शनिवार, 26 जुलाई 2014

हरिद्वार यात्रा भाग 3.

दर्शनीय स्थल :--
इस भाग में हम हरिद्वार और उसके आसपास के दर्शनीय स्थलों के बारे जानेंगे |

हर की पौडी:---
यह पवित्र घाट राजा विक्रमादित्य ने पहली शताब्दी ईसा पूर्व में अपने भाई भ्रिथारी की याद में बनवाया था. मान्यता है कि भ्रिथारी हरिद्वार आया था और उसने पावन गंगा के तटों पर तपस्या की थी. जब वह मरे, उनके भाई ने उनके नाम पर यह घाट बनवाया, जो बाद में हरी- की- पौड़ी कहलाया जाने लगा. हर की पौड़ी का सबसे पवित्र घाट ब्रह्मकुंड है. संध्या समय गंगा देवी की हरी की पौड़ी पर की जाने वाली आरती किसी भी आगंतुक के लिए महत्वपूर्ण अनुभव है. स्वरों व रंगों का एक कौतुक समारोह के बाद देखने को मिलता है जब तीर्थयात्री जलते दीयों को नदी पर अपने पूर्वजों की आत्मा की शान्ति के लिए बहाते हैं. विश्व भर से हजारों लोग अपनी हरिद्वार यात्रा के समय इस प्रार्थना में उपस्थित होने का ध्यान रखते हैं. 
मनसा देवी मंदिर :---
मनसा देवी मंदिर एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है जो हरिद्वार शहर से लगभग 3 किमी दूर स्थित है। यह मंदिर हिंदू देवी मनसा देवी को समर्पित है जो ऋषी कश्यप के दिमाग की उपज है। कश्यप ऋषी प्राचीन वैदिक समय में एक महान ऋषी थे। मनसा देवी, सापों के राजा नाग वासुकी की पत्नी हैं।



मनसा देवी जाने के लिए लोग पैदल या उड़नखटोले से जा सकते हैं लेकिन उड़नखटोले के लिए लगभग दो दो घंटे लाइन में लगना पड़ता है इसलिए लोग सुबह सुबह पैदल ही निकल जाते हैं 
मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप में पूजा जाता है। इनका प्रादुर्भाव मस्तक से हुआ है इस कारण इनका नाम मनसा पड़ा। इनके पति जगत्कारु तथा पुत्र आस्तिक जी हैं।
रूप:-
मनसा देवी आस्तिक को गोद में लिए हुए, 10वीँ सदी पाल वंश, बिहार।
मनसा देवी मुख्यत: सर्पों से आच्छादित तथा कमल पर विराजित हैं 7 नाग उनके रक्षण में सदैव विद्यमान हैं। कई बार देवी के चित्रों तथा भित्ति चित्रों में उन्हें एक बालक के साथ दिखाया गया है जिसे वे गोद में लिये हैं, वह बालक देवी का पुत्र आस्तिक है।





 यह मंदिर शिवालिक पहाड़ियों के बिल्व पर्वत पर स्थित है और इस मंदिर में देवी की दो मूर्तियाँ हैं।
एक मूर्ती की पांच भुजाएं एवं तीन मुहं है एवं दूसरी अन्य मूर्ती की आठ भुजाएं हैं। 52 शक्तिपीठों(हिंदू देवी सती या शक्ति की पूजा किये जाने वाले स्थल) में से एक यह मंदिर सिद्ध पीठ त्रिभुज के चरम पर स्थित है। यह त्रिभुज माया देवी, चंडी देवी एवं मनसा देवी मंदिरों से मिलकर बना है।
          इस मंदिर में भ्रमण के दौरान भक्त एक पवित्र वृक्ष के चारों ओर एक धागा बांधते हैं एवं भगवान् से अपनी मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना करते हैं। मनोकामना पूर्ण होने के बाद वृक्ष से इस धागे को खोलना आवश्यक है। पर्यटक इस मंदिर तक केबल कार द्वारा पहुँच सकते हैं। केबल कार यहाँ ‘देवी उड़नखटोला’ के नाम से प्रसिद्ध है।
मंदिर के खुलने का समय : सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक है और 12 बजे से 2 बजे तक भोजन के लिए मंदिर बंद रहता है |



उड़न खटोला का समय :-
गर्मी में :
अप्रैल से अक्तूबर ... सुबह 7 बजे से रात 8 बजे तक 
सर्दी में :
नवम्बर से मार्च ......सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक 
किराया :- दोनों तरफ का केबल कार का किराया 65 रुपये और एक तरफ का किराया 45 रुपये है |

