tag:blogger.com,1999:blog-37736859228903485202024-03-12T17:32:55.377-07:00ॐ ..प्रीतम साक्षात्कार ..ॐ ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् Guzarishhttp://www.blogger.com/profile/11205127840621066197noreply@blogger.comBlogger97125tag:blogger.com,1999:blog-3773685922890348520.post-32586234230473893002016-06-07T05:15:00.000-07:002016-06-07T07:15:01.859-07:00सिंगापुर यात्रा संस्मरण भाग 5.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><a href="http://prabhumahima.blogspot.in/2016/06/4.html" target="_blank">भाग 4.</a></span></div>
<div style="text-align: left;">
<br /></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>आइये जानें कुछ और बातें सिंगापुर के बारे में </b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span><span style="font-size: large;">अर्थशास्त्रियों ने सिंगापुर को 'आधुनिक चमत्कार' की संज्ञा दी है। यहाँ के सारे प्राकृतिक संसाधन यहाँ के निवासी ही हैं। सिंगापुर में पानी मलेशिया से, दूध, फल व सब्जियाँ न्यूजीलैंड व ऑस्ट्रेलिया से, दाल, चावल व अन्य दैनिक उपयोग की वस्तुएँ थाईलैंड, इंडोनेशिया आदि से आयात की जाती हैं।... </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"> यहाँ दो तरह का जीवन ही पाया जाता है एक उत्साह उर्जा जोश से भरपूर ,परियों के देश में विचरते हाथ में हाथ लिए रंग बिरंगे सपने बुनते ,नए नए फैशन के प्रतीक दूसरा सूखी और झुर्रीदार त्वचा से झांकता पलायन जो जिंदगी के साथ ताल से ताल नहीं बिठा पा रहा ... </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>राजनीति :--</b> </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">सिंगापुर एक लोकतांत्रिक देश है जहाँ पीपल्स एक्शन पार्टी का बोलबाला रहा है । ली कुआन यू इसके सबसे प्रभावशाली नेता थे इस दौरान सिंगापुर ने बहुत व्यावसायिक प्रगति की । यहाँ की संसद एक सदन वाली है जिसके पास विधान बनाने का हक है । इसके अलावे यहाँ की सरकार में कार्यकरने वाली कार्यपालिका तथा न्याय मामलों के लिए न्यायपालिका दो अन्य अंग हैं । </span></div>
<div style="text-align: left;">
<b style="font-size: x-large;">पर्यटन :-- </b></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">सिंगापुर में पर्यटन<b> </b>एक प्रमुख उद्योग है और हर साल ये लाखों की संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है।सिंगापुर के प्रमुख पर्यटन स्थलों की बात करें तो ये दर्जा ऑर्चर्ड रोड डिस्ट्रिक्ट को जाता है; यहां बहुमंजिला शॉपिंग सेंटर्स की और होटलों की भरमार है। सिंगापुर में मरीना बे, बुगीस स्ट्रीट, चाइनाटाउन, गेलैंग सराय, कांपोंग गेलाम, अरब स्ट्रीट, लिटिल इंडिया, नॉर्थ ब्रिज रोड, ऑर्चर्ड रोड और द सबर्ब्स जैसे शॉपिंग सेंटर विकसित किए गए हैं। सिंगापुर के दूसरे आकर्षक पर्यटन स्थलों में सिंगापुर चिड़ियाघर और नाइट सफारी को शामिल किया जा सकता है...</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>सिटी टूर ..</b><b> </b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">पर्यटकों के लिए एक सिटी टूर की व्यवस्था भी है ,जिसमे डबल डेकर खुली छत वाली ए सी बस सिंगापुर की यात्रा कराती है ,जिसमे साथ साथ उद्घोषणा होती रहती है जो स्थानों के इतिहास और विशेषता के बारे बताते हुए चलती है कुछ द्रश्य अवश्य ही आपका मन मोह लेते हैं .. इसके इलावा काफी टूरिस्ट बसें आपको आपके गंतव्य तक पहुँचाती हैं ..</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div class="separator" style="clear: both;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjJRbRFxrhed4f5jjOd9CG0wENfXqbBHnDHR4Oi1bCqmINScKaLHaXd87OC0qa1Z44rAFC9zczWuRwY3jZY3Nri1kmFbhyFKO9ZvXR9E_sK52f6Izl-XekJAHaxXDPwRmyEE4nBBrxcmZSa/s1600/2.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="300" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjJRbRFxrhed4f5jjOd9CG0wENfXqbBHnDHR4Oi1bCqmINScKaLHaXd87OC0qa1Z44rAFC9zczWuRwY3jZY3Nri1kmFbhyFKO9ZvXR9E_sK52f6Izl-XekJAHaxXDPwRmyEE4nBBrxcmZSa/s400/2.jpg" width="400" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>यातायात व्यवस्था:-- </b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">यहाँ की यातायात व्यवस्था<b> </b>बहुत अच्छी है क्योंकि लम्बी ,साफ सुथरी सड़कें बिना किसी अवरोध के इसकी शान हैं .. यातायात में मेट्रो ,डबल डेकर बस ,टैक्सी ,छोटी उड़ती हुई रेलें जिन्हें मोनोरेल भी कहते हैं ,मुख्य हैं और ये करीब-करीब वहां के सभी पर्यटन स्थलों को और ऑफिस वगेरह को कवर करती है जिससे पर्यटकों को घूमने में और आम लोगों को अपने गंतव्य पर पहुँचने में आसानी रहती है। यहां का बेहद लोकप्रिय <b>मास रैपिड ट्रांजिट (MRT) </b>सिस्टम है यानि मेट्रो .. ..</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">ट्रैफिक यहाँ सुव्यवस्थित और सुनियोजित है सिर्फ लाल हरी बत्तियों और सड़कों पर खिंची रेखायों के दम पर पूरा ट्रैफिक चलता है बिना किसी भी ट्रैफिक पुलिस या अवरोध के ...और बिना किसी हॉर्न के ... जिसे बजाना यहाँ असभ्य समझा जाता है ... </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"></span><br /></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>यहाँ लोगों के पास गाड़ियाँ और बाइक बहुत कम हैं क्योंकि ये बहुत महँगे हैं यह सरकार की तरफ से जाम , वाहनों की भीड़ से बचने और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए उठाया गया एक कारगर कदम है</b> .. लगभग सभी लोग मेट्रो का प्रयोग करते हैं ... </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>टैक्सी</b> .. मेट्रो के बाद टैक्सी यहाँ यातायात का मुख्य साधन है ..यहाँ लगभग 28,286 टैक्सी हैं और 148 स्वतंत्र ड्राईवर ,टैक्सी के फ्लैग डाउन चार्जेज बहुत ही कम हैं ,3 डॉलर से 5 डॉलर के बीच ,शाम 6 बजे के बाद यहाँ नाईट चार्जेज शुरू हो जाते हैं ... एक और बात यहाँ बहुत बढ़िया लगी ..जब भी कोई टैक्सी एक निश्चित बोर्ड के नीचे से निकलती है तो वहां उसका कुछ टैक्स कट जाता है और सामने बोर्ड पर लिखा आ जाता है ,क्योंकि उस रोड पर जाने का टैक्स है ,शायद हमारे टोल टैक्स जैसा लेकिन बहुत ही शानदार तरीका ... </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">हर दस वर्ष के बाद यहाँ बाइक्स और गाड़ियाँ वापिस ले ली जाती हैं और उनके टायर जला दिए जाते हैं ... </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>सिंगापुर का जायका:-- </b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">सिंगापुर में शॉपिंग के साथ साथ खान-पान को भी खास कर पर्यटकों के लिए एक आकर्षण के तौर पर प्रचारित किया जाता है और ये काम आमतौर पर सिंगापुर टूरिज्म बोर्ड या इससे जुड़ी दूसरी संस्थाएं करती हैं। सिंगापुर की पाक प्रणाली के प्रचार के लिए सरकार हर साल जुलाई में सिंगापुर फूड फेस्टिवल का आयोजन करती है।वहां मैक डोनल्ड्स, पिज्जा हट, केएफसी, बर्गर किंग, सबवे, लॉन्ग जॉन सिल्वर्स और मॉस बर्गर जैसे फास्ट फ़ूड चेन्स का भी फैलाव हुआ है। इसके साथ ही वहां स्थानीय रेस्तराओं की भी भरमार है। </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>मौसम :-- </b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">यहाँ का मौसम वैसे तो गर्म है लेकिन कभी भी झरिदार बरसात होने लगती है ,लगभग हर लोकल के हाथ में एक छाता अवश्य होता है </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b> </b>वैसे तो पूरे वर्ष में सिंगापुर घूमने के लिए कभी भी आ सकते हैं ,मौसम इसमें बाधा नही डालता है ,जनवरी फरवरी का मौसम बढ़िया रहता है ना ज्यादा गर्मी ना ही सर्दी ,मई जून सबसे गर्म रहते हैं ,<b>जुलाई से सितम्बर</b> में यहाँ फ़ूड फेस्टिवल और सिंगापुर सेल पर्यटकों को काफी लुभाते हैं ,नवम्बर दिसम्बर में काफी बारिश रहती है ....... </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>साफ़ सफाई :</b>--</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">यहाँ बहुत ही साफ़ सफाई है और सड़क पर कूड़ा डालने वाले से यहाँ मोटा फाइन लिया जाता है और उसी से सबके सामने उठवाया भी जाता है .. यहाँ हर सड़क पर छोटे, बड़े ढके हुए सरकारी डस्टबिन रखे गए हैं जिनमें पहिये लगे हुए हैं ..सुबह सुबह यहाँ सफाई के साथ ही डस्टबिन खाली कर दिए जाते हैं ... </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div class="separator" style="clear: both;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj1QW4kVyCwED7KtnIB0aGu5TPrXKVFSGryklFQMVy6NFtBNnCMZczAMvTpLdWv49wQv8NfBvd0X6EU9BrUoqn1s4J4CStMNkLKPkNTkNU1cVypF8ZN8aNGu_hvOfUFIhLCxnCNiB9Hn7c6/s1600/1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj1QW4kVyCwED7KtnIB0aGu5TPrXKVFSGryklFQMVy6NFtBNnCMZczAMvTpLdWv49wQv8NfBvd0X6EU9BrUoqn1s4J4CStMNkLKPkNTkNU1cVypF8ZN8aNGu_hvOfUFIhLCxnCNiB9Hn7c6/s640/1.jpg" width="480" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>पर्यावरण :-- </b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">सिंगापुर प्राक्रतिक सम्पदा से भरपूर है<b> ,</b></span><span style="font-size: large;">इस देश में पर्यावरण का पूरा ख्याल रखा जाता है और प्रकृति तथा विरासत संरक्षण संबंधी कई कार्यक्रम चलाए जाते हैं जिससे लोगों को जागरूक किया जा सके |</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>जनसँख्या :-- </b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">यहाँ की जनसँख्या लगभग 40 लाख है इसलिए देश में बर्थ रेट कम होने की वजह से सिंगापुर काफी परेशान है। जनसंख्या बढ़ाने की कोशिशों के तहत ही यहां एक दिन की छुट्टी विशेष तौर पर दी जाती है ताकि लोग सेक्स कर सकें। </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>कुछ रोचक तथ्य :--</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">एक ख़ुशी और आश्चर्य का विषय है कि यहाँ लगभग 80% महिलाएं कामकाजी हैं जो मेट्रो ट्राम बसें सब चलाती हैं और 18 साल का होने पर लड़कों को 2 साल के लिए सरकार को देना पड़ता है ताकि वो उनकी हर क्षेत्र में उचित ट्रेनिंग कर सके|</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;">सिंगापुर में आप किसी दीवार पर न तो पोस्टर चिपका सकते हैं और न ही कुछ पेंटिंग बना सकते हैं। ऐसा करने पर आपको तुरंत सजा सुनाई जा सकती है। </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"></span><br /></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">सिंगापुर में च्यूंगम आप नहीं खरीद सकते। सरकार ने इस पर रोक लगा दी है|</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">आप सड़क किनारे कहीं पेशाब नहीं कर सकते। पब्लिक प्लेस पर पेशाब करने पर भारी फाइन होता है |</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">यहाँ हर तरह की पोर्नोगार्फ़ी पूर्णतया बैन है |</span></div>
<div style="text-align: left;">
<br /></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>पाँचवां दिन :--</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">आज हमारी फ्लाइट रात 7.40 की थी ,इसलिए हमें 4.40 से पहले एअरपोर्ट पहुँचना था ..अभी 12 बजे थे चेक आउट टाइम हो चुका था हमने सब पैक करके होटल के काउंटर पर जमा करा दिया था ...अब हम नाश्ते पानी के लिए और कुछ और मटरगश्ती के लिए बाहर निकल गए थे ... </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>मुस्तफा माल :-- </b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">अपना मनपसंद नाश्ता करके हम मुस्तुफा माल पहुंचे जोकि लिटिल इंडिया में एक अति आधुनिक माल है ..क्योंकि अभी तक हम बाहर घूम कर चले जाते थे इसके अंदर जाने का मौका नहीं मिला था ... यहाँ बिलकुल भारत जैसा ही लग रहा था सब वही ब्रांड ,सस्ते भी महँगे भी ..यहाँ कोई ऐसी चीज नही है जो आपको ना मिल सके ...यहाँ काफी गिफ्ट आइटम भी आपको मिल जाएँगी यहाँ से भी हम लोगों ने काफी कुछ लिया इसका फ़ूड कोर्ट बाहर ही बरामदे में है और वहीँ पर बैठने की व्यवस्था है ... .. </span></div>
<div class="separator" style="clear: both;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgJ7CwxUQV9d8zqmGAir6aAKTpkKAJlHvdawIoZ_MbxCJKWsaauxbdDLQR7dwgop379p5grI0ztdVq4jtrM0gnTQTzHMZgN68XopmrNGl6GtHXuvRUB9HreAzw_481ICdxqeXACnadARmJ9/s1600/s.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="265" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgJ7CwxUQV9d8zqmGAir6aAKTpkKAJlHvdawIoZ_MbxCJKWsaauxbdDLQR7dwgop379p5grI0ztdVq4jtrM0gnTQTzHMZgN68XopmrNGl6GtHXuvRUB9HreAzw_481ICdxqeXACnadARmJ9/s400/s.jpg" width="400" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">यहाँ बिलकुल इसके सामने एक<b> डी.ए.वी.स्कूल है यहाँ पर बच्चों को और बूढ़े लोगों को भी हिंदी सिखाई जाती है ...</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span></div>
<div class="separator" style="clear: both;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgR9nxTsj2brF6F876f-fniU9eX1cYIP5hgRX4jQORXG3kyAsljk2xTk1a3Z5dneDbvtOV5Stx5-DAw_g3COW5ZjFwaNkQhkPTWiSjpYPNMJRhuecHO6EXEq-zwHhUVNCSbYrHNXhNs_g6E/s1600/a.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="265" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgR9nxTsj2brF6F876f-fniU9eX1cYIP5hgRX4jQORXG3kyAsljk2xTk1a3Z5dneDbvtOV5Stx5-DAw_g3COW5ZjFwaNkQhkPTWiSjpYPNMJRhuecHO6EXEq-zwHhUVNCSbYrHNXhNs_g6E/s400/a.jpg" width="400" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">यहाँ से हम वापिस अपने होटल की तरफ बढ़ने लगे और साथ साथ शौपिंग हो रही थी ... 4 बजे हम होटल में पहुँच गए थे कुछ और जो शौपिंग हुई थी उसे बैग में रख लिया था अब निकलने का समय हो गया था ... हम अपना सामान लेकर बाहर आ गए और थोड़ी देर में ही हमें टैक्सी मिल गई थी ... बारिश शुरू हो गई थी जब हम एअरपोर्ट पहुँचे तो जोरदार बारिश ने अलविदा किया जैसे हमें रोक रही हो ...मौसम बहुत सुहावना हो चुका था ... हमने टैक्सी से सामान लिया दिल में कुछ अधूरे अरमान और स्वप्निल यादें लिए </span><span style="font-size: large;">हम अंदर प्रवेश कर गए थे... सामने ही चेक इन करने की कतारें लगीं थी .. हम भी कतार में थे ... इस वक्त जो इमीग्रेशन फॉर्म का आधा हिस्सा हमें दिया था वो उन्होंने मांग लिया .. हम दो लोग भूल आये थे एक दिखा दिया था ..बाकी ने बोल दिया गुम हो गया ..</span><span style="font-size: large;"> उसमें कोई समस्या नहीं थी ...</span><span style="font-size: large;">बोर्डिंग पास मिल गया था</span><span style="font-size: large;"> ..</span><span style="font-size: large;"> दोबारा वही लगेज जमा कराने के बाद ..हम फ्री थे .. अब बारी थी पेट पूजा की क्योंकि अभी लगभग दो घंटे थे हमें बोर्ड करने में ... </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;">आखिर वो समय आ ही गया जब घर वापिसी का दिन आया और हम भारत आने वाले विमान में बैठ गए ... हमने घर फ़ोन करके सूचित कर दिया की हम लोग विमान में बैठ चुके हैं और फिर अपने सामने लगी स्क्रीन पर कोई अन देखी फिल्म ढूंढने लगे ... साथ साथ विमान से सूचनाएं प्रसारित हो रहीं थी और हमने अपनी बेल्ट वगेरह बांध ली थी ... लगभग आधा घंटा विमान स्टार्ट होने के बाद भी एअरपोर्ट पर खड़ा था शायद मौसम ख़राब था इसलिए उड़ान में देरी हो रही थी .. फिर धीरे धीरे रन वे पर और फिर हवा में से सितारों की तरह टिमटिमाता सिंगापुर अपनी आखिरी विदाई दे रहा था और हम निशब्द इसे निहारते हुए मंत्रमुग्ध हो गए ... अपनी उंचाई पर पहुँच कर अब यह सुरक्षित आगे बढ़ रहा था ... इसके बाद खाना बाँटा गया ,बीच बीच में सूचना होती ... अपनी कुर्सी की पेटी बाँधें रखने के लिए और अपने स्थान पर बैठे रहने के लिए क्योंकि मौसम थोड़ा ख़राब था ... हम लोग अपनी फ़िल्में देखने में व्यस्त थे .....</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">सिंगापुर जाते हुए वहां की परिचारिकाएँ कोई भी कूड़ा, गिलास वगेरह फट से ले जाती थीं ..लेकिन आती बार क्योंकि हम भारत में आ रहे थे इसलिए कूड़ा ज्यों का त्यों वहीँ गिर रहा था और हमारे उठने के बाद पैरों में आ रहा था ,हम लेट हो चुके थे लेकिन हम सुरक्षित भारत में उतर चुके थे ... वापिसी में वही फिर से पासपोर्ट पर एक ठप्पा लगाया गया और हम बाहर आ गए ... एअरपोर्ट पर तो जैसे इस समय बहार आई हुई थी शॉप्स में काफी चहल पहल थी ..सबसे ज्यादा शराब की ड्यूटी फ्री दुकानों पर यहाँ एक पासपोर्ट पर 2 लिटर शराब मिल रही थी यानि वास्तविक मूल्य से कम मूल्य पर ..... अब हमने अपना लगेज लेकर ट्राली ली और टैक्सी स्टैंड का रुख किया... </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">यहाँ आते ही अन्तर पता चल रहा था ..सारी सुविधाएँ वही हैं लेकिन तौर तरीके नियम कानून सभी ताक पर रखकर कोई भी बीच सड़क ट्राली छोड़कर चला जाता है ,कोई कैसे भी बिना कतार के गाड़ी लगा देता है ... पैदल यात्रियों के लिए रोड क्रॉस करने के लिए इंडिकेटर की एक कमी नजर आती है ... </span><span style="font-size: large;"> </span><span style="font-size: large;">टैक्सी लेकर हम ने घर पहुँच कर चैन की साँस ली .. सही ही कहते हैं ..जो सुख छज्जू दे चौबारे वो बलख ना बुखारे ... </span><span style="font-size: large;"> </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;"><b>ध्यान योग्य विशेष बातें:--</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>* पासपोर्ट 6 महीने की समय सीमा तक वैलिड होना चाहिए |</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>* वीजा की कारवाई लगभग एक महीना पहले शुरू करें |</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>* करेंसी बदलवा कर जाएँ सिंगापुर और यू एस डॉलर में और बहुत जरुरी उसका उचित बिल हमेशा साथ लेकर जाएँ |</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>* अन्तराष्ट्रीय उड़ान के लिए उड़ान से लगभग 3 घंटे पहले पहुँचें |</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>* सामान कम और घर से तोल कर उतना ही ले जाएँ जितना भार आपकी टिकट में अंकित है |</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>* कोई भी केमिकल या कोई भी तरल पदार्थ जो 100 ml से ज्यादा की बोतल हो आप नहीं ले जा सकते चाहे कोल्ड ड्रिंक,पानी ही क्यों ना हो और चाहे वो आधी खाली हो तो भी नहीं ... </b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>* कोई भी नुकीली चीज कैंची, रेजर वगेरह आप हैण्ड कैरी में नहीं ले जा सकते ,इसलिए इसे लगेज में पैक करें |</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>* खाने का कुछ भी खुला हुआ सामान नहीं ले जा सकते पैक्ड सामान भी लगेज में ही पैक करें |</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>* अगर आप मैनेज कर सकते हैं तो पॅकेज लेकर ना जाएँ यह निसंदेह काफी मँहगा रहता है और आपको उनके अनुसार बंदिश में घूमना पड़ता है |</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>* घूमने के लिए जूते बहुत ही आरामदायक लेकर जाएँ |</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>* मनपसंद खाने का सामान ,नमकीन ,मट्ठी , थेफ्ले वगेरह लेकर जाएँ शाकाहारी पर्यटकों को काफी सुविधा होगी ..</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>* क्रेडिट कार्ड या ट्रेवल कार्ड भी बहुत जगह उपयोग हो जाता है , लेकिन इसे छोटे छोटे मूल्य चुकाने में प्रयोग ना करें ,क्योंकि हर बार कुछ टैक्स कटता है |</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>* छाता लेकर जाएँ ,बारिश कभी भी होने लगती है ..</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>* काल कर के किसी भी टैक्सी को बुलाएँगे तो उसके तीन डॉलर अतिरिक्त देने होते हैं |</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>* </b><b>दूसरे देश में कहीं भी घूमने जाएँ तो अपना पासपोर्ट साथ लेकर ही जाएँ </b></span><br />
<b><span style="font-size: large;">* </span><span style="font-size: large;">जनवरी फरवरी और जुलाई से सितम्बर बढ़िया हैं सिंगापुर भ्रमण के लिए</span><span style="font-size: large;"> </span></b></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>सीखने लायक कुछ बातें :-</b>-</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">*सफाई कैसे रखी जाये</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">*पर्यावरण संरक्षण कैसे किया जाये </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">*बिना अवरोध ,बिना ट्रैफिक पुलिस के सुचारू सुव्यवस्थित यातायात </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">*पैदल यात्रियों के लिए हर सड़क पर ज़ेबरा क्रासिंग </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">*फुर्तीली ,चुस्त,दुरुस्त ,नियमबद्ध,समयबद्ध </span><span style="font-size: large;">खुशनुमा जिंदगी कैसे जियें </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">*सख्त सुचारू कानून व्यवस्था ,बिना किसी पुलिस के ..जो पांच दिन में हमने कहीं नहीं देखी </span></div>
<div style="text-align: left;">
<br /></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="color: #e06666; font-size: large;">एक महीने की यात्रा में से कुछ अविस्मरणीय पलों को पाँच दिन की यात्रा में समेट पाए हमारा सौभाग्य था ... किसी ने सही कहा है बहुत निकले अरमान लेकिन कम निकले ख्वाहिश ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले |</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="color: #e06666; font-size: large;">चलिए दोस्तों जल्दी ही मिलती हूँ किसी ओर यात्रा संस्मरण की रोचक जानकारियों के साथ ... तब तक के लिए विदा .. स्वस्थ रहें ,मस्त रहें, यात्रायें करें ... मेरे साथ साथ आप भी ... </span></div>
</div>
</div>
Guzarishhttp://www.blogger.com/profile/11205127840621066197noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3773685922890348520.post-89863748270208918532016-06-07T04:26:00.000-07:002016-06-07T07:17:42.381-07:00सिंगापुर यात्रा संस्मरण भाग 4.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<div style="text-align: left;">
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><a href="http://prabhumahima.blogspot.in/2016/06/3.html" target="_blank">भाग 3.</a></span><br />
<br /></div>
<span style="font-size: large;"><b>गार्डन्स बाय दी बे :--</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i>यह 101 एकड़ में बना हुआ है</i><b> , </b><i>यहाँ प्रवेश शुल्क 8डॉलर से लेकर 28 डॉलर तक है ...बाहिरी गार्डन्स की कोई टिकट नही है ... कुछ कुदरती पेड़ों के बीच कृतिम पेड़ों से सजा हुआ बे जब लाइट एंड म्यूजिक शो में चमचमाता है तो सबकी धडकनें रुक जाती हैं ... शो देखने के लिए आपको बार बार गर्दन ऊपर करके देखना पड़ता है क्योंकि ये सुपर ट्रीज इतने ऊँचे हैं कि आप लगातार इसे मुँह उठाये देख नहीं सकते ... इसका समय सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक है .. </i></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i><br /></i></span></div>
<div class="separator" style="clear: both;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEihITFYW2sGAhcsEvHNCEzn6Ku2GmSlUX0msiwC6PQ_SDmT7Zp8wCZAvGfYOnD-6caXmRO5zegLabArH4JySPMOxhqSkvDmbtCfjq9nhRha00bChYg-e3CrQZPdiVXcM87JctR0ZxDp7pqs/s1600/IMG_5602.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="265" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEihITFYW2sGAhcsEvHNCEzn6Ku2GmSlUX0msiwC6PQ_SDmT7Zp8wCZAvGfYOnD-6caXmRO5zegLabArH4JySPMOxhqSkvDmbtCfjq9nhRha00bChYg-e3CrQZPdiVXcM87JctR0ZxDp7pqs/s400/IMG_5602.jpg" width="400" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">मॉल से बाहर आते ही सामने लम्बे लम्बे पेड़ों से सजे </span><span style="font-size: large;">दो शानदार रास्ते थे एक जाने का ,एक आने का ... उसमें से चलते हुए सितारों की तरह चांदनी बिखेरती हुए लाइटें चारों तरफ सुंदर द्रश्य पेश कर रहीं थी ... वहां कुछ तस्वीरें लेना तो लाज़मी था ... यहाँ से सिंगापुर फ्लायर रौशनी में चमचमाता हुआ और नीचे पानी में उसकी परिछाई .. वाह वाह के इलावा कुछ बोल नहीं पा रहे थे ..मंत्रमुग्ध होकर हम इसका आनन्द लेते हुए कुछ तस्वीरें भी ले रहे थे ... .अब हम चलते चलते एक एक्सेलेटर से उतरकर गार्डन्स बाय दी बे में थे ... समय हो चुका था लाइट एंड म्यूजिक शो का ...वाह क्या बात! क्या बात! म्यूजिक के साथ रंग बदलते सुपर ट्रीज ... लाजवाब लग रहे थे ... </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>सुपर ट्रीज :--</b></span><br />
<span style="font-size: large;">सुपर ट्रीज पेड़नुमा स्ट्रक्चर जोकि 25 मीटर से 50 मीटर तक ऊँचे हैं यह वर्टीकल गार्डन्स हैं जो कई प्रकार के काम आते हैं ,छाया देने के ,पौधे उगाने के और बगीचे के एनवायर्नमेंटल इंजन का काम करते हैं ... लम्बे लम्बे पौधों के बीच फ़र्न,आर्किड और बहुत सारे पौधे उगाये गए हैं .. ये सोलर एनर्जी पैदा करते हैं जो इनको लाइट देने के काम आती है ,बरसाती पानी इकठ्ठा करने के काम आते हैं जिससे सिंचाई की जाती है ... सुपर ट्रीज को आपस में जोड़ता हुआ स्काईवे लगभग 22 मीटर ऊँचा और 128 मीटर लम्बा है जिसके ऊपर जाकर इसे पास से महसूस करने के लिए इसकी 5 डॉलर की टिकट अलग से है... .. </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgoBVxKDxQ_USnEBnbajTAoggmCe6IK449jtLMgwa-IDZ1KLI7u9i8vUig4CV0r-82N6KqCmtdmnWtB-32qfifA2Sug_o4CihPIoITVNeG-7TNvqT4zOl26SCNbVuDSCf08LqdPIL3xupnT/s1600/IMG_20160514_194326a.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="293" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgoBVxKDxQ_USnEBnbajTAoggmCe6IK449jtLMgwa-IDZ1KLI7u9i8vUig4CV0r-82N6KqCmtdmnWtB-32qfifA2Sug_o4CihPIoITVNeG-7TNvqT4zOl26SCNbVuDSCf08LqdPIL3xupnT/s400/IMG_20160514_194326a.jpg" width="400" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i><b>डोम गार्डन्स [ग्लास हाउसेस ]:--</b> </i></span><br />
