सोमवार, 28 जुलाई 2014

हरिद्वार यात्रा भाग 4.

बड़ा बाजार :-
यह हरिद्वार का तड़क-भड़क वाला बाजार है। यहां फेरीवाले विभिन्न प्रकार के व्यंजन, आयुर्वेदिक दवाएं, पीतल का सामान, कांच की चूड़ियां, शालें, लकड़ी से बनी विभिन्न वस्तुएं और बांस से बनी टोकरियां बेचते नज़र आते हैं। इसी बाजार में ही सभी पण्डे बसे हुए हैं जो हिन्दू वंशावलियो की पंजिका रखते हैं |

हरिद्वार में हिन्दू वंशावलियों की पंजिका---
वह जो अधिकतर भारतीयों व वे जो विदेश में बस गए को आज भी पता नहीं, प्राचीन रिवाजों के अनुसार हिन्दू परिवारों की पिछली कई पीढियों की विस्तृत वंशावलियां हिन्दू ब्राह्मण पंडितों जिन्हें पंडा भी कहा जाता है द्वारा हिन्दुओं के पवित्र नगर हरिद्वार में हस्त लिखित पंजिओं में जो उनके पूर्वज पंडितों ने आगे सौंपीं जो एक के पूर्वजों के असली जिलों व गांवों के आधार पर वर्गीकृत की गयीं सहेज कर रखी गयीं हैं. प्रत्येक जिले की पंजिका का विशिष्ट पंडित होता है. यहाँ तक कि भारत के विभाजन के उपरांत जो जिले व गाँव पाकिस्तान में रह गए व हिन्दू भारत आ गए उनकी भी वंशावलियां यहाँ हैं. कई स्थितियों में उन हिन्दुओं के वंशज अब सिख हैं, तो कई के मुस्लिम अपितु ईसाई भी हैं. किसी के लिए किसी की अपितु सात वंशों की जानकारी पंडों के पास रखी इन वंशावली पंजिकाओं से लेना असामान्य नहीं है.
शताब्दियों पूर्व जब हिन्दू पूर्वजों ने हरिद्वार की पावन नगरी की यात्रा की जोकि अधिकतर तीर्थयात्रा के लिए या/ व शव- दाह या स्वजनों के अस्थि व राख का गंगा जल में विसर्जन जोकि शव- दाह के बाद हिन्दू धार्मिक रीति- रिवाजों के अनुसार आवश्यक है के लिए की होगी. अपने परिवार की वंशावली के धारक पंडित के पास जाकर पंजियों में उपस्थित वंश- वृक्ष को संयुक्त परिवारों में हुए सभी विवाहों, जन्मों व मृत्युओं के विवरण सहित नवीनीकृत कराने की एक प्राचीन रीति है |


खरीददारी :-
हर की पौडी और रेलवे स्टेशन के बीच अनेक दुकानें हैं जहां तीर्थयात्रा से संबधित सामान मिलता है। यहां से पूजा के कृत्रिम आभूषण, पीतल और कांसे के बर्तन, कांच की चूड़ियां आदि खरीदी जा सकती हैं। यहां बहुत सी मिठाई की दुकानें हैं जहां से स्वादिष्ट पेडों की खरीददारी के साथ चूरण और आम पापड़ भी खरीदे जा सकते हैं। सामान्यत: तीर्थ यात्री यहां से कंटेनर खरीदकर गंगाजल भरकर घर ले जाते हैं |


आइये जानें हरिद्वार के आसपास लगते कुछ और देखने योग्य स्थान 
पतंजलि योगपीठ :---
पतंजलि योगपीठ हरिद्वार से लगभग 25 किलोमीटर दूर है इसलिए टेम्पो वाले ने 30 रुपये प्रति सवारी लिए वहां जाने के लिए | पतंजलि योग पीठ एक नजर में .....
पतंजलि योगपीठ फेज 1
6 अप्रेल 2006 को भारत के उपराष्ट्रपति द्वारा देश के 17 मुख्यमंत्री व राज्यपाल आदि विशिष्ट लोगों की उपस्थिति में पतंजलि योगपीठ, प्रथम चरण का उदघाटन।
योग एवं आयुर्वेद ओ.पी.डी.में छ: हजार से दस हजार रोगियों को निःशुल्क चिकित्सा परामर्श की सुविधा उपलब्ध।
निःशुल्क आयुर्वेद व योग चिकित्सा परामर्श सुयोग्य वैद्यों द्वारा।
आयुर्वेद के अंतर्गत पंचकर्म चिकित्सा, षट्कर्म चिकित्सा, शल्य चिकित्सा (क्षार-सूत्र, कर्णभेदन व अग्निकर्म आदि), दंत चिकित्सा व नेत्र चिकित्सा सेवायें न्यूनतम मूल्य पर उपलब्ध।
दिव्य फार्मेसी द्वारा निर्मित उच्च गुणवत्ता युक्त आयुर्वेदिक औषधियाँ न्यूनतम मूल्य पर उपलब्ध है।
अत्याधुनिक मशीनों व उपकरणों से युक्त विश्व की आधुनिकतम पैथोलाजी लैब, रेडियोलाजी व कार्डियोलाजी लैब में विभिन्न रोगों के चिकित्सीय परीक्षण न्यूनतम मूल्यों पर उपलब्ध है ।
आई.पी.डी/अतिथि ग्रह में न्यूनतम मूल्यों पर, वातानुकूलित व साधारण आवास व्यवस्था, दैनिक यज्ञ एवं योगकक्षा के साथ उपलब्ध है।
पुस्तकालय व वाचनालय की सुन्दर व्यवस्था साइबर कैफे के साथ उपलब्ध है।
अन्नपूर्णा में शुध्द देशी घी/तेल से निर्मित सभी तरह के शुध्द सात्विक आहार एवं मिष्ठान उचित मूल्य पर उपलब्ध है।
पतंजलि योगपीठ के समीप में स्थित दिव्य औषधीय उद्यान में भ्रमण व औषधीय पौधों की उपलब्धता की व्यवस्था है।
पतंजलि योगपीठ में व्यवस्थित व विशाल पार्किंग व अमानती घर की व्यवस्था है।
पतंजलि योगपीठ फेज 2
950 कक्षों में आगन्तुकों की वातानुकूलित व गैर वातानुकूलित आवास व्यवस्था।
1000 लोगों की आवास व्यवस्था वाली एक निःशुल्क धर्मधाला।
20 हजार वर्ग फीट के आकार का भव्य लंगर हाल, जहाँ आगन्तुक निःशुल्क भोजन प्रसाद ग्रहण कर सकते है ।
प्रतिदिन 5000 आगन्तुकों की भोजन व्यवस्था की विशाल अन्नपूर्णा।
4 हजार वर्ग फीट में निर्मित भव्य यज्ञशाला।
वानप्रस्थ आश्रम के अन्तर्गत स्वस्थ, समर्थ व समर्पित वरिष्ठ नागरिकों की आवास व्यवस्था हेतु 350 अपार्टमेन्ट।
50 हजार वर्ग फीट में निर्मित भव्य संग्रहालय।
11 हजार वर्ग फीट आकार का योग, आयुर्वेद व प्राच्य विधाओं पर आधारित साहित्य व सामग्री हेतु विक्रय केन्द्र।
भारत माता नमन स्थल (निर्माणाधीन), जहाँ भारत के 600 से अधिक जनपदों से एकत्रित की गई पवित्र मिट्टी रखी जाएगी।

यहाँ 2 लाख वर्ग फ़ीट का विशाल नवीन ऑडिटोरियम बनाया गया है जिसमें 10 हजार साधक एक साथ बैठकर योग कर सकते है। इसी प्रकार 60 हजार वर्ग फीट का वृहत वातानुकूलित आडिटोरियम का निर्माण कराया गया है , जहाँ हजारों साधक एक साथ बैठकर योग, प्राणायाम व ध्यान आदि कर सकेंगे। 44 हजार वर्ग फीट का विशालकाय पंचकर्म व षट्कर्म केन्द्र, जहाँ लगभग 1000 व्यक्ति प्रतिदिन पंचकर्म व षट्कर्म का लाभ प्राप्त कर सकेंगे।