चढाई के रास्ते में कई स्कूटर या बाइक वाले भी 50 या 70 रुपये लेकर एक एक सवारी को दरबार तक छोड़ देते हैं |
मनसा देवी से जुड़ी मान्यताएं :--
महाभारत:-
जन्मेजय का सर्पेष्ठी यज्ञ
पाण्डुवंश में पाण्डवों में से एक धनुर्धारी अर्जुन और उनकी द्वितीय पत्नि सुभद्रा जो श्री कृष्ण की बहन हैं, उनके पुत्र अभिमन्यु हुआ जो महाभारत के युद्ध में मारा गया। अभिमन्यु का पुत्र परीक्षित हुआ, जिसकी मृत्यु तक्षक सर्प के काटने से हुई। परीक्षित पुत्र जन्‍मेजय ने अपने छ: भाइयों के साथ प्रतिशोध में सर्प जाति के विनाश के लिये सर्पेष्ठी यज्ञ किया। वासुकी ने अपनी बहन मनसा का विवाह किया तथा उसके पुत्र आस्तिक नें सर्पों को यज्ञ से बचाया।
राजा युधिष्ठिर ने भी माता मानसा की पूजा की थी जिसके फल स्वरूप वह महाभारत के युद्ध में विजयी हुए। जहाँ युधिष्ठिर ने पूजन किया वहाँ सालवन गाँव में भव्य मंदिर का निर्माण हुआ।
पुराण:-
अलग अलग पुराणों में मनसा की अलग अलग किंवदंती है। पुराणों में बताया गया है कि इनका जन्म कश्यप के मस्तिष्क से हुआ तथा मनसा किसी भी विष से अधिक शक्तिशाली थी इसलिये ब्रह्मा ने इनका नाम विषहरी रखा।
विष्णु पुराण:-
विष्णु पुराण के चतुर्थ भाग में एक नागकन्या का वर्णन है जो आगे चलकर मनसा के नाम से प्रतलित हुई।

चंडी देवी मंदिर :--
चंडी देवी मंदिर नील पर्वत के शिखर पर स्थित है। यह देश के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है एवं इसे कश्मीर के तत्कालीन शासक द्वारा वर्ष 1929 में बनवाया गया था। हालांकि ऐसा कहा जाता है कि मंदिर में जो मूर्ति है उसे महान संत आदि शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में स्थापित किया था।



रेलवे स्टेशन से करीब छह किलोमीटर दूरी पर हरिद्वार-नजीबाबाद रोड पर शिवालिक पर्वत माला के एक शिखर पर स्थापित इस मंदिर के लिए पैदल और उडऩ खटोले से जाने की व्यवस्था है। स्टेशन से मंदिर के रास्ते के लिए ऑटो, टेम्पो, टैक्सी, साइकिल रिक्शा और तांगा उपलब्ध हैं|
         चंडी घाट से तीन किलोमीटर की ट्रैकिंग है या उड़न खटोले से भी यहाँ जाया जा सकता है | पूरे हरिद्वार में कहीं भी आप ठहरे हैं टेम्पो ,टैक्सी आपको मिल जाते हैं जो आपके गंतव्य तक पहुंचाते हैं |
         धार्मिक मान्यता है कि जहां मनसादेवी होंगी, वहां चंडी देवी का होना अनिवार्य है। पौराणिक कथाओं के अनुसार तंत्र-मंत्र की सिद्धिरात्री चंडीदेवी ने इसी स्थान पर शुंभ-निशुंभ नामक असुरों का वध किया था। शिवालिक पर्वत श्रृंखला पर स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर के पास शुंभ और निशुंभ नाम के दो पर्वत आज भी हैं। मंदिर में मां काली की प्रतिमा विराजमान है। इसके पास ही हनुमान जी की माता अंजनी देवी का मंदिर भी स्थित है। मां चंडी देवी की रात में विशेष पूजा होती है। भक्तगण अपनी खास पूजा के लिए मंदिर समिति से संपर्क इस खास अनुष्ठान को अपने तथा अपने परिवार के लिए भी करा सकते हैं। नवरात्रों में इस विशेष पूजा का खास महत्व है। इसके मद्देनजर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। विशेष पूजा करने वालों की संख्या ज्यादा होती है। मान-मनौती के लिए मंदिर की बड़ी आस्था है।