<span style="font-size: large;"><i>ये ऐसे हाउस हैं जिनकी दीवारें और छत्त ग्लास की बनी हुई हैं बिना किसी भी कॉलम के ..</i></span><span style="font-size: large;"><i>यहाँ दो ठन्डे कॉम्पेक्स हैं दी क्लाउड फारेस्ट और दी फ्लावर डोम</i> .. <i>क्लाउड फारेस्ट ज्यादा ऊँचा लेकिन 2 एकड़ में बना हुआ है ,लेकिन फ्लावर डोम नीचा और 3 एकड़ में बना हुआ है ...</i></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i><br /></i></span></div>
<div class="separator" style="clear: both;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi09JxpgX4ZEbSlF8oT1tSi-yrHKJLbeTZHtNENW2q3xMGchfd-HUI5tqjWkcn2bnPZTq57a8wuGRg_BWVlOfWgW5SWiv3FTdBOTMN2msNx-_jykvPVVkko_Bjh2UzgiJL29KLmfMAn8c7A/s1600/IMG_5596.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="265" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi09JxpgX4ZEbSlF8oT1tSi-yrHKJLbeTZHtNENW2q3xMGchfd-HUI5tqjWkcn2bnPZTq57a8wuGRg_BWVlOfWgW5SWiv3FTdBOTMN2msNx-_jykvPVVkko_Bjh2UzgiJL29KLmfMAn8c7A/s400/IMG_5596.jpg" width="400" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><i><br /></i></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>दी क्लाउड फारेस्ट यानि ठंडा बादल वन :--</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">क्लाउड फारेस्ट की टिकट हमारे पॅकेज में पहले से थी ... इसमें मानव निर्मित पहाड़ जोकि 138 फीट ऊँचा है और कृतिम वाटर फाल है जोकि संसार का सबसे लम्बा इनडोर वाटर फॉल है ..यह 115 फीट की ऊँचाई से नीचे गिरता है ....इसके अंदर प्रवेश करते ही आपका स्वागत ताज़ी और ठंडी हवा से होता है ..यहाँ पहाड़ों पर उगने वाले पौधे जोकि समुन्द्र तल से 1000 मीटर से 3000 मीटर तक की ऊँचाई पर होते हैं वो वातावरण दिया गया है ..इसकी सातवीं मंजिल पर पहुँचने के लिए लिफ्ट का प्रयोग किया गया है जिसमें आप उड़ते हुए बादलों को महसूस कर सकते हैं देख सकते हैं ... अद्भुत दृश्य ... जिसे लॉस्ट वर्ल्ड का नाम दिया गया है .. </span></div>
<div class="separator" style="clear: both;">
<br /></div>
<div style="text-align: left;">
<br /></div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg8-v_Mcjbpx_9H7PLVWhk-qRjxOueOR1NzkqCyH_p8YOGAW6PNfu_jLTUCUYNGP7nAztLCbDW2rcDrSDh0WiTc6YN10-faM5AKM1YKxQpCQiLgQNlYShZR1MOAo4XP1I0U9jKMBQrf17ka/s1600/IMG_9961.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="300" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg8-v_Mcjbpx_9H7PLVWhk-qRjxOueOR1NzkqCyH_p8YOGAW6PNfu_jLTUCUYNGP7nAztLCbDW2rcDrSDh0WiTc6YN10-faM5AKM1YKxQpCQiLgQNlYShZR1MOAo4XP1I0U9jKMBQrf17ka/s400/IMG_9961.jpg" width="400" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">इससे नीचे उतरने के लिए एक घुमावदार रास्ता बनाया गया है जो पेड़ पौधों से सजा हुआ है ... उससे नीचे छटी मंजिल पर है कैवर्न .... पाँचवीं मंजिल से आप वाटर फाल का व्यू देख सकते हैं .. चौथी मंजिल पर क्रिस्टल माउनटेन </span><span style="font-size: large;"> है यहाँ पहाड़ियों को अलग अंदाज से दिखाया गया है यहाँ छत्त पर बहुत बड़े बड़े दर्पण लगे हुए हैं पहली मंजिल पर नीचे +5 डिग्री और -5 डिग्री तापमान दिखाया गया है ... कुल मिला कर आनंद ही आनंद ..</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZmJyftQrlYDFsRm7vBLYvfhR1-GJfJ2C9ycfqASKMkIGT1GLHUc3hhCU2-29ScOMbt_XdSZKiGxaVb7RQvjAO93zlVMruBDDmxwiolnEgAF3EQ2xr7FP7yghQFksQeCJUxL6eyOCXZ7iX/s1600/IMG_9952.jpg" imageanchor="1" style="font-size: medium; margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="300" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZmJyftQrlYDFsRm7vBLYvfhR1-GJfJ2C9ycfqASKMkIGT1GLHUc3hhCU2-29ScOMbt_XdSZKiGxaVb7RQvjAO93zlVMruBDDmxwiolnEgAF3EQ2xr7FP7yghQFksQeCJUxL6eyOCXZ7iX/s400/IMG_9952.jpg" width="400" /></a></span></div>
<div style="text-align: left;">
<br /></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i><b>फ्लावर डोम यानि फूल गुम्बद </b>:-- </i></span><br />
<span style="font-size: large;"><i>क्लाउड फारेस्ट देखने के बाद समय नहीं बचा था कि हम फ्लावर डोम को देख पाते .... इसमें ऑस्ट्रेलिया,साउथ अमेरिका,साउथ अफ्रीका के पौधे आपको मिलेंगे यहाँ का वातावरण ड्राई और माइल्ड है आर्किड फ्लावर यहाँ की विशेषता है ..इसके अंदर सात अलग अलग गार्डन हैं ...इसमें फूलों की हजारों किस्में हैं ,कई मंजिलों पर ,पोस्टर्स,मूर्तियाँ ,स्लाइडशो ,पर्यावरण प्रदर्शनी और रंग बिरंगी चमचमाती दुकानें हैं,एक डाकुमेंटरी फिल्म यहाँ दिखाई जाती है जिसमे जीवंत दिखाया जाता है कि 2110 में दुनिया कैसी होगी अगर प्रदूषण और पेड़ों की कटाई नही रोकी गई तो .. आखिरी मंजिल पर बादलों के गुच्छे आपका मन मोह लेते हैं ...</i></span><i style="font-size: x-large;"> एक डिसप्ले फील्ड भी है यहाँ फ्लावर शो होते हैं ..</i></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i><b>चिल्ड्रन गार्डन :--</b></i></span><br />
<span style="font-size: large;"><i>यह छोटे बच्चों के लिए हैं 5साल से छोटे और 6 से 12 साल तक के बच्चों के लिए .<b>... </b></i></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i><b><br /></b></i></span><span style="font-size: large;">गार्डन्स बाय दी बे देखने के बाद हम वापिस चलकर स्काई पार्क की तरफ आये उसकी लिफ्ट से नीचे उतरकर हमने लिटिल इंडिया के लिए टैक्सी ले ली थी 9.30 बज चुके थे ..इसलिए हमने टैक्सी वाले को सीधा मुस्तफा माल के पास ही छोड़ने को बोला था क्योंकि उसके बाद खाना नहीं मिलना था हमने वहां पहुँच कर शुद्द शाकाहारी भोजनालय आनन्द भवन से खाना खाया और फिर होटल वापिस निकल पड़े ... वहां से हमने चलते चलते आने का फैसला किया और सोचा रात को हाजी लेन चलते हैं सुना था वहां पर रात को कुछ म्यूजिशियन आकर बैठते हैं और गाना बजाना करते हैं ... हम वहां पहुँच तो गए थे किसी तरह पूछते पूछते लेकिन वहां का माहौल कुछ ठीक नहीं लगा और दो चार लोग बैठे भी थे तो अपने में मस्त थे कोई गाना बजाना नही हो रहा था .. हम बुरी तरह थक चुके थे अब वापिस पैदल आने की हिम्मत नहीं थी इसलिए हमने वही से टैक्सी ली और होटल पहुँच गए .... </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>चौथा दिन:-- </b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">ECP :-- </span><span style="font-size: large;">आज हमें <b>ईस्ट कोस्ट पार्क</b> जाना था यानि एक ओपन बीच इसलिए हम आराम से तैयार होकर निकले ,पहले पेट पूजा की और फिर टैक्सी ले कर वहां पहुँच गए ...</span><span style="font-size: large;"> </span><span style="font-size: large;">लगभग 15 किलोमीटर लम्बा बीच कई भाग में बंटा हुआ है इसमें सिर्फ D और G में ही आप कैंप लगा सकते हैं वो भी अनुमिति के बिना नहीं ..यह बीच सिंगापुर वालों में काफी चर्चित है ... </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">धूप काफी थी लेकिन बीच के किनारे किनारे पूरे पेड़ ही पेड़ थे इसलिए इतना महसूस नही हो रहा था ... थोड़ी देर हमने वहां तस्वीरें वगेरह ली ..उसके बाद हमने एक चार पहिये की साइकिल किराए पर ले ली थी जो एक रिक्शा की तरह लग रही थी .. उसे लेकर हम बीच पर घूमने निकल गए क्योंकि बीच पर आप इतनी लम्बी दूरी पैदल तो तय नहीं कर सकते ... </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div class="separator" style="clear: both;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiNOxIOkRoC-9XvyFI6zBTbLXFDHLaV-TWt8jyWiMdOJtWGYf812ulvL_8anw4w50EZwA6aeKtrBCHjI6Z8ef1tg3VsDraEx0Y5mhGJMCzT0f3hBWnOmSG6YsCUujeMb0JVJPAO7HVsCLVx/s1600/IMG_5702a.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="265" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiNOxIOkRoC-9XvyFI6zBTbLXFDHLaV-TWt8jyWiMdOJtWGYf812ulvL_8anw4w50EZwA6aeKtrBCHjI6Z8ef1tg3VsDraEx0Y5mhGJMCzT0f3hBWnOmSG6YsCUujeMb0JVJPAO7HVsCLVx/s400/IMG_5702a.jpg" width="400" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">रास्ते में तस्वीरें लेते हुए हम बारी बारी साइकिल चला रहे थे क्योंकि बहुत सालों बाद और लगातार साइकिल चलाना मुश्किल था ... यहाँ पिकनिक का माहौल था कुछ लोग जन्मदिन मना रहे थे ,कुछ ग्रुप इक्कठे आये हुए थे जो अलग अलग तरह से अपने में व्यस्त थे ..कुछ म्यूजिक चलाकर नाच गाना कर रहे थे .. कुछ नहाने का मजा भी ले रहे थे लेकिन किनारे किनारे ...क्योंकि यहाँ किसी भी बीच पर तैरना मना है ... हम लोग भी कुछ देर किनारे किनारे पानी के साथ अठखेलियाँ करते हुए तस्वीरें खिंचवा रहे थे ... सामने समुन्द्र में कुछ जहाज भी खड़े थे ... कुछ बोट इधर उधर आ जा रहीं थी ... यहाँ कुछ खाने का सामान लेकर हाकर भी बैठे थे ..उनकी एक जगह निश्चित थी इधर उधर नहीं घूम रहे थे ... कुछ बच्चे स्केटिंग भी कर रहे थे ... कुछ दूसरे खेलों में व्यस्त थे जैसे वाटर गेम्स केबल स्कीइंग वगेरह ... हमारा साइकिल लौटाने का समय हो चला था इसलिए हम पूरी बीच ना देखकर रास्ते में से ही वापिस लौट आये थे ... .. उसे साइकिल लौटाकर हम पास ही एक रेस्तरा में चले गए ... कुछ हल्का फुल्का लिया क्योंकि हमारे लायक वही था केवल फ्रेंच फ्राइज ... इसके बाद थोड़ा चलकर हम बाहर रोड पर आ गए वहां से हमें टैक्सी मिल गई थी ...अब हमने ओर्चिड रोड पर जाने का फैसला किया .. </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>ओर्चिड रोड :-- </b>सुना था यह शोप्पिंग के लिए बहुत अच्छी जगह है यहाँ बहुत सारे बड़े बड़े खुबसूरत मॉल हैं और शानदार बड़े बड़े होटल भी ..पर्यटक यहाँ ख़ास खरीदारी के लिए आते हैं ... यहाँ हर वस्तु उपलब्ध है लेकिन दाम लगभग वही हैं जो आपको दिल्ली में भी आराम से मिल जायेंगे कोई ऐसी वस्तु दिखी नही जो यहाँ ना मिलती हो ..इसलिए वहां से कुछ उठाकर मत लाइए ... </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>बुगीज जंक्शन :-- </b></span><span style="font-size: large;">बारिश होने लगी थी ..अब हम ने बुगी जंक्शन के लिए टैक्सी की ..उसके सामने ही थी बुगी स्ट्रीट जो दिखने में पालिका बाजार और जनपथ की तरह लग रही थी ..बहुत सारी शॉप्स और बहुत सारी बारगेनिंग भी बिलकुल भारत जैसी ... यहाँ आप सस्ते में काफी कुछ खरीद सकते हैं लेकिन इतना सस्ता नहीं ... कपड़े सिंगापुर में मँहगे हैं .. यहाँ हमने कुछ जरूरी शौपिंग कर ली थी ... फिर हम होटल वापिस आ गये थे ... अगले दिन हमारी वापिसी थी इसलिए यह होटल में हमारी आखिरी रात थी ... हम सब पैकिंग में लग गए थे ...कुछ जरुरी पैकिंग सुबह के लिए छोड़ कर हमने सब पैकिंग कर ली थी ..अपना पासपोर्ट, टिकट, वीजा सब एक पर्स में सुरक्षित रख लिया था ताकि सुबह कोई भाग दौड़ नहीं हो ... </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>अन्य दर्शनीय स्थल :--</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i><b>जूरोंग बर्ड पार्क</b> :--</i></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i>एक अन्य जूलॉजिकल गार्डन है जो पक्षियों पर केंद्रित है। यहां पर्यटकों को एक हजार फ्लैमिंगों पक्षियों के झुंड के अलावा दुनिया भर में पाए जाने वाले पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों और किस्मों को देखने का मौका मिलता है। .. </i></span><i style="font-size: x-large;">रेप्टाइल पार्क, जूलॉजिकल गार्डन भी विशेष हैं ..</i></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i><b>रिवर थीम वाइल्ड लाइफ पार्क :--</b></i></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i>यह दुनिया भर की प्रसिद्ध नदियों के नाम पर बनाया गया है ,बाहर एक बोर्ड पर लिखा है ''दुनिया की नदियाँ ''भारत के हिस्से में गंगा नदी ,मिस्सीसिप्पी नदी, में पेडल फिश ,मेकोंग नदी में केट फिश ,यांत्ज नदी में पांडा दर्शाए गए हैं </i></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i><b>संग्रहालय </b>:-- </i></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i>यहाँ अनेकों संग्रहालय हैं जिनमे से कुछ का जिक्र करना जरुरी है ...</i></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i>एशियन म्यूजियम एक पौराणिक संग्रहालय है यहाँ दक्षिण एशिया का इतिहास एवं कुछ विश्व प्रसिद्ध कृतियाँ सुरक्षित हैं ,इसमें विक्टोरिया थिएटर में सिंगापुर के प्रतिष्ठित कार्यक्रम होते हैं </i></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i>नेशनल म्यूजियम ऑफ़ सिंगापुर जिसे स्टोरी ऑफ़ द लायन भी कहा जाता है इसमें बुद्ध के दृश्यों एवं इतिहास को दीर्घ चित्रों साहित्य प्रदर्शनी के रूप में दिखाया गया है जिसमे </i></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i>'लाइफ आफ्टर डेथ 'को नीली रौशनी से और युद्ध दृश्य सिंदूरी रौशनी से दिखाए गए हैं </i></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i>इसके इलावा भी यहाँ ढेरों म्यूजियम हैं जो अलग अलग खजाना समेटे हुए पर्यटकों का मन मोह लेते हैं ...</i></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i><b>मंदिर :-- </b>यहाँ हिन्दू चीनी ,बौद्ध मंदिर भी बहुत हैं जिनमे अद्भुत कारीगरी के नमूने पेश किये गए हैं .. ,इसके इलावा मस्जिद ,चर्च भी हैं समय हो तो इनको भी देखिये .. </i></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i>पर्लियामेट हाउस ,और बहुत सारी इमारतें अपने में अपार खजाना समेटे हैं </i></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"></span><br /></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i><b>क्रूज :-- </b>यहाँ कई तरह के क्रूज हैं जो एक दिन से लेकर कई दिनों तक की समुद्री यात्रा आपको करवाते हैं आपके समय,धन के अनुसार .,</i></span><span style="font-size: large;">सिंगापुर क्रूज आधुनिकता की और भव्यता की मिसाल हैं ..</span><i style="font-size: x-large;">..</i><span style="font-size: large;">हमारे पास समय काअभाव था और क्रूज की ऑनलाइन बुकिंग नही हो पाने के कारण हमें मलाल रहेगा कि हम सिंगापुर की समुद्री यात्रा नहीं कर पाए ... </span></div>
<div>
<br />
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">क्रमशः <a href="http://prabhumahima.blogspot.in/2016/06/3_7.html" target="_blank">भाग 5.</a></span></div>
</div>
</div>
</div>
Guzarishhttp://www.blogger.com/profile/11205127840621066197noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3773685922890348520.post-87797381952513358282016-06-07T02:05:00.000-07:002016-06-07T07:00:12.883-07:00सिंगापुर यात्रा संस्मरण भाग 3<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<div style="text-align: center;">
<b style="font-size: x-large;"><a href="http://prabhumahima.blogspot.in/2016/06/2.html" target="_blank">भाग 2.</a></b></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>दूसरा दिन :--</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">आज हमने पहले से ही टूर एंड ट्रेवल से पता कर लिया था<b> </b></span><span style="font-size: large;">आ</span><span style="font-size: large;">ज सिंगापुर जू जाने की तैयारी थी</span><b style="font-size: x-large;"> ,</b><span style="font-size: large;">इसके साथ ही है रिवर सफारी और नाईट सफारी .. </span><span style="font-size: large;">क्योंकि हम सभी रास्तों से वाकिफ नहीं थे </span><span style="font-size: large;"> </span><span style="font-size: large;"> , इसका हमने SAEx का पैकेज ले लिया था कोई भी दो स्थल देखने का .. 12 बजे हमें पिक अप पॉइंट पर पहुँचना था .. वैसे यहाँ सब दर्शनीय स्थल मेट्रो से जुड़े हुए हैं और यहाँ बस सर्विस भी बहुत अच्छी है जिनके नाम हमारी मेट्रो जैसे हैं ब्लू लाइन,येलो लाइन ,रेड लाइन वगेरह .. .. कुछ खाने का सामान साथ लेकर हम अपने पॉइंट पर पहुँच गए थे ... निर्धारित समय से थोडा लेट एक बड़ी टैक्सी आकर रुकी जिसे एक लगभग 60 बरस की महिला चला रही थी इसे '<b>लिमोजिन टैक्सी</b>' कहते हैं ,फैमिली के लिए यह बहुत ही बढ़िया है अंदर से बहुत ही खुबसूरत .. हम कुल पाँच लोग थे हमें लेकर यह सीधा जू के पास के स्टैंड पर हमें छोड़कर लौट गई ... .. जू और रिवर सफारी दोनों का देखने का समय सुबह का है ..इनमें से आप कोई एक या दोनों भी देख सकते हैं हमने जू देखने का मन बनाया ... कुछ चाय वगेरह लेकर हमने बेजुबानों की दुनिया की ओर रुख किया .. .. </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>सिंगापुर जू :--</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i>सिंगापुर जू की खासियत यह है कि यहाँ सभी जानवरों को खुले में रखा गया है कोई भी पिंजरा हमें नजर नही आया ..छुपी हुई गहरी खाई या काँच की दिवार से उनकी पर्यटकों से दूरी बनाई गई है ..आप आमने सामने उनको देख सकते हैं ... </i></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i><br /></i></span></div>
<div class="separator" style="clear: both;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjK7zMGMah3qDXMYGERU9mRGGicQwwPSWhPLwtHnf-MLfiz9Jp1KLwRCUTaqBpgczs-_x9GQxfVSn9CnIXx65YGFx3sj4c2GXdWUzd4RVgsFy8o2cyixXOogVORuS4tU7xhTisIG-XEf9ql/s1600/IMG_9256a.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="173" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjK7zMGMah3qDXMYGERU9mRGGicQwwPSWhPLwtHnf-MLfiz9Jp1KLwRCUTaqBpgczs-_x9GQxfVSn9CnIXx65YGFx3sj4c2GXdWUzd4RVgsFy8o2cyixXOogVORuS4tU7xhTisIG-XEf9ql/s400/IMG_9256a.jpg" width="400" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><i><br /></i></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i>इसके बीच में अगर आप पैदल चलकर सब देखना चाहते हैं तो आपकी मर्जी है नहीं तो यहाँ पाँच स्टॉप बनाये गए हैं यहाँ से आप खुली लम्बी बहुत ही सुविधाजनक ट्राम में बैठकर भी इसे देख सकते हैं इसकी टिकट है .. आप किसी भी स्टॉप पर उतरकर किसी से भी चढ़ सकते हैं ... इसमें लगभग 30 से 40 लोग बैठ सकते हैं ..लेकिन आपकी टिकट हर बार चेक होती है और सभी कतार में ही आते हैं और बिना स्टॉप के यह बीच में कहीं नहीं रूकती है .. हर स्टॉप के पास ही कोई ना कोई एनिमल शो होते हैं जिनके जरिये लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया जाता है .. इन्हें मिस नहीं करें ... बीच बीच में खान पान की भी अच्छी व्यवस्था है ... निसंदेह शाकाहारी भोजन तो ना के बराबर ही है ...</i></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">हम कुछ देर पैदल चले और फिर हमने ट्राम से ही घूमना बेहतर समझा क्योंकि गर्मी बहुत थी .. सब स्टॉप पर रूककर हमने लगभग सभी कुछ देख लिया था तस्वीरों के जरिये बेजुबानों से बातचीत कर ली थी .. 5.30 बजे आखिरी ट्राम ने हमें स्टॉप पर छोड़ दिया था ... वहां से चलकर हम कुछ खाने के लिए जा ही रहे थे लेकिन वो बंद हो गया था ... हमने बाहर की ओर प्रस्थान किया ... बाहर आकर कैफ़े में हमने कुछ खान पान किया लगभग 6.30 बज गए थे .. कुछ और समय बिताकर हमने नाईट सफारी की तरफ रुख किया ....</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><span style="font-size: large;"><b>रिवर सफारी :-- </b></span><span style="font-size: large;"><i>रिवर सफारी सिंगापुर जू और नाईट सफारी के बीचों बीच स्थित है ..इसका समय वही है सुबह 8.30 से शाम 6बजे तक ... एक नदी आधारित जू है अमेज़न नदी के आसपास बड़े बड़े एक्वेरियम और कुदरती नजारों से सजा यह जू अपनी तरह का दुनिया में पहला जू है ... इसमें लगभग 5000 जानवर हैं ... बोट राइड के बिना रिवर सफारी अधूरी है .. बोट राइड 10 मिनट की है.. पहली बोट राइड 11 बजे शुरू होती है और आखिरी 5.30 बजे ..यह मौसम आधारित होती है .. अगर मौसम खराब हो तो टिकट के पैसे लौटाए नहीं जाते हैं ..इसमें गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों को बैठने की अनुमति नही है ... इसमें भी आप को एक अद्भुत और नया अनुभव मिलता है ... </i></span></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>नाईट सफारी :-- </b><i>यह संसार का पहला 'रात्रि जू 'है </i><i>यहाँ पर आप जानवरों को खुले में घूमते हुए देख सकते हैं ..आप ट्राम में बैठते हैं तो आपको हिदायत दी जाती है कैमरे की मोबाइल की फ़्लैश ऑन नहीं करें और कोई शोर नहीं करें ..यहाँ की रौशनी भी इस तरह रखी गई है जैसे चाँद की चाँदनी हो .. इसमें भी दो स्टॉप हैं यहाँ उतरकर आप जानवरों को और करीब से देख सकते हैं .. यहाँ भी दो शो होते हैं एक शुरू में है 15 मिनट का आग का शो है जो ब्लोपाइप के साथ किया जाता है जब इंतज़ार में खड़े होते हैं और एक आखिरी में है एनिमल शो ... क्रीएचरज ऑफ़ द नाईट </i></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i>नाईट सफारी शाम को 7.30 बजे से शुरू होकर आधी रात तक चलता है .......</i></span></div>
<div style="text-align: center;">
<div class="separator" style="clear: both;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgV4AhPjDlp-0M7rhX3gvN81IRR5Q4PZD_RldBPWoc8zhPYpJOVJ_5lf2UB2Yap2ziwX464LH4PLJmgvWpE8Boe7920gICsEizsnzQwK6QF2g9Gc-0TaC-6kg1NVz3yO38RoiL1wWossD72/s1600/pizap.com14652122376821.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="296" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgV4AhPjDlp-0M7rhX3gvN81IRR5Q4PZD_RldBPWoc8zhPYpJOVJ_5lf2UB2Yap2ziwX464LH4PLJmgvWpE8Boe7920gICsEizsnzQwK6QF2g9Gc-0TaC-6kg1NVz3yO38RoiL1wWossD72/s400/pizap.com14652122376821.jpg" width="400" /></a></div>
<br /></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">नाईट सफारी का प्रवेश समय था 7.30 बजे से .. बहुत लम्बी कतारें थीं यहाँ पर .. यहाँ दो सेल्फ ऑपरेटिंग मशीन थी उसमें से हमने अपनी डिटेल भरी तो समय आया 8.30 का यानि दूसरा शो .. हमें बताया गया कि आप 8.15 बजे आइये ... वही पास ही काफी दुकानें हैं जिन में आप खरीद फरोख्त कर सकते हैं और पेट पूजा भी ..वहीँ बैठकर हमने इंतज़ार करना उचित समझा ...पूरे जू एरिया का नेट बहुत बढ़िया चल रहा था इसलिए थोडा समय व्हाट्सएप और फेसबुक पर ख़राब किया ... </span></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">फिर हम भी कतार में जाकर खड़े हो गये वही आग का शो देखा .. और अपनी बारी के इंतज़ार में आगे बढ़ते रहे ... जैसे जैसे ट्राम आती वो 50...60 लोगों को बिठा कर जंगल की ओर चल देती क्योंकि इस ट्राम में तीन तीन बोगियाँ लगी हुई थीं ... एक दम खुली हुई ..सिर्फ एक छत की व्यवस्था थी ... साथ साथ माइक पर हर जानवर के बारे में उद्घोषणा हो रही थी .यानि सूचना और हिदायत .. सच पूछें तो सुबह से जानवरों को देख देखकर अब बिलकुल भी मजा नहीं आया बस एक नया अनुभव जरूर था कि जानवर बिना किसी दिवार के बिलकुल हमारे सामने थे ... अकेले कोई हो तो शायद उसके पसीने ही छूट जाएँ लेकिन इतने सारे लोगों के साथ कोई ज्यादा डर भी नहीं था .. ट्राम पर सब सुविधाएँ थी इमरजेंसी के लिए ... उनकी तस्वीरें भी बहुत ही कम ले रहे थे क्योंकि फ़्लैश ऑन नहीं करनी थी और दूसरा हमें ऐसा लग रहा था हम उन सोते हुए बेजुबानों की जिंदगी में खलल डाल रहे हैं ... लगभग 40 मिनट में ट्राम हमें घुमाकर वापिस ले आई थी .. उसके बाद हमने क्रीएचर्ज ऑफ़ नाईट शो देखा और स्टॉप की तरफ बढ़ गए </span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhTe_D0TYt9JXoic4Ilso5C1GG_m_KBRuTs8FtH_MGTzKzZhtWJ_Bg9o3Avk4XOrIgXsWtn2oA06w54MOz5iIQcTkVtDTlV8pe3t8SajZ85PTOGfyBwQZNkI9eO1Te-GBNqL6yyyibAyINX/s1600/pizap.com14652131668601.jpg" imageanchor="1" style="font-size: medium; margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="296" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhTe_D0TYt9JXoic4Ilso5C1GG_m_KBRuTs8FtH_MGTzKzZhtWJ_Bg9o3Avk4XOrIgXsWtn2oA06w54MOz5iIQcTkVtDTlV8pe3t8SajZ85PTOGfyBwQZNkI9eO1Te-GBNqL6yyyibAyINX/s400/pizap.com14652131668601.jpg" width="400" /></a></span></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">हमें बताया गया था की लिटिल इंडिया के लिए आखिरी बस 10.30 बजे चलेगी ... बस आई और लगभग 11 बजे उसने हमें वहां छोड़ दिया था .. वहीँ से हम कुछ खाने के लिए निकले तो पता चला सब बंद हो चुका था ..फिर हमें 7 एलेवेन से नूडल्स लेकर काम चलाना पड़ा ... बहुत थकान थी इसलिए खाते ही सो गए ... </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>तीसरा दिन</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">दो दिन काफी गर्मी और उमस भरे थे आज सुबह से मौसम सुहावना था ..काफी देर से उठे और तैयार होने के बाद हमने सबसे पहले आज पेट पूजा कर के ही कहीं भी निकलने का सोचा ..इसलिए वही पास ही एक रेस्तरा मिल गया यहाँ अच्छा भारतीय शाकाहारी खाना था ... हमें यह सब करने में लगभग 3 बज गए थे और बारिश अभी जारी थी कोई टैक्सी नहीं मिली तो हमने उबर टैक्सी के लिए कॉल लगाई 10 मिनट में वो टैक्सी आ चुकी थी अगर आप कॉल करके किसी भी टैक्सी को बुलाते हैं तो उसके 3 डॉलर एक्स्ट्रा देने होते हैं .. हमने उसे क्लार्क क्वे छोड़ने के लिए बोला .. बारिश में सिंगापुर की खूबसूरती और भी बढ़ जाती है उज्जवल चमकते हुए पेड़ और गगनचुम्बी इमारतें मन को छू जाती हैं ... </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">हम कुछ तस्वीरें लेते हुए जा रहे थे .. लगभग 20 मिनट में हम वहां पहुँच गए थे ... </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i><b>क्लार्क क्वे [CLARK QUAY]:--</b></i></span></div>