शांतिकुंज :-
शांति कुञ्ज संस्थान का विवरण :-
गंगा की गोद, हिमालय की छाया में विनिर्मित गायत्री तीर्थ- शांतिकुंज, हरिद्वार-ऋषिकेश मार्ग पर रेलवे स्टेशन से छह किलोमीटर दूरी पर स्थित है, जो युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य (1911-1990) एवं माता भगवती देवी शर्मा (1926-1994) की प्रचंड तप साधना की ऊर्जा से अनुप्राणित है। यह जागृत तीर्थ लाखों-करोड़ों गायत्री साधकों का गुरुद्वारा है।

1971 में स्थापित शांतिकुंज एक आध्यात्मिक सैनिटोरियम के रूप में विकसित किया गया है, जहाँ शरीर, मन एवं अंतःकरण को स्वस्थ, समुन्नत बनाने के लिए अनुकूल वातावरण, मार्गदर्शन एवं शक्ति अनुदानों का लाभ उठाया जा सकता है।यहाँ गायत्री माता का भव्य देवालय, सप्तर्षियों की प्रतिमाओं की स्थापना के साथ एक भटके हुए देवता का मंदिर भी है। गायत्री साधक यहाँ के साधना प्रधान नियमित चलने वाले सत्रों में भाग लेकर नवीन प्रेरणाएँ तथा दिव्य प्राण ऊर्जा के अनुदान पाकर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति में सहायता पाते हैं।

सन्‌ 1926 से प्रज्ज्वलित अखंड दीप यहाँ स्थापित है, जिसके सान्निध्य में पूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने कठोर तपस्या करके इसे विशाल गायत्री परिवार की सारी महत्वपूर्ण उपलब्धियों का मूल स्रोत बनाया। इसके सान्निध्य में 2400 करोड़ से अधिक गायत्री जप संपन्न हो चुके हैं। इसके दर्शन मात्र से दिव्य प्रेरणा एवं शक्ति संचार का लाभ सभी को मिलता है।

आश्रम की तीन विराट यज्ञशालाओं में नित्य नियमित रूप से हजारों साधक गायत्री यज्ञ संपन्न करते हैं। भारतीय संस्कृति के अंतर्गत सभी संस्कार जैसे- पुंसवन, नामकरण, अन्नप्राशन, मुंडन, शिखास्थापन, विद्यारंभ, यज्ञोपवीत, विवाह, वानप्रस्थ तथा श्राद्ध कर्म आदि यहाँ निःशुल्क संपन्न कराए जाते हैं। इनके व्यावहारिक तत्वदर्शन से प्रभावित होकर यहाँ नित्य बड़ी संख्या में संस्कारों के लिए लोग आते हैं।

शांतिकुंज के भव्य जड़ी-बूटी उद्यान में 300 से भी अधिक प्रकार की दुर्लभ-सर्वोपयोगी वनौषधियाँ लगाई गई हैं। विश्वभर के आयुर्वेद कॉलेजों के शिक्षार्थी तथा वैज्ञानिक यहाँ का वनौषधि उद्यान देखने आते हैं। विभिन्न ग्रह-नक्षत्रों के लिए भिन्न प्रकार की दिव्य औषधियों का एक ज्योतिर्विज्ञान सम्मत उद्यान यहाँ की एक विलक्षणता है। सभी आगंतुकों की शारीरिक-मानसिक जाँच-पड़ताल निष्णात चिकित्सकों द्वारा यहाँ निःशुल्क की जाती है तथा साधना के साथ-साथ वनौषधि प्रधान उपचार-परामर्श भी दिया जाता है।

यहाँ के विशाल भोजनालय में प्रतिदिन प्रायः पाँच हचार से अधिक आगंतुक श्रद्धालु तथा अनुमति लेकर आए शिक्षार्थी बिना मूल्य भोजन प्रसाद पाते हैं। यहाँ का पत्राचार विद्यालय भारत एवं विश्वभर में बैठे जिज्ञासुओं, प्रज्ञा परिजनों को दिनोदिन जीवन की उलझनों को सुलझाने का मार्गदर्शन देता रहता है।

अध्यात्म के गूढ़ विवेचनों की सरल व्याख्या कर उन्हें जीवन में कैसे उतारा जाए, अपने चिंतन, चरित्र एवं व्यवहार में उत्कृष्टता लाकर व्यक्तित्व को कैसे प्रभावकारी बनाया जाए, इसका सतत प्रशिक्षण यहाँ के नौ दिवसीय संजीवनी साधना सत्रों में चलता है, जो यहाँ वर्षभर संपादित होते रहते हैं। ये सत्र 1 से 9, 11 से 19, 21 से 29 की तारीखों में प्रति माह चलते हैं।पाँच दिवसीय मौन अंतः ऊर्जा जागरण सत्र यहाँ की विशेषता है। इनमें 60 साधक प्रति सत्र उच्चस्तरीय साधना करते हैं। ये ठंडक में आश्विन से चैत्र नवरात्र तक चलते हैं।

केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों के विभिन्न पदाधिकारियों को यहाँ नैतिक बौद्धिक तथा व्यक्तित्व परिष्कार का शिक्षण पाँच दिवसीय सत्रों में दिया जाता है। अब तब अस्सी हजार से अधिक अधिकारीगण इन मूल्यपरक शिक्षणों से लाभ पा चुके हैं। यहाँ हिमालय की एक दिव्य विराट प्रतिमा स्थापित की गई है, जिसमें सभी तीर्थों का दिग्दर्शन साधकों को वहाँ के इतिहास की पृष्ठभूमि के साथ मल्टीमीडिया प्रोजेक्शन पर किया जाता है। प्रायः साठ फुट चौड़ी, पंद्रह फुट ऊँची प्रतिमा के समक्ष बैठकर ध्यान करने का अपना अलग ही आनंद है। समीप स्थित देवसंस्कृति दिग्दर्शन में मिशन के वर्तमान स्वरूप व भावी योजनाओं का चित्रण किया गया है।

यहाँ से 'अखंड ज्योति' एवं 'युग निर्माण योजना' नामक हिंदी मासिक तथा ‘युग शक्ति गायत्री’ गुजराती, मराठी, उड़िया, बांग्ला, तमिल, अंग्रेजी एवं तेलुगू भाषाओं में तथा ‘प्रज्ञा अभियान’ पाक्षिक हिंदी व गुजराती में प्रकाशित होती हैं। भारत और विश्व में इन सभी पत्रिकाओं के पाठकों की संख्या लगभग पच्चीस लाख है।कृषि मंत्रालय भारत सरकार द्वारा शांतिकुंज को 'आपदा निवारण सलाहकार परिषद' की सदस्यता प्रदान की गई है। भूकंप व अन्य दैवी आपदाओं में केंद्र ने जन व शक्ति से सदैव मदद की है। कारगिल संकट पर पूरे भारत से गायत्री परिवार ने सवा करोड़ रुपए की राशि राष्ट्रीय सुरक्षा कोष में दी। भुज कच्छ में प्रायः पाँच करोड़ रुपए से पुनर्वास के कार्य किए गए।

लगभग एक हजार उच्च शिक्षित कार्यकर्ता शांतिकुंज में स्थायी रूप से सपरिवार निवास करते हैं। निर्वाह हेतु वे औसत भारतीय स्तर का भत्ता मात्र संस्था से लेते हैं।इस प्रकार शांतिकुंज एक ऐसी स्थापना है, जिसे सच्चे अर्थों में युग तीर्थ कहा जा सकता है। यहाँ आने वाला व्यक्ति कृतकृत्य होकर जाता है एवं नैसर्गिक सौंदर्य तथा आध्यात्मिक ऊर्जा से अनुप्राणित वातावरण में बार-बार आने के लिए लालायित रहता है। 
संसाधन 
लगभग हजार वर्गमीटर में निर्मित, निर्माणाधीन और प्रस्तावित भवनों का क्षेत्र है। आवास, आयुर्वेद-अनुसंधान, फार्मेसी, प्रशासनिक, स्वावलंबन, सभागार, ध्यान कक्ष आदि भवनों के स्थान सुरक्षित हैं, जो दिव्य स्वरूप प्रदान करते हैं।

कर्मचारियों हेतु आवास की पूर्ण व्यवस्था है। अतिथिगृह के साथ-साथ यज्ञशाला की व्यवस्था है। खेलकूद तथा व्यायामशाला के लिए आवश्यक सुविधाएँ विद्यमान हैं।

