचय :----
राजस्थान की धरा यूँ तो अपने आँचल में अनेक गौरव गाथाओं को समेटे हुए है, लेकिन आस्था के प्रमुख केन्द्र खाटू की बात अपने आप में निराली है। श्याम मंदिर बहुत ही प्राचीन है, मूल मंदिर 1027 ई. में रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कंवर द्वारा बनाया गया था. मारवाड़ के शासक ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने ठाकुर के निर्देश पर वर्तमान मं‍दिर की आधारशिला सन 1720 में रखी गई थी। इतिहासकार पंडित झाबरमल्ल शर्मा के मुताबिक सन 1679 में औरंगजेब की सेना ने इस मंदिर को नष्ट कर दिया था। मंदिर की रक्षा के लिए उस समय अनेक राजपूतों ने अपना प्राणोत्सर्ग किया था।

पौराणिक प्रचलित कथा :----
श्याम बाबा की अपूर्व कहानी मध्यकालीन महाभारत से आरम्भ होती है। वे पहले बर्बरीक के नाम से जाने जाते थे। वे महान पान्डव भीम के पुत्र घटोतकच्छ और नाग कन्या मौरवी के पुत्र है। बाल्यकाल से ही वे बहुत वीर और महान यौद्धा थे।बालक वीर बर्बरीक के जन्म के पश्चात् घटोत्कच इन्हें भगवन श्री कृष्ण के पास लेकर गए और भगवन श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक के पूछने पर, जीवन का सर्वोत्तम उपयोग, परोपकार व निर्बल का साथी बनना बताया | उन्होने युद्ध कला अपनी माँ से सीखी। भगवान शिव की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और तीन अभेध्य बाण प्राप्त किये और तीन बाणधारी का प्रसिद्ध नाम प्राप्त किया। अग्नि देव ने प्रसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान किया, जो कि उन्हें तीनो लोकों में विजयी बनाने में समर्थ थे।
                               जब बर्बरीक युद्ध में भाग लेने चले तब भगवन श्री कृष्ण ने राह में इनसे शीश दान में मांग लिया क्योकि अगर बर्बरीक युद्ध में भाग लेते तो कौरवों की समाप्ति केवल 18 दिनों में महाभारत युद्ध में नही हो सकती थी व युद्ध निरंतर चलता रहता | वीर बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण के कहने पर जन-कल्याण, परोपकार व धर्म की रक्षा के लिए आपने शीश का दान उनको सहर्ष दे दिया व कलयुग में भगवान श्री कृष्ण के अति प्रिय नाम श्री श्याम नाम से पूजित होने का वरदान प्राप्त किया | बर्बरीक की युद्ध देखने की इच्छा भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को ऊंचे पर्वत पर रखकर पूर्ण की |



                    युद्ध की समाप्ति पर पांडवों ने जानना चाहा,युद्ध  में विजय का श्रेय किसको जाता है, इस पर कृष्ण ने उन्हें सुझाव दिया कि बर्बरीक का शीश सम्पूर्ण युद्ध का साक्षी है अतैव उससे बेहतर निर्णायक भला कौन हो सकता है। सभी इस बात से सहमत हो गये। बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया कि कृष्ण ही युद्ध मे विजय प्राप्त कराने में सबसे महान पात्र हैं, उनकी शिक्षा, उनकी उपस्थिति, उनकी युद्धनीति ही निर्णायक थी।
                    कृष्ण वीर बर्बरीक के महान बलिदान से काफी प्रसन्न हुये और वरदान दिया कि कलियुग में तुम श्याम नाम से जाने जाओगे, क्योंकि कलियुग में हारे हुये का साथ देने वाला ही श्याम नाम धारण करने में समर्थ है। खाटू में श्याम के मस्तक स्वरूप की पूजा होती है, जबकि निकट ही स्थित रींगस में धड़ स्वरूप की पूजा की जाती है।

विशेष तिथियाँ :----
फाल्गुन मास की द्वादशी को बर्बरीक ने शीश का दान दिया था इसलिए हर साल फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष में यहाँ विशाल मेला लगता है, जिसमें देश-विदेश से भक्तगण पहुँचते हैं। हजारों लोग यहाँ पदयात्रा कर पहुँचते हैं, वहीं कई लोग दंडवत करते हुए खाटू नरेश के दरबार में हाजिरी देते हैं। कार्तिक शुक्ल एकादशी जन्मोत्सव वाले दिन भी भारी संख्या में श्रद्धालु यहाँ माथा टेकने आते हैं |

कुछ तस्वीरें :----



होटल किंग ,जयपुर हाईवे

श्री खाटू श्याम जी भाग 2.क्रमशः......

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...