<div style="text-align: left;">
<i><span style="font-size: large;">यह एक ऐतिहासिक जगह है जिसका नाम सिंगापुर के दूसरे गवर्नर एंड्रू क्लार्क के नाम पर रखा गया है ... पुराने समय में यह व्यापार की आवाजावी का ख़ास केंद्र था सिंगापुर नदी के उत्तरी किनारे पर बना हुआ एक ऐतिहासिक जहाजी घाट है ..यह एक आधुनिक और ट्रेडिशनल जगह है खाने के लिए और नाईट लाइफ के लिए ...इसकी बनावट इसे दिन के समय ठंडा रखने में मदद करती है .... जिसके लिए इसे अवार्ड भी मिल चुका है </span><span style="font-size: large;">... </span><span style="font-size: large;">यहाँ 50 से ज्यादा होटल हैं ,लगभग 20पब, बार डिस्को वगेरह हैं यहाँ रात को संगीत गूँजता है .. नाच गाना खाना पीना ठंडी ठंडी हवा के साथ आप इस का आनंद ले सकते हैं .. </span></i></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">हम क्लार्क क्वे पहुँच गए थे ..क्योंकि यहाँ नाईट लाइफ ज्यादा प्रचलित है इसलिए हमें दिन में कुछ ख़ास रौनक नहीं मिली ... यहाँ से घूमते हुए आगे निकल गए .. हलकी हलकी बूंदाबांदी हो रही थी ..</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div class="separator" style="clear: both;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgA-UVqPuPbjUmxuOUNfZXL9fy6UUl6f45k_sVIfzKktxt3_LWbXAD7IFJhnJozgLlF32f4J5goLb1kE97_PlMhOj8VnjDTitm_iqBLh__lhayG3-F7J1V7faFNA55TUzTgVEt26-jmDn-I/s1600/pizap.com14651950497491.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="295" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgA-UVqPuPbjUmxuOUNfZXL9fy6UUl6f45k_sVIfzKktxt3_LWbXAD7IFJhnJozgLlF32f4J5goLb1kE97_PlMhOj8VnjDTitm_iqBLh__lhayG3-F7J1V7faFNA55TUzTgVEt26-jmDn-I/s400/pizap.com14651950497491.jpg" width="400" /></a></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b><i>बोट क्वे:--</i></b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"></span><br /></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i>सिंगापुर नदी का दक्षिणी किनारा बोट क्वे के नाम से जाना जाता है ,</i></span><i style="font-size: x-large;">ऐसा माना जाता था की खुशहाली और पैसा यहाँ बसता है इसलिए यह क्षेत्र बहुत सारी दुकानों से भरा हुआ था ..अब इसका आधुनिकीकरण करके इसे मॉल में परिवर्तित कर दिया गया है ...यहाँ भारतीय पर्यटकों के लिए खास इंतजाम हैं ,यहाँ का हिंदी म्यूजिक लाउन्ज बहुत लोकप्रिय है ..यहाँ भारतीय नर्तकियों को बॉलीवुड के गानों पर नाचते हुए देख सकते हैं ... </i></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b><i>रिवर क्रूज :</i></b>- ..</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i>बम बोट जो पहले मालवाहक का काम करती थी वेयरहाउस और जहाज के बीच अब लोगों को नज़ारे [साईट सीइंग ]दिखाने का काम कर रही थी .</i>.. </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">रिवर क्रूज तभी चलने वाला था जब बारिश बंद हो ..इसलिए हमने रिवर क्रूज की टिकट ले ली और इंतज़ार करने लगे .. थोड़ी ही देर में हमें उसमें बैठने का मौका मिल गया .. यह बाँस लकड़ी की बनी हुई बोट थी जिसमे 20 ..25 लोगों के बैठने की व्यवस्था थी .. कुछ सीटें बाहर खुले में भी लगी हुई थी ... जब बारिश बिलकुल बंद हो गई तो सब बाहर बोट पर आ गए थे ... और आसपास की बड़ी बड़ी इमारतों की तस्वीरें .. पृष्ठ भूमि में कभी स्काई पार्क तो कभी मर्लिओन के साथ अपनी तस्वीरें कैमरे में कैद कर रहे थे ... एक घंटे का यह रिवर क्रूज और सुहावने मौसम से हमारा उत्साह दोबारा लौट आया था जो दो दिन की गर्मी से हमने खो दिया था ... </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div class="separator" style="clear: both;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiTLr9trLJccBi9Gz-rWYeGylkeyRP6o2V4nD0jLMGgZM0Um6YpaBhWOSAkgcNy8euK1pFYMbSeIrD5892U1hYnIisrfNshOmhv97pHplnRIklb0L3cd32SHbCeC2lfKrfWAGzx2xoyVeK6/s1600/pizap.com14651960078581a.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="300" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiTLr9trLJccBi9Gz-rWYeGylkeyRP6o2V4nD0jLMGgZM0Um6YpaBhWOSAkgcNy8euK1pFYMbSeIrD5892U1hYnIisrfNshOmhv97pHplnRIklb0L3cd32SHbCeC2lfKrfWAGzx2xoyVeK6/s400/pizap.com14651960078581a.jpg" width="400" /></a></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><br /></span><i><span style="font-size: large;"><b>मर्लिओन पार्क :-</b>- सिंगापुर टूरिज्म की ख़ास निशानी है सिंह का बुत ..जिसे यहाँ पर मर्लिओन कहा जाता है ...यह 8.6 मीटर ऊँचा है और इसका भार </span><span style="font-size: large;">40 टन</span><span style="font-size: large;"> </span></i><span style="font-size: large;"><i>है ... इसके आसपास लोग पार्क में घूमते हैं और अद्भुत दृश्यों का आनन्द लेते हैं ... रिवर क्रूज में घूमते हुए भीआप इसे देख सकते हैं ..</i>. </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div class="separator" style="clear: both;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg9z2tPWBA-bqwyw99PNucbkRm7v1yVD8IEaStFjWnieRsPxpmPgwHVzRjRj9wLjrWq48o_0I83z0GqmUAFV0tH9gW37P75UxhPK3SusjNMfTIpgJupGckM5mTNUW0eBM6Smak_H6y48Nhj/s1600/IMG_5473a.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="265" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg9z2tPWBA-bqwyw99PNucbkRm7v1yVD8IEaStFjWnieRsPxpmPgwHVzRjRj9wLjrWq48o_0I83z0GqmUAFV0tH9gW37P75UxhPK3SusjNMfTIpgJupGckM5mTNUW0eBM6Smak_H6y48Nhj/s400/IMG_5473a.jpg" width="400" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">रि</span><span style="font-size: large;">व</span><span style="font-size: large;">र क्रूज देखने के बाद हमने वही पर ही थोड़ी देर घूमते हुए आनंद उठाया क्लार्क क्वे के सेल्फी स्टैंड पर अपनी फोटो लेकर इसे फेसबुक पर पोस्ट कर दिया ..उसके बाद हम ने स्काई पार्क के लिए टैक्सी ले ली ...</span></div>
<div style="text-align: left;">
<br /></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i><b>सेंड्ज स्काई पार्क :-- </b>यह दुनिया का सबसे मँहगा कैसीनो है ,इस में 2561 होटल के कमरे ,800,000 वर्ग फुट का माल ,आर्ट साइंस म्यूजियम ,दो थिएटर ,दो तैरते हुए क्रिस्टल पवेलियन,500 टेबल के साथ दुनिया का सबसे बड़ा कैसीनो ,इसकी छत्त पर 340 मीटर लम्बा स्काई पार्क है जिसमे 3900लोगों की व्यवस्था है ,स्विमिंग पूल और क्लब है ..</i></span><i style="font-size: x-large;">संसार का सबसे बड़ा छत्त पर बना यह अपनी तरह का एक ही स्विमिंग पूल है ..... </i><i style="font-size: x-large;">अगर इतना काफी नहीं है तो यह कह सकते हैं इसने सिंगापुर की पहचान मर्लिओन की जगह ले ली है ...अब स्काई पार्क सिंगापुर की पहचान बन चुका है .. ... 57 मंजिलों के साथ .....</i><i style="font-size: x-large;">इसे देखने का समय सुबह 9.30 से लेकर </i><i style="font-size: x-large;">शाम के 7बजे तक है ..... </i></div>
<div style="text-align: left;">
<i style="font-size: x-large;"><br /></i></div>
<div class="separator" style="clear: both;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh4qPlPpDAI7nt7ZSKMIStf6oMB3bAClR3APFX6_Ri1sIYJ_G4ieHExHsh_G6_bKSUkotMvwqoHqOomE7U8-Wcx8_j3OaGNzVP9cPEAJa9jWvaxJ5JppiJatU1eLImuM-UVJYZbb0BHn3dh/s1600/aaa.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="281" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh4qPlPpDAI7nt7ZSKMIStf6oMB3bAClR3APFX6_Ri1sIYJ_G4ieHExHsh_G6_bKSUkotMvwqoHqOomE7U8-Wcx8_j3OaGNzVP9cPEAJa9jWvaxJ5JppiJatU1eLImuM-UVJYZbb0BHn3dh/s400/aaa.jpg" width="400" /></a></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><i><br /></i></span><span style="font-size: large;">हम स्काई पार्क पहुँच गए थे ... वहां टिकट दिखाकर हमने लिफ्ट का रास्ता लिया उससे पहले यहाँ सबकी तस्वीर ली गई ... लिफ्ट के अंदर जाने के बाद हम मुश्किल से 2 मिनट के अंदर स्काई पार्क की 56वीं मंजिल पर थे ... यहाँ दिखाई दिया पूरा का पूरा सिंगापुर ... बस फिर शुरू हुआ हर तरह पोज बनाकर अच्छा ख़ासा फोटो सेशन ... एक तरफ ऊँची ऊँची इमारतें ,एक तरफ समुन्द्र का नजारा ,उसमे रंग बिरंगे क्रूज ... एक तरफ गार्डन्स बाय बे के अद्भुत नज़ारे ... आनंद ही आनन्द ... अभी जैसे जैसे अँधेरा होने लगा पूरा का पूरा सिंगापुर सितारों की तरह जगमगाने लगा पानी में से होकर निकलती रोशनियाँ ... बड़ी बड़ी इमारतों की पानी में झलकती परिछाइयां ... इसे सपनों का शहर कहें तो कोई गलत नहीं होगा .....</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">अब हमने पास ही गार्डन्स बाय बे में चलने की सोची क्योंकि वहां भी बहुत कुछ देखने को था ... लिफ्ट के रास्ते हम फिर 2 मिनट में नीचे पहुँच गए थे .. अब गार्डन्स बाय बे का रास्ता पूछा ... स्काई पार्क के ही पीछे से लिफ्ट लेकर हम 6 मंजिल पर पहुँचे वहां से स्काई पार्क के माल में से गुजरते हुए रास्ता बाहर गार्डन्स बाय बे की तरफ ले गया .... </span></div>
<div style="text-align: center;">
</div>
<div style="text-align: left;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; font-family: 'times new roman';">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgeAzmYDxptiQOrxB4rw_oGRDjO-tR4Dt6tXhWxoUPJtEylZazLSPeazfcdlFSR5uBPjNd5uIdBvf3RTZ8pM3GC91m_pykiJOR0U4tlPVJnH8QuIgr2lWWeP5WNfJd20X5yHPFZQ8HBKUir/s1600/IMG_5633a.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="265" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgeAzmYDxptiQOrxB4rw_oGRDjO-tR4Dt6tXhWxoUPJtEylZazLSPeazfcdlFSR5uBPjNd5uIdBvf3RTZ8pM3GC91m_pykiJOR0U4tlPVJnH8QuIgr2lWWeP5WNfJd20X5yHPFZQ8HBKUir/s400/IMG_5633a.jpg" width="400" /></a></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;">क्रमशः <a href="http://prabhumahima.blogspot.in/2016/06/4.html" target="_blank">भाग 4.</a></span></div>
<br /></div>
</div>
Guzarishhttp://www.blogger.com/profile/11205127840621066197noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3773685922890348520.post-10996497820585494932016-06-06T03:24:00.000-07:002016-06-16T02:41:56.657-07:00सिंगापुर यात्रा संस्मरण भाग 2.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><a href="http://prabhumahima.blogspot.in/2016/06/1.html" target="_blank">भाग 1.</a></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">सिंगापुर में चांगी हवाईअड्डा एक आधुनिक हवाई अड्डा है इसे देखकर आप उसकी तारीफ़ किये बिना नहीं रह सकते ,बहुत से भारतीय रेसतरा भी यहाँ मौजूद हैं जिसे देखते ही अपनापन सा अनुभव होता है ....</span></div>
<span style="font-size: large;"><b>इमीग्रेशन यानि अप्रवास :--</b></span><br />
<span style="font-size: large;">यहाँ हमें फिर से इमीग्रेशन फॉर्म भरना था इसलिए हम काउंटर की ओर बढ़ गए वहां अलग अलग भाषा में फॉर्म रखे थे हमने अंग्रेजी भाषा वाला फॉर्म लिया और उसको सारा भर दिया यहाँ पर हमारा पता वो लिखा जाना था यहाँ हम रुकने वाले थे और कितने दिन .... <b>एक सबसे बढ़िया बात यहाँ पर आपको भाषा की बिलकुल भी असुविधा नहीं होती है क्योंकि सभी अंग्रेजी समझते हैं और बोलते हैं.. </b>फॉर्म<b> </b>भरने के बाद ...पहले की ही भांति बहुत सारे प्रवेश द्वार और काउंटर थे यहाँ हम भी कतार में खड़े हो गए ,हमारी बारी के इंतज़ार में .. अपनी बारी आने पर वो फॉर्म और पासपोर्ट उनको दिया गया जिस पर फिर से एक स्टेम्प लगा दी गई .. हम दो लोग निकल गए थे ,हमारे एक साथी को थोड़ी पूछताछ के लिए रोक लिया गया ..चिंता की कोई बात नहीं थी हमारे पास सारे डाक्यूमेंट्स थे ,डॉलर बदलवाने का बिल भी .. इस वजह से हमें थोड़ी देर जरूर हो गई थी ...इसलिए भारत से बार बार फ़ोन आ रहे थे ..... </span><br />
<span style="font-size: large;">अगर आप 20,000 से ज्यादा डॉलर लेकर जा रहे हैं तो उसकी सूचना एयरपोर्ट पर देनी पड़ती है और आपके पास उसका बिल भी होना चाहिए ... </span><br />
<span style="font-size: large;">अब यहाँ भी पप्पू पास हो चुके थे ... अब बारी थी लगेज लेने की ..हम अपनी लगेज बेल्ट के पास पहुँचे तो सामान पहले से ही बेल्ट के पास नीचे रखा था ..हमने ट्राली ली और उसे लेकर हम बाहर निकल आये .. वहां द्वार पर जो भी अधिकारी ड्यूटी पर थे वो सबके लिये टैक्सी बुला रहे थे .. यहाँ टैक्सी सेवा बड़ी तवरित गति से आ जा रही थीं .. हमें भी इशारा किया टैक्सी की तरफ हम उसमें बैठ गए और उसे बताया हमें लिटिल इंडिया जाना है .. एक बहुत ही अच्छी बात सभी मीटर से चलते हैं कोई सौदेबाजी नहीं ...जैसे जैसे हम बढ़ते जा रहे थे सिंगापुर की गगनचुम्बी दमकती इमारतें , रात की रोशनियों से जगमग कुदरती नज़ारे एक अलग ही छटा बिखेर रहे थे ... अगर कहें कि तारे जमीं पर उतर आये थे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ... लगभग आधे घंटे में हम होटल पहुँच चुके थे जोकि पहले से ही बुक था .. ..</span><br />
<span style="font-size: large;">काउंटर पर हमने बताया बुकिंग किस नाम से है और हमें कमरा नंबर दे दिया गया ... . हम सब कमरे में गए थोड़ा आराम किया ... होटल में वाई फाई था इसलिए सबसे पहले हमने अपने पहुँचने की भारत सूचना दी ... और फिर बाहर निकल गए रात्रि भोजन के लिए और एक सिंगापुर की सिम लेने के लिए ... ताकि जब हम बाहर हों तो आराम से हम अपनों संग अपने अनुभव बाँट सकें... 15 डॉलर की हमें सिम मिल गई थी हमारी जरुरत अनुसार ... </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">यहाँ घूमते हुए हमें लग रहा था हम दिल्ली की ही सड़कों पर घूम रहे हैं बिलकुल वैसी ही संकरी गलियां नजर आ रही थी,वैसे ही सामान दुकानों से बाहर तक निकला हुआ था,वैसी ही महक और वैसे ही लोग जैसा कि नाम से ही जाहिर था हम लिटिल इंडिया में घूम रहे थे ... सिर्फ सफाई यहाँ बहुत थी और सब सुचारू रूप से चल रहा था ... </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">उसके बाद तलाश शुरू हुई शाकाहारी खाने की जो हमें कहीं भी आस पास ढंग का नहीं मिला .. दाल रोटी से काम चलाया लेकिन कैसी थी यह मत पूछो .. माँसाहारी खाना हर जगह उपलब्ध है .. अच्छे खाने की तलाश अगले दिन पर छोड़कर हम होटल लौट आये ..... </span><br />
<span style="font-size: large;">सुबह से थकान तो थी ही जल्दी ही हम नींद की आगोश में थे ... .. ..</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">अगले दिन सुबह जैसे ही शौचालय जाना हुआ तो जान पड़ा कि आधुनिक सब सुविधा तो है लेकिन ना तो सीट में जेट है ना ही मग चौकी और बाल्टी ,सिर्फ टिश्यू और शावर से काम चलाना है ... .. आइये सबसे पहले जानें यहाँ हम रह रहे थे ...</span><br />
<span style="font-size: large;"><b><span style="font-size: large;">लिटिल इंडिया :</span></b></span><b style="font-size: x-large;">--</b><br />
<span style="font-size: large;">इसे छोटा भारत कहें तो कोई गलत नहीं होगा इस बाजार में भारतियों की संख्या सबसे अधिक है ,यहाँ हर तरह के पकवान उपलब्ध हैं ,भारतीय पोशाकें ,भारतीय खाना और मिठाइयाँ ,भारतीय रेस्तरा वगेरह ,छोटी छोटी दुकानें ,संकरी सड़कें... इसी में एक आधुनिक माल भी है मुस्तुफा माल ..... </span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg9dXN-4s3g6JvKM3nl36XppdYnT7hsqG31CWSgzYBU4BV9lQHvKY00iRdVZ02E2n7TTSoJXnxdRlM7j67yUJvr7cWN16ZBIvkCkKq3BZDmu_HFRbIdv8z8AGpo3PlAnB4yVqGmhBqlSRSp/s1600/IMG_5404a.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="265" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg9dXN-4s3g6JvKM3nl36XppdYnT7hsqG31CWSgzYBU4BV9lQHvKY00iRdVZ02E2n7TTSoJXnxdRlM7j67yUJvr7cWN16ZBIvkCkKq3BZDmu_HFRbIdv8z8AGpo3PlAnB4yVqGmhBqlSRSp/s400/IMG_5404a.jpg" width="400" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="font-size: large;">तैयार होने के बाद हम घूमने निकल गए .. हमें होटल के बाहर ही टैक्सी मिल गई थी पहले से ही तय था हमें सेन्टोसा जाना है |</span><br />
<span style="font-size: large;">टैक्सी ने जैसे ही हमें सेंटोसा के बाहर उतारा ऐसे लगा हम एक अलग ही सपनों की दुनिया में आ गए हैं ... निसंदेह सिंगापुर में ज्यादा जगह रात को घूमने की हैं जब यहाँ रोशनियाँ बरसती हैं तो आपका मन ख़ुशी से हिलोरे लेने लगता है ,यहाँ रात नहीं होती जी क्योंकि रोशनियाँ अँधेरे को ढक लेती हैं .... </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;"><b>सेंटोसा द्वीप :--</b></span><br />
<span style="font-size: large;"><i style="font-size: x-large;">सिंगापुर का पर्याय है </i><span style="font-size: medium;"><i>सेंटोसा द्वीप जोकि एक प्रमुख पर्यटक केंद्र और मुख्य आकर्षण है सिंगापुर का ... </i></span><i style="font-size: x-large;">यहाँ पहुँचने के लिए आप बस,केबल कार ,MRT [मास रैपिड ट्रांजिट ]यानि यहाँ की मेट्रो और निसंदेह टैक्सी का प्रयोग तो कर ही सकते हैं .... </i><i style="font-size: x-large;">यहाँ पर इतना कुछ है देखने को और अनुभव करने को कि आपको दो दिन भी इसे पूरा देखने के लिए कम ही लगेंगे ... इसके मुख्य आकर्षण अग्रलिखित है ... </i></span><br />
<i style="font-size: x-large;"><br /></i>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjO3iiWOSTqFi0nAup_af9w2X6hXXL63enUsTPCciSZqWgtUyAM4JhA-4uXcuLhHzzC1LbmoDvqoT8w9pHs7MEJtxSmzmK8ymwwl9F_Jlq8tSI6luvhDaMO2EHVpooh_mkgVtunWT8o9ktE/s1600/IMG_5102.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="212" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjO3iiWOSTqFi0nAup_af9w2X6hXXL63enUsTPCciSZqWgtUyAM4JhA-4uXcuLhHzzC1LbmoDvqoT8w9pHs7MEJtxSmzmK8ymwwl9F_Jlq8tSI6luvhDaMO2EHVpooh_mkgVtunWT8o9ktE/s320/IMG_5102.jpg" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<i style="font-size: x-large;"><br /></i>
</div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large; font-style: italic;"><br /></span></div>
<span style="font-size: large;"><b>*यूनिवर्सल स्टूडियो</b><i> :-- </i>यहाँ प्रवेश के लिए <i> </i></span><span style="font-size: large;">70$ से 200$ तक कई तरह के पैकेज हैं ..लगभग 1 बजे हमने टिकट लेकर जैसे ही प्रवेश किया तो मुँह से अनायास ही निकला 'वाह' अद्भुत नजारा हॉलीवुड की दुनिया में हम पहुँच गए थे ..एक लैगून के इर्दगिर्द एक फ़िल्मी दुनिया बसाई गई है इसमें लगभग 30 रेस्तरां और फूड कोर्ट हैं सड़क पर हाकर भी हैं जिनसे आप पानी कोल्ड ड्रिंक्स कुछ स्नैक्स भी ले सकते हैं ..लेकिन विदेश में आये हैं और आप शाकाहारी हैं तो आपको घूमते हुए कुछ खाने को नहीं मिलने वाला .. जबकि हम भारत से कुछ खाने की व्यवस्था कर के आये थे लेकिन मालूम नहीं था कि हमें घूमने जाने वक्त भी खाना साथ ले जाना बहुत जरुरी है .. तो जाहिर था हमें कुछ खाने को ख़ास मिला नहीं .. वैसे यहाँ पर जगह जगह पीने के पानी की व्यवस्था अच्छी है लेकिन ठंडा नहीं है ... शनिवार और रविवार यहाँ रात में हॉलीवुड शो भी होते हैं सड़कों पर ही ...</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiHSK0IHtb3yLOb0wF4dxdazmXRCnc2_KHpQ3nLB8zY2pRhxrUqgFmYQWREaGfWUObd3a5cmKqGdKfmHfBvOVd8k4n3czxTpiZpx_Z4wrpo2n8gaR8SSf1dwxufMYKuadbNDUUFPRaENLNy/s1600/pizap.com14650315988131.jpg" imageanchor="1" style="font-size: medium; margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiHSK0IHtb3yLOb0wF4dxdazmXRCnc2_KHpQ3nLB8zY2pRhxrUqgFmYQWREaGfWUObd3a5cmKqGdKfmHfBvOVd8k4n3czxTpiZpx_Z4wrpo2n8gaR8SSf1dwxufMYKuadbNDUUFPRaENLNy/s400/pizap.com14650315988131.jpg" width="296" /></a></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><span id="goog_427672872"></span><span id="goog_427672873"></span><br /></span></div>
<span style="font-size: large;"><b>दुनिया की सबसे ऊँची रोलर कोस्टर ,द लॉस्ट वर्ल्ड,फार फार अवे, क्रेन डांस,लेक ऑफ़ ड्रीम्स यहाँ पर भी लेजर शो होता है ,फेस्टिव पार्क,प्राचीन मिस्र के यादगार क्षेत्र ..</b>वगेरह वगेरह यूनिवर्सल स्टूडियो की शान हैं .. अगर सूर्य देवता मेहरबान रहते हैं तो आप गर्मी में बहुत मुश्किल से घूम पाते हैं ... 4 बजे हम बाहर आ गए थे क्योंकि बाकी सेंटोसा भी देखने की इच्छा थी .... </span><br />
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj3xctOmipiUGAt2YcXMuQ1xTgKXkCn5ezaAr1CM7D-1Rgvnpcob0k_lhZI1ks5fY_X_SQ3rlonBk4SIhiRvjTXZVcTjRHH3HuGaQ0J8BZljSl6xqK_3DIDjvwvG_g09ZOEJSfRMQNbWvug/s1600/pizap.com14651944481401.jpg" imageanchor="1" style="font-size: medium; margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="238" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj3xctOmipiUGAt2YcXMuQ1xTgKXkCn5ezaAr1CM7D-1Rgvnpcob0k_lhZI1ks5fY_X_SQ3rlonBk4SIhiRvjTXZVcTjRHH3HuGaQ0J8BZljSl6xqK_3DIDjvwvG_g09ZOEJSfRMQNbWvug/s320/pizap.com14651944481401.jpg" width="320" /></a></span></div>
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span>
<span style="font-size: large;">फिर हम पहुँचे वाटरफ्रंट स्टेशन के पास ..यहाँ से मोनोरेल चलती है तीन स्टेशन में यह कड़ी का काम करती है ,हर स्टेशन पर उतरकर आप <span style="font-weight: bold;">बटरफ्लाई पार्क ,टाइगर टावर,केबल कार, मर्लियोन टावर,एडवेंचर कोव,सिलोसो बीच, इम्बिया बीच यहाँ पर </span><u>विंग्स ऑफ़ टाइम </u>के नाम से मशहूर शानदार लेजर शो होता है ,अगर यह आपने नहीं देखा तो आपने कुछ नही देखा ... आई फ्लाई है जिसमे आप उड़ सकते हैं और भी बहुत कुछ देखने को है उसके पैकेज आप मनमर्जी से ले सकते हैं .... </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiUVmo6A57xiI61zhhjMOPfqKprDAwoPuZh4e-HbvmwuVzegsRVF-Ma7ArFd5e0nT_Pt9G83ryKlVStQVVpPS38rJs6vO_41rcyDY_kKlZzuibER3QAZJw2TI7TM6TZil16ZFjUGh5DkJlh/s1600/IMG_5257a.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="266" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiUVmo6A57xiI61zhhjMOPfqKprDAwoPuZh4e-HbvmwuVzegsRVF-Ma7ArFd5e0nT_Pt9G83ryKlVStQVVpPS38rJs6vO_41rcyDY_kKlZzuibER3QAZJw2TI7TM6TZil16ZFjUGh5DkJlh/s400/IMG_5257a.jpg" width="400" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEje_F3yjXQzSlx0ex5uwmyBW9HtwnfGf9hSO84yL3ZGAGFAWSO6teDDAHTpQc2vVqhbBmLcssIK4xHLDs64_CQ-E4QXdoU09lM6GRFs0mSXlyqy2zpW8JeLo4uSdK5zQJmIT4K7-AdSN_Tx/s1600/pizap.com14649616280761a.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="300" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEje_F3yjXQzSlx0ex5uwmyBW9HtwnfGf9hSO84yL3ZGAGFAWSO6teDDAHTpQc2vVqhbBmLcssIK4xHLDs64_CQ-E4QXdoU09lM6GRFs0mSXlyqy2zpW8JeLo4uSdK5zQJmIT4K7-AdSN_Tx/s400/pizap.com14649616280761a.jpg" width="400" /></a></div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgqpCKxip5Jhitbu0U3ugYMpqw0nn-7-1b4yHIylKQ1Npv795qPlx6WAtgdKqcZjkA8wO9qeHnVX4973AHwh3garIvsIeFK_zi37QlC-CI_1g8hlibSUWf_7x8m6qRW7EDdSTvda3AJdPZz/s1600/pizap.com14649617563261a.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="300" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgqpCKxip5Jhitbu0U3ugYMpqw0nn-7-1b4yHIylKQ1Npv795qPlx6WAtgdKqcZjkA8wO9qeHnVX4973AHwh3garIvsIeFK_zi37QlC-CI_1g8hlibSUWf_7x8m6qRW7EDdSTvda3AJdPZz/s400/pizap.com14649617563261a.jpg" width="400" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
<span style="font-size: large;"><i><b>सेंटोसा के अन्य आकर्षण :--</b> </i> </span><br />
<span style="font-size: large;"><i>दुनिया का सबसे बड़ा</i> <i>अंडर</i></span><span style="font-size: large;"><i>वाटर वर्ल्ड एक्वेरियम ,जिसमे पानी में एक लम्बी सुरंग में आप घूमते है और ग्लास के बाहर सभी समुद्री जानवर यानि एक तरफ पानी के नीचे की दुनिया में आप स्वयं को समुद्र में महसूस करते हैं तो दूसरी तरफ पानी के ऊपर की दुनिया में डोल्फिन के साथ समय बिताकर आप रोमांचित हो जाते हैं ,रिसॉर्ट्स वर्ल्ड [सबसे मंहगा कैसिनो],सेंटोसा सिनेब्लास्ट ,फ्लाइंग ट्रैपीज,गो ग्रीन साइकिल ,वेव हाउस सेंटोजा यहाँ नए लोगों को लहरों के दांवपेच सिखाये जाते हैं और भी बहुत कुछ ... </i></span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">लेजर शो देखने के बाद हम मैकडोनाल्ड चले गए वहां शाकाहारी में सिर्फ फ्रेंच फ्राइज थीं .. सुबह से काफी थक गए थे 10 बज चुके थे ..इसलिए हमने वापिस आने का फैसला किया ..वही से हमने टैक्सी ले ली थी .. लेकिन वापिस पहुँचकर हम होटल चले गए तो वापिस खाना खाने के लिए जाने का मन नही किया ,जो कुछ साथ लाये थे वही खाया और सो गए ...<i style="font-weight: bold;"> </i></span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">क्रमशः <span id="goog_219652565"></span><a href="http://prabhumahima.blogspot.in/2016/06/3.html" target="_blank">भाग 3..<span id="goog_219652566"></span>..</a></span></div>
