मंगलवार, 16 फ़रवरी 2016

वैष्णो देवी यात्रा भाग 5.

दोस्तों चलिए चलते हैं पुनः वैष्णोदेवी यात्रा पर ......अभी अभी बेटे की शादी की है तो हम सब 15 लोग 9 दिसम्बर, 2015 को माँ वैष्णोदेवी के दर्शन के लिए निकल पड़े ,टिकट हमारी पहले से ही बुक थीं ...आजकल ऑनलाइन टिकट की सुविधा है जो आप आसानी से कर सकते हैं या करवा सकते हैं  कुछ और बदलावों की ओर आपका ध्यान आकर्षित करते हुए ले चलती हूँ आपको मैया के दरबार में .. 
नई गाड़ियाँ :..
सबसे पहले तो कटरा तक नई गाड़ियों के शुरू होने की आप सबको बधाई | छः गाड़ियों में 3 गाड़ियाँ प्रीमियम हैं जिनमे से एक पठानकोट,दो जम्मू से एक गुहाटी एक्सप्रेस ,एक अहमदाबाद से एक दिल्ली से चलेगी |

दिल्ली से चलने वाली गाड़ी का नामकरण प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्रमोदी जी ने किया है ..श्री शक्ति एक्सप्रेस...  जिसकी सुविधा से आप परिचित ही हैं फिर भी थोड़ी सी रौशनी डालती हूँ इस पर ..यह उनके लिए है जो पैसे के बदले सुविधा चाहते हैं ... एसी एक्सप्रेस ट्रेन श्री शक्ति एक्सप्रेस (22461/22462) 14जुलाई, 2014 से शुरू की गई है । यह ट्रेन नई दिल्ली से रोजाना शाम साढ़े पांच बजे चलकर अगले दिन कटरा स्टेशन सुबह 5:10 पर पहुँचती है | वापसी में यह कटरा से रात 10:55 पर चलकर अगले दिन नई दिल्ली स्टेशन पर सुबह 10:45 बजे पहुँचती है। ट्रेन वातानुकूलित है। इसमें एक कोच एसी फर्स्ट, दो एसी सेकंड और नौ कोच एसी थर्ड के है। दोनों दिशाओं में यह अंबाला कैंट, लुधियाना, जालंधर कैंट, पठानकोट, जम्मू तवी और उधमपुर रेलवे स्टेशन पर रुकती है। ट्रेन के अंदर सफाई बहुत बेहतर है ,शौचालयों में बाकायदा साबुन वगेरह की व्यवस्था है ,कूड़ादान रखा गया है अब आप पर निर्भर है की आप उसका प्रयोग कितना करते हैं | खाना स्वादिष्ट है , बिस्तर अच्छे हैं ... 




स्टेशन पर उतरते ही आप बहुत सुखद और प्रफुल्लित अनुभव करते हैं स्टेशन को देखते ही आपके चेहरे पर एक अलग चमक आ जाती है एक्सेलेटर आपको ऊपर ले जाता है और आप एक खुले प्रांगन में पहुँचते हैं यहाँ भवन के लिए दर्शन की पर्ची भी आप यहीं ले सकते हैं जो बाकायदा आपकी फोटो खींचने के बाद आपके नाम और शहर के साथ क्रम संख्या अंकित पर्ची आपको दी जाती है .... 


