ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्
गुरुवार, 18 अक्तूबर 2012
मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012
नीलकंठ भोले की महिमा
भस्म रमा के अपने सीने पर
शिवजी तुम कैलाश पर छाए
त्रिशूल के संग तुम लगो प्यारे
शंकर,रुद्र ,भोलेनाथ कहाए
सर्प गले में और हाथ कमंडल
रुद्राक्ष माला गले में साजे
बैल सवारी लगे तुम्हे प्यारीकाँपे दुष्ट जब डमरू बाजे
समुंद्र मंथन से विष पान कर
विष को कंठ में धारण किया
नीले कंठ से नीलकंठ हो गये
दुनिया का जब दुख हर लिया
फाल्गुन मास की अमावस्या को
महाशिवरात्रि का सब पर्व मनाएँ
औरतें पति पुत्र की कामना चाहें
बेलपत्र,पुष्प,जल और दूध चढ़ाएँ
ब्रह्म पूर्वजों के कष्ट मिटाने को
जटा से गंगा धरती पर ले आए
पापी दूष्टों का संहार करने को
त्रित्य नेत्र तुम्हारा खुल जाए
धरती ने ली फिर से अंगड़ाई
चारों और हरियाली है छाई
आओ सब महाशिवरात्रि मनाएँ
खुशियाँ बाँटें और खुशियाँ पाएँ
सदस्यता लें
संदेश (Atom)