सोमवार, 28 जुलाई 2014

हरिद्वार यात्रा भाग 4.

बड़ा बाजार :-
यह हरिद्वार का तड़क-भड़क वाला बाजार है। यहां फेरीवाले विभिन्न प्रकार के व्यंजन, आयुर्वेदिक दवाएं, पीतल का सामान, कांच की चूड़ियां, शालें, लकड़ी से बनी विभिन्न वस्तुएं और बांस से बनी टोकरियां बेचते नज़र आते हैं। इसी बाजार में ही सभी पण्डे बसे हुए हैं जो हिन्दू वंशावलियो की पंजिका रखते हैं |

हरिद्वार में हिन्दू वंशावलियों की पंजिका---
वह जो अधिकतर भारतीयों व वे जो विदेश में बस गए को आज भी पता नहीं, प्राचीन रिवाजों के अनुसार हिन्दू परिवारों की पिछली कई पीढियों की विस्तृत वंशावलियां हिन्दू ब्राह्मण पंडितों जिन्हें पंडा भी कहा जाता है द्वारा हिन्दुओं के पवित्र नगर हरिद्वार में हस्त लिखित पंजिओं में जो उनके पूर्वज पंडितों ने आगे सौंपीं जो एक के पूर्वजों के असली जिलों व गांवों के आधार पर वर्गीकृत की गयीं सहेज कर रखी गयीं हैं. प्रत्येक जिले की पंजिका का विशिष्ट पंडित होता है. यहाँ तक कि भारत के विभाजन के उपरांत जो जिले व गाँव पाकिस्तान में रह गए व हिन्दू भारत आ गए उनकी भी वंशावलियां यहाँ हैं. कई स्थितियों में उन हिन्दुओं के वंशज अब सिख हैं, तो कई के मुस्लिम अपितु ईसाई भी हैं. किसी के लिए किसी की अपितु सात वंशों की जानकारी पंडों के पास रखी इन वंशावली पंजिकाओं से लेना असामान्य नहीं है.
शताब्दियों पूर्व जब हिन्दू पूर्वजों ने हरिद्वार की पावन नगरी की यात्रा की जोकि अधिकतर तीर्थयात्रा के लिए या/ व शव- दाह या स्वजनों के अस्थि व राख का गंगा जल में विसर्जन जोकि शव- दाह के बाद हिन्दू धार्मिक रीति- रिवाजों के अनुसार आवश्यक है के लिए की होगी. अपने परिवार की वंशावली के धारक पंडित के पास जाकर पंजियों में उपस्थित वंश- वृक्ष को संयुक्त परिवारों में हुए सभी विवाहों, जन्मों व मृत्युओं के विवरण सहित नवीनीकृत कराने की एक प्राचीन रीति है |


खरीददारी :-
हर की पौडी और रेलवे स्टेशन के बीच अनेक दुकानें हैं जहां तीर्थयात्रा से संबधित सामान मिलता है। यहां से पूजा के कृत्रिम आभूषण, पीतल और कांसे के बर्तन, कांच की चूड़ियां आदि खरीदी जा सकती हैं। यहां बहुत सी मिठाई की दुकानें हैं जहां से स्वादिष्ट पेडों की खरीददारी के साथ चूरण और आम पापड़ भी खरीदे जा सकते हैं। सामान्यत: तीर्थ यात्री यहां से कंटेनर खरीदकर गंगाजल भरकर घर ले जाते हैं |