शैक्षणिक संस्थान---
हरिद्वार और आसपास के क्षेत्रों में में निम्नलिखित शिक्षा संस्थान है:-
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की - 30 किमी भूतपूर्व रुड़की इंजीनियरी कॉलेज, जो अब एक आई॰आई॰टी बन चुका है, यह भारत में प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उच्च शिक्षा का एक महत्वपूर्ण संस्थान है जो हरिद्वार से ३० मिनट की दूरी पर रुड़की में स्थित है।
कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग (कोएर) - 14 किमी एक निजी अभियांतिकी संस्थान जो हरिद्वार और रुड़की के बीच राष्ट्रीय महामार्ग 58 पर स्थित है।
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय - 4 किमी कनखल में गंगा नदी के तट पर हरिद्वार-ज्वालापुर बाइपास सड़क पर स्थित।
चिन्मय डिग्री कॉलेज हरिद्वार से 10 किमी दूर स्थित शिवालिक नगर में बसा यह हरिद्वार के विज्ञान कोलेजों में से एक है।
विश्व संस्कृत विद्यालय संस्कृत विश्विद्यालय, हरिद्वार जिसकी स्थापन उत्तराखंड सरकार द्वारा की गई थी विश्व का एकमात्र विश्वविद्यालय है जो पूर्णतः प्राचीन संस्कृत ग्रंथों, पुस्तकों की शिक्षा को समर्पित है। इसके पाठ्यक्रम के अंतर्गत हिन्दू रीतियों, संस्कृति, और परंपराओं की शिक्षा दी जाती है, और इसका भव्य भवन प्राचीन हिन्दू वास्तुशिल्प पर आधारित है।
दिल्ली पब्लिक स्कूल, रानीपुर क्षेत्र के प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में से यह एक है जो विश्वव्यापी दिल्ली पब्लिक स्कूल परिवार का भाग है। यह अपनी उत्कृष्ट शैक्षणिक उपलब्धियों, खेलों, पाठ्यक्रमेतर क्रियाकलापों के साथ-साथ सर्वोत्तम सुविधाओं, प्रयोगशालाओं, और शैक्षणिक वातावरन के लिए जाना जाता है।
डी॰ए॰वी सैन्टेनरी पब्लिक स्कूल जगजीत्पुर में स्थित यह विद्यालय शिक्षा के साथ-साथ अपने विद्यार्थियों कों नैतिकता का पाठ भी सिखाता है ताकी यहाँ से निकला हर विद्यार्थी संसार के हर कोने को प्रकाशित कर सके।
केन्द्रीय विद्यालय, बी॰एच॰ई॰एल केन्द्रिय विद्यालय, बी॰एच॰ई॰एल, हरिद्वार के प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में से एक है, जिसकी स्थापना 7 जुलाई, 1975 को की गई थी। केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से संबद्धीकृत, इस विद्यालय में प्री-प्राइमरी से 12वीं तक 2,००० से अधिक विद्यार्थी पढ़ते है।


हरिद्वार नगर, हरिद्वार जनपद का मुख्यालय है। यह नगर हिन्दुओं का एक अति प्राचीन तीर्थ एवं धार्मिक स्थल है। संस्कत भाषा तथा हिन्दुओं के अन्य धार्मिक कलापों का भी प्रमुख केन्द्र है। वर्तमान में इस नगर में कुछ उधोगों का विकास हुआ है। यह नगर मेरठ से 141 किमी0 सहारनपुर से 81 किमी0 लखनउ से 494 किमी0 तथा देहरादून से 52 किमी0 पर स्थित है।

नगर की आबादी मुख्यतः चार भागों में विभाजित हैं 1- हरिद्वार 2- ज्वालापुर 3- कनखल 4- भारत हैवी इलैक्ट्रिकल टाउनशिप।

हरिद्वार नगर पश्चिम उत्तर प्रदेश में जडी बूटियों एवं जंगल से प्राप्त लकडी की एक प्रमुख मण्डी है। यह नगर राजकीय राजमार्ग संख्या 45 दिल्ली से प्रारम्भ होकर मेरठ, मुजपफरनगर, रूडकी, हरिद्वार होती हुई भारत तिब्बत सीमा पर स्थित नीतीपास नामक स्थान पर जाकर समाप्त होती है।

जलवायु :-
हरिद्वार की जलवायु उत्तर प्रदेश के मैदानी क्षेत्र के लगभग समान है जो अत्यन्त स्वास्थ्यप्रद है। मई तथा जून के महीनों में भीषण गर्मी पडती है। नगर का तापमान 1.3 से 41.1 डिग्री सेंटीग्रेट के मध्य रहता है। नगर में पानी की सतह की औसत गहराई 25x35 फीट है।

पर्व :-
गहन धार्मिक महत्व के कारण हरिद्वार में वर्ष भर में कई धार्मिक त्यौहार आयोजित होते हैं जिनमें प्रमुख हैं :- कवद मेला, सोमवती अमावस्या मेला, गंगा दशहरा, गुघल मेला जिसमें लगभग 20-25 लाख लोग भाग लेते हैं।

इस के अतिरिक्त यहाँ कुंभ मेला भी आयोजित होता है बार हर बारह वर्षों में मनाया जाता है जब बृहस्पति ग्रह कुम्भ राशिः में प्रवेश करता है। कुंभ मेले के पहले लिखित साक्ष्य चीनी यात्री, हुआन त्सैंग (602 - 664 ई.) के लेखों में मिलते हैं जो 639 ई. में भारत की यात्रा पर आया था।

भारतीय शाही राजपत्र (इम्पीरियल गज़टर इंडिया), के अनुसार 1812 के महाकुम्भ में हैजे का प्रकोप हुआ था जिसके बाद मेला व्यवस्था में तेजी से सुधार किये गए और, 'हरिद्वार सुधार सोसायटी' का गठन किया गया, और 1903 में लगभग 4,00,000 लोगों ने मेले में भाग लिया। 1980 के दशक में हुए एक कुम्भ में हर-की-पौडी के निकट हुई एक भगदड़ में 600 लोग मारे गए और बीसियों घायल हुए। 1998 के महा कुंभ मेले में तो 8 करोड़ से भी अधिक तीर्थयात्री पवित्र गंगा नदी में स्नान करने के लिए यहाँ आये। 

परिवहन :-
हरिद्वार अच्छी तरह सड़क मार्ग से राष्ट्रीय राजमार्ग 58 से जुड़ा है जो दिल्ली और मानापस को आपस में जोड़ता है। निकटतम ट्रेन स्टेशन हरिद्वार में ही स्थित है जो भारत के सभी प्रमुख नगरों को हरिद्वार से जोड़ता है। निकटतम हवाई अड्डा जौली ग्रांट, देहरादून में है लेकिन नई दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को प्राथमिकता दी जाती है।

उद्योग :-
जबसे राज्य सरकार की सरकारी संस्था, सिडकुल (उत्तराखंड राज्य ढांचागत और औद्योगिक विकास निगम लिमिटेड) द्वारा एकीकृत औद्योगिक एस्टेट की स्थापना इस ज़िले में की गई है, तबसे हरिद्वार बहुत तेजी से उत्तराखंड के महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र के रूप में विकसित हो रहा है, जो देशभर के कई महत्वपूर्ण औद्योगिक घरानों को आकर्षित कर रहा है, जो यहाँ विनिर्माण सुविधाओं की स्थापना कर रहे हैं।
हरिद्वार पहले से ही एक संपन्न औद्योगिक क्षेत्र में स्थित है जो बाईपास रोड के किनारे बसा है जहाँ पर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, भेल की मुख्य सहायक इकाइयां स्थापित है जो यहाँ 1964 में स्थापित की गयी थी और आज यहाँ 8,000 से अधिक लोग प्रयुक्त हैं।

कब जाएं
वैसे तो हरिद्वार में पर्यटन के लिहाज से साल में कभी भी जाया जा सकता है। लेकिन सर्दियों में यहां भीड़ कम होती है। अक्टूबर से मार्च की अवधि यहां आने के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है।