बाहर निकलते ही हमने वैन टाइप गाड़ी ली जिसमे 9 लोगों के बैठने की सुविधा थी साथ में एक ऑटो और हम पहुँच गए निहारिका धर्मशाला में जो बस अड्डे के बिलकुल नजदीक है इसकी भी पहले ही बुकिंग हो चुकी थी .. इस समय काफी खाली था क्योंकि सर्दी में भीड़ कम ही रहती है ... बाकी फॉर्मेलिटी पूरी करने के बाद हम ने एक हाल ले लिया था जिसमे ऊपर नीचे बेड लगे थे ..हाल में बहुत सारे पॉइंट थे यहाँ आप अपने मोबाइल लैपटॉप वगेरह चार्ज कर सकते हैं इसका किराया 160 रुपये प्रति बेड था   ...पास ही दो शौचालय थे यहाँ सुविधा अनुसार गर्म पानी था ...पूरी सफाई थी ... खाना अंदर ले जाने की मनाही थी ..क्योंकि लोग कमरों में गन्दगी फैला कर चले जाते हैं ....इसमें ही एक भोजनालय भी है .. जिसका खाना इतना बढ़िया नहीं था ..वैसे बाहर ही बहुत सारे ढाबे और रेसटोरेंट हैं जिनका जिक्र मैं पहले वाले भागों में कर चुकी हूँ ......
   सबने थोड़ी देर विश्राम करने के बाद तैयार होना शुरू किया और हमने अपना अपना जरुरी सामान लिया और चढ़ाई करने के लिए निकल गए .... नाश्ता लेने के बाद प्रवेश तक जाने के लिए ऑटो 50 रुपये में चलते हैं जबकि वापिसी में यही ऑटो 100 रुपये में आते हैं .... वहां पहुँच कर क्योंकि सर्दी काफी थी और बरसात भी शुरू हो गई थी तो सभी ने फिसलन से बचने के लिए एक एक डंडी हाथ में ले ली थी और बरसाती जो वहीँ मिल रही थी सबने पहन रखी थी  ऐसे लग रहा था जैसे दरबार पर जाने का यह कोई ड्रेस कोड हो ... हर कोई इसी रंग में नजर आ रहा था ... 
दरबार पर जाने के लिए सामान वगेरह उठाने के लिए पिट्ठू की सुविधा उपलब्ध है लेकिन एक हफ्ते से सभी पिट्ठू, घोड़े वाले हड़ताल पर थे क्योंकि सरकार दरबार तक की बस सेवा शुरू करने जा रही थी जो १ जनवरी से शुरू होनी थी मात्र 500रुपये में जो बुजुर्गों के लिए और गरीब लोगों के लिए एक वरदान साबित होती ... लेकिन क्योंकि इससे पिट्ठू की और घोड़े वालों की मनमानी पर रोक लग जाती इसलिए हड़ताल जारी थी ... कोई कोई घोड़े वाले अपनी यूनियन की आँख बचाकर डबल रेट में सवारी वगेरह लेकर जा रहे थे | मौसम काफी ख़राब था रुक रुक कर बारिश होती रही और हम आगे बढ़ते रहे .... सबसे बड़ी दिक्कत थी सामान लेकर जाने की जो बच्चों ने बहुत ही मुश्किल से वहां तक पहुँचाया था ... इसलिए हमेशा ध्यान रखें जब भी दरबार पर जायें बहुत ही कम सामान लेकर चलें और एक बड़े बैग की बजाये दो तीन छोटे बैग तैयार करें ताकि जरुरत पड़ने पर कोई परेशानी ना हो ... 
आध्कुंवारी के पास से ही दरबार तक के लिए बैटरी कार चलती है  जो मनमर्जी से चल रही थी ...इसलिए वो भी नहीं मिली थी ... तो इतनी सर्दी झेलते हुए हम बहुत मुश्किल से बहुत लेट दरबार पहुंचे थे लगभग 8 बजे के बाद  .... उसके बाद पहले से बुक हाल में हमने विश्राम किया ताकि सुबह मैया की हाजिरी लगा सकें ...  .उठने में थोड़ी देरी हो गई लाइट चली गई थी .. इसीलिए बाद में दिसंबर की सर्दी में बर्फानी पानी से स्नान करना पड़ा, इसलिए जब भी कभी लाइट जाए तो गर्म पानी रहने तक अपने काम निपटा लें .. पहाड़ों की लाइट है जाने कब बिगड़ जाए |वर्ना बाहर धर्मशाला से दूर बहते झरने जैसे शीत पानी से नहाने के लिए तैयार रहें ... ऐसी सर्दी में जाने का फैसला तो गलत था ही ऊपर से नंगे पैर दरबार के अंदर हाजिरी लगाने जाना ... जैसे कोई परीक्षा ले रही हो माँ ...  बाहर निकलते ही जगह जगह अलाव थे जिनके पास बैठकर सर्दी से बचाव किया ... 