आइये जानें हरिद्वार के आसपास लगते कुछ और देखने योग्य स्थान 
पतंजलि योगपीठ :---
पतंजलि योगपीठ हरिद्वार से लगभग 25 किलोमीटर दूर है इसलिए टेम्पो वाले ने 30 रुपये प्रति सवारी लिए वहां जाने के लिए | पतंजलि योग पीठ एक नजर में .....
पतंजलि योगपीठ फेज 1
6 अप्रेल 2006 को भारत के उपराष्ट्रपति द्वारा देश के 17 मुख्यमंत्री व राज्यपाल आदि विशिष्ट लोगों की उपस्थिति में पतंजलि योगपीठ, प्रथम चरण का उदघाटन।
योग एवं आयुर्वेद ओ.पी.डी.में छ: हजार से दस हजार रोगियों को निःशुल्क चिकित्सा परामर्श की सुविधा उपलब्ध।
निःशुल्क आयुर्वेद व योग चिकित्सा परामर्श सुयोग्य वैद्यों द्वारा।
आयुर्वेद के अंतर्गत पंचकर्म चिकित्सा, षट्कर्म चिकित्सा, शल्य चिकित्सा (क्षार-सूत्र, कर्णभेदन व अग्निकर्म आदि), दंत चिकित्सा व नेत्र चिकित्सा सेवायें न्यूनतम मूल्य पर उपलब्ध।
दिव्य फार्मेसी द्वारा निर्मित उच्च गुणवत्ता युक्त आयुर्वेदिक औषधियाँ न्यूनतम मूल्य पर उपलब्ध है।
अत्याधुनिक मशीनों व उपकरणों से युक्त विश्व की आधुनिकतम पैथोलाजी लैब, रेडियोलाजी व कार्डियोलाजी लैब में विभिन्न रोगों के चिकित्सीय परीक्षण न्यूनतम मूल्यों पर उपलब्ध है ।
आई.पी.डी/अतिथि ग्रह में न्यूनतम मूल्यों पर, वातानुकूलित व साधारण आवास व्यवस्था, दैनिक यज्ञ एवं योगकक्षा के साथ उपलब्ध है।
पुस्तकालय व वाचनालय की सुन्दर व्यवस्था साइबर कैफे के साथ उपलब्ध है।
अन्नपूर्णा में शुध्द देशी घी/तेल से निर्मित सभी तरह के शुध्द सात्विक आहार एवं मिष्ठान उचित मूल्य पर उपलब्ध है।
पतंजलि योगपीठ के समीप में स्थित दिव्य औषधीय उद्यान में भ्रमण व औषधीय पौधों की उपलब्धता की व्यवस्था है।
पतंजलि योगपीठ में व्यवस्थित व विशाल पार्किंग व अमानती घर की व्यवस्था है।
पतंजलि योगपीठ फेज 2
950 कक्षों में आगन्तुकों की वातानुकूलित व गैर वातानुकूलित आवास व्यवस्था।
1000 लोगों की आवास व्यवस्था वाली एक निःशुल्क धर्मधाला।
20 हजार वर्ग फीट के आकार का भव्य लंगर हाल, जहाँ आगन्तुक निःशुल्क भोजन प्रसाद ग्रहण कर सकते है ।
प्रतिदिन 5000 आगन्तुकों की भोजन व्यवस्था की विशाल अन्नपूर्णा।
4 हजार वर्ग फीट में निर्मित भव्य यज्ञशाला।
वानप्रस्थ आश्रम के अन्तर्गत स्वस्थ, समर्थ व समर्पित वरिष्ठ नागरिकों की आवास व्यवस्था हेतु 350 अपार्टमेन्ट।
50 हजार वर्ग फीट में निर्मित भव्य संग्रहालय।
11 हजार वर्ग फीट आकार का योग, आयुर्वेद व प्राच्य विधाओं पर आधारित साहित्य व सामग्री हेतु विक्रय केन्द्र।
भारत माता नमन स्थल (निर्माणाधीन), जहाँ भारत के 600 से अधिक जनपदों से एकत्रित की गई पवित्र मिट्टी रखी जाएगी।

यहाँ 2 लाख वर्ग फ़ीट का विशाल नवीन ऑडिटोरियम बनाया गया है जिसमें 10 हजार साधक एक साथ बैठकर योग कर सकते है। इसी प्रकार 60 हजार वर्ग फीट का वृहत वातानुकूलित आडिटोरियम का निर्माण कराया गया है , जहाँ हजारों साधक एक साथ बैठकर योग, प्राणायाम व ध्यान आदि कर सकेंगे। 44 हजार वर्ग फीट का विशालकाय पंचकर्म व षट्कर्म केन्द्र, जहाँ लगभग 1000 व्यक्ति प्रतिदिन पंचकर्म व षट्कर्म का लाभ प्राप्त कर सकेंगे।