Guzarishhttp://www.blogger.com/profile/11205127840621066197noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3773685922890348520.post-56667466252037780032016-06-06T03:13:00.000-07:002016-06-16T03:57:22.802-07:00 सिंगापुर यात्रा संस्मरण भाग 1.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<span style="color: blue; font-size: large;"><b><u>परियों के शहर सिंगापुर में </u></b></span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><b><u><br /></u></b></span></div>
<span style="font-size: large;"><b>यात्रा करना एक शौक के इलावा मुझे उत्साहित करता है वहां की अलग भाषा ,संस्कृति ,परिवेश ,आबो हवा, को पास से महसूस करने के लिए ... विदेश की वनस्पति ,मौसम, बोल चाल ,रहन सहन ,उनकी सोच किस तरह से अलग है अपने देश से ,मुझे प्रेरित करते हैं कुछ लिखने के लिए इसलिए आपके समक्ष है <u>मेरा सिंगापुर यात्रा संस्मरण</u> ... </b></span><br />
<span style="font-size: large;">जैसा कि हम लोग अक्सर बोलते हैं की दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम .. यह दाने हमें कहाँ से कहाँ तक ले जायें और कब बिना किसी पूर्व नियोजित कार्यक्रम के ले जायें कहना मुश्किल है .. ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ ..रात में लगभग 11.30 बजे मैं सो चुकी थी तभी बेटे ने मोबाइल पकड़ाते हुए कहा बात करो और दूसरी तरफ से आवाज आई सिंगापुर चलना है मैंने भी आधे नींद में ही पूछ डाला कब ?</span><br />
<span style="font-size: large;">11 को .. 11 मई से 16 मई तक ... नहीं ..नहीं जा सकती सोनी का पहला पेपर है 12 को .. उसे अकेला छोड़ना ठीक नहीं ... [सोनी मेरा लाडला जो बी.कॉम. के पेपर दे रहा है ] यह कह कर मैं दोबारा सो गई ... सुबह डैडी जब काम पर चले गए तो उनका फ़ोन आया जा क्यों नहीं रही ..चली जा .. फिर बड़े बेटे का फ़ोन आ गया ..जाओ जाओ ...सोनी कर लेगा पेपर की तैयारी ... मैंने भी हाँ कर दी .. अगले दिन<b> </b>हमारी टिकट हो चुकी थी ... बचपन में ज्योतिषी को हाथ दिखाकर अक्सर पूछा जाता था ..विदेश जाने का संयोग है ... वो आज पूरा होने वाला था ... ..</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"> <b> मैं सरिता भाटिया दिल्ली से हूँ ..आइये दोस्तों आप को भी ले चलूँ अपनी पहली विदेश यात्रा पर ...मेरे सपनों का शहर ...सिंगापुर... कुछ खट्टे और ज्यादा मीठे अनुभवों के साथ .... </b></span><br />
<div style="text-align: center;">
<span style="color: purple; font-size: large;"><b>सिंगापुर </b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="background-color: white; color: #a64d79; font-size: large;"><span style="font-size: small;"><i>सिंगापुर दक्षिण एशिया में इंडोनेशिया और मलेशिया के बीच स्थित </i></span><i style="font-size: x-large;">एक आधुनिक ,संपन्न,आत्मनिर्भर ,अनुशासित, विकसित ,सर्व सुविधा युक्त बहुत से धर्मों ,संस्कृतियों ,भाषाओँ को एक जुट समेटे एक स्वतंत्र लेकिन महँगा शहर है ...यह 1965 में मलेशिया से अलग होकर एक स्वतंत्र राष्ट्र बना ....</i><i style="font-size: x-large;">ऐसा कहा जाता है कि सुमात्रा का राजकुमार यहाँ शिकार के लिए आया तो उसने यहाँ सिंहों को देखकर इसका नाम रखा सिंहों का पुर यानि सिंगापुरा ..जो बाद में सिंगापुर कहलाया .. सिंह यहाँ का मुख्य प्रतीक भी है जिसे यहाँ पर मर्लियोन कहा जाता है ...सिंगापुर विश्व की प्रमुख बंदरगाहों में से एक और एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र भी है ..इसे प्रकृति का वरदान प्राप्त है यहाँ अपार सम्पदा है .. भारतीय यहाँ कई कारणों से खिंचे चले आते हैं ..सबसे पहले तो यह भारत के नजदीक है ,यहाँ भारतीय आबादी भी काफी है ,यहाँ मुख्य चीनी और अंग्रेजी भाषा बोली जाती है ...इसलिए बातचीत में आसानी रहती है ... सबसे ज्यादा यहाँ चीनी जनसंखया है, 8%यहाँ भारतीय रहते हैं .. ....</i><i style="font-size: x-large;">सिंगापुर को सपनों का रोशनियों का शहर कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी..... </i><i style="font-size: x-large;"> </i></span><br />
<i style="font-size: x-large;"><br /></i>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg8a_44_8rU8Lur33Fj07ZG-xmRzWN0dSQC5UI457UiG3Bycb_7gdnhGyPLX1tQ09i4_MvyqN4LWoJqBsERWB29LONwqihLiYkPzO3KyARn8ke0f8X8HIsLbzoSWkJVK9A9ZPhs7VtFy4ot/s1600/pizap.com14652068477841.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="296" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg8a_44_8rU8Lur33Fj07ZG-xmRzWN0dSQC5UI457UiG3Bycb_7gdnhGyPLX1tQ09i4_MvyqN4LWoJqBsERWB29LONwqihLiYkPzO3KyARn8ke0f8X8HIsLbzoSWkJVK9A9ZPhs7VtFy4ot/s400/pizap.com14652068477841.jpg" width="400" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<i style="font-size: x-large;"><br /></i></div>
</div>
<div style="text-align: left;">
<br /></div>
<span style="font-size: large;"><b>पहली विदेश यात्रा में बहुत सारी बातें ऐसी होती हैं जिनका उल्लेख किसी गाइड बुक में आपको नहीं मिलेगा आइये नजर डालते हैं कुछ जरूरी प्रक्रियाओं पर ..विदेश जाने से पहले जिनका जानना बहुत जरूरी है ..<i>.</i></b></span><br />
<br />
<span style="font-size: large;"><i><b>पासपोर्ट :--</b>तो जनाब सबसे पहले विदेश जाने के लिए आपके पास होना चाहिए पासपोर्ट जिसके बनाने की प्रक्रिया अब काफी सरल है सब कुछ आजकल ऑनलाइन हो जाता है .. आपका फॉर्म ऑनलाइन ही भरा जाता है और साथ ही आपकी सुविधा अनुसार पासपोर्ट ऑफिस जाने की तिथि निर्धारित हो जाती है ... आप निश्चित तिथि पर वहां जाकर सब औपचारिकतायें पूरी कर सकते हैं ...इसके बाद घर पर आकर एक ऑफिसर आपकी इन्क्वायरी करता है .. किन्हीं दो पड़ोसियों के आई डी की फोटोकॉपी और फॉर्म पर उनके हस्ताक्षर लेकर वो चला जाता है .. सब होने के बाद आपका पासपोर्ट आपके घर आ जाता है लगभग एक महीने के अंदर ... पासपोर्ट पहले से आपके पास होना चाहिए और उसकी समय सीमा 6 महीने तक वैलिड होनी चाहिए ...</i></span><br />
<span style="font-size: large;"><i><br /></i></span>
<span style="font-size: large;"><i><b>वीजा :-- </b>वीजा कानून हर देश के अलग हैं इसलिए उसके अनुसार ही चलें कुछ वहां पहुँचने पर आपको एअरपोर्ट पर वीजा देते हैं .. कुछ का यहीं से वीजा लगवाकर जाना पड़ता है .. सिंगापुर के वीजा के लिए ऑनलाइन अप्लाई करने के बाद तीन वर्किंग डेज में वीजा मिल जाता है और यह इ -वीजा ही मिलता है ..इसलिए वीजा के लिए हमने एजेंट को पकड़ा क्योंकि हमारे पास समय कम था ... और उसे आगे लिखे जरूरी कागजात दिए ... </i></span><br />
<span style="font-size: large;"><i><br /></i></span>
<span style="font-size: large;"><i>*एक फोटो जोकि 80% जूम की गई हो और पूरा चेहरा नजर आ रहा हो , पीछे वाइट बैकग्राउंड ,मैट फिनिश के साथ ... ,</i></span><br />
<span style="font-size: large;"><i>*इ -टिकट की फोटोकॉपी ,</i></span><br />
<span style="font-size: large;"><i>*वास्तविक पासपोर्ट ..साथ में उचित पन्नों की फोटोकॉपी संलग्न करें </i></span><br />
<span style="font-size: large;"><i>*आपकी आखिरी तीन महीने की बैंक स्टेटमेंट ,जिसमें 50,000 रुपये तक की राशि होनी चाहिए .. </i></span><br />
<span style="font-size: large;"><i>अगर आपके जरुरी कागज़ अंग्रेजी भाषा में नहीं हैं तो उनका अनुवाद साथ में संलग्न होगा .. </i></span><br />
<span style="font-size: large;"><i>और सबसे जरुरी जिसके बिना कोई भी आगे नहीं बढता ..वीजा फीस जोकि लगभग 30 डॉलर है यानि 1500 रुपये और एजेंट अपनी कमीशन लेगा वो अलग 500 से ऊपर कुछ भी .... </i></span><br />
<span style="font-size: large;"><i>कुछेक में अगर किसी कम्पनी का <a href="http://introduction%20letter%20for%20visa%20application%20sample/" target="_blank">इंट्रोडक्शन लैटर </a>उनकी अनुमति के साथ संलग्न कर दें तो वीजा मिलना और आसान हो जाता है ... </i></span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">पासपोर्ट हमारा पहले से तैयार था </span><br />
<span style="font-size: large;">वीजा 9 को मिल चुका था ..अब हमें रूपयों को सिंगापुर डॉलर में बदलवाना था ..और कुछ शॉपिंग करके पैकिंग करनी थी ...</span><br />
<span style="font-size: large;"><i><br /></i></span>
<span style="font-size: large;"><b><i>करेंसी यानि मुद्रा :--</i></b><i> यह बहुत ही खेद की बात है कि हम रूपयों को यानि भारतीय मुद्रा को विदेश में जाकर डॉलर में बदलवा नहीं सकते ..इसलिए सिंगापुर डॉलर के इलावा हमें रुपये को यू एस डॉलर में बदलवाना पड़ा ..इसका बिल लेकर साथ रखना नहीं भूलें .. </i></span><br />
<span style="font-size: large;"><i><br /></i></span>
<span style="font-size: large;">हमारी 11 मई की सुबह 9.40 की फ्लाइट थी .. विदेश जाने के लिए हमें उड़ान से लगभग 3 घंटे पहले जाना पड़ता है ताकि हम आसानी से सब प्रक्रियाओं से गुजर सकें .... हम 6.30 बजे घर से निकल गए थे ... जैसा की पूर्व विदित था कि इंदिरा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के टर्मिनल 3 पर हमें जाना था ,जोकि अब सभी सुविधायों से सुसज्जित हो चुका है ...यहाँ से आप अपनी उड़ान की <a href="http://www.newdelhiairport.in/liveflight-information.aspx" target="_blank">पूर्व सूचना</a> ले सकते हैं ... </span><br />
<span style="font-size: large;">मन में एक ख़ुशी मिश्रित बेचेनी थी अब तक गेट तक छोड़ने तो बहुत बार आये थे आज पहली बार विदेश के लिए जा रहे थे ..वहां हम जब गाड़ी से उतरें तो पास ही सड़क पर बहुत ट्राली खड़ी रहती हैं उसमें सामान रखकर घर वालों से विदा लेकर हम गेट नंबर 5 के सामने पंक्ति में खड़े हो गए थे ... हमने अपनी टिकट ,पासपोर्ट ,वीजा हाथ में ले लिया था ताकि लम्बी पंक्तियों से बचा जा सके .. यहाँ आपके डाक्यूमेंट्स का निरिक्षण किया जाता है और अंदर भेज दिया जाता है ..</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>बोर्डिंग पास :--</b>उसके बाद हम जेट एयरवेज की अतर्राष्ट्रीय उड़ान के काउंटर पर चले गए यहाँ हमारा सामान जिसे लगेज कहा जाता है ले लिया गया ..जिसका भार उचित होना चाहिए ... और हमें बोर्डिंग पास यानि हमारी टिकट दे दी गई जिस पर नाम के साथ .. कहाँ से कहाँ जा रहे हैं उड़ान संख्या ,उड़ान का समय रहता है ..इस पर ही हमारे लगेज की एक स्लिप लगा दी गई जिससे हम उतरने के बाद अपना सामान ले सकते हैं .. अब हम चेक इन कर चुके थे ... चेक इन यानि सूचना देना की हम एअरपोर्ट पर आ चुके हैं ...बाकी जितने बैग थे कैमरा वगेरह हमने हाथ में ले लिए थे जिन्हें हम हैण्ड कैरी के नाम से जानते हैं .. सामान को घर पर ही हमने तोल लिया था इसलिए कोई दिक्कत नहीं थी .... </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;"><b>इमीग्रेशन :--</b> विदेश जाने के लिए एक इमीग्रेशन फॉर्म भरना होता है जो हमने वहीं से लिया और भर दिया ... उसमे वैसे ही नाम भरना होता है जैसे आपके पासपोर्ट में हो जैसे भाटिया सरिता .. फ्लाइट नंबर .. फ्लाइट का समय .. तिथि.. आपका पता ... वगेरह ...</span><br />
<span style="font-size: large;">इसे भरकर बहुत सारे काउंटर होते हैं .. उनके सामने किसी भी पंक्ति में खड़े हो जाइये अपनी बारी का इंतज़ार कीजिये वो आपसे साथ साथ कुछ प्रश्न पूछते रहते हैं कहाँ जा रहे हो ? क्यों जा रहे हो ? किसके पास जा रहे हो ? पहली बार जा रहे हो ... वगेरह वगेरह ..घबराएँ नहीं ..आराम से जवाब दें .. वहां आपके पासपोर्ट पर स्टेम्प यानि ठप्पा लगा दिया जाता है ... </span><br />
<span style="font-size: large;">ठप्पा लगने के बाद मन में एक अद्भुत ख़ुशी और राहत को हमने महसूस किया जैसे पप्पू पास हो गया हो ... </span><br />
<span style="font-size: large;"><b><i>आखिरी चेकिंग :--</i></b></span><br />
<i><span style="font-size: large;">यहाँ से निकलने के बाद आप की </span><span style="font-size: large;">विमान पर जाने से पहले अंतिम और पूर्णतया चेकिंग होती है जो मेटल डिटेक्टर के साथ की जाती है ...पुरुष अलग पंक्ति में और महिलायें अलग पंक्ति में </span><span style="font-size: large;"> ..जो भी सामान हाथ में है फ़ोन ,पर्स ,लैपटॉप वगेरह उसे एक ट्रे में डाल कर एक्स रे मशीन में से निकाला जाता है .. एक विशेष बात का ध्यान इसमें रखें कोई भी तरल पदार्थ या कुछ भी नुकीला रेजर या कैंची वगेरह आप हैण्ड कैरी में नहीं ले जा सकते इसलिए इसे पहले से ही लगेज में रखें ...</span><span style="font-size: large;">इसके बाद आप फ्री हैं कुछ खान पान करना हो तो कर सकते हैं ..</span><span style="font-size: large;">......</span></i><br />
<i><span style="font-size: large;"> </span></i><br />
<span style="font-size: large;">हमारी चेकिंग के बाद अब हम बिलकुल फ्री थे ... </span><span style="font-size: large;">बोर्डिंग लगभग एक घंटा पहले शुरू होनी थी .. क्योंकि सुबह के घर से निकले थे कुछ भी खाया नहीं था इसलिए हमने कुछ खान पान किया कुछ फोटो खींचे और अंदर बनी दुकानों पर विंडो शौपिंग की .. इसके बाद अपने हैण्ड बैगज के साथ हम बोर्डिंग एरिया में जाकर बैठ गए .... </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">निर्धारित समय पर हमारी फ्लाइट की बोर्डिंग शुरू होने की अनाउंसमेंट हो चुकी थी .. विमान में सबसे पहले प्रीमियर क्लास ,बिज़नेस क्लास और फिर इकॉनमी क्लास के यात्रियों को बैठने के लिए आमंत्रित किया जाता है .. </span><br />
<span style="font-size: large;">हम अब एक गलीनुमा गैलरी में प्रवेश कर गए थे जो विमान में जाकर ही समाप्त हो रही थी ..गेट पर दो परिचारिकाओं [ एयर होस्टेस ] ने जो पीले रंग की मिड्डी पहने हुए थीं हमारा बोर्डिंग पास देखकर हमारी सीट किधर है बता दिया था ... हम अपना सीट नंबर देखकर उस पर विराजमान हो चुके थे .... और जो भी हैण्ड कैरी थे उनको हमारी सीट के ऊपर बने बॉक्स में रख दिया था ... </span><br />
<span style="font-size: large;"><i>हर सीट के सामने दूसरी सीट के पीछे जैसे की एक एक स्क्रीन लगी हुई थी उसी में अटैच रिमोट था और एक फोल्डिंग टेबल था ... उस पर आप अपनी मनपसंद फ़िल्में देख सकते हैं गाने सुन सकते हैं ... या कुछ भी और अपना काम कर सकते हैं ... </i></span><br />
<span style="font-size: large;">हमने भी उस पर अपनी अपनी पसंद के प्रोग्राम लगा लिए थे .. तभी स्क्रीन पर ही पायलेट ने अपना और अपने साथी का नाम अनाउंस करके सब यात्रियों का स्वागत किया और अपनी सीट बेल्ट बाँधने का निर्देश दिया ..और सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बंद करने के लिए कहा गया ... साथ ही जरूरी हिदायतों की उद्घोषणा हो रही थी जोकि सामने बैग में एक पुस्तिका के रूप में भी थी जिनको पढने के लिए कहा गया ... हमने सीट बेल्ट बाँध कर अपनी सीट सीधी कर ली थी और मोबाइल को फ्लाइट मोड पर कर दिया था ... कुछ ही देर में विमान रन वे पर भाग रहा था ... और फिर एक झटके से हवा में था ... सामने स्क्रीन पर उसकी उंचाई के बारे में मीटर और फीट में बताया जा रहा था ... भारतीय समय .. कितने घंटे की फ्लाइट है और सिंगापुर का समय .. वो सब स्क्रीन पर आ रहा था .. कुछ ही देर में हम बादलों में थे .. लगभग 42,000 फीट की ऊँचाई पर ... साथ साथ हमने अपने मोबाइल में और कैमरे में बाहर के दृश्यों को कैद कर लिया था ..... </span><br />
<span style="font-size: large;">अब विमान सुरक्षित अपनी उड़ान पर था .. सुबह के कोई 10 बजे का समय था ...थोड़ी ही देर में परिचारिकाएँ यानि हवाई वेटर ... दो तीन तरह के जूस ,शराब के साथ चिप्स लेकर आ गई थी ,सबको उनकी जरुरत अनुसार दे रहीं थी ,हम भी फिल्म देखते हुए जूस की चुस्कियां ले रहे थे ... थोड़ी देर बाद ही खाना लेकर आ गए थे जिसमे एक पैक में चावल थे उसके ऊपर ही एक दाल और एक सब्जी डाली गई थी ,एक पैक्ड दही , पानी की छोटी बोतल और साथ ही चाय के लिए कप ,और चाय बनाने के पाउच थे ... खाना तो स्वादहीन ही होता है ..हॉस्पिटल का इससे अच्छा होता है ... जैसे तैसे हमने खाना निगल लिया था .. परिचारिकाएँ खाली पैक ले गई थी और चाय के लिए गर्म पानी दे रही थी जिसको भी चाय पीनी हो ... इसके बाद कुछ लोग आराम फरमा रहे थे ..कुछ मेरे जैसे जिनको नींद नही आ रही थी वो फिल्म में अपना समय बिता रहे थे ... सबकी सीट पर एक एक शाल था जो ठण्ड लगने पर आप प्रयोग में ला सकते हैं ... समय भी पंख लगा कर उड़ रहा था जैसे जैसे हम सिंगापुर की ओर बढ़ रहे थे बेचैनी और उत्सुकता बढ़ रही थी ... आखिर वो समय आ ही गया उद्घोषणा हो चुकी थी हम लैंड करने वाले हैं कुर्सी की पेटी बाँधने का निर्देश हो चुका था ..और फिर हम रन वे पर भागते हुए अपने गंतव्य पर पहुँच चुके थे ... विमान से बाहर आकर हम भी काफी लम्बा रास्ता तय कर के चांगी एअरपोर्ट को उत्सुकता से देख रहे थे ... </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhd0_-E60meMY4Nff2pO14MViSYikvjqCxYIxJZ2hyphenhyphend-bvHCqHmjg1d2YXFUMsUhrhtI5hAlnhiY7pldghYdOeL35SPspIJgwTVTo09qWUUKJxIn_UpUe81OLGrjytFuQK2OYHE-HNy_Tjq/s1600/IMG_5828.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="265" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhd0_-E60meMY4Nff2pO14MViSYikvjqCxYIxJZ2hyphenhyphend-bvHCqHmjg1d2YXFUMsUhrhtI5hAlnhiY7pldghYdOeL35SPspIJgwTVTo09qWUUKJxIn_UpUe81OLGrjytFuQK2OYHE-HNy_Tjq/s400/IMG_5828.jpg" width="400" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="font-size: large;"> </span><br />
<span style="font-size: large;">क्रमशः <a href="http://prabhumahima.blogspot.in/2016/06/2.html" target="_blank">भाग 2... </a></span></div>
Guzarishhttp://www.blogger.com/profile/11205127840621066197noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3773685922890348520.post-14216820236582582562016-02-16T01:32:00.000-08:002016-02-21T07:40:53.615-08:00वैष्णो देवी यात्रा भाग 5. <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><b><a href="http://prabhumahima.blogspot.in/2013/05/blog-post_14.html" target="_blank">भाग 4.</a></b></span></div>
<span style="font-size: large;">दोस्तों चलिए चलते हैं पुनः वैष्णोदेवी यात्रा पर ......अभी अभी बेटे की शादी की है तो हम सब 15 लोग 9 दिसम्बर, 2015 को माँ वैष्णोदेवी के दर्शन के लिए निकल पड़े ,टिकट हमारी पहले से ही बुक थीं ...आजकल ऑनलाइन टिकट की सुविधा है जो आप आसानी से कर सकते हैं या करवा सकते हैं कुछ और बदलावों की ओर आपका ध्यान आकर्षित करते हुए ले चलती हूँ आपको मैया के दरबार में .. </span><br />
<span style="font-size: large;"><b>नई गाड़ियाँ :..</b></span><br />
<span style="font-size: large;">सबसे पहले तो कटरा तक नई गाड़ियों के शुरू होने की आप सबको बधाई | छः गाड़ियों में 3 गाड़ियाँ प्रीमियम हैं जिनमे से एक पठानकोट,दो जम्मू से एक गुहाटी एक्सप्रेस ,एक अहमदाबाद से एक दिल्ली से चलेगी |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">दिल्ली से चलने वाली गाड़ी का नामकरण प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्रमोदी जी ने किया है ..श्री शक्ति एक्सप्रेस... </span><span style="font-size: large;">जिसकी सुविधा से आप परिचित ही हैं फिर भी थोड़ी सी रौशनी डालती हूँ इस पर ..यह उनके लिए है जो पैसे के बदले सुविधा चाहते हैं ... </span><span style="font-size: large;">एसी एक्सप्रेस ट्रेन श्री शक्ति एक्सप्रेस (22461/22462) 14जुलाई, 2014 से शुरू की गई है । यह ट्रेन नई दिल्ली से रोजाना शाम साढ़े पांच बजे चलकर अगले दिन कटरा स्टेशन सुबह 5:10 पर पहुँचती है | वापसी में यह कटरा से रात 10:55 पर चलकर अगले दिन नई दिल्ली स्टेशन पर सुबह 10:45 बजे पहुँचती है। ट्रेन वातानुकूलित है। इसमें एक कोच एसी फर्स्ट, दो एसी सेकंड और नौ कोच एसी थर्ड के है। दोनों दिशाओं में यह अंबाला कैंट, लुधियाना, जालंधर कैंट, पठानकोट, जम्मू तवी और उधमपुर रेलवे स्टेशन पर रुकती है। ट्रेन के अंदर सफाई बहुत बेहतर है ,शौचालयों में बाकायदा साबुन वगेरह की व्यवस्था है ,कूड़ादान रखा गया है अब आप पर निर्भर है की आप उसका प्रयोग कितना करते हैं | खाना स्वादिष्ट है , बिस्तर अच्छे हैं ... </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjsOsfxjX5bsjHsWcTgqK6ODcmAE3x31_Mwj78ZQq0QnJ6i7w2Wcn0xiY6tssB163GtdgRNVbe8rwW0fPIXopukl8Q_XDJTeytK5MvOQKRaez8FS8bBtnke47WYlbvBo67g1YnmMbxLNGpt/s1600/DSC_0096.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjsOsfxjX5bsjHsWcTgqK6ODcmAE3x31_Mwj78ZQq0QnJ6i7w2Wcn0xiY6tssB163GtdgRNVbe8rwW0fPIXopukl8Q_XDJTeytK5MvOQKRaez8FS8bBtnke47WYlbvBo67g1YnmMbxLNGpt/s320/DSC_0096.jpg" width="180" /></a></div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjK9I9suc0Mm0_6_B-AhcOR4XvGulT3fAEnQGuGmVkr302_LQ3bIdLoak3-SJ5eUx0w0Ntw1PiiqB-hf5P0YBQcCScGcnFhHzfAlM-SVurfl_zep5qvocTJMR2rPXEt2NWr-f4Ftmd3XKpC/s1600/DSC_0097.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjK9I9suc0Mm0_6_B-AhcOR4XvGulT3fAEnQGuGmVkr302_LQ3bIdLoak3-SJ5eUx0w0Ntw1PiiqB-hf5P0YBQcCScGcnFhHzfAlM-SVurfl_zep5qvocTJMR2rPXEt2NWr-f4Ftmd3XKpC/s320/DSC_0097.jpg" width="180" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="font-size: large;">स्टेशन पर उतरते ही आप बहुत सुखद और प्रफुल्लित अनुभव करते हैं स्टेशन को देखते ही आपके चेहरे पर एक अलग चमक आ जाती है एक्सेलेटर आपको ऊपर ले जाता है और आप एक खुले प्रांगन में पहुँचते हैं यहाँ भवन के लिए दर्शन की पर्ची भी आप यहीं ले सकते हैं जो बाकायदा आपकी फोटो खींचने के बाद आपके नाम और शहर के साथ क्रम संख्या अंकित पर्ची आपको दी जाती है .... </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgvSOKWssmMQdaPDAk05iZbKa-1sYBIWRET70fiIv3NcCO63W3rnnp65uulzTkwzDkFyd5t7JjhyphenhyphenZpfTb03oNz3ODH-pSdDz7MuWlJrC6WH72lQYhHJr6IcZTDdeBhMHUOF7xRQ6I6NYAer/s1600/IMG-20151214-WA0103.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgvSOKWssmMQdaPDAk05iZbKa-1sYBIWRET70fiIv3NcCO63W3rnnp65uulzTkwzDkFyd5t7JjhyphenhyphenZpfTb03oNz3ODH-pSdDz7MuWlJrC6WH72lQYhHJr6IcZTDdeBhMHUOF7xRQ6I6NYAer/s320/IMG-20151214-WA0103.jpg" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="font-size: large;">बाहर निकलते ही हमने वैन टाइप गाड़ी ली जिसमे 9 लोगों के बैठने की सुविधा थी साथ में एक ऑटो और हम पहुँच गए निहारिका धर्मशाला में जो बस अड्डे के बिलकुल नजदीक है इसकी भी पहले ही बुकिंग हो चुकी थी .. इस समय काफी खाली था क्योंकि सर्दी में भीड़ कम ही रहती है ... बाकी फॉर्मेलिटी पूरी करने के बाद हम ने एक हाल ले लिया था जिसमे ऊपर नीचे बेड लगे थे ..</span><span style="font-size: large;">हाल में बहुत सारे पॉइंट थे यहाँ आप अपने मोबाइल लैपटॉप वगेरह चार्ज कर सकते हैं इसका किराया 160 रुपये प्रति बेड था </span><span style="font-size: large;"> ...पास ही दो शौचालय थे यहाँ सुविधा अनुसार गर्म पानी था ...पूरी सफाई थी ... खाना अंदर ले जाने की मनाही थी ..क्योंकि लोग कमरों में गन्दगी फैला कर चले जाते हैं ....इसमें ही एक भोजनालय भी है .. जिसका खाना इतना बढ़िया नहीं था ..वैसे बाहर ही बहुत सारे ढाबे और रेसटोरेंट हैं जिनका जिक्र मैं पहले वाले भागों में कर चुकी हूँ ......</span><br />
<span style="font-size: large;"> सबने थोड़ी देर विश्राम करने के बाद तैयार होना शुरू किया और हमने अपना अपना जरुरी सामान लिया और चढ़ाई करने के लिए निकल गए .... नाश्ता लेने के बाद प्रवेश तक जाने के लिए ऑटो 50 रुपये में चलते हैं जबकि वापिसी में यही ऑटो 100 रुपये में आते हैं .... वहां पहुँच कर क्योंकि सर्दी काफी थी और बरसात भी शुरू हो गई थी तो सभी ने फिसलन से बचने के लिए एक एक डंडी हाथ में ले ली थी और बरसाती जो वहीँ मिल रही थी सबने पहन रखी थी ऐसे लग रहा था जैसे दरबार पर जाने का यह कोई ड्रेस कोड हो ... हर कोई इसी रंग में नजर आ रहा था ... </span><br />
<span style="font-size: large;">दरबार पर जाने के लिए सामान वगेरह उठाने के लिए पिट्ठू की सुविधा उपलब्ध है <b>लेकिन एक हफ्ते से सभी पिट्ठू, घोड़े वाले हड़ताल पर थे क्योंकि सरकार दरबार तक की बस सेवा शुरू करने जा रही थी जो १ जनवरी से शुरू होनी थी मात्र 500रुपये में जो बुजुर्गों के लिए और गरीब लोगों के लिए एक वरदान साबित होती ... </b>लेकिन क्योंकि इससे पिट्ठू की और घोड़े वालों की मनमानी पर रोक लग जाती इसलिए हड़ताल जारी थी ... कोई कोई घोड़े वाले अपनी यूनियन की आँख बचाकर डबल रेट में सवारी वगेरह लेकर जा रहे थे | मौसम काफी ख़राब था रुक रुक कर बारिश होती रही और हम आगे बढ़ते रहे .... सबसे बड़ी दिक्कत थी सामान लेकर जाने की जो बच्चों ने बहुत ही मुश्किल से वहां तक पहुँचाया था ... <b>इसलिए हमेशा ध्यान रखें जब भी दरबार पर जायें बहुत ही कम सामान लेकर चलें और एक बड़े बैग की बजाये दो तीन छोटे बैग तैयार करें ताकि जरुरत पड़ने पर कोई परेशानी ना हो ... </b></span><br />
