दोस्तों आज फिर हाजिर हूँ वृन्दावन यात्रा का 5वां भाग लेकर जो मुझे लिखना पड़ा क्योंकि दो तीन वर्ष में कुछ बदलाव आये हैं ..कुछ जल्दी ही होने वाले हैं ..
आज जब तीसरी बार वृन्दावन जाना हुआ तो रास्ते में हम गुलशन का ढाबा ढूंढते हुए आगे निकल गए इसलिए कोई ठीक ठाक व्यवस्था वाला ढाबा या होटल देखने लगे तो याद आया रास्ते में सागररत्ना आता है तो क्यों ना वही रुका जाये इसलिए हमने वही रुकना उचित समझा और मजेदार पूरी छोले,सांबर डोसा,सांबर इडली वगेरह का आनंद लिया ..
14 अगस्त,2015 को दोबारा वृन्दावन जाने का मौका मिला था ...दोबारा बाँके बिहारी मंदिर में जाना हुआ ,हाल पहले से भी बदतर थे ...किवाड़ बंद थे जब सायंकाल में मंदिर खुलने का समय हुआ तो उससे पहले सभी दरवाजों के आगे काफी भीड़ लग चुकी थी ..कोई पंक्ति नहीं बनी हुई थी ... मंदिर के कपाट खुलते ही ऐसे लगा जैसे भेड़ों को किसी कमरे में सब तरफ से छोड़ दिया गया हो ...हर द्वार अंदर जाने के लिए खुल गया ... मुझे समझ नहीं आया कि निकास का रास्ता कौनसा था ..सभी रास्ते अन्दर जाने के और सभी रास्ते बाहर जाने के ऐसे उस भीड़ से निकलना कैसे मुमकिन था .. मैंने खुद को बहुत कोसा कि मैं जानती थी कि यही हाल होगा फिर भी मैं यहाँ क्यों आई ...
उसी दिन जब इस्कान मंदिर गए तो वहां की व्यवस्था भी अत्यधिक भीड़ के कारण चरमरा गई थी .. जूते रखने की कोई जगह नहीं बची थी इसलिए गेट के पास ही बहुत सारे लोग जूते रखकर जा रहे थे तब हम लोगों ने बाहर किसी फल वाले के पास अपने जूते रखे थे ...
11जनवरी,2016,दिन सोमवार ...हमारा फिर से परिवार के साथ वृन्दावन जाना हुआ तो बात शुरू हुई की पहले बांकेबिहारी मंदिर जायेंगे ..मैंने तो साफ़ इनकार कर दिया मैं नहीं जाने वाली .. सबने कहा ठीक हैअगर भीड़ हुई तो अंदर नहीं जाना .. हमने गाड़ी सड़क किनारे रोकी और आगे जाने का रास्ता पूछने लगे तो एक दो लोग सुझाने लगे कि गाड़ी पार्किंग में लगाइए जबकि ज्यादा गाड़ियाँ सड़क किनारे ही खड़ीं थी क्योंकि पार्किंग की कोई उचित व्यवस्था नजर नहीं आ रही थी जबकि वहां सरकारी बोर्ड जरुर लगा हुआ था ...हम सब गाड़ी पार्क करके जब अंदर जाने लागे तो कई पुरुष हाथ में डंडा लिए साथ साथ चल दिए यह कहकर की हम आपको रास्ता दिखायेंगे और बंदरों से आपको बचायेंगे किसी तरह उन लोगों को टालने के बाद हम वहां पहुँच गए ... कपाट खुल चुके थे सबने कहा आज तो भीड़ नही है दर्शन कर लेते हैं ... हम सब अंदर प्रवेश कर गए ... सिस्टम वही था जूते रखने का कोई प्रबंध नहीं था पर भीड़ कम थी तो हम आराम से अंदर जाकर दर्शन कर पाये .. भीड़ कम की एक वजह तो यह थी कि कोई छुट्टी का दिन नहीं था... दूसरा कारण यह था की यात्रियों की असुविधा को देखते हुए सरकार ने इसे अपनी निगरानी में लेने की सोच ली थी जिसके विरोध में बैनर मंदिर के अंदर लगे हुए थे ...
दूसरा बदलाव जो नजर आया वो था फोटो खींचने से कोई रोक नहीं रहा था हमने भी मंदिर के अंदर की तो नहीं लेकिन कुछ प्रांगन की तस्वीरें जरुर ले ली थी और बाहर भी कुछ व्यवस्थित दुकानें नजर आ रहीं थी ...आप भी देखियेगा ... खाने पीने की कुछ अच्छी दुकानें हैं यहाँ पर आप प्रभु पूजा के बाद पेट पूजा कर सकते हैं ...
आज जब तीसरी बार वृन्दावन जाना हुआ तो रास्ते में हम गुलशन का ढाबा ढूंढते हुए आगे निकल गए इसलिए कोई ठीक ठाक व्यवस्था वाला ढाबा या होटल देखने लगे तो याद आया रास्ते में सागररत्ना आता है तो क्यों ना वही रुका जाये इसलिए हमने वही रुकना उचित समझा और मजेदार पूरी छोले,सांबर डोसा,सांबर इडली वगेरह का आनंद लिया ..
इसके एक घंटे बाद हम वृन्दावन में प्रवेश कर चुके थे ... वृन्दावन में प्रवेश करने से 4.. 5 किलोमीटर पहले ही नए नए मंदिरों का निर्माण कार्य चल रहा है जो काफी भव्य बनाये जा रहे हैं ...
उसी दिन जब इस्कान मंदिर गए तो वहां की व्यवस्था भी अत्यधिक भीड़ के कारण चरमरा गई थी .. जूते रखने की कोई जगह नहीं बची थी इसलिए गेट के पास ही बहुत सारे लोग जूते रखकर जा रहे थे तब हम लोगों ने बाहर किसी फल वाले के पास अपने जूते रखे थे ...