शांतिकुंज :-
शांति कुञ्ज संस्थान का विवरण :-
गंगा की गोद, हिमालय की छाया में विनिर्मित गायत्री तीर्थ- शांतिकुंज, हरिद्वार-ऋषिकेश मार्ग पर रेलवे स्टेशन से छह किलोमीटर दूरी पर स्थित है, जो युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य (1911-1990) एवं माता भगवती देवी शर्मा (1926-1994) की प्रचंड तप साधना की ऊर्जा से अनुप्राणित है। यह जागृत तीर्थ लाखों-करोड़ों गायत्री साधकों का गुरुद्वारा है।

1971 में स्थापित शांतिकुंज एक आध्यात्मिक सैनिटोरियम के रूप में विकसित किया गया है, जहाँ शरीर, मन एवं अंतःकरण को स्वस्थ, समुन्नत बनाने के लिए अनुकूल वातावरण, मार्गदर्शन एवं शक्ति अनुदानों का लाभ उठाया जा सकता है।यहाँ गायत्री माता का भव्य देवालय, सप्तर्षियों की प्रतिमाओं की स्थापना के साथ एक भटके हुए देवता का मंदिर भी है। गायत्री साधक यहाँ के साधना प्रधान नियमित चलने वाले सत्रों में भाग लेकर नवीन प्रेरणाएँ तथा दिव्य प्राण ऊर्जा के अनुदान पाकर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति में सहायता पाते हैं।

सन्‌ 1926 से प्रज्ज्वलित अखंड दीप यहाँ स्थापित है, जिसके सान्निध्य में पूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने कठोर तपस्या करके इसे विशाल गायत्री परिवार की सारी महत्वपूर्ण उपलब्धियों का मूल स्रोत बनाया। इसके सान्निध्य में 2400 करोड़ से अधिक गायत्री जप संपन्न हो चुके हैं। इसके दर्शन मात्र से दिव्य प्रेरणा एवं शक्ति संचार का लाभ सभी को मिलता है।

आश्रम की तीन विराट यज्ञशालाओं में नित्य नियमित रूप से हजारों साधक गायत्री यज्ञ संपन्न करते हैं। भारतीय संस्कृति के अंतर्गत सभी संस्कार जैसे- पुंसवन, नामकरण, अन्नप्राशन, मुंडन, शिखास्थापन, विद्यारंभ, यज्ञोपवीत, विवाह, वानप्रस्थ तथा श्राद्ध कर्म आदि यहाँ निःशुल्क संपन्न कराए जाते हैं। इनके व्यावहारिक तत्वदर्शन से प्रभावित होकर यहाँ नित्य बड़ी संख्या में संस्कारों के लिए लोग आते हैं।

शांतिकुंज के भव्य जड़ी-बूटी उद्यान में 300 से भी अधिक प्रकार की दुर्लभ-सर्वोपयोगी वनौषधियाँ लगाई गई हैं। विश्वभर के आयुर्वेद कॉलेजों के शिक्षार्थी तथा वैज्ञानिक यहाँ का वनौषधि उद्यान देखने आते हैं। विभिन्न ग्रह-नक्षत्रों के लिए भिन्न प्रकार की दिव्य औषधियों का एक ज्योतिर्विज्ञान सम्मत उद्यान यहाँ की एक विलक्षणता है। सभी आगंतुकों की शारीरिक-मानसिक जाँच-पड़ताल निष्णात चिकित्सकों द्वारा यहाँ निःशुल्क की जाती है तथा साधना के साथ-साथ वनौषधि प्रधान उपचार-परामर्श भी दिया जाता है।

यहाँ के विशाल भोजनालय में प्रतिदिन प्रायः पाँच हचार से अधिक आगंतुक श्रद्धालु तथा अनुमति लेकर आए शिक्षार्थी बिना मूल्य भोजन प्रसाद पाते हैं। यहाँ का पत्राचार विद्यालय भारत एवं विश्वभर में बैठे जिज्ञासुओं, प्रज्ञा परिजनों को दिनोदिन जीवन की उलझनों को सुलझाने का मार्गदर्शन देता रहता है।