अब सागर रत्ना की एक शाखा दरबार पर भी है इसलिए आप सरकारी भोजनालय के साथ साथ इसका आनंद भी उठा सकते हैं ...
अब खाना वगेरह खाकर .. वापिसी का समय आ गया था ...सोचा बैटरी कार की टिकट लेते हैं इसलिए लाइन में लग गए ... जिसमे बाद में पता चला प्रति व्यक्ति सिर्फ दो टिकट दी जाएँगी ...तो जल्दी ही अपने और लोग लाइन में खड़े हो गए लेकिन कुछ ही टिकट बाँटने के बाद खिड़की बंद कर दी गई ... बाद में पता चला की टिकट पहले से ही अन्दर  से बाँट दिए गए थे ... और बाकी बचे टिकट की जगह ड्राईवर खुद ही कुछ जयादा पैसों में सवारी को बिठाता जा रहा था तो जनाब जब तक पता चला तब तक फिर से देर हो गई थी ..अब पैदल चलने के इलावा अपने पास कोई रास्ता नहीं बचा था ... तो पूरा रास्ता हमें खुद ही तय करना पड़ा बिना किसी पिट्ठू ,घोड़े की सहायता के ... जान बची सो लाखों पाए लौट के बुद्दू घर को आये ... 
अगले दिन की हमारी वापिसी थी इसलिए पूरा दिन घूमने में निकला ... फिर जम्मू के लिए एक बस ले ली थी जो पूरी हमारे पास थी .. कटरे से जम्मू के रास्ते में बहुत सुंदर दृश्य देखने को मिलते हैं ... उनका आनंद भी लेते हुए आइये ... जबकि यह कुदरत का दोहन हो रहा है लेकिन आँखों को सुकून भी मिलता है ... 
शुभविदा दोस्तों मिलते हैं एक और रोचक यात्रा वृतांत के साथ ... 

                           लेखिका :.. सरिता यश भाटिया 
 

रविवार, 14 फ़रवरी 2016

वृन्दावन यात्रा भाग 5.

दोस्तों आज फिर हाजिर हूँ वृन्दावन यात्रा का 5वां भाग लेकर जो मुझे लिखना पड़ा क्योंकि दो तीन वर्ष में कुछ बदलाव आये हैं ..कुछ जल्दी ही होने वाले हैं .. 
आज जब तीसरी बार वृन्दावन जाना हुआ तो रास्ते में हम गुलशन का ढाबा ढूंढते हुए आगे निकल गए इसलिए कोई ठीक ठाक व्यवस्था वाला ढाबा या होटल देखने लगे तो याद आया रास्ते में सागररत्ना आता है तो क्यों ना वही रुका जाये इसलिए हमने वही रुकना उचित समझा और मजेदार पूरी छोले,सांबर डोसा,सांबर इडली वगेरह का आनंद लिया .. 




इसके एक घंटे बाद हम वृन्दावन में प्रवेश कर चुके थे ... वृन्दावन में प्रवेश करने से 4.. 5 किलोमीटर पहले ही नए नए मंदिरों का निर्माण कार्य चल रहा है जो काफी भव्य बनाये जा रहे हैं ... 