11जनवरी,2016,दिन सोमवार ...हमारा फिर से परिवार के साथ वृन्दावन जाना हुआ तो बात शुरू हुई की पहले बांकेबिहारी मंदिर जायेंगे ..मैंने तो साफ़ इनकार कर दिया मैं नहीं जाने वाली .. सबने कहा ठीक हैअगर भीड़ हुई तो अंदर नहीं जाना .. हमने गाड़ी सड़क किनारे रोकी और आगे जाने का रास्ता पूछने लगे तो एक दो लोग सुझाने लगे कि गाड़ी पार्किंग में लगाइए जबकि ज्यादा गाड़ियाँ सड़क किनारे ही खड़ीं थी क्योंकि पार्किंग की कोई उचित व्यवस्था नजर नहीं आ रही थी जबकि वहां सरकारी बोर्ड जरुर लगा हुआ था ...हम सब गाड़ी पार्क करके जब अंदर जाने लागे तो कई पुरुष हाथ में डंडा लिए साथ साथ चल दिए यह कहकर की हम आपको रास्ता दिखायेंगे और बंदरों से आपको बचायेंगे किसी तरह उन लोगों को टालने के बाद हम वहां पहुँच गए ... कपाट खुल चुके थे सबने कहा आज तो भीड़ नही है दर्शन कर लेते हैं ... हम सब अंदर प्रवेश कर गए ... सिस्टम वही था जूते रखने का कोई प्रबंध नहीं था पर भीड़ कम थी तो हम आराम से अंदर जाकर दर्शन कर पाये .. भीड़ कम की एक वजह तो यह थी कि कोई छुट्टी का दिन नहीं था... दूसरा कारण यह था की यात्रियों की असुविधा को देखते हुए सरकार ने इसे अपनी निगरानी में लेने की सोच ली थी जिसके विरोध में बैनर मंदिर के अंदर लगे हुए थे ...
दूसरा बदलाव जो नजर आया वो था फोटो खींचने से कोई रोक नहीं रहा था हमने भी मंदिर के अंदर की तो नहीं लेकिन कुछ प्रांगन की तस्वीरें जरुर ले ली थी और बाहर भी कुछ व्यवस्थित दुकानें नजर आ रहीं थी ...आप भी देखियेगा ... खाने पीने की कुछ अच्छी दुकानें हैं यहाँ पर आप प्रभु पूजा के बाद पेट पूजा कर सकते हैं ...
इसके बाद हम दोबारा गाड़ी में बैठकर इस्कान मंदिर पहुँचे यहाँ की आरती देखने के लिए विशेषतया लोग आते हैं जिसमे विदेशी स्वदेशी भक्त मंत्रमुग्ध हो आरती का आंनंद लेते हैं ... यहाँ जूता घर की विशेष व्यवस्था है जो प्रवेश द्वार के निकट ही बनाया गया है जो अंडरग्राउंड है बस इसमें भीड़ के हिसाब से जूते लेने के लिए एक या अधिक लोग होते हैं जो आपके जूते लेकर आपको टोकन देते हैं ...अगर जूते एक से अधिक हैं तो आप थैला लेकर उसमें जूते रख सकते हैं ...
इसके बाद हम प्रेम मंदिर पहुंचे यहाँ काफी भीड़ रहती है और यहाँ की आरती का भी लोग फव्वारे में चित्र देखकर आनंद उठाते हैं .. यहाँ भी बाहर तस्वीर लेने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है जबकि अंदर तस्वीर लेने पर प्रतिबन्ध हैं ... यहाँ एक सुंदर और बड़ा उपाहार गृह है , जिसे राधा कृष्ण उपाहार गृह के नाम से जानते हैं ... इसी उपाहार गृह में शौचालय में अगर आप जाते हैं तो आपको वहां बाहर ही चार पाँच जोड़ी चप्पल राखी गई हैं अगर कोई अपने जूते शौचालय में नहीं ले जाना चाहे तो वो इनका प्रयोग कर सकता है ...
इसके बाद हम प्रेम मंदिर पहुंचे यहाँ काफी भीड़ रहती है और यहाँ की आरती का भी लोग फव्वारे में चित्र देखकर आनंद उठाते हैं .. यहाँ भी बाहर तस्वीर लेने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है जबकि अंदर तस्वीर लेने पर प्रतिबन्ध हैं ... यहाँ एक सुंदर और बड़ा उपाहार गृह है , जिसे राधा कृष्ण उपाहार गृह के नाम से जानते हैं ... इसी उपाहार गृह में शौचालय में अगर आप जाते हैं तो आपको वहां बाहर ही चार पाँच जोड़ी चप्पल राखी गई हैं अगर कोई अपने जूते शौचालय में नहीं ले जाना चाहे तो वो इनका प्रयोग कर सकता है ...
आने वाले समय में मंदिरों की स्थिति में सुधार होने की पूरी उम्मीद है क्योंकि प्रशासन ने तो नहीं लेकिन केन्द्रीय सरकार ने इनको सुधारने का बीड़ा उठाया है ,इसी उम्मीद को कायम रखते हुए ...
चलिए दोस्तों मिलते हैं फिर से जल्दी ही मथुरा यात्रा के साथ राधा कृष्ण की नगरी में तब तक के लिए शुभविदा ...
लेखिका ... सरिता यश भाटिया
चलिए दोस्तों मिलते हैं फिर से जल्दी ही मथुरा यात्रा के साथ राधा कृष्ण की नगरी में तब तक के लिए शुभविदा ...
लेखिका ... सरिता यश भाटिया
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