कुछ सावधानियाँ :--
1. अपनी यात्रा के लिए उचित समय चुनें यानि अक्तूबर से मार्च का समय अगर कोई बंदिश नहीं है तो ,यात्रा सुबह शुरू करें तो बहुत बढ़िया |
2. हरिद्वार यात्रा का पूरा आनन्द लेना चाहते हैं तो 4-5 दिन का    कार्यक्रम बनायें ,तभी आप आसपास के दर्शनीय स्थलों का आनंद ले सकते हैं |
3. सामान कम लेकर जाएँ ,कुछ जरुरी दवाईयां अवश्य साथ रखें | 
4. अपनी सुविधानुसार जिस धर्मशाला या होटल में ठहरें वो हर की पौढ़ी के पास हो तो अति उत्तम ,आप जब चाहें गंगा स्नान कर के आ सकते हैं |बच्चों को बाजार में घुमा सकते हैं ,कोई त्यौहार हो तो झाँकियाँ दिखा सकते हैं |
5. सामन किसी के भरोसे छोड़ कर गंगा स्नान को न जाएँ ,वहां पण्डे बैठे हैं उनके पास ही अपना सामान रखें |
6. नहाने के लिए सूती कपड़े ना लेकर जाएँ ,इसके लिए रेशमी कपड़े हों तो बहुत खूब |
7. कहीं भी देवी देवता के दर्शनों में बंदरों से सावधान रहें |
8. साफ़ सफाई का ख़ास ख्याल रखें ,धार्मिक स्थलों को और गंगा को गन्दा होने से बचाएं ,इसमें आपका योगदान अहम् एवं अनिवार्य है |

चतुर्थ दिन 
आज हमारी सुबह 6.20 की वापिसी की गाड़ी थी ,इसलिए सबको 4 बजे उठा दिया गया था और 5 बजे तक सब धर्मशाला के प्रांगन में इक्कठे हो चुके थे | अब धर्मशाला के प्रबंधकों ने पहले से ही कुछ टेम्पो वालों को बोल रखा था वो सब वहां आ गए थे वैसे आपको हर समय टेम्पो उपलब्ध रहते हैं आप आराम से स्टेशन या बस स्टैंड पहुँच सकते हैं | सब टेम्पो में सात सात लोग बैठकर 5.40 तक स्टेशन पहुँच चुके थे | सबने 30-30 रुपये टेम्पो वाले को दिए और प्लेटफार्म नंबर 2 पर पहुँच गए यहाँ हमारी गाड़ी आने वाली थी | जब वहां पहुंचे तो ट्रैक पर कोई बूढा भिखारी शायद मरा पड़ा था इसलिए पुलिस के आने के बाद उसकी लाश वहां से उठाई गई इसलिए गाड़ी चलने में थोड़ी देरी हो गई थी |गाड़ी लगभग 6.40 तक चल पी थी |
       गाड़ी में बैठने के थोड़ी देर बाद ही सब नाश्ता करने लगे थे जो बहुत ही प्यार से धर्मशाला में ही हम सबके लिए पूरियाँ और आचार पैक कर के बाँट दिया गया था | गाड़ी हमारी जन शताब्दी थी और गर्मी अपने चरम पर थी जैसे जैसे दिन बढ़ रहा था गर्मी भी बढती जा रही थी और वैसे भी घर वापिसी में हमेशा थकान ही महसूस होती है और घर पहुँचने की जल्दी भी 
गाड़ी के पहुँचने का समय था 11.30 बजे का लेकिन थोड़ी देरी के कारण गाड़ी पहुंची लगभग 12.30 बजे | वहां से सब मेट्रो स्टेशन पहुंचे और फिर अपने अपने घर कुछ सुनहरी यादों के साथ |

चलिए दोस्तो मिलते हैं एक और यात्रा वृतांत के साथ तब तक सबको राम राम |

शनिवार, 26 जुलाई 2014

हरिद्वार यात्रा भाग 3.

दर्शनीय स्थल :--
इस भाग में हम हरिद्वार और उसके आसपास के दर्शनीय स्थलों के बारे जानेंगे |

हर की पौडी:---
यह पवित्र घाट राजा विक्रमादित्य ने पहली शताब्दी ईसा पूर्व में अपने भाई भ्रिथारी की याद में बनवाया था. मान्यता है कि भ्रिथारी हरिद्वार आया था और उसने पावन गंगा के तटों पर तपस्या की थी. जब वह मरे, उनके भाई ने उनके नाम पर यह घाट बनवाया, जो बाद में हरी- की- पौड़ी कहलाया जाने लगा. हर की पौड़ी का सबसे पवित्र घाट ब्रह्मकुंड है. संध्या समय गंगा देवी की हरी की पौड़ी पर की जाने वाली आरती किसी भी आगंतुक के लिए महत्वपूर्ण अनुभव है. स्वरों व रंगों का एक कौतुक समारोह के बाद देखने को मिलता है जब तीर्थयात्री जलते दीयों को नदी पर अपने पूर्वजों की आत्मा की शान्ति के लिए बहाते हैं. विश्व भर से हजारों लोग अपनी हरिद्वार यात्रा के समय इस प्रार्थना में उपस्थित होने का ध्यान रखते हैं. 
मनसा देवी मंदिर :---
मनसा देवी मंदिर एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है जो हरिद्वार शहर से लगभग 3 किमी दूर स्थित है। यह मंदिर हिंदू देवी मनसा देवी को समर्पित है जो ऋषी कश्यप के दिमाग की उपज है। कश्यप ऋषी प्राचीन वैदिक समय में एक महान ऋषी थे। मनसा देवी, सापों के राजा नाग वासुकी की पत्नी हैं।



मनसा देवी जाने के लिए लोग पैदल या उड़नखटोले से जा सकते हैं लेकिन उड़नखटोले के लिए लगभग दो दो घंटे लाइन में लगना पड़ता है इसलिए लोग सुबह सुबह पैदल ही निकल जाते हैं 
मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप में पूजा जाता है। इनका प्रादुर्भाव मस्तक से हुआ है इस कारण इनका नाम मनसा पड़ा। इनके पति जगत्कारु तथा पुत्र आस्तिक जी हैं।
रूप:-
मनसा देवी आस्तिक को गोद में लिए हुए, 10वीँ सदी पाल वंश, बिहार।
मनसा देवी मुख्यत: सर्पों से आच्छादित तथा कमल पर विराजित हैं 7 नाग उनके रक्षण में सदैव विद्यमान हैं। कई बार देवी के चित्रों तथा भित्ति चित्रों में उन्हें एक बालक के साथ दिखाया गया है जिसे वे गोद में लिये हैं, वह बालक देवी का पुत्र आस्तिक है।





 यह मंदिर शिवालिक पहाड़ियों के बिल्व पर्वत पर स्थित है और इस मंदिर में देवी की दो मूर्तियाँ हैं।
एक मूर्ती की पांच भुजाएं एवं तीन मुहं है एवं दूसरी अन्य मूर्ती की आठ भुजाएं हैं। 52 शक्तिपीठों(हिंदू देवी सती या शक्ति की पूजा किये जाने वाले स्थल) में से एक यह मंदिर सिद्ध पीठ त्रिभुज के चरम पर स्थित है। यह त्रिभुज माया देवी, चंडी देवी एवं मनसा देवी मंदिरों से मिलकर बना है।
          इस मंदिर में भ्रमण के दौरान भक्त एक पवित्र वृक्ष के चारों ओर एक धागा बांधते हैं एवं भगवान् से अपनी मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना करते हैं। मनोकामना पूर्ण होने के बाद वृक्ष से इस धागे को खोलना आवश्यक है। पर्यटक इस मंदिर तक केबल कार द्वारा पहुँच सकते हैं। केबल कार यहाँ ‘देवी उड़नखटोला’ के नाम से प्रसिद्ध है।
मंदिर के खुलने का समय : सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक है और 12 बजे से 2 बजे तक भोजन के लिए मंदिर बंद रहता है |



उड़न खटोला का समय :-
गर्मी में :
अप्रैल से अक्तूबर ... सुबह 7 बजे से रात 8 बजे तक 
सर्दी में :
नवम्बर से मार्च ......सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक 
किराया :- दोनों तरफ का केबल कार का किराया 65 रुपये और एक तरफ का किराया 45 रुपये है |