अध्यात्म के गूढ़ विवेचनों की सरल व्याख्या कर उन्हें जीवन में कैसे उतारा जाए, अपने चिंतन, चरित्र एवं व्यवहार में उत्कृष्टता लाकर व्यक्तित्व को कैसे प्रभावकारी बनाया जाए, इसका सतत प्रशिक्षण यहाँ के नौ दिवसीय संजीवनी साधना सत्रों में चलता है, जो यहाँ वर्षभर संपादित होते रहते हैं। ये सत्र 1 से 9, 11 से 19, 21 से 29 की तारीखों में प्रति माह चलते हैं।पाँच दिवसीय मौन अंतः ऊर्जा जागरण सत्र यहाँ की विशेषता है। इनमें 60 साधक प्रति सत्र उच्चस्तरीय साधना करते हैं। ये ठंडक में आश्विन से चैत्र नवरात्र तक चलते हैं।

केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों के विभिन्न पदाधिकारियों को यहाँ नैतिक बौद्धिक तथा व्यक्तित्व परिष्कार का शिक्षण पाँच दिवसीय सत्रों में दिया जाता है। अब तब अस्सी हजार से अधिक अधिकारीगण इन मूल्यपरक शिक्षणों से लाभ पा चुके हैं। यहाँ हिमालय की एक दिव्य विराट प्रतिमा स्थापित की गई है, जिसमें सभी तीर्थों का दिग्दर्शन साधकों को वहाँ के इतिहास की पृष्ठभूमि के साथ मल्टीमीडिया प्रोजेक्शन पर किया जाता है। प्रायः साठ फुट चौड़ी, पंद्रह फुट ऊँची प्रतिमा के समक्ष बैठकर ध्यान करने का अपना अलग ही आनंद है। समीप स्थित देवसंस्कृति दिग्दर्शन में मिशन के वर्तमान स्वरूप व भावी योजनाओं का चित्रण किया गया है।

यहाँ से 'अखंड ज्योति' एवं 'युग निर्माण योजना' नामक हिंदी मासिक तथा ‘युग शक्ति गायत्री’ गुजराती, मराठी, उड़िया, बांग्ला, तमिल, अंग्रेजी एवं तेलुगू भाषाओं में तथा ‘प्रज्ञा अभियान’ पाक्षिक हिंदी व गुजराती में प्रकाशित होती हैं। भारत और विश्व में इन सभी पत्रिकाओं के पाठकों की संख्या लगभग पच्चीस लाख है।कृषि मंत्रालय भारत सरकार द्वारा शांतिकुंज को 'आपदा निवारण सलाहकार परिषद' की सदस्यता प्रदान की गई है। भूकंप व अन्य दैवी आपदाओं में केंद्र ने जन व शक्ति से सदैव मदद की है। कारगिल संकट पर पूरे भारत से गायत्री परिवार ने सवा करोड़ रुपए की राशि राष्ट्रीय सुरक्षा कोष में दी। भुज कच्छ में प्रायः पाँच करोड़ रुपए से पुनर्वास के कार्य किए गए।

लगभग एक हजार उच्च शिक्षित कार्यकर्ता शांतिकुंज में स्थायी रूप से सपरिवार निवास करते हैं। निर्वाह हेतु वे औसत भारतीय स्तर का भत्ता मात्र संस्था से लेते हैं।इस प्रकार शांतिकुंज एक ऐसी स्थापना है, जिसे सच्चे अर्थों में युग तीर्थ कहा जा सकता है। यहाँ आने वाला व्यक्ति कृतकृत्य होकर जाता है एवं नैसर्गिक सौंदर्य तथा आध्यात्मिक ऊर्जा से अनुप्राणित वातावरण में बार-बार आने के लिए लालायित रहता है। 
संसाधन 
लगभग हजार वर्गमीटर में निर्मित, निर्माणाधीन और प्रस्तावित भवनों का क्षेत्र है। आवास, आयुर्वेद-अनुसंधान, फार्मेसी, प्रशासनिक, स्वावलंबन, सभागार, ध्यान कक्ष आदि भवनों के स्थान सुरक्षित हैं, जो दिव्य स्वरूप प्रदान करते हैं।

