हम इस्कान मंदिर से कीर्तन का आनंद लेकर बाहर आ गए ,बाकि सब परिवार के सदस्य भी मिल गए जो हमारा इंतज़ार कर रहे थे ,अब सब प्रेम मंदिर की तरफ चल दिए जोकि कृष्ण सुधामा धाम के पास ही था ,यहाँ हम ठहरे थे और इस्कान मंदिर से भी पैदल ही कुछ दूरी पर था ,इसलिए सब ने जूते ट्रैवलर में ही रख दिए और पहुँच गए 'प्रेम मंदिर'
कृपालु जी महाराज ने इसका निर्माण 'भगवान कृष्ण एवं राधा के मंदिर के रूप में करवाया है |इसका लोकार्पण 18 फरवरी को किया गया था |इसके निर्माण में 11 वर्ष का समय लगा और 100 करोड़ की लागत आई,इसमें इटैलियन संगमरमर का प्रयोग किया गया है |राजस्थान और उत्तरप्रदेश के 1000 शिल्पकारों ने इसका निर्माण किया है |इसका शिलान्यास कृपालु जी महाराज द्वारा 14 जनवरी 2001 में किया गया था |यह मंदिर प्राचीन भारतीय शिल्पकला के पुनर्जागरण का एक नमूना है | यह मंदिर 54 एकड़ में बना है इसकी ऊंचाई 125 फुट ,लम्बाई 122 फुट ,चौड़ाई 115 फुट है |
प्रेम मंदिर
अद्भुत,अद्वितीय,भव्य ,बेजोड़,विशाल,जगद्गुरु कृपालु जी महाराज द्वारा निर्मित अद्भुत वास्तुकला का झांकियो का मिश्रण, प्रेम जिसकी दूधिया रंगबिरंगी रोशनिओं से टपकता है ,इसे देखे बिना जैसे वृन्दावन यात्रा अधूरी रह जाती ,हर कोई जिसकी प्रशंसा कर रहा था| कृपालु जी महाराज ने इसका निर्माण 'भगवान कृष्ण एवं राधा के मंदिर के रूप में करवाया है |इसका लोकार्पण 18 फरवरी को किया गया था |इसके निर्माण में 11 वर्ष का समय लगा और 100 करोड़ की लागत आई,इसमें इटैलियन संगमरमर का प्रयोग किया गया है |राजस्थान और उत्तरप्रदेश के 1000 शिल्पकारों ने इसका निर्माण किया है |इसका शिलान्यास कृपालु जी महाराज द्वारा 14 जनवरी 2001 में किया गया था |यह मंदिर प्राचीन भारतीय शिल्पकला के पुनर्जागरण का एक नमूना है | यह मंदिर 54 एकड़ में बना है इसकी ऊंचाई 125 फुट ,लम्बाई 122 फुट ,चौड़ाई 115 फुट है |
प्रेम मंदिर का बाहरी दृश्य
सभी जाति धर्म के लिए खुले इसके प्रवेश द्वार सभी दिशाओं में खुलते हैं प्रवेश द्वारों पर आठ मयूरों के नक्काशीदार तोरण हैं और मंदिर की बहरी दीवारों को राधा कृष्ण की लीलाओं से शिल्पांकित किया गया है|
मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार
प्रवेश द्वार से अंदर जाकर हमने बाकी सबका इंतजार किया ताकि सब इस भव्य मंदिर का आनंद इकठ्ठे उठा सकें | रात को मंदिर देखने का आनंद दोगुना हो जाता है |मंदिर के गर्भ गृह के ऊपर पल पल रंग बदलती रोशनियाँ आपका मन मोह लेती हैं | पूरी आंतरिक दीवारों पर राधा कृष्ण एवं कृपालु जी महाराज की झांकियां नजर आती हैं जिसकी तस्वीरें आप तक साथ साथ पहुंचाती रहूंगी |एक विडियो जो प्रवेश द्वार के अंदर के दृश्यों को बखूबी आप तक पहुंचाएगी ,देखिये ....
राधा कृष्ण के भजनों का सुंदर कीर्तन पूरे भवन में कानों में सुनाई पड़ता है जिससे आपकी यात्रा वाकई राधा कृष्णमई हो जाती है |बगीचों में सजी सुंदर राधा कृष्ण की झांकियां अपलक आप देखते ही रह जाते हैं
हम सब जल्दी से आगे बढ़ रहे थे क्योंकि फव्वारा शो का समय हो रहा था ,सुंदर उद्दानों से होते हुए दायीं तरफ मंदिर का पुस्तकालय एवं मंदिर का कार्यालय है | उसके बाद श्री गोवर्धन लीला की सुंदर झांकी है ,इसके साथ ही आगे भोजनालय है यहाँ से आप भूख की तृप्ति कर सकते हैं ,कुछ खाने का मन था पर सामने शो शुरू हो चूका था सब वहीँ आसपास बगीचों में बैठ गए देखने के लिए संगीतमय फव्वारे सुंदर झलक प्रस्तुत कर रहे थे उसकी ठंडी फुहारें यदा कदा आकर मन पुलकित कर रहीं थी ,फिर हमने सोचा चलते चलते देखते हैं साथ में और झांकियां भी देख ली जाएँ इसलिए वहां से चलकर उसके गर्भ गृह के बाहर के आंगन में पहुँच गए यहाँ से फव्वारा शो देखना ज्यादा बेहतर था | कुछ लोग बाहर आँगन में बैठ गए बाकी सब हम लोग मंदिर के भीतर चल दिए| मंदिर के बाहर और अंदर प्राचीन वास्तुशिल्प की उत्कृष्ट पच्चीकारी और नक्काशी की गई है |संगमरमर की शिलाओं पर राधा गोविन्द गीत सरल भाषाओँ में लिखे गए हैं |गर्भगृह के भीतर भी राधा कृष्ण और कृपालु जी महाराज की सुंदर झांकियो से मंदिर सुसज्जित है लीजिए देखिये कुछ तस्वीरें ......
मंदिर से बाहर आकर सबके पास जब पहुंचे तो पता चला की असल में फव्वारा शो तो अब दिखाया गया जिसमें राधा कृष्ण की नृत्य करते और कृपालु जी महाराज की प्रवचन करते हुए झांकियां पानी की बौशारों के ऊपर दर्शाई गई |हम इस विहंगम दृश्य से चूक गए | तस्वीरें खींचते हुए हम पहुंचे मंदिर के दूसरी तरफ अद्भुत सुंदर मंदिर एक बड़े चबूतरे पर बना है यहाँ से उतरने के बाद हम पहुंचे कालिया नाग की दमन लीला की झांकी देखने आप भी देखिये ....
बहुत ही मधुर यादें लेकर हम इस मंदिर से निकले | यहाँ कोई फोटो खींचने पर प्रतिबन्ध नहीं है न ही मंदिर के अंदर न ही मंदिर के बाहर इसलिए आप ढेरों यादें अपने साथ समेट कर ला सकते हैं | सबसे बड़ी बात यहाँ कोई शुल्क नहीं लिया जाता है सुंदर झांकियो के दर्शन हेतु
वृन्दावन यात्रा भाग 4.क्रमशः.....
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