चढाई के रास्ते में कई स्कूटर या बाइक वाले भी 50 या 70 रुपये लेकर एक एक सवारी को दरबार तक छोड़ देते हैं |
मनसा देवी से जुड़ी मान्यताएं :--
महाभारत:-
जन्मेजय का सर्पेष्ठी यज्ञ
पाण्डुवंश में पाण्डवों में से एक धनुर्धारी अर्जुन और उनकी द्वितीय पत्नि सुभद्रा जो श्री कृष्ण की बहन हैं, उनके पुत्र अभिमन्यु हुआ जो महाभारत के युद्ध में मारा गया। अभिमन्यु का पुत्र परीक्षित हुआ, जिसकी मृत्यु तक्षक सर्प के काटने से हुई। परीक्षित पुत्र जन्‍मेजय ने अपने छ: भाइयों के साथ प्रतिशोध में सर्प जाति के विनाश के लिये सर्पेष्ठी यज्ञ किया। वासुकी ने अपनी बहन मनसा का विवाह किया तथा उसके पुत्र आस्तिक नें सर्पों को यज्ञ से बचाया।
राजा युधिष्ठिर ने भी माता मानसा की पूजा की थी जिसके फल स्वरूप वह महाभारत के युद्ध में विजयी हुए। जहाँ युधिष्ठिर ने पूजन किया वहाँ सालवन गाँव में भव्य मंदिर का निर्माण हुआ।
पुराण:-
अलग अलग पुराणों में मनसा की अलग अलग किंवदंती है। पुराणों में बताया गया है कि इनका जन्म कश्यप के मस्तिष्क से हुआ तथा मनसा किसी भी विष से अधिक शक्तिशाली थी इसलिये ब्रह्मा ने इनका नाम विषहरी रखा।
विष्णु पुराण:-
विष्णु पुराण के चतुर्थ भाग में एक नागकन्या का वर्णन है जो आगे चलकर मनसा के नाम से प्रतलित हुई।

चंडी देवी मंदिर :--
चंडी देवी मंदिर नील पर्वत के शिखर पर स्थित है। यह देश के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है एवं इसे कश्मीर के तत्कालीन शासक द्वारा वर्ष 1929 में बनवाया गया था। हालांकि ऐसा कहा जाता है कि मंदिर में जो मूर्ति है उसे महान संत आदि शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में स्थापित किया था।



रेलवे स्टेशन से करीब छह किलोमीटर दूरी पर हरिद्वार-नजीबाबाद रोड पर शिवालिक पर्वत माला के एक शिखर पर स्थापित इस मंदिर के लिए पैदल और उडऩ खटोले से जाने की व्यवस्था है। स्टेशन से मंदिर के रास्ते के लिए ऑटो, टेम्पो, टैक्सी, साइकिल रिक्शा और तांगा उपलब्ध हैं|
         चंडी घाट से तीन किलोमीटर की ट्रैकिंग है या उड़न खटोले से भी यहाँ जाया जा सकता है | पूरे हरिद्वार में कहीं भी आप ठहरे हैं टेम्पो ,टैक्सी आपको मिल जाते हैं जो आपके गंतव्य तक पहुंचाते हैं |
         धार्मिक मान्यता है कि जहां मनसादेवी होंगी, वहां चंडी देवी का होना अनिवार्य है। पौराणिक कथाओं के अनुसार तंत्र-मंत्र की सिद्धिरात्री चंडीदेवी ने इसी स्थान पर शुंभ-निशुंभ नामक असुरों का वध किया था। शिवालिक पर्वत श्रृंखला पर स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर के पास शुंभ और निशुंभ नाम के दो पर्वत आज भी हैं। मंदिर में मां काली की प्रतिमा विराजमान है। इसके पास ही हनुमान जी की माता अंजनी देवी का मंदिर भी स्थित है। मां चंडी देवी की रात में विशेष पूजा होती है। भक्तगण अपनी खास पूजा के लिए मंदिर समिति से संपर्क इस खास अनुष्ठान को अपने तथा अपने परिवार के लिए भी करा सकते हैं। नवरात्रों में इस विशेष पूजा का खास महत्व है। इसके मद्देनजर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। विशेष पूजा करने वालों की संख्या ज्यादा होती है। मान-मनौती के लिए मंदिर की बड़ी आस्था है।



मंदिर में मां की चुनरी को बांध मनौती मांगने की परंपरा है। इसकी बड़ी मान्यता है। चुनरी बांध कर मन की इच्छा पूर्ति की देवी से प्रार्थना करने पर वो अवश्य पूरी होती है। मनौती पूरी होने पर देवी दर्शन तत्पश्चात चुनरी खोलने की भी परंपरा है। नवरात्रों में इसका विशेष महत्व है।
माया देवी मंदिर :---

हरिद्वार की रक्षा के लिए एक अद्भुत त्रिकोण विद्यमान है। इस त्रिकोण के दो बिंदु पर्वतों पर मनसा और चंडी के रूप में स्थित है। त्रिकोण उल्टा है और उसका शिखर धरती पर है। उसी अधोमुख शिखर पर भगवती माया आसीन हैं। अधोमुख त्रिभुज के शिखर पर स्थापित माया देवी के नाम पर ही हरिद्वार का प्राचीन नाम मायापुरी पड़ा। यह 52 शक्तिपीठों में से एक है जो हिंदू देवी सती या शक्ति द्वारा पवित्र किया गया भक्ति स्थल है। यह मंदिर हिंदू देवी अधिष्ठात्री को समर्पित है एवं इसका इतिहास 11वीं शताब्दी से उपलब्ध है। ब्रह्मपुराण में सप्त पुरियोंको मोक्षदायिनी बताया है। इनमें मायापुरी भी शामिल है।



       प्रचलित मान्यता के अनुसार, एक बार दक्ष प्रजापति ने हरिद्वार स्थित कनखल में यज्ञ किया। यज्ञ में शिव शंकर के अपमान से कुपित होकर माता सती ने हवनकुंड में आहुति दे दी। इस पर शिव शंकर व्यधित होकर पत्‍‌नी के वियोग में खो गए। कहते हैं कि वियोग में भोले शंकर सती के मृत शरीर को लेकर जगह-जगह भटकने लगे।

इसपर विष्णु भगवान ने शिव शंकर के वियोग को समाप्त करने के लिए सुदर्शन चक्र से सती के मृत काया के 51 हिस्से कर दिए। ये हिस्से जहां-जहां गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। मान्यता है कि माया देवी मंदिर में सती की मृत काया की नाभि गिरी थी और यह जगह माया देवी के रूप में विख्यात हुई। 




प्राचीन काल से माया देवी मंदिर में देवी की पिंडी विराजमान है। 18वीं सदी में इस मंदिर में देवी की मूर्तियां की भी प्राण-प्रतिष्ठा की गई। मंदिर के बगल में आनंद भैरव का मंदिर भी है। पर्व-त्योहारों के समय बड़ी संख्या में श्रद्धालु माया देवी मंदिर के दर्शन करने को पहुंचते हैं।

इस मंदिर का अनेक बार जीर्णोद्धार किया गया। वर्तमान समय में मंदिर का प्रबंध जूना-भैरव अखाड़ा देखता है। मंदिर में सायं कालीन आरती देखने योग्य होती है। विशेषकर गुजरात, राजस्थान, पश्चिमी बंगाल और उड़ीसा से आने वाले यात्री माया देवी का दर्शन अवश्य करते हैं। 

सप्तऋषि आश्रम:-
इस आश्रम के सामने गंगा नदी सात धाराओं में बहती है इसलिए इस स्थान को सप्त सागर भी कहा जाता है। माना जाता है कि जब गंगा नदी बहती हुई आ रही थीं तो यहाँ सात ऋषि गहन तपस्या में लीन थे। गंगा ने उनकी तपस्या में विघ्न नहीं डाला और स्वयं को सात हिस्सों में विभाजित कर अपना मार्ग बदल लिया। इसलिए इसे 'सप्‍त सागर' भी कहा जाता है।

दक्ष महादेव मंदिर:-
यह प्राचीन मंदिर नगर के दक्षिण में स्थित है। सती के पिता राजा दक्ष की याद में यह मंदिर बनवाया गया है। किवदंतियों के अनुसार सती के पिता राजा दक्ष ने यहाँ एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया था। यज्ञ में उन्होंने शिव को नहीं आमन्त्रित किया। अपने पति का अपमान देख सती ने यज्ञ कुण्ड में आत्मदाह कर लिया। इससे शिव के अनुयायी गण उत्तेजित हो गए और दक्ष को मार डाला। बाद में शिव ने उन्हें पुनर्जीवित कर दिया।





परमेश्वर महादेव मंदिर :-
यह मंदिर हरिद्वार से लगभग 4 कि.मी. दूर है, यहां पारे से बना एक पवित्र शिवलिंग है।