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">आध्कुंवारी के पास से ही दरबार तक के लिए बैटरी कार चलती है जो मनमर्जी से चल रही थी ...इसलिए वो भी नहीं मिली थी ... तो इतनी सर्दी झेलते हुए हम बहुत मुश्किल से बहुत लेट दरबार पहुंचे थे लगभग 8 बजे के बाद .... उसके बाद पहले से बुक हाल में हमने विश्राम किया ताकि सुबह मैया की हाजिरी लगा सकें ... .</span><span style="font-size: large;"><b>उठने में थोड़ी देरी हो गई लाइट चली गई थी .. इसीलिए बाद में दिसंबर की सर्दी में बर्फानी पानी से स्नान करना पड़ा, इसलिए जब भी कभी लाइट जाए तो गर्म पानी रहने तक अपने काम निपटा लें .. पहाड़ों की लाइट है जाने कब बिगड़ जाए |वर्ना बाहर धर्मशाला से दूर बहते झरने जैसे शीत पानी से नहाने के लिए तैयार रहें ...</b></span><span style="font-size: large;"> ऐसी सर्दी में जाने का फैसला तो गलत था ही ऊपर से नंगे पैर दरबार के अंदर हाजिरी लगाने जाना ... जैसे कोई परीक्षा ले रही हो माँ ... बाहर निकलते ही जगह जगह अलाव थे जिनके पास बैठकर सर्दी से बचाव किया ... </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhO3ZRQfE_oPhYVdRS7-K3Hej0nRV3hOfj_OiBTSXyj-OYjZgi6SGORdoEQRIqitcPjvUrwYWEJp6Djz2dypsyGALfYoKrgeJx6zvcJXQYw986fhYVyNcwclnJBbRNrldAaCt-MlO8_v_JR/s1600/IMG-20151214-WA0126.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhO3ZRQfE_oPhYVdRS7-K3Hej0nRV3hOfj_OiBTSXyj-OYjZgi6SGORdoEQRIqitcPjvUrwYWEJp6Djz2dypsyGALfYoKrgeJx6zvcJXQYw986fhYVyNcwclnJBbRNrldAaCt-MlO8_v_JR/s320/IMG-20151214-WA0126.jpg" width="320" /></a></div>
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<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj98LdaTxAxJgMzVQLutBo0PI7JxC63a2vR-LLq3liopsp4_WRCeIYpMJWMMtet_IaG2VSQT0ourryr3gFkzxebUELIzW95rGbeAKS03Y8lfmheDisEFSt53iPoRU-Z29P8lHEbZBvZtknu/s1600/DSC_0124.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj98LdaTxAxJgMzVQLutBo0PI7JxC63a2vR-LLq3liopsp4_WRCeIYpMJWMMtet_IaG2VSQT0ourryr3gFkzxebUELIzW95rGbeAKS03Y8lfmheDisEFSt53iPoRU-Z29P8lHEbZBvZtknu/s320/DSC_0124.jpg" width="320" /></a></div>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgyCYkDRiLv03RF9LjRSZRGXpw0JSHFRmYCu-A1feJpUVtonKwM8DkqKhHsksLCPBodbiH_In779CvNp3PvpbxxueJItD_NrhnybS5aeRv8fy3oZiZOqdIBCiFbRxtrbDiJW9QVLbhDEgA0/s1600/IMG-20151214-WA0096.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgyCYkDRiLv03RF9LjRSZRGXpw0JSHFRmYCu-A1feJpUVtonKwM8DkqKhHsksLCPBodbiH_In779CvNp3PvpbxxueJItD_NrhnybS5aeRv8fy3oZiZOqdIBCiFbRxtrbDiJW9QVLbhDEgA0/s320/IMG-20151214-WA0096.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="font-size: large;">अब सागर रत्ना की एक शाखा दरबार पर भी है इसलिए आप सरकारी भोजनालय के साथ साथ इसका आनंद भी उठा सकते हैं ...</span><br />
<span style="font-size: large;">अब खाना वगेरह खाकर .. वापिसी का समय आ गया था ...सोचा बैटरी कार की टिकट लेते हैं इसलिए लाइन में लग गए ... जिसमे बाद में पता चला प्रति व्यक्ति सिर्फ दो टिकट दी जाएँगी ...<b>तो जल्दी ही अपने और लोग लाइन में खड़े हो गए लेकिन कुछ ही टिकट बाँटने के बाद खिड़की बंद कर दी गई ... बाद में पता चला की टिकट पहले से ही अन्दर से बाँट दिए गए थे ... और बाकी बचे टिकट की जगह ड्राईवर खुद ही कुछ जयादा पैसों में सवारी को बिठाता जा रहा था तो जनाब जब तक पता चला तब तक फिर से देर हो गई थी ..</b>अब पैदल चलने के इलावा अपने पास कोई रास्ता नहीं बचा था ... तो पूरा रास्ता हमें खुद ही तय करना पड़ा बिना किसी पिट्ठू ,घोड़े की सहायता के ... जान बची सो लाखों पाए लौट के बुद्दू घर को आये ... </span><br />
<span style="font-size: large;">अगले दिन की हमारी वापिसी थी इसलिए पूरा दिन घूमने में निकला ... फिर जम्मू के लिए एक बस ले ली थी जो पूरी हमारे पास थी .. कटरे से जम्मू के रास्ते में बहुत सुंदर दृश्य देखने को मिलते हैं ... उनका आनंद भी लेते हुए आइये ... जबकि यह कुदरत का दोहन हो रहा है लेकिन आँखों को सुकून भी मिलता है ... </span><br />
<span style="font-size: large;">शुभविदा दोस्तों मिलते हैं एक और रोचक यात्रा वृतांत के साथ ... </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;"> लेखिका :.. सरिता यश भाटिया </span><br />
<br />
<div style="text-align: left;">
<br /></div>
</div>
Guzarishhttp://www.blogger.com/profile/11205127840621066197noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3773685922890348520.post-32150916157466429392016-02-14T16:14:00.000-08:002016-03-19T04:44:18.556-07:00वृन्दावन यात्रा भाग 5.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><a href="http://prabhumahima.blogspot.in/2013/06/4.html" target="_blank">भाग 4.</a></span></div>
<span style="font-size: large;">दोस्तों आज फिर हाजिर हूँ वृन्दावन यात्रा का 5वां भाग लेकर जो मुझे लिखना पड़ा क्योंकि दो तीन वर्ष में कुछ बदलाव आये हैं ..कुछ जल्दी ही होने वाले हैं .. </span><br />
<span style="font-size: large;">आज जब तीसरी बार वृन्दावन जाना हुआ तो रास्ते में हम गुलशन का ढाबा ढूंढते हुए आगे निकल गए इसलिए कोई ठीक ठाक व्यवस्था वाला ढाबा या होटल देखने लगे तो याद आया रास्ते में सागररत्ना आता है तो क्यों ना वही रुका जाये इसलिए हमने वही रुकना उचित समझा और मजेदार पूरी छोले,सांबर डोसा,सांबर इडली वगेरह का आनंद लिया .. </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhn99hic6PDyw1IgM0FNzuZseyH4XNnLo9lrAx1r1qzO7RprZ8bDDLHrPZ-BPmxAZDLWsK1I-6oFwcXdjqXP2D7DY2v2MSV9iqMXoUCz8M-Zso4q4jEEGIpwTgCpMY-xj-_fk8Y9WIIkMA7/s1600/IMG_0608.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhn99hic6PDyw1IgM0FNzuZseyH4XNnLo9lrAx1r1qzO7RprZ8bDDLHrPZ-BPmxAZDLWsK1I-6oFwcXdjqXP2D7DY2v2MSV9iqMXoUCz8M-Zso4q4jEEGIpwTgCpMY-xj-_fk8Y9WIIkMA7/s320/IMG_0608.JPG" width="320" /></a></div>
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<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<img height="212" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh5Cyl9PoE3AxI6UFvSqmIEvcb8qwaKBDJ3xylRnkb0v_XbqtiOwg5JeSYmkPxDs2jKxA9iJ8l8JHqMiwzxFn5h7X8ZemJGCqWyVrSwvFcj6oDNArCD4pMbM032D4j9NNUKgOuq8oT23e01/s320/IMG_0616.JPG" width="320" /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
<span style="font-size: large;">इसके एक घंटे बाद हम वृन्दावन में प्रवेश कर चुके थे ... वृन्दावन में प्रवेश करने से 4.. 5 किलोमीटर पहले ही नए नए मंदिरों का निर्माण कार्य चल रहा है जो काफी भव्य बनाये जा रहे हैं ... </span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="font-size: large;"><b>14 अगस्त,2015 को दोबारा </b> वृन्दावन जाने का मौका मिला था ...दोबारा बाँके बिहारी मंदिर में जाना हुआ ,हाल पहले से भी बदतर थे ...किवाड़ बंद थे जब सायंकाल में मंदिर खुलने का समय हुआ तो उससे पहले सभी दरवाजों के आगे काफी भीड़ लग चुकी थी ..कोई पंक्ति नहीं बनी हुई थी ... मंदिर के कपाट खुलते ही ऐसे लगा जैसे भेड़ों को किसी कमरे में सब तरफ से छोड़ दिया गया हो ...हर द्वार अंदर जाने के लिए खुल गया ... मुझे समझ नहीं आया कि निकास का रास्ता कौनसा था ..सभी रास्ते अन्दर जाने के और सभी रास्ते बाहर जाने के ऐसे उस भीड़ से निकलना कैसे मुमकिन था .. मैंने खुद को बहुत कोसा कि मैं जानती थी कि यही हाल होगा फिर भी मैं यहाँ क्यों आई ... </span><br />
<span style="font-size: large;">उसी दिन जब इस्कान मंदिर गए तो वहां की व्यवस्था भी अत्यधिक भीड़ के कारण चरमरा गई थी .. जूते रखने की कोई जगह नहीं बची थी इसलिए गेट के पास ही बहुत सारे लोग जूते रखकर जा रहे थे तब हम लोगों ने बाहर किसी फल वाले के पास अपने जूते रखे थे ... </span><br />
<span style="font-size: large;"><b>11जनवरी,2016,दिन सोमवार </b>...हमारा फिर से परिवार के साथ वृन्दावन जाना हुआ तो बात शुरू हुई की पहले बांकेबिहारी मंदिर जायेंगे ..मैंने तो साफ़ इनकार कर दिया मैं नहीं जाने वाली .. सबने कहा ठीक हैअगर भीड़ हुई तो अंदर नहीं जाना .. हमने गाड़ी सड़क किनारे रोकी और आगे जाने का रास्ता पूछने लगे तो एक दो लोग सुझाने लगे कि गाड़ी पार्किंग में लगाइए जबकि ज्यादा गाड़ियाँ सड़क किनारे ही खड़ीं थी क्योंकि पार्किंग की कोई उचित व्यवस्था नजर नहीं आ रही थी जबकि वहां सरकारी बोर्ड जरुर लगा हुआ था ...हम सब गाड़ी पार्क करके जब अंदर जाने लागे तो कई पुरुष हाथ में डंडा लिए साथ साथ चल दिए यह कहकर की हम आपको रास्ता दिखायेंगे और बंदरों से आपको बचायेंगे किसी तरह उन लोगों को टालने के बाद हम वहां पहुँच गए ... कपाट खुल चुके थे सबने कहा आज तो भीड़ नही है दर्शन कर लेते हैं ... हम सब अंदर प्रवेश कर गए ... सिस्टम वही था जूते रखने का कोई प्रबंध नहीं था पर भीड़ कम थी तो हम आराम से अंदर जाकर दर्शन कर पाये .. <b>भीड़ कम की एक वजह तो यह थी कि कोई छुट्टी का दिन नहीं था... दूसरा कारण यह था की यात्रियों की असुविधा को देखते हुए सरकार ने इसे अपनी निगरानी में लेने की सोच ली थी जिसके विरोध में बैनर मंदिर के अंदर लगे हुए थे ...</b></span><br />
<span style="font-size: large;"> दूसरा बदलाव जो नजर आया वो था<b> </b>फोटो खींचने से कोई रोक नहीं रहा था हमने भी मंदिर के अंदर की तो नहीं लेकिन कुछ प्रांगन की तस्वीरें जरुर ले ली थी और बाहर भी कुछ व्यवस्थित दुकानें नजर आ रहीं थी ...आप भी देखियेगा ... खाने पीने की कुछ अच्छी दुकानें हैं यहाँ पर आप प्रभु पूजा के बाद पेट पूजा कर सकते हैं ... </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiGAwcuE0XM_5QXIcy73d6_G9xbqqdGrgqX4Y5O6VJ45Ooe0plgxwLh3lk5blax9PtdBJHfbvnijsd3WT7vcsxFi-XXoNqX60_8Tgv5fxLnCMJOO4LGUQ6T8jVc0tjfwoIsGG83vN5fJuNJ/s1600/IMG_20160111_170703.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiGAwcuE0XM_5QXIcy73d6_G9xbqqdGrgqX4Y5O6VJ45Ooe0plgxwLh3lk5blax9PtdBJHfbvnijsd3WT7vcsxFi-XXoNqX60_8Tgv5fxLnCMJOO4LGUQ6T8jVc0tjfwoIsGG83vN5fJuNJ/s320/IMG_20160111_170703.jpg" width="237" /></a></div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj2aa3n5UDj0COLEr41GMCatiGEtDQmPFJcGvnlYmzU51K361ca-ocCZ6lmH3CrJRw48rbYjEV-00QyQq5K6xISj31yXhWXK2LdxBo0VJkmOCVjLn8BQJLSysoS5-KZrO1qOMo4HoQWKhHh/s1600/IMG_20160111_170902.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="239" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj2aa3n5UDj0COLEr41GMCatiGEtDQmPFJcGvnlYmzU51K361ca-ocCZ6lmH3CrJRw48rbYjEV-00QyQq5K6xISj31yXhWXK2LdxBo0VJkmOCVjLn8BQJLSysoS5-KZrO1qOMo4HoQWKhHh/s320/IMG_20160111_170902.jpg" width="320" /></a></div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEggH7IO0ejRUX4-51OtDehIGbrD3au-JZne56s2pKECMGHLBOuVUyJymHKJBPSvP-2cuqkulmXOkVfi-M4s8MV1YJPDIoMI8C2WOrlgOj9J0UI3-hkZaD4T4L_yzNmoccDztpbNa-Uk3gTk/s1600/IMG_20160111_170442.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEggH7IO0ejRUX4-51OtDehIGbrD3au-JZne56s2pKECMGHLBOuVUyJymHKJBPSvP-2cuqkulmXOkVfi-M4s8MV1YJPDIoMI8C2WOrlgOj9J0UI3-hkZaD4T4L_yzNmoccDztpbNa-Uk3gTk/s320/IMG_20160111_170442.jpg" width="237" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">इसके बाद हम दोबारा गाड़ी में बैठकर इस्कान मंदिर पहुँचे यहाँ की आरती देखने के लिए विशेषतया लोग आते हैं जिसमे विदेशी स्वदेशी भक्त मंत्रमुग्ध हो आरती का आंनंद लेते हैं ... यहाँ जूता घर की विशेष व्यवस्था है जो प्रवेश द्वार के निकट ही बनाया गया है जो अंडरग्राउंड है बस इसमें भीड़ के हिसाब से जूते लेने के लिए एक या अधिक लोग होते हैं जो आपके जूते लेकर आपको टोकन देते हैं ...अगर जूते एक से अधिक हैं तो आप थैला लेकर उसमें जूते रख सकते हैं ... </span><br />
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><img src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjJTkBFoObYWOtJMwXKvsyUpijCinGm_ni2-ue3y7FIshe58nIt4hn4tV4cRnPn8335BMxDYKFj5UprSrar-uuB23AIOxFTR67oVYAEfzaS4hw-7Cy9JaPWGCAYMTNWvGeY3aEfd-yHo9cB/s320/IMG_20160111_185017.jpg" /></span>
</div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><img src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi_I9HYiVijkpjqx3lG3vSlq15UuEOt3JMff5POmpQkaQgZt7w4l25ZLKLkZPhgkLc98i_D__ECiPvco1nrc77Ag3o54W0nvCBXadEIZh8CsWbPoY_Kxz9IKVUXFVDtb4d4aHGdA_Tw2Xxz/s320/IMG_20160111_185033.jpg" /></span></div>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">इसके बाद हम प्रेम मंदिर पहुंचे यहाँ काफी भीड़ रहती है और यहाँ की आरती का भी लोग फव्वारे में चित्र देखकर आनंद उठाते हैं .. यहाँ भी बाहर तस्वीर लेने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है जबकि अंदर तस्वीर लेने पर प्रतिबन्ध हैं ... यहाँ एक सुंदर और बड़ा उपाहार गृह है , जिसे राधा कृष्ण उपाहार गृह के नाम से जानते हैं ... इसी उपाहार गृह में शौचालय में अगर आप जाते हैं तो आपको वहां बाहर ही चार पाँच जोड़ी चप्पल राखी गई हैं अगर कोई अपने जूते शौचालय में नहीं ले जाना चाहे तो वो इनका प्रयोग कर सकता है ... </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">आने वाले समय में मंदिरों की स्थिति में सुधार होने की पूरी उम्मीद है क्योंकि प्रशासन ने तो नहीं लेकिन केन्द्रीय सरकार ने इनको सुधारने का बीड़ा उठाया है ,इसी उम्मीद को कायम रखते हुए ... </span><br />
<span style="font-size: large;">चलिए दोस्तों मिलते हैं फिर से जल्दी ही मथुरा यात्रा के साथ राधा कृष्ण की नगरी में तब तक के लिए शुभविदा ... </span><br />
<span style="font-size: large;"> लेखिका ... सरिता यश भाटिया </span></div>
<br /></div>
</div>
Guzarishhttp://www.blogger.com/profile/11205127840621066197noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3773685922890348520.post-69125617199324379262014-10-24T06:16:00.000-07:002014-10-24T06:16:41.032-07:00भाई दूज <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;">भारतीय समाज में परिवार सबसे अहम पहलू है | भारतीय परिवारों के एकता यहां के नैतिक मूल्यों पर टिकी होती है| इन नैतिक मूल्यों को मजबूती देने के लिए वैसे तो हमारे संस्कार ही काफी हैं लेकिन फिर भी इसे अतिरिक्त मजबूती देते हैं हमारे त्यौहार |</span><br />
<span style="font-size: large;"><b>दीपावली त्योहार की शुरुआत व समापन की अवधि पांच दिनों की होती है। पर्व की शुरुआत धनतेरस से होती है और भाई-बहन के आत्मीय रिश्ते को दर्शाता एक त्यौहार है भैया दूज या भ्रातृ द्वितीया या यम द्वितीया या भाई दूज ,जिससे उसका समापन होता है|</b></span><br />
<span style="font-size: large;">ऐसी मान्यता है कि जो भाई आज के दिन यमुना में स्नान करके पूरी श्रद्धा से बहनों के आतिथ्य को स्वीकार करते हैं उन्हें तथा उनकी बहन को यम का भय नहीं रहता।</span><br />
<span style="font-size: large;"> हिन्दू समाज में भाई-बहन के पवित्र रिश्तों का प्रतीक भैया दूज (भाई-टीका) पर्व काफी महत्वपूर्ण माना जाता है| भाई-बहन के पवित्र रिश्तों के प्रतीक के पर्व को हिन्दू समुदाय के सभी वर्ग के लोग और मुस्लिम लोग भी हर्ष उल्लास से मनाते हैं| इस पर्व पर जहां बहनें अपने भाई की दीर्घायु व सुख समृद्धि की कामना करती हैं तो वहीं भाई भी सगुन के रूप में अपनी बहन को उपहार स्वरूप कुछ भेंट देने से नहीं चूकते|</span><br />
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span>
<span style="font-size: large;"><b>महत्व:--</b></span><br />
<span style="font-size: large;">जिनकी बहनें दूर रहती हैं, वे भाई अपनी बहनों से मिलने भाईदूज पर अवश्य जाते हैं और उनसे टीका कराकर उपहार आदि देते हैं। बहनें पीढियों पर चावल के घोल से चौक बनाती हैं। इस चौक पर भाई को बैठा कर बहनें उनके हाथों की पूजा करती हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;">शास्त्रों के अनुसार भैयादूज अथवा यम द्वितीया को मृत्यु के देवता यमराज का पूजन किया जाता है। इस दिन बहनें भाई को अपने घर आमंत्रित कर अथवा सायं उनके घर जाकर उन्हें तिलक करती हैं और भोजन कराती हैं। ब्रजमंडल में इस दिन बहनें भाई के साथ यमुना स्नान करती हैं, जिसका विशेष महत्व बताया गया है। भाई के कल्याण और वृद्धि की इच्छा से बहने इस दिन कुछ अन्य मांगलिक विधान भी करती हैं। यमुना तट पर भाई-बहन का समवेत भोजन कल्याणकारी माना जाता है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>पौराणिक कथा :--</b></span><br />
<span style="font-size: large;">सूर्यदेव की पत्नी छाया की कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ। यमुना अपने भाई यमराज से स्नेहवश निवेदन करती थी कि वे उसके घर आकर भोजन करें। लेकिन यमराज व्यस्त रहने के कारण यमुना की बात को टाल जाते थे।</span><br />
<span style="font-size: large;">कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमुना अपने द्वार पर अचानक यमराज को खड़ा देखकर हर्ष-विभोर हो गई। प्रसन्नचित्त हो भाई का स्वागत-सत्कार किया तथा भोजन करवाया। इससे प्रसन्न होकर यमराज ने बहन से वर माँगने को कहा।</span><br />
<span style="font-size: large;">तब बहन ने भाई से कहा कि आप प्रतिवर्ष इस दिन मेरे यहां भोजन करने आया करेंगे तथा इस दिन जो बहन अपने भाई को टीका करके भोजन खिलाए उसे आपका भय न रहे। यमराज 'तथास्तु' कहकर यमपुरी चले गए। कथा के अनुसार इस दिन भगवान यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने जाते हैं। उन्हीं का अनुकरण करते हुए भारतीय भ्रातृ परम्परा अपनी बहनों से मिलती है और उनका यथेष्ट सम्मान पूजनादि कर उनसे आशीर्वाद रूप तिलक प्राप्त कर कृतकृत्य होती हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;">बहनों को इस दिन नित्य कृत्य से निवृत्त हो अपने भाई के दीर्घ जीवन, कल्याण एवं उत्कर्ष हेतु तथा स्वयं के सौभाग्य के लिए अक्षत (चावल) कुंकुमादि से अष्टदल कमल बनाकर इस व्रत का संकल्प कर मृत्यु के देवता यमराज की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। इसके पश्चात यमभगिनी यमुना, चित्रगुप्त और यमदूतों की पूजा करनी चाहिए। तदंतर भाई के तिलक लगाकर भोजन कराना चाहिए। इस विधि के संपन्न होने तक दोनों को व्रती रहना चाहिए।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjodaA2wp3nWe3XM07eBe03mdQG6VeFiWnIpzI-lJOE-iDRvnou9VLs2_u-T45bPdWZ6f3M5Pg5nsldV1Y_W2FUkfv8JYJvGxZGhOqwmjQh5wD9orhSzLTYcQt5r5HG_HxL9N-hVmDrj4yf/s1600/DSC00453.JPG" imageanchor="1" style="font-size: x-large; margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjodaA2wp3nWe3XM07eBe03mdQG6VeFiWnIpzI-lJOE-iDRvnou9VLs2_u-T45bPdWZ6f3M5Pg5nsldV1Y_W2FUkfv8JYJvGxZGhOqwmjQh5wD9orhSzLTYcQt5r5HG_HxL9N-hVmDrj4yf/s1600/DSC00453.JPG" height="240" width="320" /></a></div>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>पूजन विधि :--</b></span><br />
<span style="font-size: large;">इस पूजा में भाई की हथेली पर बहनें चावल का घोल लगाती हैं उसके ऊपर सिन्दूर लगाकर कद्दू के फूल, पान, सुपारी मुद्रा आदि हाथों पर रखकर धीरे धीरे पानी हाथों पर छोड़ते हुए कुछ मंत्र बोलती हैं जैसे "गंगा पूजे यमुना को यमी पूजे यमराज को, सुभद्रा पूजा कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे मेरे भाई की आयु बढ़े" इसी प्रकार कहीं इस मंत्र के साथ हथेली की पूजा की जाती है " सांप काटे, बाघ काटे, बिच्छू काटे जो काटे सो आज काटे" इस तरह के शब्द इसलिए कहे जाते हैं क्योंकि ऐसी मान्यता है कि आज के दिन अगर भयंकर पशु काट भी ले तो यमराज के दूत भाई के प्राण नहीं ले जाएंगे। कहीं कहीं इस दिन बहनें भाई के सिर पर तिलक लगाकर उनकी आरती उतारती हैं और फिर हथेली में कलावा बांधती हैं। भाई का मुंह मीठा करने के लिए उन्हें माखन मिस्री खिलाती हैं। संध्या के समय बहनें यमराज के नाम से चौमुख दीया जलाकर घर के बाहर रखती हैं। इस समय ऊपर आसमान में चील उड़ता दिखाई दे तो बहुत ही शुभ माना जाता है। इस संदर्भ में मान्यता यह है कि बहनें भाई की आयु के लिए जो दुआ मांग रही हैं उसे यमराज ने कुबूल कर लिया है या चील जाकर यमराज को बहनों का संदेश सुनाएगा।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi1-ZjU81q39Wt_vReekkv1nsf4VyItGsiWw4pGYL8saXpxIfq_nsNAXPwQbsADzKzka6S8_OoDa_wzOQPIiCkZ3QrQU-BbQovfdHTKTajJgQhSwuvOG681MHheQ-UhDp20fCPMoY5x9DVo/s1600/Image+(7).jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi1-ZjU81q39Wt_vReekkv1nsf4VyItGsiWw4pGYL8saXpxIfq_nsNAXPwQbsADzKzka6S8_OoDa_wzOQPIiCkZ3QrQU-BbQovfdHTKTajJgQhSwuvOG681MHheQ-UhDp20fCPMoY5x9DVo/s1600/Image+(7).jpg" height="262" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में इसी दिन 'गोधन' नामक पर्व मनाया जाता है जो भाईदूज की तरह होता है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">वस्तुत: इस त्योहार का मुख्य उद्देश्य है भाई-बहन के मध्य सौमनस्य और सद्भावना का पावन प्रवाह अनवरत प्रवाहित रखना तथा एक-दूसरे के प्रति निष्कपट प्रेम को प्रोत्साहित करना है। इस प्रकार दीपोत्सव-पर्व का धार्मिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय महत्व अनुपम है।</span><br />
<div>
<span style="font-size: large;">विशेष ध्यान देने की बात है कि आज हम सब इस भौतिक चकाचौंध से प्रभावित हो अंधे होकर लक्ष्मी के पीछे ना दौड़ें बल्कि हम उसका उचित प्रयोग कर उसे दान दक्षिणा में लगायें |</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
</div>
</div>
Guzarishhttp://www.blogger.com/profile/11205127840621066197noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3773685922890348520.post-29817075219530598392014-10-23T20:00:00.003-07:002014-10-23T20:00:59.838-07:00विश्वकर्मा कौन से हुए ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;">दीपावली के बाद वाला दिन गोवर्धन पूजा के साथ साथ विश्वकर्मा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है |</span><br />
<span style="font-size: large;">हिन्दू धर्म में विश्वकर्मा को निर्माण एवं सृजन का देवता माना जाता है।विश्वकर्मा हस्तलिपि कलाकार थे। जिन्होंने हमें सभी कलाऔ का ज्ञान दिया।</span><br />
<span style="font-size: large;"><b>विश्वकर्मा कौन से हुए ?</b></span><br />
<span style="font-size: large;">साधन, औजार, युक्ति व निर्माण के देवता विश्वकर्मा जी के विषय में अनेकों भ्रांतियां हैं बहुत से विद्वान विश्वकर्मा इस नाम को एक उपाधि मानते हैं, क्योंकि संस्कृत साहित्य में भी समकालीन कई विश्वकर्माओं का उल्लेख है कालान्तर में विश्वकर्मा एक उपाधि हो गई थी, परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि मूल पुरुष या आदि पुरुष हुआ ही न हो, विद्वानों में मत भेद इस पर भी है कि मूल पुरुष विश्वकर्मा कौन से हुए। कुछ एक विद्वान अंगिरा पुत्र सुधन्वा को आदि विश्वकर्मा मानते हैं तो कुछ भुवन पुत्र भौवन विश्वकर्मा को आदि विश्वकर्मा मानते हैं,</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<div style="text-align: center;">
<img src="http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/f/f3/Vishwakarmaji.png/300px-Vishwakarmaji.png" /></div>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">ऋग्वेद मे विश्वकर्मा सुक्त के नाम से 11 ऋचाऐ लिखी हुई है। जिनके प्रत्येक मन्त्र पर लिखा है ऋषि विश्वकर्मा भौवन देवता आदि। यही सुक्त यजुर्वेद अध्याय 17, सुक्त मन्त्र 16 से 31 तक 16 मन्त्रो मे आया है ऋग्वेद मे विश्वकर्मा शब्द का एक बार इन्द्र व सुर्य का विशेषण बनकर भी प्रयुक्त हुआ है। परवर्ती वेदों मे भी विशेषण रुप मे इसके प्रयोग अज्ञत नही है यह प्रजापति का भी विशेषण बन कर आया है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">प्रजापति विश्वकर्मा विसुचित।</span><br />
<span style="font-size: large;">परन्तु महाभारत के खिल भाग सहित सभी पुराणकार प्रभात पुत्र विश्वकर्मा को आदि विश्वकर्मा मानतें हैं। स्कंद पुराण प्रभात खण्ड के निम्न श्लोक की भांति किंचित पाठ भेद से सभी पुराणों में यह श्लोक मिलता हैः-</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">बृहस्पते भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी।</span><br />
<span style="font-size: large;">प्रभासस्य तस्य भार्या बसूनामष्टमस्य च।</span><br />
<span style="font-size: large;">'विश्वकर्मा सुतस्तस्यशिल्पकर्ता प्रजापतिः।। 16।।</span><br />
<span style="font-size: large;">अर्थात ..महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र बृहस्पति की बहन भुवना जो ब्रह्मविद्या जानने वाली थी वह अष्टम् वसु महर्षि प्रभास की पत्नी बनी और उससे सम्पूर्ण शिल्प विद्या के ज्ञाता प्रजापति विश्वकर्मा का जन्म हुआ। पुराणों में कहीं योगसिद्धा, वरस्त्री नाम भी बृहस्पति की बहन का लिखा है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">शिल्प शास्त्र का कर्ता वह ईश विश्वकर्मा देवताओं का आचार्य है, सम्पूर्ण सिद्धियों का जनक है, वह प्रभास ऋषि का पुत्र है और महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र का भानजा है। अर्थात अंगिरा का दौहितृ (दोहिता) है। अंगिरा कुल से विश्वकर्मा का सम्बन्ध तो सभी विद्वान स्वीकार करते हैं। जिस तरह भारत मे विश्वकर्मा को शिल्पशस्त्र का अविष्कार करने वाला देवता माना जाता हे और सभी कारीगर उनकी पूजा करते हैं। उसी तरह चीन मे लु पान को बदइयों का देवता माना जाता है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">प्राचीन ग्रन्थों के मनन-अनुशीलन से यह विदित होता है कि जहाँ ब्रहा, विष्णु ओर महेश की वन्दना-अर्चना हुई है, वही भनवान विश्वकर्मा को भी स्मरण-परिष्टवन किया गया है। " विश्वकर्मा" शब्द से ही यह अर्थ-व्यंजित होता है</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">"विशवं कृत्स्नं कर्म व्यापारो वा यस्य सः</span><br />