कर्मचारियों हेतु आवास की पूर्ण व्यवस्था है। अतिथिगृह के साथ-साथ यज्ञशाला की व्यवस्था है। खेलकूद तथा व्यायामशाला के लिए आवश्यक सुविधाएँ विद्यमान हैं।

शैक्षणिक संस्थान---
हरिद्वार और आसपास के क्षेत्रों में में निम्नलिखित शिक्षा संस्थान है:-
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की - 30 किमी भूतपूर्व रुड़की इंजीनियरी कॉलेज, जो अब एक आई॰आई॰टी बन चुका है, यह भारत में प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उच्च शिक्षा का एक महत्वपूर्ण संस्थान है जो हरिद्वार से ३० मिनट की दूरी पर रुड़की में स्थित है।
कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग (कोएर) - 14 किमी एक निजी अभियांतिकी संस्थान जो हरिद्वार और रुड़की के बीच राष्ट्रीय महामार्ग 58 पर स्थित है।
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय - 4 किमी कनखल में गंगा नदी के तट पर हरिद्वार-ज्वालापुर बाइपास सड़क पर स्थित।
चिन्मय डिग्री कॉलेज हरिद्वार से 10 किमी दूर स्थित शिवालिक नगर में बसा यह हरिद्वार के विज्ञान कोलेजों में से एक है।
विश्व संस्कृत विद्यालय संस्कृत विश्विद्यालय, हरिद्वार जिसकी स्थापन उत्तराखंड सरकार द्वारा की गई थी विश्व का एकमात्र विश्वविद्यालय है जो पूर्णतः प्राचीन संस्कृत ग्रंथों, पुस्तकों की शिक्षा को समर्पित है। इसके पाठ्यक्रम के अंतर्गत हिन्दू रीतियों, संस्कृति, और परंपराओं की शिक्षा दी जाती है, और इसका भव्य भवन प्राचीन हिन्दू वास्तुशिल्प पर आधारित है।
दिल्ली पब्लिक स्कूल, रानीपुर क्षेत्र के प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में से यह एक है जो विश्वव्यापी दिल्ली पब्लिक स्कूल परिवार का भाग है। यह अपनी उत्कृष्ट शैक्षणिक उपलब्धियों, खेलों, पाठ्यक्रमेतर क्रियाकलापों के साथ-साथ सर्वोत्तम सुविधाओं, प्रयोगशालाओं, और शैक्षणिक वातावरन के लिए जाना जाता है।
डी॰ए॰वी सैन्टेनरी पब्लिक स्कूल जगजीत्पुर में स्थित यह विद्यालय शिक्षा के साथ-साथ अपने विद्यार्थियों कों नैतिकता का पाठ भी सिखाता है ताकी यहाँ से निकला हर विद्यार्थी संसार के हर कोने को प्रकाशित कर सके।
केन्द्रीय विद्यालय, बी॰एच॰ई॰एल केन्द्रिय विद्यालय, बी॰एच॰ई॰एल, हरिद्वार के प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में से एक है, जिसकी स्थापना 7 जुलाई, 1975 को की गई थी। केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से संबद्धीकृत, इस विद्यालय में प्री-प्राइमरी से 12वीं तक 2,००० से अधिक विद्यार्थी पढ़ते है।


हरिद्वार नगर, हरिद्वार जनपद का मुख्यालय है। यह नगर हिन्दुओं का एक अति प्राचीन तीर्थ एवं धार्मिक स्थल है। संस्कत भाषा तथा हिन्दुओं के अन्य धार्मिक कलापों का भी प्रमुख केन्द्र है। वर्तमान में इस नगर में कुछ उधोगों का विकास हुआ है। यह नगर मेरठ से 141 किमी0 सहारनपुर से 81 किमी0 लखनउ से 494 किमी0 तथा देहरादून से 52 किमी0 पर स्थित है।

नगर की आबादी मुख्यतः चार भागों में विभाजित हैं 1- हरिद्वार 2- ज्वालापुर 3- कनखल 4- भारत हैवी इलैक्ट्रिकल टाउनशिप।