पवन धाम मंदिर :-
शहर से लगभग 2 कि.मी. दूर पवन धाम मंदिर है। उत्कृष्ट आईनों और शीशे पर किए गए कार्य के लिए प्रसिद्ध इस मंदिर में व्यापक रूप से अलंकृत मूर्तियां हैं। इसे शीशे वाला मंदिर भी कहते हैं | 

लाल माता मंदिर :-
यह मंदिर जम्मू-कश्मीर में स्थित वैष्णों देवी मंदिर का प्रतिरूप है। यहां एक नकली पहाड़ी और बर्फ से जमाया हुआ शिवलिंग है जो अमरनाथ के शिवलिंग का प्रतिरूप है।

यहां अनेक दर्शनीय मंदिर हैं जिनमें दक्ष महादेव मंदिर, भारत माता मंदिर और चंदा देवी प्रमुख हैं। जय राम आश्रम, आनंदमयी मां आश्रम, सप्त ऋषि आश्रम और परमार्थ आश्रम अन्य दर्शनीय स्थल हैं।

कनखल :-
कनखल, हरिद्वार शहर से बिलकुल सटा हुआ है। कनखल के विशेष आकर्षण प्रजापति मंदिर, सती कुंड एवं दक्ष महादेव मंदिर हैं। कनखल आश्रमों तथा विश्व प्रसिद्ध गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के लिए भी जाना जाता है।
कनखल का पौराणिक महत्त्व:-
महाराजा शिव की राजधानी कनखल (हरिद्वार) में थी। शिव से सती का सती होना सहन नहीं हुआ ,शिव ने वीरभद्र को बुलाया और कहा कि मेरी गण सेना का नेतृत्व करो और दक्ष का यज्ञ नष्ट कर दो. वीरभद्र शिव के गणों के साथ गए और यज्ञ को नष्ट कर दक्ष का सर काट डाला।

      कनखल में सभी हिन्दू दाह संस्कार के बाद अस्थियाँ प्रवाह करते हैं जिससे ऐसा माना जाता है की आत्मा की मुक्ति होती है |


ऋषिकेश :--
ऋषिकेश हरिद्वार से लगभग 25 किलोमीटर दूर है ,यहाँ के लिए आपको आराम से टेम्पो मिल जाते हैं जो आपको 45-50 मिनट में ही ऋषिकेश पहुंचा देते हैं | आप सीधे ऋषिकेश भी जा सकते हैं | या हरिद्वार यात्रा के साथ भी इसका आनंद ले सकते हैं |





कैसे जाएं----
वायुमार्ग-
ऋषिकेश से 18 किमी. की दूरी पर देहरादून के निकट जौली ग्रान्ट एयरपोर्ट नजदीकी एयरपोर्ट है। एयर इंडिया, किंगफिशर, जेट एवं स्पाइसजेट की फ्लाइटें इस एयरपोर्ट को दिल्ली से जोड़ती है।
रेलमार्ग-
ऋषिकेश का नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जो शहर से 5 किमी. दूर है। ऋषिकेश देश के प्रमुख रेलवे स्टेशनों से जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग-
दिल्ली के कश्मीरी गेट से ऋषिकेश के लिए डीलक्स और निजी बसों की व्यवस्था है। राज्य परिवहन निगम की बसें नियमित रूप से दिल्ली और उत्तराखंड के अनेक शहरों से ऋषिकेश के लिए चलती हैं।

हिमालय का प्रवेश द्वार, ऋषिकेश जहाँ पहुँचकर गंगा पर्वतमालाओं को पीछे छोड़ समतल धरातल की तरफ आगे बढ़ जाती है। ऋषिकेश का शांत वातावरण कई विख्यात आश्रमों का घर है। 
ऋषिकेश को केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री का प्रवेशद्वार माना जाता है। कहा जाता है कि इस स्थान पर ध्यान लगाने से मोक्ष प्राप्त होता है। हर साल यहाँ के आश्रमों के बड़ी संख्या में तीर्थयात्री ध्यान लगाने और मन की शान्ति के लिए आते हैं। विदेशी पर्यटक भी यहाँ आध्यात्मिक सुख की चाह में नियमित रूप से आते रहते हैं। ऋषिकेश के दर्शनीय स्थल 
देखे बिना आप आ ही नही सकते |
लक्ष्मण झूला :-
गंगा नदी के एक किनार को दूसर किनार से जोड़ता यह झूला नगर की विशिष्ट की पहचान है। इसे 1939 में बनवाया गया था। कहा जाता है कि गंगा नदी को पार करने के लिए लक्ष्मण ने इस स्थान पर जूट का झूला बनवाया था। झूले के बीच में पहुंचने पर वह हिलता हुआ प्रतीत होता है। 450 फीट लंबे इस झूले के समीप ही लक्ष्मण और रघुनाथ मंदिर हैं। झूले पर खड़े होकर आसपास के खूबसूरत नजारों का आनंद लिया जा सकता है। लक्ष्मण झूला के समान राम झूला भी नजदीक ही स्थित है। यह झूला शिवानंद और स्वर्ग आश्रम के बीच बना है। इसलिए इसे शिवानंद झूला के नाम से भी जाना जाता है।ऋषिकेश मैं गंगाजी के किनारे की रेट बड़ी ही नर्म और मुलायम है ,इस पर बैठने से यह माँ की गोद जैसी स्नेहमयी और ममतापूर्ण लगती है,यहाँ बैठकर दर्शन करने मात्र से ह्रदय मैं असीम शांति और रामत्व का उदय होने लगता है ...






राम झूला :-
राम झूला उत्तराखंड राज्य के ऋषिकेश शहर में शिवानंद और स्वर्ग आश्रम के बीच बना है। इसलिए इसे 'शिवानंद झूला' के नाम से भी जाना जाता है।
शिवानंद आश्रम के सामने एक झूलेनुमा पुल बना हुआ है, जिसे राम झूले के नाम से जाना जाता हैं। राम झूला लक्ष्मण झूला के नज़दीक स्थित है।
स्वर्गाश्रम क्षेत्र में जाने हेतु राम झूला गंगा के उस पार से इस पार ले जाने का रास्ता है। राम झूला भार भी झेल सकता है। दुपहिया वाहन इसके ऊपर से अक्सर निकलते देखे जा सकते हैं। राम झूले (पुल) पर जब लोग चलते है तो यह झूलता हुआ प्रतीत होता है। हिचकोले खाते हुए, राम झूले के ऊपर से नीचे बह रही गंगा का विहंगम दृश्य का आनंद लिया जा सकता है।

चित्र:Ram-Jhula-1.jpg

त्रिवेणी घाट :-
ऋषिकेश में स्नान करने का यह प्रमुख घाट है जहां प्रात: काल में अनेक श्रद्धालु पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाते हैं। कहा जाता है कि इस स्थान पर हिन्दु धर्म की तीन प्रमुख नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है। इसी स्थान से गंगा नदी दायीं ओर मुड़ जाती है। शाम को होने वाली यहां की आरती का नजारा बेहद आकर्षक होता है।




स्वर्ग आश्रम-
स्वामी विशुद्धानन्द द्वारा स्थापित यह आश्रम ऋषिकेश का सबसे प्राचीन आश्रम है। स्वामी जी को काली कमली वाले नाम से भी जाना जाता था। इस स्थान पर बहुत से सुन्दर मंदिर बने हुए हैं। यहां खाने पीने के अनेक रस्तरां हैं जहां सिर्फ शाकाहारी भोजन ही परोसा जाता है। आश्रम की आसपास हस्तशिल्प के सामान की बहुत सी दुकानें हैं।




नीलकंठ महादेव मंदिर-
लगभग 5500 फीट की ऊंचाई पर स्वर्ग आश्रम की पहाड़ी की चोटी पर नीलकंठ महादेव मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने इसी स्थान पर समुद्र मंथन से निकला विष ग्रहण किया गया था। विषपान के बाद विष के प्रभाव के से उनका गला नीला पड़ गया था और उन्हें नीलकंठ नाम से जाना गया था। मंदिर परिसर में पानी का एक झरना है जहां भक्तगण मंदिर के दर्शन करने से पहले स्थान करते हैं।



