जन्माष्टमी व्रत :---
'जन्माष्टमी व्रत' एवं 'जयन्ती व्रत' ,कालनिर्णय ने दोनों को पृथक व्रत माना है, दोनों के निमित्त पृथक हैं (प्रथम तो कृष्णपक्ष की अष्टमी है और दूसरी रोहिणी से संयुक्त कृष्णपक्ष की अष्टमी), दोनों की ही विशेषताएँ पृथक हैं, क्योंकि जन्माष्टमी व्रत में शास्त्र में उपवास की व्यवस्था दी है और जयन्ती व्रत में उपवास, दान आदि की व्यवस्था है। इसके अतिरिक्त जन्माष्टमी व्रत नित्य है (क्योंकि इसके न करने से केवल पाप लगने की बात कही गयी है) और जयन्ती व्रत नित्य एवं काम्य दोनों ही है, क्योंकि उसमें इसके न करने से न केवल पाप की व्यवस्था है प्रत्युत करने से फल की प्राप्ति की बात भी कही गयी है।
जन्माष्टमी मनाने का समय :---
सभी पुराणों एवं जन्माष्टमी सम्बन्धी ग्रन्थों से स्पष्ट होता है कि कृष्णजन्म के सम्पादन का प्रमुख समय है 'श्रावण कृष्ण पक्ष की अष्टमी की अर्धरात्रि' (यदि पूर्णिमान्त होता है तो भाद्रपद मास में किया जाता है)।
जन्माष्टमी व्रत में प्रमुख कृत्य :---
जन्माष्टमी व्रत में प्रमुख कृत्य है उपवास, कृष्ण पूजा, रात का जागरण, स्तोत्र पाठ एवं कृष्ण जीवन सम्बन्धी कथाएँ सुनना एवं पारण करना।
उद्यापन एवं पारण में अंतर :---
एकादशी एवं जन्माष्टमी जैसे व्रत जीवन भर किये जाते हैं। उनमें जब कभी व्रत किया जाता है तो पारण होता है, किन्तु जब कोई व्रत केवल एक सीमित काल तक ही करता है और उसे समाप्त कर लेता है तो उसकी परिसमाप्ति का अन्तिम कृत्य है उद्यापन।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव :---
- देश भर के श्रद्धालु जन्माष्टमी पर्व को बड़े भव्य तरीक़े से एक महान पर्व के रूप में मनाते हैं।
- सभी कृष्ण मन्दिरों में अति शोभावान महोत्सव मनाए जाते हैं।
- विशेष रूप से यह महोत्सव वृन्दावन, मथुरा (उत्तर प्रदेश), द्वारका (गुजरात), गुरुवयूर (केरल), उडृपी (कर्नाटक) तथा इस्कॉन के मन्दिरों में होते हैं।
- श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव सम्पूर्ण ब्रजमण्डल में, घर–घर में, मन्दिर–मन्दिर में मनाया जाता है।
- अधिकतर लोग व्रत रखते हैं और रात को बारह बजे ही 'पंचामृत या फलाहार' ग्रहण करते हैं।
- मथुरा के जन्मस्थान में विशेष आयोजन होता है। सवारी निकाली जाती है। दूसरे दिन नन्दोत्सव मन्दिरों में दधिकाँदों होता है।
- फल, मिष्ठान, वस्त्र, बर्तन, खिलौने और रुपये लुटाए जाते हैं। जिन्हें प्रायः सभी श्रद्धालु लूटकर धन्य होते हैं।
- गोकुल, नन्दगाँव, वृन्दावन आदि में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की बड़ी धूम–धाम होती है।
दुग्धाभिषेक मथुरा
छबीले का छप्पन भोग :---
श्रीकृष्ण आजीवन सुख तथा विलास में रहे, इसलिए जन्माष्टमी को इतने शानदार ढंग से मनाया जाता है। इस दिन अनेक प्रकार के मिष्ठान बनाए जाते हैं। जैसे लड्डू, चकली, पायसम (खीर) इत्यादि। इसके अतिरिक्त दूध से बने पकवान, विशेष रूप से मक्खन (जो श्रीकृष्ण के बाल्यकाल का सबसे प्रिय भोजन था), श्रीकृष्ण को अर्पित किया जाता है। तरह–तरह के फल भी अर्पित किए जाते हैं।
प्रभु के विग्रह की भव्य सज्जा :---
पूजा कक्ष में जहाँ श्रीकृष्ण का विग्रह विराजमान होता है, वहाँ पर आकर्षक रंगों की रंगोली चित्रित की जाती है। इस रंगोली को 'धान के भूसे' से बनाया जाता है। घर की चौखट से पूजाकक्ष तक छोटे–छोटे पाँवों के चित्र इसी सामग्री से बनाए जाते हैं। ये प्रतीकात्मक चिह्न भगवान श्रीकृष्ण के आने का संकेत देते हैं। मिट्टी के दीप जलाकर उन्हें घर के सामने रखा जाता है। बाल श्रीकृष्ण को एक झूले में भी रखा जाता है। पूजा का समग्र स्थान पुष्पों से सजाया जाता है।
ब्रज भूमि में जन्माष्टमी महोत्सव :---
ब्रजभूमि महोत्सव अनूठा व आश्चर्यजनक होता है।सबसे पवित्रतम स्थान तो मथुरा को ही माना जाता है, और मथुरा में भी एक सुन्दर मन्दिर को जिसमें ऐसा विश्वास है कि यही वह स्थान है, जहाँ पर श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था।इसे श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर भी कहा जाता है |ऐसा अनुमान है कि सात लाख लोगों से भी अधिक श्रद्धालु मथुरा व आस–पास के इलाक़ों से इस स्थान पर पूजा–अर्चना के लिए आते हैं। इसी मंदिर के साथ एक दम एक मस्जिद की दीवार साँझा है जिसे मंदिर की छत्त से देखा जा सकता है इसलिए यहाँ जाने के लिए बहुत चेकिंग होती है कोई कैमरा या फ़ोन ले जाना सख्त मना है |
दही-हांडी समारोह :---
इसमें एक मिट्टी के बर्तन में दही, मक्खन, शहद, फल इत्यादि रख दिए जाते हैं। इस बर्तन को धरती से 30 – 40 फुट ऊपर टाँग दिया जाता है। युवा लड़के–लड़कियाँ इस पुरस्कार को पाने के लिए समारोह में हिस्सा लेते हैं। ऐसा करने के लिए युवा पुरुष एक–दूसरे के कन्धे पर चढ़कर पिरामिड सा बना लेते हैं। जिससे एक व्यक्ति आसानी से उस बर्तन को तोड़कर उसमें रखी सामग्री को प्राप्त कर लेता है। प्रायः रुपयों की लड़ी रस्से से बाँधी जाती है। इसी रस्से से वह बर्तन भी बाँधा जाता है। इस धनराशि को उन सभी सहयोगियों में बाँट दिया जाता है, जो उस मानव पिरामिड में भाग लेते हैं।
पूरे विश्व में जन्माष्टमी उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है सभी जगह कृष्ण की झाँकियो से मंदिर सजे होते हैं कृष्ण को हिंडोले में डाल कर झूला झुलाया जाता है 12 बजते ही आतिशबाजी के बीच कृष्ण जन्म होता है फिर प्रसाद वितरण किया जाता है |
जय श्री कृष्णा
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