हरिद्वार नगर पश्चिम उत्तर प्रदेश में जडी बूटियों एवं जंगल से प्राप्त लकडी की एक प्रमुख मण्डी है। यह नगर राजकीय राजमार्ग संख्या 45 दिल्ली से प्रारम्भ होकर मेरठ, मुजपफरनगर, रूडकी, हरिद्वार होती हुई भारत तिब्बत सीमा पर स्थित नीतीपास नामक स्थान पर जाकर समाप्त होती है।

जलवायु :-
हरिद्वार की जलवायु उत्तर प्रदेश के मैदानी क्षेत्र के लगभग समान है जो अत्यन्त स्वास्थ्यप्रद है। मई तथा जून के महीनों में भीषण गर्मी पडती है। नगर का तापमान 1.3 से 41.1 डिग्री सेंटीग्रेट के मध्य रहता है। नगर में पानी की सतह की औसत गहराई 25x35 फीट है।

पर्व :-
गहन धार्मिक महत्व के कारण हरिद्वार में वर्ष भर में कई धार्मिक त्यौहार आयोजित होते हैं जिनमें प्रमुख हैं :- कवद मेला, सोमवती अमावस्या मेला, गंगा दशहरा, गुघल मेला जिसमें लगभग 20-25 लाख लोग भाग लेते हैं।

इस के अतिरिक्त यहाँ कुंभ मेला भी आयोजित होता है बार हर बारह वर्षों में मनाया जाता है जब बृहस्पति ग्रह कुम्भ राशिः में प्रवेश करता है। कुंभ मेले के पहले लिखित साक्ष्य चीनी यात्री, हुआन त्सैंग (602 - 664 ई.) के लेखों में मिलते हैं जो 639 ई. में भारत की यात्रा पर आया था।

भारतीय शाही राजपत्र (इम्पीरियल गज़टर इंडिया), के अनुसार 1812 के महाकुम्भ में हैजे का प्रकोप हुआ था जिसके बाद मेला व्यवस्था में तेजी से सुधार किये गए और, 'हरिद्वार सुधार सोसायटी' का गठन किया गया, और 1903 में लगभग 4,00,000 लोगों ने मेले में भाग लिया। 1980 के दशक में हुए एक कुम्भ में हर-की-पौडी के निकट हुई एक भगदड़ में 600 लोग मारे गए और बीसियों घायल हुए। 1998 के महा कुंभ मेले में तो 8 करोड़ से भी अधिक तीर्थयात्री पवित्र गंगा नदी में स्नान करने के लिए यहाँ आये। 

परिवहन :-
हरिद्वार अच्छी तरह सड़क मार्ग से राष्ट्रीय राजमार्ग 58 से जुड़ा है जो दिल्ली और मानापस को आपस में जोड़ता है। निकटतम ट्रेन स्टेशन हरिद्वार में ही स्थित है जो भारत के सभी प्रमुख नगरों को हरिद्वार से जोड़ता है। निकटतम हवाई अड्डा जौली ग्रांट, देहरादून में है लेकिन नई दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को प्राथमिकता दी जाती है।

उद्योग :-
जबसे राज्य सरकार की सरकारी संस्था, सिडकुल (उत्तराखंड राज्य ढांचागत और औद्योगिक विकास निगम लिमिटेड) द्वारा एकीकृत औद्योगिक एस्टेट की स्थापना इस ज़िले में की गई है, तबसे हरिद्वार बहुत तेजी से उत्तराखंड के महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र के रूप में विकसित हो रहा है, जो देशभर के कई महत्वपूर्ण औद्योगिक घरानों को आकर्षित कर रहा है, जो यहाँ विनिर्माण सुविधाओं की स्थापना कर रहे हैं।
हरिद्वार पहले से ही एक संपन्न औद्योगिक क्षेत्र में स्थित है जो बाईपास रोड के किनारे बसा है जहाँ पर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, भेल की मुख्य सहायक इकाइयां स्थापित है जो यहाँ 1964 में स्थापित की गयी थी और आज यहाँ 8,000 से अधिक लोग प्रयुक्त हैं।