मंदिर में मां की चुनरी को बांध मनौती मांगने की परंपरा है। इसकी बड़ी मान्यता है। चुनरी बांध कर मन की इच्छा पूर्ति की देवी से प्रार्थना करने पर वो अवश्य पूरी होती है। मनौती पूरी होने पर देवी दर्शन तत्पश्चात चुनरी खोलने की भी परंपरा है। नवरात्रों में इसका विशेष महत्व है।
माया देवी मंदिर :---

हरिद्वार की रक्षा के लिए एक अद्भुत त्रिकोण विद्यमान है। इस त्रिकोण के दो बिंदु पर्वतों पर मनसा और चंडी के रूप में स्थित है। त्रिकोण उल्टा है और उसका शिखर धरती पर है। उसी अधोमुख शिखर पर भगवती माया आसीन हैं। अधोमुख त्रिभुज के शिखर पर स्थापित माया देवी के नाम पर ही हरिद्वार का प्राचीन नाम मायापुरी पड़ा। यह 52 शक्तिपीठों में से एक है जो हिंदू देवी सती या शक्ति द्वारा पवित्र किया गया भक्ति स्थल है। यह मंदिर हिंदू देवी अधिष्ठात्री को समर्पित है एवं इसका इतिहास 11वीं शताब्दी से उपलब्ध है। ब्रह्मपुराण में सप्त पुरियोंको मोक्षदायिनी बताया है। इनमें मायापुरी भी शामिल है।



       प्रचलित मान्यता के अनुसार, एक बार दक्ष प्रजापति ने हरिद्वार स्थित कनखल में यज्ञ किया। यज्ञ में शिव शंकर के अपमान से कुपित होकर माता सती ने हवनकुंड में आहुति दे दी। इस पर शिव शंकर व्यधित होकर पत्‍‌नी के वियोग में खो गए। कहते हैं कि वियोग में भोले शंकर सती के मृत शरीर को लेकर जगह-जगह भटकने लगे।

इसपर विष्णु भगवान ने शिव शंकर के वियोग को समाप्त करने के लिए सुदर्शन चक्र से सती के मृत काया के 51 हिस्से कर दिए। ये हिस्से जहां-जहां गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। मान्यता है कि माया देवी मंदिर में सती की मृत काया की नाभि गिरी थी और यह जगह माया देवी के रूप में विख्यात हुई। 




प्राचीन काल से माया देवी मंदिर में देवी की पिंडी विराजमान है। 18वीं सदी में इस मंदिर में देवी की मूर्तियां की भी प्राण-प्रतिष्ठा की गई। मंदिर के बगल में आनंद भैरव का मंदिर भी है। पर्व-त्योहारों के समय बड़ी संख्या में श्रद्धालु माया देवी मंदिर के दर्शन करने को पहुंचते हैं।

इस मंदिर का अनेक बार जीर्णोद्धार किया गया। वर्तमान समय में मंदिर का प्रबंध जूना-भैरव अखाड़ा देखता है। मंदिर में सायं कालीन आरती देखने योग्य होती है। विशेषकर गुजरात, राजस्थान, पश्चिमी बंगाल और उड़ीसा से आने वाले यात्री माया देवी का दर्शन अवश्य करते हैं। 

सप्तऋषि आश्रम:-
इस आश्रम के सामने गंगा नदी सात धाराओं में बहती है इसलिए इस स्थान को सप्त सागर भी कहा जाता है। माना जाता है कि जब गंगा नदी बहती हुई आ रही थीं तो यहाँ सात ऋषि गहन तपस्या में लीन थे। गंगा ने उनकी तपस्या में विघ्न नहीं डाला और स्वयं को सात हिस्सों में विभाजित कर अपना मार्ग बदल लिया। इसलिए इसे 'सप्‍त सागर' भी कहा जाता है।

दक्ष महादेव मंदिर:-
यह प्राचीन मंदिर नगर के दक्षिण में स्थित है। सती के पिता राजा दक्ष की याद में यह मंदिर बनवाया गया है। किवदंतियों के अनुसार सती के पिता राजा दक्ष ने यहाँ एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया था। यज्ञ में उन्होंने शिव को नहीं आमन्त्रित किया। अपने पति का अपमान देख सती ने यज्ञ कुण्ड में आत्मदाह कर लिया। इससे शिव के अनुयायी गण उत्तेजित हो गए और दक्ष को मार डाला। बाद में शिव ने उन्हें पुनर्जीवित कर दिया।