भरत मंदिर-

यह ऋषिकेश का सबसे प्राचीन मंदिर है जिसे 12 शताब्दी में आदि गुरू शंकराचार्य ने बनवाया था। भगवान राम के छोटे भाई भरत को समर्पित यह मंदिर त्रिवेणी घाट के निकट ओल्ड टाउन में स्थित है। मंदिर का मूल रूप 1398 में तैमूर आक्रमण के दौरान क्षतिग्रस्त कर दिया गया था। हालांकि मंदिर की बहुत सी महत्वपूर्ण चीजों को उस हमले के बाद आज तक संरक्षित रखा गया है। मंदिर के अंदरूनी गर्भगृह में भगवान विष्णु की प्रतिमा एकल शालीग्राम पत्थर पर उकेरी गई है। आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा रखा गया श्रीयंत्र भी यहां देखा जा सकता है।

कैलाश निकेतन मंदिर-
लक्ष्मण झूले को पार करते ही कैलाश निकेतन मंदिर है। 12 खंड़ों में बना यह विशाल मंदिर ऋषिकेश के अन्य मंदिरों से भिन्न है। इस मंदिर में सभी देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं।

वशिष्ठ गुफा-
ऋषिकेश से 22 किमी. की दूरी पर 3000 साल पुरानी वशिष्ठ गुफा बद्रीनाथ-केदारनाथ मार्ग पर स्थित है। इस स्थान पर बहुत से साधुओं विश्राम और ध्यान लगाए देखे जा सकते हैं। कहा जाता है यह स्थान भगवान राम और बहुत से राजाओं के पुरोहित वशिष्ठ का निवास स्थल था। वशिष्ठ गुफा में साधुओं को ध्यानमग्न मुद्रा में देखा जा सकता है। गुफा के भीतर एक शिवलिंग भी स्थापित है।

गीता भवन-
राम झूला पार करते ही गीता भवन है जिसे 1950 ई. में श्रीजयदयाल गोयन्काजी ने बनवाया गया था। यह अपनी दर्शनीय दीवारों के लिए प्रसिद्ध है। यहां रामायण और महाभारत के चित्रों से सजी दीवारें इस स्थान को आकर्षण बनाती हैं। यहां एक आयुर्वेदिक डिस्पेन्सरी और गीताप्रेस गोरखपुर की एक शाखा भी है। प्रवचन और कीर्तन मंदिर की नियमित क्रियाएं हैं। शाम को यहां भक्ति संगीत की आनंद लिया जा सकता है। तीर्थयात्रियों के ठहरने के लिए यहां सैकड़ों कमरे हैं।

रिवर राफ्टिंग -
ऋषिकेश को रिवर राफ्टिंग का मक्का कहा जाता है और यहां हर साल हजारों एडवेंचर लवर राफ्टिंग के लिए पहुंचते हैं. लेकिन न तो सरकार अब तक चेती है और न राफ्टिंग कारोबारी सुरक्षा के पूरे उपाय कर पाए हैं. अप्रशिक्षित और युवा गाइडों के साथ कामचलाऊ सुरक्षा उपकरणों के सहारे देसी-विदेशी पर्यटकों की जान को खतरे में डाला जा रहा है| गर्मी का मौसम शुरू होते ही पर्यटक व्हाइट वॉटर राफ्टिंग के लिए आते हैं| 
1984-85 में जब ऋषिकेश में राफ्टिंग का काम शुरू हुआ, तब यहां सिर्फ 2-3 कंपनियां थीं और सिर्फ विदेशी पर्यटक ही राफ्टिंग करने के लिए आते थे | लेकिन आज यहां 140 रजिस्टर्ड राफ्टिंग कंपनियां और करीब 500 राफ्टिंग बुकिंग काउंटर हैं.’’ राफ्टिंग की हरसत इसलिए भी एडवेंचर लवर्स को खींच लाती है क्योंकि यहां आठ महीने का सबसे लंबा राफ्टिंग सीजन होता है.




खरीददारी :-
ऋषिकेश में हस्तशिल्प का सामान अनेक छोटी दुकानों से खरीदा जा सकता है। यहां अनेक दुकानें हैं जहां से साड़ियों, बेड कवर, हैन्डलूम फेबरिक, कॉटन फेबरिक आदि की खरीददारी की जा सकती है। ऋषिकेश में सरकारी मान्यता प्राप्त हैन्डलूम शॉप, खादी भंडार, गढ़वाल वूल और क्राफ्ट की बहुत सी दुकानें हैं जहां से उच्चकोटि का सामान खरीदा जा सकता है |
ऋषिकेश देखने के बाद सभी धर्मशाला पहुँच चुके थे | अगले भाग में जानते हैं हरिद्वार के कुछ और आकर्षण ...

हरिद्वार यात्रा भाग 4. क्रमशः ...

शनिवार, 19 जुलाई 2014

हरिद्वार यात्रा भाग 2.

दूसरा दिन 
दूसरा दिन शुरू हुआ 5.30 बजे शाखा के कार्यक्रम से जिसमें हलका फुल्का व्यायाम करवाया गया और उसके बाद चाय तैयार थी जो पीना चाहे | इसके बाद लगभग 6.30 बजे सभी गंगा स्नान के लिए हर की पौढ़ी की तरफ चल दिए यहाँ सुविधा से जाने के लिए टेम्पो जो 10 रुपये सवारी लेते हैं एक अच्छा साधन है अगर भीड़ का समय नही है तो यह आपको हर की पौड़ी के बाहर ही उतार देते हैं और अगर भीड़ का समय है तो आपको भीमगौडा पर ही रोक दिया जाता है उसके आगे के लिए आप दोबारा रिक्शा कर सकते हैं |  
हर की पौड़ी :---
वह स्थान जहाँ पर अमृत की बूंदें गिरी थी उसे हर-की-पौडी पर ब्रह्म कुंड माना जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है 'ईश्वर के पवित्र पग'। हर-की-पौडी, हरिद्वार के सबसे पवित्र घाट माना जाता है और पूरे भारत से भक्तों और तीर्थयात्रियों के जत्थे त्योहारों या पवित्र दिवसों के अवसर पर स्नान करने के लिए यहाँ आते हैं। यहाँ स्नान करना मोक्ष प्राप्त करने के लिए आवश्यक माना जाता है।




यहाँ से हमने दोबारा रिक्शा किया और पहुँच गए हर की पौड़ी के बाहर 
हर की पौड़ी पर पहुँचने के लिए काफी सारी सीड़ियाँ नीचे उतरनी पड़ती हैं यहाँ हर सीढ़ी पर भिखारी अपना कब्ज़ा किये बैठे हैं और गन्दगी तो बेशुमार है यहाँ प्रशासन की ओर से कमी अभी भी खलती है यहाँ कोई कूड़ादान नजर नही आता है यहाँ खाली दूध की थैलियाँ, फूल पत्ते और बाकी कचरा फैंका जा सके |
कुछ सीडियां उतर कर जूता स्टैंड है यहाँ आप अपने जूते जमा कराकर हर की पौड़ी पर स्नान के लिए जा सकते हैं दो जूता घर हैं दोनों तरफ से आने वालों के लिए लेकिन जूते अगर ज्यादा हों तो इनके पास कोई बोरी या थैले की सुविधा नही है और आपका सामान वगेरह रखने की कोई सुविधा यहाँ नहीं है जो लोग अकेले आते हैं वो घाट पर बैठे किसी भी पण्डे के पास अपना कीमती सामान रख सकते हैं जिसके वो निसंदेह पैसे लेते हैं मुफ्त सुविधा कोई नहीं है |
हर की पौड़ी पर ही एक महिला घाट है जो बस नाम मात्र का है जिसमें पहले रेत भरी रहती थी अब उसमें पानी ही नही है इसलिए सब महिलाएं बाहर नहाना ही पसंद करती हैं | महिला घाट के अन्दर कुछ तख़्त पड़े हैं जिन पर मोटी मोटी पंडिताईन बैठी हैं जो आपका सामान रखने का आपसे पैसा लेती हैं | यहाँ महिलाएं सिर्फ कपडे बदलने के लिए आती हैं |
हमने सबने बारी बारी स्नान किया और फिर बाहर आ गए और दोबारा अपने जूते वापिस लेकर हम सीड़ियाँ चढकर बाहर पहुँच गए और फिर हमने यहाँ से टेम्पो किया धर्मशाला के लिए जो आने के लिए तो प्रति सवारी दस रुपये किराया ले रहा था लेकिन वापिसी में प्रति सवारी बीस रुपये किराया लिया गया | खैर हम सब 8 बजे तक धर्मशाला पहुँच गए थे | 
 8.30 बजे नाश्ते के लिए जाना था इसलिए सब दोबारा स्नान कर तैयार होने चले गए क्योंकि गंगा नहाने के बाद कपड़ों में रेत आ जाती है | इसके बाद नाश्ता किया गया नमकीन और मीठे दलिए के साथ |इसके बाद हर कोई स्वतंत्र था यहाँ भी कोई जाना चाहे | कुछ लोग नीलकंठ चले गए कुछ मनसा देवी ,कुछ ऋषिकेश और हमारा ग्रुप तैयार हुआ पतंजलि योगपीठ जाने के लिए |
पतंजलि योगपीठ यहाँ से लगभग 25 किलोमीटर दूर है इसलिए नाश्ता करने के बाद लगभग 9.30 बजे हम सब निकल पड़े ताकि दोपहर के भोजन तक हम वापिस धर्मशाला में आ सकें |
        यहाँ जाने के लिए हमने दो टेम्पो किये क्योंकि एक में सात लोग बैठ सकते हैं सभी लोग इसमें बैठ कर निकल पड़े वहां पहुँचने में हमें लगभग 45 मिनट लगे |टेम्पो वाले ने वहां जाने के लिए प्रति सवारी 30 रुपये लिए |