<span style="font-size: large;">अर्थातः जिसकी सम्यक् सृष्टि और कर्म व्यपार है वह विशवकर्मा है। यही विश्वकर्मा प्रभु है, प्रभूत पराक्रम-प्रतिपत्र, विशवरुप विशवात्मा है। वेदो मे</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">विशवतः चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वस्पात</span><br />
<span style="font-size: large;">कहकर इनकी सर्वव्यापकता, सर्वज्ञता, शक्ति-सम्पन्ता और अनन्तता दर्शायी गयी है। हमारा उद्देश्य तो यहाँ विश्वकर्मा जी का परिचय कराना है। माना कई विश्वकर्मा हुए हैं और आगे चलकर विश्वकर्मा के गुणों को धारण करने वाले श्रेष्ठ पुरुष को विश्वकर्मा की उपाधि से अलंकृत किया जाने लगा हो तो यह बात भी मानी जानी चाहिए।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>हमारी भारतीय संस्कृति के अंतर्गत भी शिल्प संकायो, कारखानो, उधोगों मॆ भगवान विश्वकर्मा की महता को प्रगत करते हुए प्रत्येक वर्ग 17 सितम्बर को श्वम दिवस के रुप मे मनाता हे। यह उत्पादन-वृदि ओर राष्टीय समृध्दि के लिए एक संकलप दिवस है। यह जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान नारे को भी श्वम दिवस का संकल्प समाहित किये हुऐ है।</b></span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">यह पर्व सोरवर्ष के कन्या संर्काति मे प्रतिवर्ष 17 सितम्बर विश्वकर्मा-पूजा के रुप मे सरकारी व गैर सरकारी ईजीनियरिग संस्थानो मे बडे ही हषौलास से सम्पन्न होता हे। <b>लोग भ्रम वश इस पर्व को विश्वकर्मा जयंति मानते हे। जो सर्वदा अनुचित हे। भाद्रपद शुक्ला प्रतिपदा कन्या की संक्राति (17 सितम्बर), कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा (गोवर्धन पूजा), भाद्रपद पंचमी (अंगिरा जयन्ति) मई दिवस आदि विश्वकर्मा-पूजा महोत्सव पर्व है। इन पर्वो पर भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा-अर्चना की जाती है।</b></span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">भगवान विशवकर्मा जी की वर्ष मे कई बार पुजा व महोत्सव मनाया जाता है। जैसे भाद्रपद शुक्ला प्रतिपदा इस तिंथि की महिमा का पूर्व विवरण महाभारत मे विशेष रुप से मिलता है। इस दिन भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा अर्चना की जाती है। <b>यह शिलांग और पूर्वी बंगला मे मुख्य तौर पर मनाया जाता है। अन्नकूट (गोवर्धन पूजा) दिपावली से अगले दिन भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा अर्चना (औजार पूजा) की जाती है। मई दिवस, विदेशी त्योहार का प्रतीक है। रुसी क्रांति श्रमिक वर्ग कि जीत का नाम ही मई मास के रुसी श्रम दिवस के रुप मे मनाया जाता है। 5 मई को ऋषि अंगिरा जयन्ति होने से विश्वकर्मा-पुजा महोत्सव मनाया जाता है भगवान विश्वकर्मा जी की जन्म तिथि माघ मास त्रयोदशी शुक्ल पक्ष दिन रविवार का ही साक्षत रुप से सुर्य की ज्योति है। ब्राहाण हेली को यजो से प्रसन हो कर माघ मास मे साक्षात रुप मे भगवान विश्वकर्मा ने दर्शन दिये। श्री विश्वकर्मा जी का वर्णन मदरहने वृध्द वशीष्ट पुराण मे भी है।</b></span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">माघे शुकले त्रयोदश्यां दिवापुष्पे पुनर्वसौ।</span><br />
<span style="font-size: large;">अष्टा र्विशति में जातो विशवकमॉ भवनि च।।</span><br />
<span style="font-size: large;">धर्मशास्त्र भी माघ शुक्ल त्रयोदशी को ही विश्वकर्मा जयंति बता रहे है। अतः अन्य दिवस भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा-अर्चना व महोत्सव दिवस के रुप मे मनाऐ जाते है। ईसी तरह भगवान विश्वकर्मा जी की जयन्ती पर भी विद्वानों में मतभेद है। </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">निसंदेह यह विषय निर्भ्रम नहीं है। हम स्वीकार करते है प्रभास पुत्र विश्वकर्मा, भुवन पुत्र विश्वकर्मा तथा त्वष्ठापुत्र विश्वकर्मा आदि अनेकों विश्वकर्मा हुए हैं। <b>यह अनुसंधान का विषय है। अतः सभी विशवकर्मा मन्दिर व धर्मशालाऔं, विशवकर्मा जी से सम्बंधित संस्थाऔं, संघ व समितिऔं को प्रस्ताव पारित करके भारत सरकार से मांग जानी चाहिए की समपूर्ण संस्कृत साहित्य का अवलोकन किया जाय, भारत की विभिन्न युनीर्वशटीजो मे इस विषय पर शौध की जानी चाहीए, विदेशों में भी खोज की जाय, तथा भारत सरकार विश्वकर्मा वशिंयो का सर्वेक्षण किसी प्रमुख मीडिया एजेन्सी से करवाऐ। श्रुति का वचन है कि विवाह, यज्ञ, गृह प्रवेश आदि कर्यो मे अनिवार्य रुप से विशवकर्मा-पुजा करनी चाहिए</b></span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">स्पष्ट है कि विशवकर्मा पूजा जन कल्याणकारी है। अतएव प्रत्येक प्राणी सृष्टिकर्ता, शिल्प कलाधिपति, तकनीकी ओर विज्ञान के जनक भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा-अर्चना अपनी व राष्टीय उन्नति के लिए अवश्य करनी चाहिए।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">जगदचक विश्वकर्मन्नीश्वराय नम:।।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<b style="font-size: x-large;">विश्वकर्मा पूजा:--</b><br />
<span style="font-size: large;"><b>वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य भगवान विश्वकर्मा की जयंती देशभर में प्रत्येक वर्ष 17 सितंबर को मनाया जाता है| लेकिन कुछ भागों में इसे दीपावली के दूसरे दिन भी मनाया जाता है.</b></span><br />
<span style="font-size: large;">हमारे देश में विश्वकर्मा जयंती बडे़ धूमधाम से मनाई जाती है. इस दिन देश के विभिन्न राज्यों में, खासकर औद्योगिक क्षेत्रों, फैक्ट्रियों, लोहे की दुकान, वाहन शोरूम, सर्विस सेंटर आदि में पूजा होती है. इस मौके पर मशीनों, औजारों की सफाई एवं रंगरोगन किया जाता है. इस दिन ज्यादातर कल-कारखाने बंद रहते हैं और लोग हर्षोल्लास के साथ भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते है.</span><br />
<span style="font-size: large;">उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, दिल्ली आदि राज्यों में भगवान विश्वकर्मा की भव्य मूर्ति स्थापित की जाती है और उनकी आराधना की जाती है|</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<b><span style="font-size: large;">भगवान विश्वकर्मा के </span><span style="font-size: large;">अनेक रूप:--</span></b><br />
<span style="font-size: large;">भगवान विश्वकर्मा के अनेक रूप बताए जाते हैं- दो बाहु वाले, चार बाहु एवं दस बाहु वाले तथा एक मुख, चार मुख एवं पंचमुख वाले. उनके मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ नामक पांच पुत्र हैं. यह भी मान्यता है कि ये पांचों वास्तु शिल्प की अलग-अलग विधाओं में पारंगत थे और उन्होंने कई वस्तुओं का आविष्कार किया. इस प्रसंग में मनु को लोहे से, तो मय को लकड़ी, त्वष्टा को कांसे एवं तांबे, शिल्पी ईंट और दैवज्ञ को सोने-चांदी से जोड़ा जाता है| </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>विश्वकर्मा पर प्रचलित कथा :--</b></span><br />
<span style="font-size: large;">भगवान विश्वकर्मा की महत्ता स्थापित करने वाली एक कथा है. इसके अनुसार वाराणसी में धार्मिक व्यवहार से चलने वाला एक रथकार अपनी पत्नी के साथ रहता था. अपने कार्य में निपुण था, परंतु विभिन्न जगहों पर घूम-घूम कर प्रयत्न करने पर भी भोजन से अधिक धन नहीं प्राप्त कर पाता था. पति की तरह पत्नी भी पुत्र न होने के कारण चिंतित रहती थी. पुत्र प्राप्ति के लिए वे साधु-संतों के यहां जाते थे, लेकिन यह इच्छा उसकी पूरी न हो सकी. तब एक पड़ोसी ब्राह्मण ने रथकार की पत्नी से कहा कि तुम भगवान विश्वकर्मा की शरण में जाओ, तुम्हारी इच्छा पूरी होगी और अमावस्या तिथि को व्रत कर भगवान विश्वकर्मा महात्म्य को सुनो इसके बाद रथकार एवं उसकी पत्नी ने अमावस्या को भगवान विश्वकर्मा की पूजा की, जिससे उसे धन-धान्य और पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और वे सुखी जीवन व्यतीत करने लगे. उत्तर भारत में इस पूजा का काफी महत्व है |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>पूजन विधि:--</b></span><br />
<span style="font-size: large;">भगवान विश्वकर्मा की पूजा और यज्ञ विशेष विधि-विधान से होता है. इसकी विधि यह है कि यज्ञकर्ता पत्नी सहित पूजा स्थान में बैठे. इसके बाद विष्णु भगवान का ध्यान करे. तत्पश्चात् हाथ में पुष्प, अक्षत लेकर निम्न मंत्र पढ़े </span><br />
<span style="font-size: large;">'ओम आधार शक्तपे नम:' और 'ओम कूमयि नम:', 'ओम अनन्तम नम:', 'पृथिव्यै नम:'</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">इसके बाद चारों ओर अक्षत छिड़कें अपने हाथ में रक्षासूत्र बांधे एवं पत्नी को भी बांधे , पुष्प जलपात्र में छोड़े, इसके बाद हृदय में भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करें| दीप जलायें, जल के साथ पुष्प एवं सुपारी लेकर संकल्प करें| शुद्ध भूमि पर अष्टदल कमल बनाए| उस पर जल डालें | इसके बाद पंचपल्लव, सप्त मृन्तिका, सुपारी, दक्षिणा कलश में डालकर कपड़े से कलश की तरफ अक्षत चढ़ाएं | चावल से भरा पात्र समर्पित कर विश्वकर्मा बाबा की मूर्ति स्थापित करें और वरुण देव का आह्वान करें | पुष्प चढ़ाकर कहना चाहिए- ‘हे विश्वकर्माजी, इस मूर्ति में विराजिए और मेरी पूजा स्वीकार कीजिए’| इस प्रकार पूजन के बाद विविध प्रकार के औजारों और यंत्रों आदि की पूजा कर हवन यज्ञ करें |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>श्री विश्वकर्मा प्रार्थना:--</b></span><br />
<span style="font-size: large;">हे विश्वकर्मा ! परम प्रभु !, इतनी विनय सुन लीजिये । दु:ख दुर्गुणो को दूर कर, सुख सद् गुणों को दीजिये ।।</span><br />
<span style="font-size: large;">ऐसी दया हो आप की, सब जन सुखी सम्पन्न हों । कल्याण कारी गुण सभी में, नित नये उत्पन्न हों ।।</span><br />
<span style="font-size: large;">प्रभु विघ्न आये पास ना, ऐसी कृपा हो आपकी । निशिदिन सदा निर्मय रहें, सतांप हो नहि ताप की ।।</span><br />
<span style="font-size: large;">कल्याण होये विश्व का, अस ज्ञान हमको दीजिये । निशि दिन रहें कर्त्तव्य रल, अस शक्ति हमनें कीजियें ।।</span><br />
<span style="font-size: large;">तुम भक्त – वत्सल ईश हो, `भौवन` तुम्हारा नाम है । सत कोटि कोट्न अहर्निशि, सुचि मन सहित प्रणाम है ।।</span><br />
<span style="font-size: large;"> </span><br />
<span style="font-size: large;">हो निर्विकार तथा पितुम हो भक्त वत्सल सर्वथा, हो तुम निरिहत तथा पी उदभुत सृष्टी रचते हो सढा ।</span><br />
<span style="font-size: large;">आकार हीन तथा पितुम साकार सन्तत सिध्द हो, सर्वेश होकर भी सदातुम प्रेम वस प्रसिध्द हो ।</span><br />
<span style="font-size: large;">करता तुही भरता तुही हरता तुही हो शृष्टि के, हे ईश बहुत उपकार तुम ने सर्लदा हम पर किये ।</span><br />
<span style="font-size: large;">उपकार प्रति उपकार मे क्या दें तुम्हे इसके लिए, है क्या हमारा शृष्टि में जो दे तुम्हे इसके लिए ।</span><br />
<span style="font-size: large;">जय दीन बन्धु सोक सिधी दैव दैव दया निधे, चारो पदार्थ दया निधे फल है तुम्हारे दृष्टि के ।</span><br />
<br />
<span style="font-size: large;"><b>क्या है मान्यता ?</b></span><br />
<span style="font-size: large;">कहा जाता है कि प्राचीन काल में जितनी राजधानियां थी, प्राय: सभी विश्वकर्मा की ही बनाई कही जाती हैं. यहां तक कि सतयुग का 'स्वर्ग लोक', त्रेता युग की 'लंका', द्वापर की 'द्वारिका' और कलयुग का 'हस्तिनापुर' आदि विश्वकर्मा द्वारा ही रचित हैं. 'सुदामापुरी' की तत्क्षण रचना के बारे में भी यह कहा जाता है कि उसके निर्माता विश्वकर्मा ही थे. इससे यह आशय लगाया जाता है कि धन-धान्य और सुख-समृद्धि की अभिलाषा रखने वाले पुरुषों को बाबा विश्वकर्मा की पूजा करना आवश्यक और मंगलदायी है|</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>कैसे हुई भगवान विश्वकर्मा की उत्पत्ति ?</b></span><br />
<span style="font-size: large;">एक कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ में सर्वप्रथम 'नारायण' अर्थात साक्षात विष्णु भगवान सागर में शेषशय्या पर प्रकट हुए. उनके नाभि-कमल से चर्तुमुख ब्रह्मा दृष्टिगोचर हो रहे थे. ब्रह्मा के पुत्र 'धर्म' तथा धर्म के पुत्र 'वास्तुदेव' हुए. कहा जाता है कि धर्म की 'वस्तु' नामक स्त्री से उत्पन्न 'वास्तु' सातवें पुत्र थे, जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे. उन्हीं वास्तुदेव की 'अंगिरसी' नामक पत्नी से विश्वकर्मा उत्पन्न हुए. पिता की भांति विश्वकर्मा भी वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य बने|</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>वेद, उपनिषदों में है भगवान विश्वकर्मा के पूजन की गाथा :--</b></span><br />
<span style="font-size: large;">1. हम अपने प्राचीन ग्रंथो उपनिषद एवं पुराण आदि का अवलोकन करें तो पायेगें कि आदि काल से ही विश्वकर्मा शिल्पी अपने विशिष्ट ज्ञान एवं विज्ञान के कारण ही न मात्र मानवों अपितु देवगणों द्वारा भी पूजित और वंदित है|</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">2. माना जाता है कि पुष्पक विमान का निर्माण तथा सभी देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोग में होने वाली वस्तुएं भी इनके द्वारा ही बनाया गया है. कर्ण का कुण्डल, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र, शंकर भगवान का त्रिशूल और यमराज का कालदण्ड इत्यादि वस्तुओं का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया है|</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">3. हमारे धर्मशास्त्रों और ग्रथों में विश्वकर्मा के पांच स्वरुपों और अवतारों का वर्णन है. विराट विश्वकर्मा, धर्मवंशी विश्वकर्मा, अंगिरावंशी विश्वकर्मा, सुधन्वा विश्वकर्म और भृंगुवंशी विश्वकर्मा|</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">4. भगवान विश्वकर्मा के सबसे बडे पुत्र मनु ऋषि थे. इनका विवाह अंगिरा ऋषि की कन्या कंचना के साथ हुआ था. इन्होंने मानव सृष्टि का निर्माण किया है. इनके कुल में अग्निगर्भ, सर्वतोमुख, ब्रम्ह आदि ऋषि उत्पन्न हुये है|</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">5. विश्वकर्मा वैदिक देवता के रूप में मान्य हैं, किंतु उनका पौराणिक स्वरूप अलग प्रतीत होता है. आरंभिक काल से ही विश्वकर्मा के प्रति सम्मान का भाव रहा है. उनको गृहस्थ जैसी संस्था के लिए आवश्यक सुविधाओं का निर्माता और प्रवर्तक माना गया है. वह सृष्टि के प्रथम सूत्रधार कहे गए हैं|</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">6. विष्णुपुराण के पहले अंश में विश्वकर्मा को देवताओं का देव-बढ़ई कहा गया है तथा शिल्पावतार के रूप में सम्मान योग्य बताया गया है. यही मान्यता अनेक पुराणों में आई है, जबकि शिल्प के ग्रंथों में वह सृष्टिकर्ता भी कहे गए हैं. स्कंदपुराण में उन्हें देवायतनों का सृष्टा कहा गया है. कहा जाता है कि वह शिल्प के इतने ज्ञाता थे कि जल पर चल सकने योग्य खड़ाऊ तैयार करने में समर्थ थे|</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">7. विश्व के सबसे पहले तकनीकी ग्रंथ विश्वकर्मीय ग्रंथ ही माने गए हैं. विश्वकर्मीयम ग्रंथ इनमें बहुत प्राचीन माना गया है, जिसमें न केवल वास्तुविद्या बल्कि रथादि वाहन और रत्नों पर विमर्श है. ‘विश्वकर्माप्रकाश’ विश्वकर्मा के मतों का जीवंत ग्रंथ है. विश्वकर्माप्रकाश को वास्तुतंत्र भी कहा जाता है. इसमें मानव और देववास्तु विद्या को गणित के कई सूत्रों के साथ बताया गया है, ये सब प्रामाणिक और प्रासंगिक हैं|</span><br />
<br /></div>
Guzarishhttp://www.blogger.com/profile/11205127840621066197noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3773685922890348520.post-6173293742666172212014-10-23T00:21:00.003-07:002014-10-23T10:28:11.969-07:00गोवर्धन पूजा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन उत्सव मनाया जाता है। इस दिन बलि पूजा, अन्न कूट, मार्गपाली आदि उत्सव भी सम्पन्न होते है। अन्नकूट या गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई।उससे पूर्व ब्रज में भी इंद्र की पूजा की जाती थी। मगर भगवान कृष्ण ने यह तर्क देते हुए कि इंद्र से कोई लाभ नहीं प्राप्त होता जबकि गोवर्धन पर्वत गौधन का संवर्धन एवं संरक्षण करता है, जिससे पर्यावरण भी शुद्ध होता है। इसलिए इंद्र की नहीं गोवर्धन की पूजा की जानी चाहिए।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<div style="text-align: center;">
<img src="https://blogger.googleusercontent.com/img/proxy/AVvXsEiELn89pSaxfHUwX_PTMSMlO-iPStvoZRjvkK1xAMH1UeS1TO6Ujuv_hoXAUdGbrUZsuxYqbMbvVagtgjpV7_kExotXatNxrR0vdPE677QQJjtUTyEmIaTB-XVvsPLNw1vWinK-DleuZ-xqPnJa73kFi8z_1Uio0SQ=" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="font-size: large;"> गोवर्धन हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। दीपावली के दूसरे दिन सायंकाल ब्रज में गोवर्धन पूजा का विशेष आयोजन होता है। भगवान श्रीकृष्ण ने आज ही के दिन इन्द्र का मानमर्दन कर गिरिराज पूजन किया था। इस दिन मन्दिरों में अन्नकूट किया जाता है। सायंकाल गोबर के गोवर्धन बनाकर पूजा की जाती है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>धार्मिक मान्यता :--</b></span><br />
<span style="font-size: large;">वेदों में इस दिन वरुण, इन्द्र, अग्नि आदि देवताओं की पूजा का विधान है। इसी दिन बलि पूजा, गोवर्धन पूजा, मार्गपाली आदि होते हैं। इस दिन गाय-बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर, फूल माला, धूप, चंदन आदि से उनका पूजन किया जाता है। गायों को मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी जाती है। यह ब्रजवासियों का मुख्य त्योहार है। </span><br />
<span style="font-size: large;"><b> अन्नकूट या गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई। उस समय लोग इन्द्र भगवान की पूजा करते थे तथा छप्पन प्रकार के भोजन बनाकर तरह-तरह के पकवान व मिठाइयों का भोग लगाया जाता था। ये पकवान तथा मिठाइयां इतनी मात्रा में होती थीं कि उनका पूरा पहाड़ ही बन जाता था।</b></span><br />
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span>
<span style="font-size: large;"><b>अन्न कूट:--</b></span><br />
<span style="font-size: large;">अन्न कूट एक प्रकार से सामूहिक भोज का आयोजन है जिसमें पूरा परिवार और वंश एक जगह बनाई गई रसोई से भोजन करता है। इस दिन चावल, बाजरा, कढ़ी, साबुत मूंग, चौड़ा तथा सभी सब्जियां एक जगह मिलाकर बनाई जाती हैं। मंदिरों में भी अन्नकूट बनाकर प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।</span><br />
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"> </span><img alt="गोवर्धन पूजा" src="http://mobi.bharatdiscovery.org/w/images/thumb/2/2b/Govardhan-Pooja-1.jpg/200px-Govardhan-Pooja-1.jpg" style="text-align: left;" /><br />
<br /></div>
<span style="font-size: large;"><b>गोवर्धन पूजा का महत्व :--</b></span><br />
<span style="font-size: large;">गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की पूजा की जाती है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>गोवर्धन पूजन विधि :--</b></span><br />
<span style="font-size: large;">दीपावली के बाद कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा पर उत्तर भारत में मनाया जाने वाला गोवर्धन पर्व मनाया जाता है। इसमें हिंदू धर्मावलंबी घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धननाथ जी की अल्पना (तस्वीर या प्रतिमूर्ति) बनाकर उनका पूजन करते है। इसके बाद ब्रज के साक्षात देवता माने जाने वाले गिरिराज भगवान [पर्वत] को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाया जाता है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<img src="https://encrypted-tbn2.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcTHgj-5DI8y3OflgkyZ-byHBLd4Eud9P-E-dI191g3C5169tnUO" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="font-size: large;">गाय बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर फूल माला, धूप, चन्दन आदि से उनका पूजन किया जाता है। गायों को मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी जाती है तथा प्रदक्षिणा की जाती है। गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर जल, मौली, रोली, चावल, फूल दही तथा तेल का दीपक जलाकर पूजा करते है तथा परिक्रमा करते हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को भगवान के निमित्त भोग व नैवेद्य में नित्य के नियमित पदार्थों के अतिरिक्त यथासामर्थ्य अन्न से बने कच्चे-पक्के भोग, फल, फूल; अनेक प्रकार के पदार्थ जिन्हें छप्पन भोग कहते हैं। 'छप्पन भोग' बनाकर भगवान को अर्पण करने का विधान भागवत में बताया गया है और फिर सभी सामग्री अपने परिवार, मित्रों को वितरण कर के प्रसाद ग्रहण करें।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>पूजन व्रत कथा-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">भगवान कृष्ण ने गोकुल वासियों को तर्क दिया कि इंद्र से हमें कोई लाभ नहीं प्राप्त होता। वर्षा करना उनका कार्य है और वह सिर्फ अपना कार्य करते हैं इसलिए इंद्र की नहीं गोवर्धन की पूजा की जानी चाहिए। </span><span style="font-size: large;">इसके बाद इंद्र ने ब्रजवासियों को भारी वर्षा से डराने का प्रयास किया, पर श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठाकर सभी गोकुलवासियों को उनके कोप से बचा लिया। इसके बाद से ही इंद्र भगवान की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का विधान शुरू हो गया है। यह परंपरा आज भी जारी है।</span><br />
<span style="font-size: large;">सब ब्रजवासी सात दिन तक गोवर्धन पर्वत की शरण मे रहें। सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर एक जल की बूँद भी नही पड़ी। ब्रह्मा जी ने इन्द्र को बताया कि पृथ्वी पर श्री कृष्ण ने जन्म ले लिया है, उनसे तुम्हारा वैर लेना उचित नही है। श्रीकृष्ण अवतार की बात जानकर इन्द्रदेव अपनी मूर्खता पर बहुत लज्जित हुए तथा भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा याचना की।</span><br />
<span style="font-size: large;">श्रीकृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन पर्वत को नीचे रखकर ब्रजवासियो को आज्ञा दी कि अब से प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व उल्लास के साथ मनाओ।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>पूजा का महत्व-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">माना जाता है कि भगवान कृष्ण का इंद्र के मान-मर्दन के पीछे उद्देश्य था कि ब्रजवासी गौ-धन एवं पर्यावरण के महत्व को समझें और उनकी रक्षा करें। आज भी हमारे जीवन में गायों का विशेष महत्व है। आज भी गायों के द्वारा दिया जाने वाला दूध हमारे जीवन में बेहद अहम स्थान रखता है।</span><br />
<span style="font-size: large;">यूं तो आज गोवर्धन ब्रज की छोटी पहाड़ी है, किन्तु इसे गिरिराज (अर्थात पर्वतों का राजा) कहा जाता है। इसे यह महत्व या ऐसी संज्ञा इस लिये प्राप्त है क्यूंकि यह भगवान कृष्ण के समय का एक मात्र स्थाई व स्थिर अवशेष है। उस समय की यमुना नदी जहाँ समय-समय पर अपनी धारा बदलती रही है, वहां गोवर्धन अपने मूल स्थान पर ही अविचलित रुप में विद्द्यमान है। इसे भगवान कृष्ण का स्वरुप और उनका प्रतिक भी माना जाता है और इसी रुप में इसकी पूजा भी की जाती है।</span><br />
<span style="font-size: large;">बल्लभ सम्प्रदाय के उपास्य देव श्रीनाथ जी का प्राकट्य स्थल होने के कारण इसकी महत्ता और बढ़ जाती है। गर्ग संहिता में इसके महत्व का कथन करते हुए कहा गया है - गोवर्धन पर्वतों का राजा और हरि का प्यारा है। इसके समान पृथ्वी और स्वर्ग में कोई दूसरा तीर्थ नहीं है। यद्यपि वर्तमान काल में इसका आकार-प्रकार और प्राकृतिक सौंदर्य पूर्व की अपेक्षा क्षीण हो गया है, फिर भी इसका महत्व कदापि कम नहीं हुआ है।</span><br />
<span style="font-size: large;">यदि आज के दिन कोई दुखी है तो वर्ष भर दुखी रहेगा इसलिए मनुष्य को इस दिन प्रसन्न होकर इस उत्सव को सम्पूर्ण भाव से मनाना चाहिए। इस दिन स्नान से पूर्व तेलाभ्यंग अवश्य करना चहिये। इससे आयु, आरोग्य की प्राप्ति होती है और दु:ख दारिद्र का नाश होता है। इस दिन जो शुद्ध भाव से भग्वत चरण में सादर समर्पित, संतुष्ट, प्रसन्न रहता है वह वर्ष पर्यंत सुखी और समृद्ध रहता है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><b>दीप जलाओ आप सब ,तम को कर दो दूर </b></span></div>
<div style="text-align: center;">
<b><span style="font-size: large;"></span></b></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><b>लक्ष्मी का है आगमन , हर द्वारे है नूर |</b></span></div>
<span style="font-size: large;">हमारा भारत त्योहारों का देश है ,यहाँ हर ऋतु के परिवर्तन के साथ कोई ना कोई त्योहार जुड़ा हुआ है | इन त्योहारों के माध्यम से हम सब एक साथ मिलकर अपनी ख़ुशी को प्रकट करते हैं | भारत देश के प्रमुख त्योहार होली,रक्षाबंधन ,दशहरा और दीपावली हैं |इनमें से दीपावली सबसे प्रमुख त्योहार है |</span><br />
<div style="text-align: center;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgKSP9Lq-Y_MUklVRCUKdFx4tTOO0lnG7dJFI-qUyG5SYHaLZuAg5PPYGimWNZBUWB0Q2tAIzzaLeyDZvdjqVDuLt7p5dITrXaBWhdxQJXJke0N5MC52Ml8teng8S5S2p1o6iwBu7A2HpTP/s1600/IMG-20131102-WA0006.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgKSP9Lq-Y_MUklVRCUKdFx4tTOO0lnG7dJFI-qUyG5SYHaLZuAg5PPYGimWNZBUWB0Q2tAIzzaLeyDZvdjqVDuLt7p5dITrXaBWhdxQJXJke0N5MC52Ml8teng8S5S2p1o6iwBu7A2HpTP/s1600/IMG-20131102-WA0006.jpg" height="180" width="320" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