14 अगस्त,2015 को दोबारा  वृन्दावन जाने का मौका मिला था ...दोबारा बाँके बिहारी मंदिर में जाना हुआ ,हाल पहले से भी बदतर थे ...किवाड़ बंद थे जब सायंकाल में मंदिर खुलने का समय हुआ तो उससे पहले सभी दरवाजों के आगे काफी भीड़ लग चुकी थी ..कोई पंक्ति नहीं बनी हुई थी ... मंदिर के कपाट खुलते ही ऐसे लगा जैसे भेड़ों को किसी कमरे में सब तरफ से छोड़ दिया गया हो ...हर द्वार अंदर जाने के लिए खुल गया ... मुझे समझ नहीं आया कि निकास का रास्ता  कौनसा था ..सभी रास्ते अन्दर जाने के और सभी रास्ते  बाहर जाने के ऐसे उस भीड़ से निकलना कैसे मुमकिन था .. मैंने खुद को बहुत कोसा कि मैं जानती थी कि यही हाल होगा फिर भी मैं यहाँ क्यों आई ... 
उसी दिन जब इस्कान मंदिर गए तो वहां की व्यवस्था भी अत्यधिक भीड़ के कारण चरमरा गई थी .. जूते रखने की कोई जगह नहीं बची थी इसलिए गेट के पास ही बहुत सारे लोग जूते रखकर जा रहे थे तब हम लोगों ने बाहर किसी फल वाले के पास अपने जूते रखे थे ... 
11जनवरी,2016,दिन सोमवार ...हमारा फिर से परिवार के साथ वृन्दावन जाना हुआ तो बात शुरू हुई की पहले बांकेबिहारी मंदिर जायेंगे ..मैंने तो साफ़ इनकार कर दिया मैं नहीं जाने वाली .. सबने कहा ठीक हैअगर भीड़ हुई तो अंदर नहीं जाना .. हमने गाड़ी सड़क किनारे रोकी और आगे जाने का रास्ता पूछने लगे तो एक दो लोग सुझाने लगे कि गाड़ी पार्किंग में लगाइए जबकि ज्यादा गाड़ियाँ सड़क किनारे ही खड़ीं थी क्योंकि पार्किंग की कोई उचित व्यवस्था नजर नहीं आ रही थी जबकि वहां सरकारी बोर्ड जरुर लगा हुआ था ...हम सब गाड़ी पार्क करके जब अंदर जाने लागे तो कई पुरुष हाथ में डंडा लिए साथ साथ चल दिए यह कहकर की हम आपको रास्ता दिखायेंगे और बंदरों से आपको बचायेंगे किसी तरह उन लोगों को टालने के बाद हम वहां पहुँच गए ... कपाट खुल चुके थे सबने कहा आज तो भीड़ नही है दर्शन कर लेते हैं ... हम सब अंदर प्रवेश कर गए ... सिस्टम वही था जूते रखने का कोई प्रबंध नहीं था पर भीड़ कम थी तो हम आराम से अंदर जाकर दर्शन कर पाये .. भीड़ कम की एक वजह तो यह थी कि कोई छुट्टी का दिन नहीं था... दूसरा  कारण यह था की यात्रियों की असुविधा को देखते हुए सरकार ने इसे अपनी निगरानी में लेने की सोच ली थी जिसके विरोध में बैनर मंदिर के अंदर लगे हुए थे ...
 दूसरा बदलाव जो नजर आया वो था फोटो खींचने से कोई रोक नहीं रहा था हमने भी मंदिर के अंदर की तो नहीं लेकिन कुछ प्रांगन की तस्वीरें जरुर ले ली थी और बाहर भी कुछ व्यवस्थित दुकानें नजर आ रहीं थी ...आप भी देखियेगा ... खाने पीने की कुछ अच्छी दुकानें हैं यहाँ पर आप प्रभु पूजा के बाद पेट पूजा कर सकते हैं ... 





इसके बाद हम दोबारा गाड़ी में बैठकर इस्कान मंदिर पहुँचे यहाँ की आरती देखने के लिए विशेषतया लोग आते हैं जिसमे विदेशी स्वदेशी भक्त मंत्रमुग्ध हो आरती का आंनंद लेते हैं ... यहाँ जूता घर की विशेष व्यवस्था है जो प्रवेश द्वार के निकट ही बनाया गया है जो अंडरग्राउंड है बस इसमें भीड़ के हिसाब से जूते लेने के लिए एक या अधिक लोग होते हैं जो आपके जूते लेकर आपको टोकन देते हैं ...अगर जूते एक से अधिक हैं तो आप थैला लेकर उसमें जूते रख सकते हैं ... 



इसके बाद हम प्रेम मंदिर पहुंचे यहाँ काफी भीड़ रहती है और यहाँ की आरती का भी लोग फव्वारे में चित्र देखकर आनंद उठाते हैं .. यहाँ भी बाहर तस्वीर लेने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है जबकि अंदर तस्वीर लेने पर प्रतिबन्ध हैं ... यहाँ एक सुंदर और बड़ा उपाहार गृह है , जिसे राधा कृष्ण उपाहार गृह के नाम से जानते हैं ... इसी उपाहार गृह में शौचालय में अगर आप जाते हैं तो आपको वहां बाहर ही चार पाँच जोड़ी चप्पल राखी गई हैं अगर कोई अपने जूते शौचालय में नहीं ले जाना चाहे तो वो इनका प्रयोग कर सकता है ... 
आने वाले समय में मंदिरों की स्थिति में सुधार होने की पूरी उम्मीद है क्योंकि प्रशासन ने तो नहीं लेकिन केन्द्रीय सरकार ने इनको सुधारने का बीड़ा उठाया है ,इसी उम्मीद को कायम रखते हुए ... 
चलिए दोस्तों मिलते हैं फिर से जल्दी ही मथुरा यात्रा के साथ राधा कृष्ण की नगरी में तब तक के लिए शुभविदा ... 
           लेखिका ... सरिता यश भाटिया 

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