यहाँ पहुंचने के बाद थोडा घूम कर हमने इसे देखा फिर जलपान के लिए पहुंचे इसकी कैंटीन में जिसका नाम है 'अन्नपूर्णा ' यहाँ की शुद्ध घी से निर्मित जलेबी का स्वाद आप चखे बिन नहीं रह सकते | सबने यहाँ फ्रूट चाट ,गोलगप्पे, जलेबी और चाट पकौड़ी खाई सभी स्वादिष्ट बना हुआ था यहाँ शुद्ध घी से निर्मित मिठाइयाँ भी मिलती हैं |



  इसके बाद हम दवाइयां लेने पहुंचे जिसको जो भी सामान चाहिए था लिया और फिर वापिस पहुंचे टेम्पो वाले के पास जो हमारा इन्तजार कर रहे थे क्योंकि धूप बहुत अधिक थी इसलिए कोई भी और घूमने के लिए तैयार नहीं था |
वापिसी में काफी गर्मी थी और ट्रैफिक जाम भी बहुत था इसलिए थोड़ा देर से पहुंचे हम धर्मशाला | फिर थोडा विश्राम करने के बाद भोजन का समय हो चूका था इसलिए हम सबने भोजन किया और अपने अपने कमरे में चले गए |
शाम के समय जो नील कंठ गए थे उनको काफी देर हो गई आने में और इतनी गर्मी के कारण कहीं भी जाने का मन नहीं हुआ इसलिए हम धर्मशाला के बाहर ही कुर्सी लगा कर बैठ गए और ठंडी तजि हवा का आनन्द लिया | कुछ लोग उस समय हर की पौढ़ी और कुछ पास वाले घाट पर नहाने के लिए चले गए |
अब सब अपने अपने कमरे में चले गए आराम करने | रात को 9 बजे फिर सभी भोजन के लिए पहुँचे |



उसके बाद बाहर बरामदे में ही भजन कीर्तन का कार्यक्रम चलता रहा | उसके बाद सभी सोने के लिए चले गए |


तीसरा दिन 
आज सुबह सभी उठकर अपने कार्यों से निवृत होकर नाश्ता करने चले गए | उसके बाद लगभग 9 बजे सभी अपने अपने गंतव्य की ओर बढ़ गए | हम कुछ लोगों ने शांतिकुंज जाने का कार्यक्रम बनाया जो धर्मशाला से केवल 10-12 किलोमीटर की दूरी पर ही था ,इसलिए सबने टेम्पो ले लिया और 10..10 रुपए देकर वहां पहुँच गए |
शांतिकुंज :-
रेलवे स्टेशन/बस स्टैण्ड से हर की पौड़ी पहुंचने के बाद यहाँ से बाई पास रोड़ में सूखी नदी तथा भारतमाता मन्दिर पार करके उसी मार्ग पर शांतिकुंज स्थित है। यहाँ पर कार से पँहुचने में 15 मिनट, रिक्शा से पँहुचने में 30 मिनट, एवं पैदल पँहुचने में 45 मिनट लगते है। 
संस्थान की स्थापना :
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य एवं माता भगवती देवी शर्मा द्वारा इस आश्रम की स्थापना 1971में की गई थी।
अंदर जाने से पहले प्रवेश सूचना देनी होती है रजिस्टर में लिख कर कितने लोग जा रहे हैं | बहुत ही साफ़ सफाई और सुव्यवस्था का संगम है शांतिकुंज ,यहाँ बहुत सारे लोग अपनी वृद्ध अवस्था में आकर रहते हैं ,यहाँ रहने की बहुत ही सुंदर व्यवस्था है | जैसे अंदर पूरा एक क़स्बा बस्ता है | इसके अंदर ही दो कैंटीन हैं एक कैंटीन में कुछ सस्ता सामान मिलता है इसके साथ ही भोजनालय है यहाँ पर दिन में दो बार मुफ्त भोजन की व्यवस्था है यहाँ पर कुछ लोग आकर दान रूप में भोजन वितरण भी करते हैं | अंदर ही आयुर्वेदिक दवाइयां जो यहाँ निर्मित होती हैं उचित मूल्य पर मिलती हैं | बहुत सारे विभाग हैं यहाँ ,जिनमे लोग रहते हैं ,उनको ऋषिओं के नाम पर नाम दिया गया है | यहाँ जूते रखने की व्यवस्था बहुत ही उत्तम है | शांति कुञ्ज की कुछ झलकियाँ ...





जैसे की गर्मी बहुत अधिक हो रही थी इसलिए हमने जल्दी वापिस आना ही उचित समझा | वापिस आकर हमने दोपहर का भोजन लिया और वापिस अपने अपने कमरे में चले गए | 
शाम को गंगा आरती देखने का प्रोग्राम था जिसे देखने के लिए लोग बहुत दूर दूर से हर की पौढ़ी पर पहुंचते हैं | क्योंकि आरती का समय 7 बजे के बाद का रहता है और हमें बाजार से कुछ सामान भी लेना था इसलिए हम 5 बजे तक धर्मशाला से निकल चुके थे ,क्योंकि भीमघोड़ा सड़क पर चप्पल की बहुत अच्छी दुकाने हैं यहाँ मोल भाव करके बहुत मजबूत चप्पलें आप ले सकते हैं |उसके बाद हमने दोबारा रिक्शा किया हर की पौढ़ी के लिए |

आरती शुरू होने वाली थी ,इसलिए सबको गंगा किनारे बिठाने के लिए वहां काफी कार्यकर्त्ता तैनात थे वहां प्लास्टिक की पन्निओं की बनी चादरें बिछा दी गई थीं ,जिस पर सब बैठ गए आरती का आनंद लेने के लिए और लोग जो आते रहे सब पीछे खड़े होते गए | तभी मन्त्र उच्चारण के साथ शुरू हुई गंगा आरती जिसमें 11 या 13 पंडितों  ने भाग लिया ,रात होने को थी और कल कल बहती गंगा के किनारे जगमगा उठे थे लहरों पर भी दिए सवार होकर निकल पड़े थे दूसरे गंतव्य को सभी अपलक इस दृश्य को अपने अपने कैमरे में कैद करने लग गए थे | जो सेवक तैनात थे सबकी व्यवस्था  करने में लगे थे ,सबके हाथ में एक एक पुस्तिका थी यानि दान पर्ची ,जो आरती के उपलक्ष्य में जलाये जाने वाले दिओं के लिए दान स्वरुप ली जा रही थी | आइये आपको ले चलें गंगा किनारे आरती दर्शन के लिए कुछ झलकियों के साथ ....






आरती से फ्री होकर हम सब वापिस धर्मशाला के लिए चले ,वापिसी में बहुत मुश्किल से रिक्शा मिली भीमगौडा तक वो भी दुगने पैसों के साथ और वहां से आगे कोई टेम्पो 200 रुपये से कम जाने को तैयार नही हो रहा था जिसकी आने की कीमत हमने सिर्फ 70 रुपये दी थी | वहां कोई आपको सुनने वाला नही है | बहुत मुश्किल से हम धर्मशाला पहुंचे और खाना खाकर अपने अपने कमरे में चले गए |

हरिद्वार यात्रा भाग 3.क्रमशः ....

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