कब जाएं
वैसे तो हरिद्वार में पर्यटन के लिहाज से साल में कभी भी जाया जा सकता है। लेकिन सर्दियों में यहां भीड़ कम होती है। अक्टूबर से मार्च की अवधि यहां आने के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है।

कुछ सावधानियाँ :--
1. अपनी यात्रा के लिए उचित समय चुनें यानि अक्तूबर से मार्च का समय अगर कोई बंदिश नहीं है तो ,यात्रा सुबह शुरू करें तो बहुत बढ़िया |
2. हरिद्वार यात्रा का पूरा आनन्द लेना चाहते हैं तो 4-5 दिन का    कार्यक्रम बनायें ,तभी आप आसपास के दर्शनीय स्थलों का आनंद ले सकते हैं |
3. सामान कम लेकर जाएँ ,कुछ जरुरी दवाईयां अवश्य साथ रखें | 
4. अपनी सुविधानुसार जिस धर्मशाला या होटल में ठहरें वो हर की पौढ़ी के पास हो तो अति उत्तम ,आप जब चाहें गंगा स्नान कर के आ सकते हैं |बच्चों को बाजार में घुमा सकते हैं ,कोई त्यौहार हो तो झाँकियाँ दिखा सकते हैं |
5. सामन किसी के भरोसे छोड़ कर गंगा स्नान को न जाएँ ,वहां पण्डे बैठे हैं उनके पास ही अपना सामान रखें |
6. नहाने के लिए सूती कपड़े ना लेकर जाएँ ,इसके लिए रेशमी कपड़े हों तो बहुत खूब |
7. कहीं भी देवी देवता के दर्शनों में बंदरों से सावधान रहें |
8. साफ़ सफाई का ख़ास ख्याल रखें ,धार्मिक स्थलों को और गंगा को गन्दा होने से बचाएं ,इसमें आपका योगदान अहम् एवं अनिवार्य है |

चतुर्थ दिन 
आज हमारी सुबह 6.20 की वापिसी की गाड़ी थी ,इसलिए सबको 4 बजे उठा दिया गया था और 5 बजे तक सब धर्मशाला के प्रांगन में इक्कठे हो चुके थे | अब धर्मशाला के प्रबंधकों ने पहले से ही कुछ टेम्पो वालों को बोल रखा था वो सब वहां आ गए थे वैसे आपको हर समय टेम्पो उपलब्ध रहते हैं आप आराम से स्टेशन या बस स्टैंड पहुँच सकते हैं | सब टेम्पो में सात सात लोग बैठकर 5.40 तक स्टेशन पहुँच चुके थे | सबने 30-30 रुपये टेम्पो वाले को दिए और प्लेटफार्म नंबर 2 पर पहुँच गए यहाँ हमारी गाड़ी आने वाली थी | जब वहां पहुंचे तो ट्रैक पर कोई बूढा भिखारी शायद मरा पड़ा था इसलिए पुलिस के आने के बाद उसकी लाश वहां से उठाई गई इसलिए गाड़ी चलने में थोड़ी देरी हो गई थी |गाड़ी लगभग 6.40 तक चल पी थी |
       गाड़ी में बैठने के थोड़ी देर बाद ही सब नाश्ता करने लगे थे जो बहुत ही प्यार से धर्मशाला में ही हम सबके लिए पूरियाँ और आचार पैक कर के बाँट दिया गया था | गाड़ी हमारी जन शताब्दी थी और गर्मी अपने चरम पर थी जैसे जैसे दिन बढ़ रहा था गर्मी भी बढती जा रही थी और वैसे भी घर वापिसी में हमेशा थकान ही महसूस होती है और घर पहुँचने की जल्दी भी 
गाड़ी के पहुँचने का समय था 11.30 बजे का लेकिन थोड़ी देरी के कारण गाड़ी पहुंची लगभग 12.30 बजे | वहां से सब मेट्रो स्टेशन पहुंचे और फिर अपने अपने घर कुछ सुनहरी यादों के साथ |

चलिए दोस्तो मिलते हैं एक और यात्रा वृतांत के साथ तब तक सबको राम राम |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...