परमेश्वर महादेव मंदिर :-
यह मंदिर हरिद्वार से लगभग 4 कि.मी. दूर है, यहां पारे से बना एक पवित्र शिवलिंग है।

पवन धाम मंदिर :-
शहर से लगभग 2 कि.मी. दूर पवन धाम मंदिर है। उत्कृष्ट आईनों और शीशे पर किए गए कार्य के लिए प्रसिद्ध इस मंदिर में व्यापक रूप से अलंकृत मूर्तियां हैं। इसे शीशे वाला मंदिर भी कहते हैं | 

लाल माता मंदिर :-
यह मंदिर जम्मू-कश्मीर में स्थित वैष्णों देवी मंदिर का प्रतिरूप है। यहां एक नकली पहाड़ी और बर्फ से जमाया हुआ शिवलिंग है जो अमरनाथ के शिवलिंग का प्रतिरूप है।

यहां अनेक दर्शनीय मंदिर हैं जिनमें दक्ष महादेव मंदिर, भारत माता मंदिर और चंदा देवी प्रमुख हैं। जय राम आश्रम, आनंदमयी मां आश्रम, सप्त ऋषि आश्रम और परमार्थ आश्रम अन्य दर्शनीय स्थल हैं।

कनखल :-
कनखल, हरिद्वार शहर से बिलकुल सटा हुआ है। कनखल के विशेष आकर्षण प्रजापति मंदिर, सती कुंड एवं दक्ष महादेव मंदिर हैं। कनखल आश्रमों तथा विश्व प्रसिद्ध गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के लिए भी जाना जाता है।
कनखल का पौराणिक महत्त्व:-
महाराजा शिव की राजधानी कनखल (हरिद्वार) में थी। शिव से सती का सती होना सहन नहीं हुआ ,शिव ने वीरभद्र को बुलाया और कहा कि मेरी गण सेना का नेतृत्व करो और दक्ष का यज्ञ नष्ट कर दो. वीरभद्र शिव के गणों के साथ गए और यज्ञ को नष्ट कर दक्ष का सर काट डाला।

      कनखल में सभी हिन्दू दाह संस्कार के बाद अस्थियाँ प्रवाह करते हैं जिससे ऐसा माना जाता है की आत्मा की मुक्ति होती है |


ऋषिकेश :--
ऋषिकेश हरिद्वार से लगभग 25 किलोमीटर दूर है ,यहाँ के लिए आपको आराम से टेम्पो मिल जाते हैं जो आपको 45-50 मिनट में ही ऋषिकेश पहुंचा देते हैं | आप सीधे ऋषिकेश भी जा सकते हैं | या हरिद्वार यात्रा के साथ भी इसका आनंद ले सकते हैं |





कैसे जाएं----
वायुमार्ग-
ऋषिकेश से 18 किमी. की दूरी पर देहरादून के निकट जौली ग्रान्ट एयरपोर्ट नजदीकी एयरपोर्ट है। एयर इंडिया, किंगफिशर, जेट एवं स्पाइसजेट की फ्लाइटें इस एयरपोर्ट को दिल्ली से जोड़ती है।
रेलमार्ग-
ऋषिकेश का नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जो शहर से 5 किमी. दूर है। ऋषिकेश देश के प्रमुख रेलवे स्टेशनों से जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग-
दिल्ली के कश्मीरी गेट से ऋषिकेश के लिए डीलक्स और निजी बसों की व्यवस्था है। राज्य परिवहन निगम की बसें नियमित रूप से दिल्ली और उत्तराखंड के अनेक शहरों से ऋषिकेश के लिए चलती हैं।