<br /></div>
<span style="font-size: large;"> <b>दीपावली अथवा दीवाली, प्रकाश उत्सव है, जो सत्य की जीत व आध्यात्मिक अज्ञान को दूर करने का प्रतीक है। अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व समाज में उल्लास, भाई-चारे व प्रेम का संदेश फैलाता है। यह पर्व सामूहिक व व्यक्तिगत दोनों तरह से मनाए जाने वाला ऐसा विशिष्ट पर्व है जो धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक विशिष्टता रखता है।</b> </span><br />
<span style="font-size: large;"> <b>शब्द "दीपावली" का शाब्दिक अर्थ है दीपों की पंक्तियां। यह हिंदू कलेन्डर का एक बहुत लोकप्रिय त्यौहार है। यह कार्तिक के 15वें दिन (अक्तूबर/नवम्बर) में मनाया जाता है।त्योहारों का जो वातावरण धनतेरस से प्रारम्भ होता है, वह आज के दिन पूरे चरम पर आता है। पांच-दिवसीय दीवाली अथवा दीपावली का पर्व, जिसका इतिहास दंतकथाओं से भरपूर है, तथा अधिकतर कथाएं हिन्दू पुराणों में मिल जाती हैं... लगभग प्रत्येक कथा का सार बुराई पर अच्छाई की जीत ही है | दीपावली की रात्रि को घरों तथा दुकानों पर भारी संख्या में दीपक, मोमबत्तियां और बल्ब जलाए जाते हैं।</b></span><br />
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span>
<span style="font-size: large;"><b>दीपावली की तैयारियाँ :--</b></span><br />
<span style="font-size: large;"> कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता हैं। लोग दुकानों को भी साफ़ सुथरा का सजाते हैं। बाज़ारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाज़ार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं। यह त्यौहार नए वस्त्रों, दर्शनीय आतिशबाजी और परिवार व मित्रों के साथ विभिन्न प्रकार की मिठाइयों के साथ मनाया जाता है। चूंकि यह प्रकाश व आतिशबाजी, खुशी व आनन्दोत्सव दैव शक्तियों की बुराई पर विजय की सूचक है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>लक्ष्मी पूजन :--</b></span><br />
<span style="font-size: large;">दीपावली पर लक्ष्मीजी का पूजन घरों में ही नहीं, दुकानों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों में भी किया जाता है। कर्मचारियों को पूजन के बाद मिठाई, बर्तन और रुपये आदि भी दिए जाते हैं। दीपावली पर कहीं-कहीं जुआ भी खेला जाता है। इसका प्रधान लक्ष्य वर्ष भर के भाग्य की परीक्षा करना है।</span><br />
<span style="font-size: large;">इस प्रथा के साथ भगवान शंकर तथा पार्वती के जुआ खेलने के प्रसंग को भी जोड़ा जाता है, जिसमें भगवान शंकर पराजित हो गए थे। जहां तक धार्मिक दृष्टि का प्रश्न है, आज पूरे दिन व्रत रखना चाहिए और मध्यरात्रि में लक्ष्मी-पूजन के बाद ही भोजन करना चाहिए। जहां तक व्यवहारिकता का प्रश्न है, तीन देवी-देवों महालक्ष्मी, गणेशजी और सरस्वतीजी के संयुक्त पूजन के बावजूद इस पूजा में त्योहार का उल्लास ही अधिक रहता है। इस दिन प्रदोष काल में पूजन करके जो स्त्री-पुरुष भोजन करते हैं, उनके नेत्र वर्ष भर निर्मल रहते हैं। इसी रात को ऐन्द्रजालिक तथा अन्य तंत्र-मन्त्र वेत्ता श्मशान में मन्त्रों को जगाकर सुदृढ़ करते हैं। कार्तिक मास की अमावस्या के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर की तरंग पर सुख से सोते हैं और लक्ष्मी जी भी दैत्य भय से विमुख होकर कमल के उदर में सुख से सोती हैं। इसलिए मनुष्यों को सुख प्राप्ति का उत्सव विधिपूर्वक करना चाहिएं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>पूजन विधि :--</b></span><br />
<span style="font-size: large;">1.लक्ष्मी जी के पूजन के लिए घर की साफ-सफ़ाई करके दीवार को गेरू से पोतकर लक्ष्मी जी का चित्र बनाया जाता है। लक्ष्मीजी का चित्र भी लगाया जा सकता है।</span><br />
<span style="font-size: large;">2.संध्या के समय भोजन में स्वादिष्ट व्यंजन, केला, पापड़ तथा अनेक प्रकार की मिठाइयाँ होनी चाहिए। लक्ष्मी जी के चित्र के सामने एक चौकी रखकर उस पर मौली बांधनी चाहिए।</span><br />
<span style="font-size: large;">3.इस पर गणेश जी की व लक्ष्मी जी की मिट्टी या चांदी की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए तथा उन्हें तिलक करना चाहिए। चौकी पर छ: चौमुखे व 26 छोटे दीपक रखने चाहिए और तेल-बत्ती डालकर जलाना चाहिए। फिर जल, मौली, चावल, फल, गुड़, अबीर, गुलाल, धूप आदि से विधिवत पूजन करना चाहिए।</span><br />
<span style="font-size: large;">4.पूजा पहले पुरुष करें, बाद में स्त्रियां। पूजन करने के बाद एक-एक दीपक घर के कोनों में जलाकर रखें। एक छोटा तथा एक चौमुखा दीपक रखकर लक्ष्मीजी का पूजन करें।</span><br />
<span style="font-size: large;">5.इस पूजन के पश्चात तिज़ोरी में गणेश जी तथा लक्ष्मी जी की मूर्ति रखकर विधिवत पूजा करें।</span><br />
<span style="font-size: large;">6.अपने व्यापार के स्थान पर बहीखातों की पूजा करें। इसके बाद जितनी श्रद्धा हो घर की बहू-बेटियों को रुपये दें।</span><br />
<span style="font-size: large;">7.लक्ष्मी पूजन रात के समय बारह बजे करना चाहिए।लेकिन आजकल मंदिर वगेरह में जो शुभ समय दिया जाता है उसी में पूजा करने का रिवाज है |</span><br />
<span style="font-size: large;">8.दुकान की गद्दी की भी विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए।</span><br />
<span style="font-size: large;">9.रात को बारह बजे दीपावली पूजन के बाद चूने या गेरू में रूई भिगोकर चक्की, चूल्हा, सिल-बट्टा तथा सूप पर तिलक करना चाहिए।</span><br />
<span style="font-size: large;">10.रात्रि की ब्रह्मबेला अर्थात प्रात:काल चार बजे उठकर स्त्रियां पुराने सूप में कूड़ा रखकर उसे दूर फेंकने के लिए ले जाती हैं तथा सूप पीटकर दरिद्रता भगाती हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;">सूप पीटने का तात्पर्य है- 'आज से लक्ष्मीजी का वास हो गया। दुख दरिद्रता का सर्वनाश हो।' फिर घर आकर स्त्रियां कहती हैं- इस घर से दरिद्र चला गया है। हे लक्ष्मी जी! आप निर्भय होकर यहाँ निवास करिए।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>आतिशबाजी की प्रथा :--</b></span><br />
<span style="font-size: large;"> दीपावली के दिन आतिशबाज़ी की प्रथा के पीछे सम्भवत: यह धारणा है कि दीपावली-अमावस्या से पितरों की रात आरम्भ होती है। कहीं वे मार्ग भटक न जाएं, इसलिए उनके लिए प्रकाश की व्यवस्था इस रूप में की जाती है। इस प्रथा का बंगाल में विशेष प्रचलन है।</span><br />
<span style="font-size: large;">आतिशबाजी में करोड़ों रूपये जलाकर राख कर दिए जाते हैं ,इसलिए हम सबको मिलकर इसका विरोध करना चाहिए |वोही धन किसी और सृजनात्मक कार्य में लगाना चाहिए |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>दीपावली मनाने को लेकर प्रचलित कथायें एवं धारणायें :--</b></span><br />
<span style="font-size: large;">हर प्रांत या क्षेत्र में दीपावली मनाने के कारण एवं तरीके अलग हैं पर सभी जगह कई पीढ़ियों से यह त्योहार चला आ रहा है | </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">*सर्वाधिक प्रचलित कथा के अनुसार देश के उत्तरी भागों में दीपावली का पर्व भगवान श्री रामचंद्र द्वारा राक्षसराज रावण के वध के उपरान्त अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है... महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित धर्मग्रंथ रामायण में उल्लिखित कथा के अनुसार अयोध्या के राजकुमार राम अपनी विमाता कैकेयी की इच्छा तथा पिता दशरथ की आज्ञानुसार 14 वर्ष का वनवास काटकर तथा लंकानरेश रावण का वध कर इसी दिन पत्नी सीता, अनुज लक्ष्मण तथा भक्त हनुमान के साथ अयोध्या लौटे थे, तथा उनके स्वागत में पूरी नगरी को दीपों से सजाया गया था... उसी समय से दीपावली पर दिये जलाकर, पटाखे चलाकर, तथा मिठाइयां बांटकर इस शुभ दिन को मनाने की परम्परा शुरू हुई...</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">*एक अन्य मान्यता के अनुसार दीपावली के दिन ही माता लक्ष्मी दूध के सागर, जिसे 'केसरसागर' अथवा 'क्षीरसागर' भी कहा जाता है, से उत्पन्न हुई थीं... उत्पत्ति के उपरान्त मां लक्ष्मी ने सम्पूर्ण जगत के प्राणियों को सुख-समृद्धि का वरदान दिया, इसीलिए दीपावली पर माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है, तथा मान्यता है कि सम्पूर्ण श्रद्धा से पूजा करने से लक्ष्मी जी भक्तों पर प्रसन्न होकर उन्हें धन-सम्पदा तथा वैभव से परिपूर्ण करती हैं, तथा मनवांछित फल प्रदान करती हैं |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">*इसी दिन उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य का राजतिलक हुआ था। विक्रम संवत का आरम्भ भी इसी दिन से माना जाता है। अत: यह नए वर्ष का प्रथम दिन भी है। आज ही के दिन व्यापारी अपने बही-खाते बदलते हैं तथा लाभ-हानि का ब्यौरा तैयार करते हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">*इसी दिन आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती का निर्वाण हुआ था।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">*इस दिन भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक का स्वामी बनाया था और इन्द्र ने स्वर्ग को सुरक्षित जानकर प्रसन्नतापूर्वक दीपावली मनाई थी।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">*ग्रामीण क्षेत्रों में दीपावली को फसलों की कटाई के पर्व के रूप में भी मनाया जाता है... आमतौर पर इस समय तक अनाज और अन्य फसलों की कटाई का काम पूरा होने के बाद किसानों के हाथ में धन भी आ चुका होता है, इसलिए उस धन को लक्ष्मी माता के चरणों में अर्पित कर त्योहार की खुशियां मनाई जाती हैं |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">*दक्षिण में, दीपावली त्यौहार अक्सर नरकासुर, जो असम का एक शक्तिशाली राजा था, और जिसने हजारों निवासियों को कैद कर लिया था, पर विजय की स्मृति में मनाया जाता है। ये श्री कृष्ण ही थे, जिन्होंने अंत में नरकासुर का दमन किया व कैदियों को स्वतंत्रता दिलाई। इस घटना की स्मृति में प्रायद्वीपीय भारत के लोग सूर्योदय से पहले उठ जाते हैं, व कुमकुम अथवा हल्दी के तेल में मिलाकर नकली रक्त बनाते हैं। राक्षस के प्रतीक के रूप में एक कड़वे फल को अपने पैरों से कुचलकर वे विजयोल्लास के साथ रक्त को अपने मस्तक के अग्रभाग पर लगाते हैं। तब वे धर्म-विधि के साथ तैल स्नान करते हैं, स्वयं पर चन्दन का टीका लगाते हैं। मन्दिरों में पूजा अर्चना के बाद फलों व बहुत सी मिठाइयों के साथ बड़े पैमाने पर परिवार का जलपान होता है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">*एक पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रुप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">*जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दीपावली को ही है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">* सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण हैक्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में 1577 ई. में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था।1619 ई. में दीवाली के दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">*नेपालियों के लिए यह त्योहार इसलिए महान है क्योंकि इस दिन से नेपाल संवत में नया वर्ष शुरू होता है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">*पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ। इन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय 'ओम' कहते हुए समाधि ले ली।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">* दीन-ए-इलाही के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने 40 गज ऊँचे बाँस पर एक बड़ा आकाशदीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था। बादशाह जहाँगीर भी दीपावली धूमधाम से मनाते थे। मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में वे भाग लेते थे। शाह आलम द्वितीय के समय में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था एवं लालकिले में आयोजित कार्यक्रमों में हिन्दू-मुसलमान दोनों भाग लेते थे।</span><br />
<div>
<br /></div>
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<span style="font-size: large;"><b>दीपावली मनाने के लाभ व हानियाँ :--</b></span></div>
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<span style="font-size: large;">लाभ :</span></div>
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<span style="font-size: large;">. घरों की सॉफ सफाई और सफेदी की जाती है.</span></div>
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<span style="font-size: large;">. इससे दोस्तों और रिश्तेदारों में भाईचारा बढ़ता है.</span></div>
<div>
<span style="font-size: large;">. सब छोटे बड़े इस दिन को हर्षोल्लास से मनाते हैं.</span></div>
<div>
<span style="font-size: large;">. बारिश के बाद जो कीड़े मकोडे पैदा होते हैं, उन्हे इस दिन सरसों के तेल को साड कर मारा जाता है और वातावरण को शुद्ध किया जाता है.</span></div>
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<span style="font-size: large;">. प्रार्थना करने से अन्दरूनी शक्ति का विकास होता है|</span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;">नुकसान :</span></div>
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<span style="font-size: large;"> . इस दिन चलाने वाले बॉम्ब या आतिशबाज़ियाँ जानलेवा भी हो सकती हैं, ख़ासकर बच्चों के लिए</span></div>
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<span style="font-size: large;">. इस दिन कई लोग शराब पीते है और जुआ खेलते हैं |</span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"><b>हमारी भावी पीढ़ी नहीं जानती हम दीपावली क्यों मनाते हैं तो हम सबका दायित्व बनता है कि हम उनका मार्गदशन करें ताकि हमारे साथ वो भी अपनी परम्पराओं का सही मूल्यांकन कर सकें | इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि हमारे किसी भी कार्य एवं व्यवहार से किसी को भी दुख न पहुंचे, तभी दीपावली का त्योहार मनाना सार्थक होगा।</b></span></div>
<div>
<span style="font-size: large;"><b> शुभम् शुभम् शुभम् </b></span></div>
</div>
Guzarishhttp://www.blogger.com/profile/11205127840621066197noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3773685922890348520.post-75660938985476394652014-10-20T23:07:00.000-07:002014-10-20T23:07:48.390-07:00नरक चतुर्दशी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;">दीपावली के पाँच दिनों के पर्व का दूसरा दिन, अर्थात् लक्ष्मीपूजा के एक दिन पहले वाला दिन, नरक चतुर्दशी कहलाता है।</span><br />
<span style="font-size: large;">नरक चतुर्दशी कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को कहा जाता है। नरक चतुर्दशी को 'छोटी दीपावली' भी कहते हैं। इसके अतिरिक्त इस चतुर्दशी को 'नरक चौदस', 'रूप चौदस', 'रूप चतुर्दशी', 'नर्क चतुर्दशी' या 'नरका पूजा' के नाम से भी जाना जाता है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<div style="text-align: center;">
<img alt="नर्क चतुर्दशी" src="http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/3/36/Krishna_Narakasura.jpg/215px-Krishna_Narakasura.jpg" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="font-size: large;">यम देवता की पूजा का पर्व :-</span><br />
<span style="font-size: large;">हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्दशी के दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का भी पर्व है। मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल तेल लगाकर नीम की पत्तियाँ या कोई कड़वी पत्तियाँ जल में डालकर स्नान करने से नरक से मुक्ति मिलती है। विधि-विधान से पूजा करने वाले व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो स्वर्ग को प्राप्त करते हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"> शाम को दीपदान की प्रथा है जिसे यमराज के लिए किया जाता है। दीपावली को एक दिन का पर्व कहना न्योचित नहीं होगा। इस पर्व का जो महत्व और महात्मय है उस दृष्टि से भी यह काफी महत्वपूर्ण पर्व व हिन्दुओं का त्यौहार है। यह पांच पर्वों की श्रृंखला के मध्य में रहने वाला त्यौहार है । दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस फिर नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली फिर दीपावली और गोवर्धन पूजा, भाईदूज।</span><br />
<span style="font-size: large;">छोटी दीपावली का पर्व :-</span><br />
<span style="font-size: large;">नरक चतुर्दशी जिसे छोटी दीपावली भी कहते हैं। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले रात के वक्त उसी प्रकार दीए की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात। </span><br />
<span style="font-size: large;">इस रात दीए जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोकमान्यताएं हैं। </span><br />
<span style="font-size: large;">१.</span><br />
<span style="font-size: large;">एक कथा के अनुसार आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी दु्र्दान्त असुर नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। उन समस्त कन्याओं ने अपने मुक्तिदाता श्री कृष्ण को पति रूप में स्वीकार किया। नरकासुर का वध करने के कारण ही श्री कृष्ण को 'नरकारि' के नाम से भी जाना जाता है, 'नरकारि' शब्द नरक तथा अरि के मेल से बना हुआ है, नरक अर्थात नरकासुर और अरि का अर्थ है शत्रु। इसी उपलक्ष्य में नगरवासियों ने नगर को दीपों से प्रकाशित किया और उत्सव मनाया। तभी से नरक चतुर्दशी का त्यौहार मनाया जाने लगा।</span><br />
<span style="font-size: large;">२.</span><br />
<span style="font-size: large;">एक अन्य कथा यह है कि रन्ति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके समझ यमदूत आ खड़े हुए। यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है। पुण्यात्मा राजा की अनुनय भरी वाणी सुनकर यमदूत ने कहा हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया यह उसी पापकर्म का फल है।</span><br />
<span style="font-size: large;"> दूतों की इस प्रकार कहने पर राजा ने यमदूतों से कहा कि मैं आपसे विनती करता हूं कि मुझे वर्ष का और समय दे दे। यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचा और उन्हें सब वृतान्त कहकर उनसे पूछा कि कृपया इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय है। ऋषि बोले हे राजन् आप कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्रह्मणों को भोजन करवा कर उनसे अनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें।</span><br />
<span style="font-size: large;">राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">हनुमान उत्सव का पर्व :-</span><br />
<span style="font-size: large;">शास्त्रों में उल्लेख है कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मंगलवार की अर्द्घ रात्रि में देवी अंजनि के उदर से हनुमान जन्मे थे। देश के कई स्थानों में इस दिन को हनुमान जन्मोत्सव के रूप में भक्ति भाव से मनाया जाता है। </span><br />
<span style="font-size: large;"> इस दिन वाल्मीकि रामायण व सुंदरकांड व हनुमान चालीसा का पाठ कर चूरमा, केला व अमरूद आदि फलों का प्रसाद वितरित किया जाता है। शास्त्रों में हनुमान की राम के प्रति अगाध श्रद्घा व भक्ति को बताया गया है। </span><br />
<span style="font-size: large;">ऐसी ही एक कथा में यह प्रमाणित भी होता है। भगवान श्रीराम लंका पर विजय कर अयोध्या लौटे। जब हनुमान को अयोध्या से बिदाई दी गई तब माता सीता ने उन्हें बहुमूल्य रत्नों से युक्त माला भेंट में दी, पर हनुमान संतुष्ट नहीं हुए व बोले माता इसमें राम-नाम अंकित नहीं है। तब माता सीता ने अपने ललाट का सौभाग्य द्रव्य सिंदूर प्रदान कर कहा कि इससे बड़ी कोई वस्तु उनके पास नहीं है। </span><br />
<span style="font-size: large;">हनुमान को सिंदूर देने के साथ ही माता सीता ने उन्हें अजर-अमर रहने का वरदान भी दिया। यही कारण है कि हनुमान जी को तेल व सिंदूर अति प्रिय है।</span><br />
<div>
<br /></div>
</div>
Guzarishhttp://www.blogger.com/profile/11205127840621066197noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3773685922890348520.post-18344081165813293172014-10-20T10:13:00.000-07:002014-10-20T10:13:51.252-07:00धनतेरस <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;"><b>धन त्रयोदशी :---</b></span><br />
<span style="font-size: large;">इस दिन धन की देवी लक्ष्मी ,धन्वन्तरी ,धन के देवता कुबेर और मृत्यु देवता यमराज की पूजा का विशेष महत्त्व है | </span><span style="font-size: large;">लोक मान्यता के अनुसार धनतेरस एक धन लगाकर तेरह गुणा धन पाने का त्योहार है। इसलिए अमीर गरीब हर वर्ग के व्यक्ति इस दिन कुछ न कुछ खरीदते हैं। </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">लेकिन शास्त्रों के अनुसार धनतेरस के मौके पर लाभ वृद्घि के लिए शुभ मुहूर्त में ही खरीदारी करनी चाहिए। हर दिन कुछ समय ऐसे होते हैं जब खरीदारी या कोई भी शुभ काम करना अच्छा नहीं होता है। इसलिए इस समय का ध्यान रखकर ही धनतेरस पर खरीदारी करें।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<div style="text-align: center;">
<img alt="धनतेरस" src="http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/d/d3/Godofayurveda.jpg/215px-Godofayurveda.jpg" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="font-size: large;">जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थी उसी प्रकार भगवान धनवन्तरि भी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। देवी लक्ष्मी हालांकि की धन देवी हैं परन्तु उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए आपको स्वस्थ्य और लम्बी आयु भी चाहिए यही कारण है दीपावली दो दिन पहले से ही यानी धनतेरस से ही दीपामालाएं सजने लगती हें।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<div style="text-align: center;">
<img height="236" src="http://images.jagran.com/images/dhanterasssss-main-image_2014_10_15_161022.jpg" width="320" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="font-size: large;">कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही धन्वन्तरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। धन्वन्तरी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरी चूँकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन [धातु] खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><b>रीति रिवाज :---</b></span><br />
<span style="font-size: large;">धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है। अगर सम्भव न हो तो कोई बर्तन खरीदें। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ है सुखी है और वही सबसे धनवान है। भगवान धन्वन्तरी जो चिकित्सा के देवता भी हैं उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हें। यह दिन व्यापारियोँ के लिए विशेष महत्त्व रखता है |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>प्रचलित लोक कथा</b>:--</span><br />
<span style="font-size: large;">धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है। इस प्रथा के पीछे एक लोक कथा है, कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। |ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा परंतु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे उसी वक्त उनमें से एक ने यमदेवता से विनती की हे यमराज क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु के लेख से मुक्त हो जाए। दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यमदेवता बोले हे दूत अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं सो सुनो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीप माला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>धन्वंतरि:---</b></span><br />
<span style="font-size: large;">धन्वन्तरि देवताओं के वैद्य हैं और चिकित्सा के देवता माने जाते हैं इसलिए चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही महत्व पूर्ण होता है। धनतेरस के संदर्भ में एक लोक कथा प्रचलित है कि एक बार यमराज ने यमदूतों से पूछा कि प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते समय तुम्हारे मन में कभी दया का भाव नहीं आता क्या। दूतों ने यमदेवता के भय से पहले तो कहा कि वह अपना कर्तव्य निभाते है और उनकी आज्ञा का पालन करते हैं परंतु जब यमदेवता ने दूतों के मन का भय दूर कर दिया तो उन्होंने कहा कि एक बार राजा हेमा के ब्रह्मचारी पुत्र का प्राण लेते समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर हमारा हृदय भी पसीज गया लेकिन विधि के विधान के अनुसार हम चाह कर भी कुछ न कर सके।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">एक दूत ने बातों ही बातों में तब यमराज से प्रश्न किया कि अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय है क्या। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यम देवता ने कहा कि जो प्राणी धनतेरस की शाम यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दीया जलाकर रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है। इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम लोग आँगन मे यम देवता के नाम पर दीप जलाकर रखते हैं। इस दिन लोग यम देवता के नाम पर व्रत भी रखते हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">धनतेरस के दिन दीप जलाककर भगवान धन्वन्तरि की पूजा करें। भगवान धन्वन्तरी से स्वास्थ और सेहतमंद बनाये रखने हेतु प्रार्थना करें। चांदी का कोई बर्तन या लक्ष्मी गणेश अंकित चांदी का सिक्का खरीदें। नया बर्तन खरीदे जिसमें दीपावली की रात भगवान श्री गणेश व देवी लक्ष्मी के लिए भोग चढ़ाएं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>आर्थिक तंगी से बचने के कुछ विशेष उपाय :---</b></span><br />