हिमालय का प्रवेश द्वार, ऋषिकेश जहाँ पहुँचकर गंगा पर्वतमालाओं को पीछे छोड़ समतल धरातल की तरफ आगे बढ़ जाती है। ऋषिकेश का शांत वातावरण कई विख्यात आश्रमों का घर है। 
ऋषिकेश को केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री का प्रवेशद्वार माना जाता है। कहा जाता है कि इस स्थान पर ध्यान लगाने से मोक्ष प्राप्त होता है। हर साल यहाँ के आश्रमों के बड़ी संख्या में तीर्थयात्री ध्यान लगाने और मन की शान्ति के लिए आते हैं। विदेशी पर्यटक भी यहाँ आध्यात्मिक सुख की चाह में नियमित रूप से आते रहते हैं। ऋषिकेश के दर्शनीय स्थल 
देखे बिना आप आ ही नही सकते |
लक्ष्मण झूला :-
गंगा नदी के एक किनार को दूसर किनार से जोड़ता यह झूला नगर की विशिष्ट की पहचान है। इसे 1939 में बनवाया गया था। कहा जाता है कि गंगा नदी को पार करने के लिए लक्ष्मण ने इस स्थान पर जूट का झूला बनवाया था। झूले के बीच में पहुंचने पर वह हिलता हुआ प्रतीत होता है। 450 फीट लंबे इस झूले के समीप ही लक्ष्मण और रघुनाथ मंदिर हैं। झूले पर खड़े होकर आसपास के खूबसूरत नजारों का आनंद लिया जा सकता है। लक्ष्मण झूला के समान राम झूला भी नजदीक ही स्थित है। यह झूला शिवानंद और स्वर्ग आश्रम के बीच बना है। इसलिए इसे शिवानंद झूला के नाम से भी जाना जाता है।ऋषिकेश मैं गंगाजी के किनारे की रेट बड़ी ही नर्म और मुलायम है ,इस पर बैठने से यह माँ की गोद जैसी स्नेहमयी और ममतापूर्ण लगती है,यहाँ बैठकर दर्शन करने मात्र से ह्रदय मैं असीम शांति और रामत्व का उदय होने लगता है ...






राम झूला :-
राम झूला उत्तराखंड राज्य के ऋषिकेश शहर में शिवानंद और स्वर्ग आश्रम के बीच बना है। इसलिए इसे 'शिवानंद झूला' के नाम से भी जाना जाता है।
शिवानंद आश्रम के सामने एक झूलेनुमा पुल बना हुआ है, जिसे राम झूले के नाम से जाना जाता हैं। राम झूला लक्ष्मण झूला के नज़दीक स्थित है।
स्वर्गाश्रम क्षेत्र में जाने हेतु राम झूला गंगा के उस पार से इस पार ले जाने का रास्ता है। राम झूला भार भी झेल सकता है। दुपहिया वाहन इसके ऊपर से अक्सर निकलते देखे जा सकते हैं। राम झूले (पुल) पर जब लोग चलते है तो यह झूलता हुआ प्रतीत होता है। हिचकोले खाते हुए, राम झूले के ऊपर से नीचे बह रही गंगा का विहंगम दृश्य का आनंद लिया जा सकता है।

चित्र:Ram-Jhula-1.jpg

त्रिवेणी घाट :-
ऋषिकेश में स्नान करने का यह प्रमुख घाट है जहां प्रात: काल में अनेक श्रद्धालु पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाते हैं। कहा जाता है कि इस स्थान पर हिन्दु धर्म की तीन प्रमुख नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है। इसी स्थान से गंगा नदी दायीं ओर मुड़ जाती है। शाम को होने वाली यहां की आरती का नजारा बेहद आकर्षक होता है।




स्वर्ग आश्रम-
स्वामी विशुद्धानन्द द्वारा स्थापित यह आश्रम ऋषिकेश का सबसे प्राचीन आश्रम है। स्वामी जी को काली कमली वाले नाम से भी जाना जाता था। इस स्थान पर बहुत से सुन्दर मंदिर बने हुए हैं। यहां खाने पीने के अनेक रस्तरां हैं जहां सिर्फ शाकाहारी भोजन ही परोसा जाता है। आश्रम की आसपास हस्तशिल्प के सामान की बहुत सी दुकानें हैं।




नीलकंठ महादेव मंदिर-
लगभग 5500 फीट की ऊंचाई पर स्वर्ग आश्रम की पहाड़ी की चोटी पर नीलकंठ महादेव मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने इसी स्थान पर समुद्र मंथन से निकला विष ग्रहण किया गया था। विषपान के बाद विष के प्रभाव के से उनका गला नीला पड़ गया था और उन्हें नीलकंठ नाम से जाना गया था। मंदिर परिसर में पानी का एक झरना है जहां भक्तगण मंदिर के दर्शन करने से पहले स्थान करते हैं।



भरत मंदिर-

यह ऋषिकेश का सबसे प्राचीन मंदिर है जिसे 12 शताब्दी में आदि गुरू शंकराचार्य ने बनवाया था। भगवान राम के छोटे भाई भरत को समर्पित यह मंदिर त्रिवेणी घाट के निकट ओल्ड टाउन में स्थित है। मंदिर का मूल रूप 1398 में तैमूर आक्रमण के दौरान क्षतिग्रस्त कर दिया गया था। हालांकि मंदिर की बहुत सी महत्वपूर्ण चीजों को उस हमले के बाद आज तक संरक्षित रखा गया है। मंदिर के अंदरूनी गर्भगृह में भगवान विष्णु की प्रतिमा एकल शालीग्राम पत्थर पर उकेरी गई है। आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा रखा गया श्रीयंत्र भी यहां देखा जा सकता है।

कैलाश निकेतन मंदिर-
लक्ष्मण झूले को पार करते ही कैलाश निकेतन मंदिर है। 12 खंड़ों में बना यह विशाल मंदिर ऋषिकेश के अन्य मंदिरों से भिन्न है। इस मंदिर में सभी देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं।

वशिष्ठ गुफा-
ऋषिकेश से 22 किमी. की दूरी पर 3000 साल पुरानी वशिष्ठ गुफा बद्रीनाथ-केदारनाथ मार्ग पर स्थित है। इस स्थान पर बहुत से साधुओं विश्राम और ध्यान लगाए देखे जा सकते हैं। कहा जाता है यह स्थान भगवान राम और बहुत से राजाओं के पुरोहित वशिष्ठ का निवास स्थल था। वशिष्ठ गुफा में साधुओं को ध्यानमग्न मुद्रा में देखा जा सकता है। गुफा के भीतर एक शिवलिंग भी स्थापित है।

गीता भवन-
राम झूला पार करते ही गीता भवन है जिसे 1950 ई. में श्रीजयदयाल गोयन्काजी ने बनवाया गया था। यह अपनी दर्शनीय दीवारों के लिए प्रसिद्ध है। यहां रामायण और महाभारत के चित्रों से सजी दीवारें इस स्थान को आकर्षण बनाती हैं। यहां एक आयुर्वेदिक डिस्पेन्सरी और गीताप्रेस गोरखपुर की एक शाखा भी है। प्रवचन और कीर्तन मंदिर की नियमित क्रियाएं हैं। शाम को यहां भक्ति संगीत की आनंद लिया जा सकता है। तीर्थयात्रियों के ठहरने के लिए यहां सैकड़ों कमरे हैं।

रिवर राफ्टिंग -
ऋषिकेश को रिवर राफ्टिंग का मक्का कहा जाता है और यहां हर साल हजारों एडवेंचर लवर राफ्टिंग के लिए पहुंचते हैं. लेकिन न तो सरकार अब तक चेती है और न राफ्टिंग कारोबारी सुरक्षा के पूरे उपाय कर पाए हैं. अप्रशिक्षित और युवा गाइडों के साथ कामचलाऊ सुरक्षा उपकरणों के सहारे देसी-विदेशी पर्यटकों की जान को खतरे में डाला जा रहा है| गर्मी का मौसम शुरू होते ही पर्यटक व्हाइट वॉटर राफ्टिंग के लिए आते हैं| 
1984-85 में जब ऋषिकेश में राफ्टिंग का काम शुरू हुआ, तब यहां सिर्फ 2-3 कंपनियां थीं और सिर्फ विदेशी पर्यटक ही राफ्टिंग करने के लिए आते थे | लेकिन आज यहां 140 रजिस्टर्ड राफ्टिंग कंपनियां और करीब 500 राफ्टिंग बुकिंग काउंटर हैं.’’ राफ्टिंग की हरसत इसलिए भी एडवेंचर लवर्स को खींच लाती है क्योंकि यहां आठ महीने का सबसे लंबा राफ्टिंग सीजन होता है.




खरीददारी :-
ऋषिकेश में हस्तशिल्प का सामान अनेक छोटी दुकानों से खरीदा जा सकता है। यहां अनेक दुकानें हैं जहां से साड़ियों, बेड कवर, हैन्डलूम फेबरिक, कॉटन फेबरिक आदि की खरीददारी की जा सकती है। ऋषिकेश में सरकारी मान्यता प्राप्त हैन्डलूम शॉप, खादी भंडार, गढ़वाल वूल और क्राफ्ट की बहुत सी दुकानें हैं जहां से उच्चकोटि का सामान खरीदा जा सकता है |
ऋषिकेश देखने के बाद सभी धर्मशाला पहुँच चुके थे | अगले भाग में जानते हैं हरिद्वार के कुछ और आकर्षण ...

हरिद्वार यात्रा भाग 4. क्रमशः ...

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