<span style="font-size: large;">आज हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसे ही कुछ छोटे-छोटे उपाय जिनके बारे में ये मान्यता है कि इन्हें धनतेरस के दिन किसी भी शुभ समय में किया जाए तो घर में स्थिर लक्ष्मी का निवास होता है। </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="color: magenta; font-size: large;">मोर की मिट्टी- </span><br />
<span style="font-size: large;">धनतेरस पर यदि पूजा के समय किसी ऐसे स्थान की मिट्टी जहां मोर नाचा हो लाकर और पूजा करें। इस मिट्टी को लाल कपड़े में बांधकर तिजोरी में रखने से घर पर हमेशा लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><span style="color: magenta;">गाय का भोजन जरूर निकालें</span>- </span><br />
<span style="font-size: large;">धनतेरस और दीपावली के दिन रसोई में जो भी भोजन बना हो, सर्वप्रथम उसमें से गाय के लिए कुछ भाग अलग कर दें। ऐसा करने से घर में स्थिर लक्ष्मी का निवास होगा।</span><br />
<br />
<span style="font-size: large;"><span style="color: magenta;">ऐसे पेड़ की टहनी रखना है शुभ-</span></span><br />
<span style="font-size: large;">धनतेरस के दिन किसी भी शुभ समय में किसी ऐसे पेड़ की टहनी तोड़ कर लाएं, जिस पर चमगादड़ रहते हों। इसे अपने बैठने की जगह के पास रखें, लाभ होगा।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><span style="color: magenta;">मंदिर में लगाएं केले के पौधे- </span></span><br />
<span style="font-size: large;">धनतेरस के दिन किसी भी मंदिर में केले के दो पौधे लगाएं। इन पौधों की समय-समय पर देखभाल करते रहें। इनके बगल में कोई सुगंधित फूल का पौधा लगाएं। केले का पौधा जैसे-जैसे बड़ा होगा, आपके आर्थिक लाभ की राह प्रशस्त होगी।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="color: magenta; font-size: large;">दक्षिणावर्ती शंख में लक्ष्मी मंत्र का जप-</span><br />
<span style="font-size: large;">धनतेरस के दिन लक्ष्मी पूजन के बाद दक्षिणावर्ती शंख में लक्ष्मी मंत्र का जप करते हुए चावल के दाने व लाल गुलाब की पंखुड़ियां डालें। ऐसा करने से समृद्धि का योग बनेगा।</span><br />
<span style="font-size: large;">मंत्र- श्रीं</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><span style="color: magenta;">लक्ष्मी को अर्पित करें लौंग- </span></span><br />
<span style="font-size: large;">धनतेरस के दिन लक्ष्मी पूजन के बाद लक्ष्मी या किसी भी देवी को लौंग अर्पित करें। यह काम दीपावली के दिनों में रोज करें। आर्थिक लाभ होता रहेगा।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><span style="color: magenta;">लघु नारियल का उपाय- </span></span><br />
<span style="font-size: large;">धनतेरस पर पूजा के समय धन, वैभव व समृद्धि पाने के लिए 5 लघु नारियल पूजा के स्थान पर रखें। उन पर केसर का तिलक करें और हर नारियल पर तिलक करते समय 27 बार नीचे लिखे मंत्र का मन ही मन जप करते रहें-</span><br />
<span style="font-size: large;"> ऐं ह्लीं श्रीं क्लीं</span><br />
<div style="text-align: center;">
<img alt="धनतेरस पर ये आसान उपाय करने से, दूर हो सकती है आर्थिक तंगी" height="277" src="http://i10.dainikbhaskar.com/thumbnail/655x588/web2images/religion.bhaskar.com/2014/10/18/0393_2253_untitled-1.jpg" width="320" /></div>
<span style="font-size: large;">- 11 लघु नारियल को मां लक्ष्मी के चरणों में रखकर ऊं महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्नीं च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् मंत्र की 2 माला का जप करें। किसी लाल कपड़े में उन लघु नारियल को लपेट कर तिजोरी में रख दें व दीपावली के दूसरे दिन किसी नदी या तालाब में विसर्जित कर दें। ऐसा करने से लक्ष्मी चिरकाल तक घर में निवास करती है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">- यदि आप चाहते हैं कि घर में कभी धन-धान्य की कमी न रहे और अन्न का भंडार भरा रहे तो 11 लघु नारियल एक पीले कपड़े में बांधकर रसोई घर के पूर्वी कोने में बांध दें।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><span style="color: magenta;">किन्नर को धन करें दान- </span></span><br />
<span style="font-size: large;">धनतेरस के दिन किसी किन्नर को धन दान करें और उसमें से कुछ रुपए वापस अनुरोध करके प्राप्त कर लें। इन रुपयों को सफेद कपड़े में लपेटकर कैश तिजोरी में रख लें, लाभ होगा।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><span style="color: magenta;">सफेद चीजों का करें दान</span>- </span><br />
<span style="font-size: large;">धनतेरस पर सफेद पदार्थों जैसे चावल, कपड़े, आटा आदि का दान करने से आर्थिक लाभ का योग बनता है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><span style="color: magenta;">सूर्यास्त के बाद न करें झाड़ू-पोंछा-</span> </span><br />
<span style="font-size: large;">दीपावली के दिनों में और हो सके तो रोज ही शाम को सूर्यास्त के बाद घर में झाड़ू-पोंछा न करें। ऐसा करने से घर में लक्ष्मी चली जाती है।</span><br />
<br />
<span style="font-size: large;"><span style="color: magenta;">गरीब की आर्थिक सहायता करें</span>- </span><br />
<span style="font-size: large;">धनतेरस पर किसी गरीब, दुखी, असहाय रोगी को आर्थिक सहायता दें। ऐसा करने से आपकी उन्नति होगी।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="color: magenta; font-size: large;">हथेलियों के दर्शन हैं शुभ-</span><br />
<span style="font-size: large;">प्रातःकाल उठकर सर्वप्रथम अपनी हथेलियों के दर्शन की आदत डालें। यह एक शुभ क्रिया है। इसे करने से आपको शुभ ऊर्जा प्राप्त होगी।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
Guzarishhttp://www.blogger.com/profile/11205127840621066197noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3773685922890348520.post-55155155524077046062014-08-27T22:11:00.000-07:002015-05-16T11:55:40.074-07:00शिमला यात्रा वृतांत भाग 3.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><b><a href="http://prabhumahima.blogspot.in/2014/08/2.html" target="_blank">भाग 2.</a></b></span><br />
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>चौथा दिन </b></span></div>
</div>
<span style="font-size: large;"> सुबह लगभग 9.30 बजे हम सब कुछ हल्का फुल्का नाश्ता लेकर होटल छोड़ कर निकल गए | हमने अपना सामान वहीँ छोड़ दिया था ,बाद में ले जाने के लिए | हमारी कालका से शाम 5.40 की गाड़ी थी और अभी हमें वापिस जाने के लिए टैक्सी करनी थी इसलिए हमने जो टैक्सी वाले घूम रहे थे रिज पर उनसे पूछना शुरू किया और एक से बात हो गई कि वो एक बजे हमारे पास पहुँच जायेगा तो इसके बाद हमने खाना खाने की और थोड़ा तिब्बती बाजार घूमने की सोची | हम वहां से जल्दी वापिस आ गए और पता चला टैक्सी वाले को अभी देर लगने वाली थी इसलिए हमने दूसरी टैक्सी लेने की सोची | दो लोग होटल से सामान लेने चले गए | और भूषण जी टैक्सी का पता करने लगे | तिब्बती बाजार के नीचे की तरफ जो टैक्सी स्टैंड था वहां </span><span style="font-size: large;">कोई टैक्सी मिल नहीं रही थी</span><span style="font-size: large;">,फिर दूसरे टैक्सी स्टैंड से बहुत मुश्किल से हमें 2 बजे तक एक टैक्सी मिल पाई ,जो कालका हमें छोड़ने के लिए तैयार हुई | आखिर हम सबने टैक्सी में बैठकर चैन की साँस ली |</span><br />
<span style="font-size: large;"> टैक्सी लगभग 3 से 3.30 घंटे में शिमला से कालका पहुंचा देती है | 2000 रुपये से लेकर 2,500 रुपये तक में बड़ी टैक्सी मिल जाती है हमें सही ड्राईवर और टैक्सी मिल गई थी उसने हमें 3..4 किलोमीटर पहले एक और टैक्सी में शिफ्ट कर दिया ,क्योंकि उसके बाद वो टैक्सी आगे नहीं जा सकती थी शायद कुछ टैक्स का चक्कर था | लगभग 3 घंटे में टैक्सी ने </span><span style="font-size: large;">कालका स्टेशन पर पहुँचा दिया था | </span><br />
<span style="font-size: large;"> हम सब वहां गाड़ी का इंतजार करने लगे और तय समय पर गाड़ी आ गई और हम उसमे सवार हो गए | वोही शताब्दी गाड़ी जिसके चलते ही पहले चाय आ जाती है ,फिर 8 बजे खाना बंटना शुरू हो चूका था और आइस क्रीम | लेकिन इतनी जल्दी सब खाना खाने को तैयार नहीं थे इसलिए उन्होंने खाना वापिस भिजवा दिया ,लेकिन वो खाना पैक करके भी दे रहे थे जो ले जाना चाहे अपना खाना | हम 10.15 बजे तक दिल्ली पहुँच गए थे | वहां से हमने मेट्रो ली और 11 बजे तक घर पहुँच गए |</span><br />
<span style="font-size: large;"> आइये अब जाने शिमला के बारे में कुछ और ज्यादा यहाँ हम नहीं जा पाये .....</span><br />
<span style="font-size: large;"><b>शिमला की खासियत :-</b></span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>संस्कृति</b></span><br />
<span style="font-size: large;">शिमला में विभिन्न त्योहारों को मनाया जाता है। शिमला समर फेस्टिवल, पीक पर्यटन सीजन के दौरान हर साल रिज पर आयोजित किया जाता है। इसका मुख्य आकर्षण सभी देश भर से लोकप्रिय गायकों द्वारा प्रदर्शन शामिल है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>कृषि और उद्योग</b></span><br />
<span style="font-size: large;">शिमला एक कृषि बाज़ार है और यहाँ मद्यनिर्माण, हस्तशिल्प और हथकरघा उद्योग जैसे लघु उद्योग हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>शिक्षा</b></span><br />
<span style="font-size: large;">शिमला में अनेक पुराने आरोग्यगृह, महाविद्यालय और हिमालय प्रदेश विश्वविद्यालय भी है।</span><br />
<span style="font-size: large;">1972-73 में पुनर्गठन के समय शिमला ज़िले (5,000 वर्ग किमी) का विस्तार किया गया था।</span><br />
<span style="font-size: large;">शिमला में 14 आंगनबाड़ी और 63 प्राथमिक विद्यालय है। कई ब्रिटिश युग के स्कूल भी हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;">शिमला में लोकप्रिय स्कूलों में बिशप कॉटन स्कूल, शिमला पब्लिक स्कूल, सेंट एडवर्ड स्कूल, तारा हॉल, डीएवी स्कूल, डीएवी न्यू शिमला, दयानंद पब्लिक स्कूल, ऑकलैंड स्कूल, लालपानी स्कूल प्रमुख हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;">केन्द्रीय विद्यालय, शिमला के बेहतरीन स्कूलों में से एक है। पहले यह हरकोर्ट बटलर स्कूल के नाम से जाना जाता था।</span><br />
<span style="font-size: large;"></span><br />
<span style="font-size: large;">शिमला में मेडिकल संस्थानों में इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज और दंत चिकित्सा महाविद्यालय हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>दर्शनीय स्थल :---</b></span><br />
<span style="font-size: large;">शिमला में और उसके आसपास बहुत सारे दर्शनीय स्थल हैं ,जिनका आप पूरा आनंद सर्दिओं में ले सकते हैं |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>रिज</b></span><br />
<span style="font-size: large;">शहर के मध्य में एक बड़ा और खुला स्थान, जहां से पर्वत श्रंखलाओं का सुंदर दृश्य देखा जा सकता है। यहां शिमला की पहचान बन चुका न्यू-गॉथिक वास्तुकला का उदाहरण क्राइस्ट चर्च और न्यू-ट्यूडर पुस्तकालय का भवन दर्शनीय है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span>
<span style="font-size: large;"><b>मॉल</b></span><br />
<span style="font-size: large;">शिमला का मुख्य शॉपिंग सेंटर, जहां रेस्तरां भी हैं। गेयटी थियेटर, जो पुराने ब्रिटिश थियेटर का ही रूप है, अब सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र है। कार्ट रोड से मॉल के लिए हि.प्र.प.वि.नि. की लिफ्ट से भी जाया जा सकता है। रिज के समीप स्थित लक्कड़ बाजार, लकड़ी से बनी वस्तुओं और स्मृति-चिह्नों के लिए प्रसिद्ध है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span>
<span style="font-size: large;"><b>काली बाड़ी मंदिर</b></span><br />
<span style="font-size: large;">यह मंदिर स्कैंडल प्वाइंट से जनरल पोस्ट ऑफिस से की ओर कुछ गज की दूरी पर स्थित है। माना जाता है कि यहां श्यामला देवी की मूर्ति स्थापित है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<b><img alt="शिमला तस्वीरें - काली बारी मंदिर - मंदिर का दृश्य" src="http://www.nativeplanet.com/photos/600x450/2012/12/_13563324670.jpg" /></b><br />
<b><br /></b>
<b><br /></b></div>
<span style="font-size: large;"><b>जाखू मंदिर</b></span><br />
<span style="font-size: large;">(2.5 कि.मी.) 2455 मी. : शिमला की सबसे ऊंची चोटी से शहर का सुंदर नजारा देखा जा सकता है। यहां "भगवान हनुमान" का प्राचीन मंदिर है। </span><br />
<span style="font-size: large;">कैसे पहुँचें </span><br />
<span style="font-size: large;">रिज पर बने चर्च के पास से पैदल मार्ग के अलावा मंदिर तक जाने के लिए पोनी या टैक्सी द्वारा भी पहुंचा जा सकता है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<img src="http://www.divyahimachal.com/wp-content/uploads/2014/05/17as6-3-300x197.jpg" height="210" width="320" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">जाखू मन्दिर ..यहाँ हनुमान जी की विशालकाय प्रतिमा 108 ऊँची स्थापित है हनुमान जी का यह विरत रूप देखते ही बनता है | </span></div>
<span style="font-size: large;">मान्यता</span><br />
<span style="font-size: large;">पौराणिक कथा के अनुसार राम तथा रावण के मध्य हुए युद्ध के दौरान मेघनाद के तीर से भगवान राम के अनुज लक्ष्मण घायल एवं मूर्छित हो गए थे। उस समय सब उपचार निष्फल हो जाने के कारण वैद्यराज सुषेण ने कहा कि अब एक ही उपाय शेष बचा है। हिमालय की संजीवनी बूटी से लक्ष्मण की जान बचायी जा सकती है। इस संकट की घड़ी में रामभक्त हनुमान ने कहा प्रभु मैं संजीवनी लेकर आता हूँ। हनुमानजी हिमालय की और उड़े, रास्ते में उन्होंने नीचे पहाड़ी पर 'याकू' नामक ऋषि को देखा तो वे नीचे पहाड़ी पर उतरे। जिस समय हनुमान पहाड़ी पर उतरे, उस समय पहाड़ी उनका भार सहन न कर सकी। परिणाम स्वरूप पहाड़ी जमीन में धंस गई। मूल पहाड़ी आधी से ज्यादा धरती में समा गई। इस पहाड़ी का नाम 'जाखू' है। यह 'जाखू' नाम ऋषि याकू के नाम पर पड़ा था।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">हनुमान ने ऋषि को नमन कर संजीवनी बूटी के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की तथा ऋषि को वचन दिया कि संजीवनी लेकर आते समय ऋषि के आश्रम पर जरूर आएंगे। हनुमान ने रास्ते में 'कालनेमी' नामक राक्षस द्वारा रास्ता रोकने पर युद्ध करके उसे परास्त किया। इस दौड़धूप तथा समयाभाव के कारण हनुमान ऋषि के आश्रम नहीं जा सके। हनुमान याकू ऋषि को नाराज नहीं करना चाहते थे, इस कारण अचानक प्रकट होकर और अपना विग्रह बनाकर अलोप हो गए। ऋषि याकू ने हनुमान की स्मृति में मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर में जहां हनुमानजी ने अपने चरण रखे थे, उन चरणों को संगमरमर पत्थर से बनवाकर रखा गया है। ऋषि ने वरदान दिया कि बंदरों के देवता हनुमान जब तक यह पहाड़ी है, लोगों द्वारा पूजे जाएंगे।</span><br />
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
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<div style="text-align: center;">
<img height="214" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjejfD-S_vzbzj9_iShKyirMUmjvWkXXy_w0Q-1hTmQzBZv9QesGQwBjoxDfijeuUs_zdg9n6jEyHSu_L6hnHm0PdUEYiqgFil0D2vcXiqemUYM8djUmLcBk1Am4AtjuUkAU7pCRaoHABY/s320/hanuman1.jpg" width="320" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<b><span style="font-size: large;">चैल </span></b><br />
<span style="font-size: large;">चैल कभी पटियाला के महाराजा की गर्मियों की राजधानी होती थी। यह शिमला से 43 किमी दूर है। यहां विश्व में सबसे ऊंचाई पर स्थित क्रिकेट पिच और पोलो ग्राउंड भी है।</span><br />
<span style="font-size: large;">यह जगह लोगों में पिकनिक स्पॉट के रूप में भी काफी लोकप्रिय है। छुट्टी मनाने के लिए आने वाले लोगों के बीच में चैल सेंचुरी काफी प्रसिद्ध है। यहां आप कई जंगली पशुओं को देख सकते हैं। सिद्ध बाबा का मंदिर लोगों के आकर्षण का केंद्र है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">कैसे पहुंचें: चैल तक बस या टैक्सी के जरिए पहुंचा जा सकता है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">कहां ठहरें: चैल में ठहरने का खर्च शिमला में ठहरने की अपेक्षा काफी कम खर्च आएगा। यहां फाइव स्टार होटल तो नहीं मिलेंगे, लेकिन यहां कई अच्छे और सस्ते होटल अवश्य उपलब्ध हैं। यहां आप चार हजार रुपए में आराम से रह सकते हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>नारकंडा</b></span><br />
<span style="font-size: large;">यह शिमला से 64 किमी दूर है। यह जगह गर्मियों में अपने एडवेंचर और ट्रैकिंग के लिए प्रसिद्ध है। नारकंडा में आप फलों के बगीचे देख सकते हैं। सेब के बगीचे आपको यहां हर जगह मिलेंगे।</span><br />
<span style="font-size: large;">कैसे पहुंचे : नारकंडा शिमला से बस या फिर टैक्सी के जरिए पहुंचा सकता है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span>
<span style="font-size: large;"><b>राज्य संग्रहालय</b></span><br />
<span style="font-size: large;">(3 कि.मी.): यहां हिमाचल प्रदेश की प्राचीन ऐतिहासिक वास्तुकला और पेंटिंग्स देखे जा सकते हैं। यह संग्रहालय प्रात: 10 बजे से सायं 5 बजे तक खुलता है तथा सोमवार और राजपत्रित अवकाशों में यह बंद रखा जाता है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>इंडियन इंस्टीट्यूट आफ एडवांस्ड स्टडी</b></span><br />
<span style="font-size: large;">(4 कि.मी.) 1983 मी. : अंग्रेजी पुनर्जागरण काल में बना यह शानदार भवन पूर्व वायसराय का आवास हुआ करता था। इसके लॉन और पेड़ यहां की शोभा और बढ़ा देते हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<b><img alt="Shimla photos, Viceregal Lodge & Botanical Gardens - A lower angled view" src="http://www.nativeplanet.com/photos/600x450/2012/12/_13563388131.jpg" height="240" width="320" /></b></div>
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span>
<span style="font-size: large;"><b>प्रोस्पेक्ट हिल</b></span><br />
<span style="font-size: large;">(5 कि.मी.) 2155 मी. : कामना देवी मंदिर को समर्पित यह हिल शिमला-बिलासपुर मार्ग पर बालुगंज से 15 मिनट की पैदल दूरी पर है। हिल से इस क्षेत्र का विहंगम दृश्य दिखाई देता है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span>
<span style="font-size: large;"><b>समर हिल</b></span><br />
<span style="font-size: large;">(7 कि.मी.) 1983 मी. : शिमला-कालका रेलमार्ग पर एक सुंदर स्थान है। यहां के शांत वातावरण में पेड़ों से घिरे रास्ते हैं। अपनी शिमला यात्रा के दौरान राष्ट्पिता महात्मा गांधी राजकुमारी अमृत कौर के शानदार जार्जियन हाउस में रुके थे। यहां हिमाचल प्रदेश विश्वद्यालय है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span>
<span style="font-size: large;"><b>चैडविक जलप्रपात</b></span><br />
<span style="font-size: large;">(7 कि.मी.) 1586 मी. : घने जंगलों से घिरा यह स्थान समर हिल चौक से लगभग 45 मिनट की पैदल दूरी पर है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span>
<span style="font-size: large;"><b>संकट मोचन</b></span><br />
<span style="font-size: large;">(7 कि.मी.) 1975 मी. : शिमला-कालका सड़क मार्ग पर (रा.राज.-22) पर "भगवान हनुमान" का प्रसिद्ध मंदिर है। यहां से शिमला शहर का सुंदर दृश्य दिखाई देता है। यहां बस/टैक्सी द्वारा पहुंचा जा सकता है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<b><img alt="Shimla photos, Sankat Mochan Temple - Idol of Hanumanji" src="http://www.nativeplanet.com/photos/600x450/2012/12/_13563327311.jpg" height="240" width="320" /></b><br />
<b><br /></b></div>
<span style="font-size: large;"><b>तारादेवी</b></span><br />
<span style="font-size: large;"><b></b></span><br />
<span style="font-size: large;">(11 कि.मी.) 1851 मी. : शिमला-कालका सड़क मार्ग पर (रा.राज.-22) पर यह पवित्र स्थान के लिए रेल, बस और कार सेवा उपलब्ध है। स्टेशन/सड़क से पैदल अथवा जीप/टैक्सी द्वारा यहां पहुंचा जा सकता है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<b><img alt="Shimla photos, Tara Devi Temple - Tara Devi Temple" src="http://www.nativeplanet.com/photos/600x450/2012/12/_13563330781.jpg" height="240" width="320" /></b><br />
<b><br /></b></div>
<span style="font-size: large;"><b>नालदेहरा </b></span><br />
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span>
<span style="font-size: large;">नालदेहरा शिमला-तत्तपानी रोड पर शिमला से करीब 25 किमी दूर 6,706 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। देश का सबसे पुराना और सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित गोल्फ कोर्स यही है। यह प्रसिद्ध पिकनिक स्पॉट है। इसके अलावा यह जंगल यात्रा और हॉर्स राइडिग के लिए भी जाना जाता है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">कैसे पहुंचें : नालदेहरा शिमला से 25 किमी दूर स्थित है। यहां आप शिमला से बस या फिर टैक्सी द्वारा पहुंच सकते हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"></span><br />
<span style="font-size: large;">कहां ठहरें : नालदेहरा शिमला से ज्यादा दूर नहीं है। यहां आपको फाइव स्टार होटल तो नहीं मिलेंगे लेकिन छोटे-छोटे होटल यहां जरूर उपलब्ध हैं, जहां आप ठहर सकते हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<b><img alt="नालदेहरा तस्वीरें,नालदेहरा गोल्फ कोर्स" src="http://www.nativeplanet.com/photos/600x450/2012/06/_13393987000.jpg" height="240" width="320" /></b></div>
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span>
<span style="font-size: large;"><b>कुफरी </b></span><br />
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">कुफरी, 2743 मीटर की ऊंचाई पर स्थित, शिमला से लगभग 18 किमी की दूरी पर एक छोटा सा शहर है। इस जगह का नाम 'कुफ्र' शब्द से पड़ा है, जिसका स्थानीय भाषा में मतलब है 'झील'। इस जगह के साथ जुड़े आकर्षण के कारण यहाँ वर्ष भर पर्यटक आते हैं। महासू पीक, ग्रेट हिमालयन नेचर पार्क, और फागू कुफरी में कुछ प्रमुख पर्यटन स्थलों में से हैं।</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<img src="http://www.aachman.com/cms/gall_content/2013/8/2013_8$largeimg206_Aug_2013_125016582.jpg" height="232" width="320" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">ग्रेट हिमालयन नेचर पार्क पक्षियों और जानवरों की 180 से अधिक प्रजातियों का घर है। फागू , कुफरी से 6 किमी दूरी पर स्थित, शांति प्रेमियों के बीच एक लोकप्रिय गंतव्य है। सुरम्य पर्वत श्रृंखला से घिरा हुआ है, यह गंतव्य एक लोकप्रिय धार्मिक स्थल भी है।</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">आसपास के कुछ मंदिर अपनी लकड़ी की नक्काशी के लिए जाने जाते रहे हैं। यह जगह लंबी पैदल यात्रा, शिविर और ट्रैकिंग जैसे विभिन्न साहसिक गतिविधियों के लिए भी लोकप्रिय है। कुफरी में अपने प्रवास के दौरान साहसिक उत्साही स्कीइंग, टोबोगैनिंग, गो–कार्टिंग, और घोड़े की सवारी की तरह विभिन्न खेलों का आनंद ले सकते हैं।</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<b><span style="font-size: large;"></span>
<span style="font-size: large;">कुछ सावधानियां :--</span></b><br />
<span style="font-size: large;">1.पहाड़ी स्थान पर जाने के लिए काफी चलने के लिए जो सक्षम हो वोही शिमला यात्रा का आनंद उठा सकता है | </span><br />
<span style="font-size: large;">2.टॉय ट्रेन में कभी भी नहीं जाएँ ,अगर जरुरी हो तो कुछ खाने का सामान लेकर चलें |</span><br />
<span style="font-size: large;">3.जाखू मंदिर जाएँ तो कोई भी पर्स बैग वगेरह ना लेकर जाएँ पर छड़ी ले जाना नहीं भूलें |</span><br />
<span style="font-size: large;">4.कुफरी गर्मी या बरसात में कभी नहीं जाएँ जब तक वहां का प्रशासन वहां के रास्ते की सुध नहीं लेता | इसे नेट पर ही निहारें बहुत खूबसूरत लगेगा वर्ना दूर के ढोल सुहावने होते हैं यह जान लें | यहाँ केवल सर्दियों में ही जाएँ तो आपको प्रकृति की गोद का अहसास होगा |</span><br />
<span style="font-size: large;">5.मौसम के अनुसार गर्म कपड़े लेकर जाएँ |</span><br />
<span style="font-size: large;">6.दर्शनीय स्थल सर्दी में ही देखने जायें ,गर्मी में मौसम का आनंद लें बस,आसपास घुमने नहीं जाएँ |</span><br />
<span style="font-size: large;">7.होटल बेशुमार हैं शिमला में ,नेट से थोडा अंदाजा लेकर जाएँ | होटल मॉल रोड या रिज पर लें तो बेहतर रहेगा |</span><br />
<span style="font-size: large;">8.अगर ऑफ़ सीजन में जाएँ तो कम पैसों में दोगुना मजा ले सकते हैं |</span><br />
<span style="font-size: large;">9.अपनी जरुरी दवाइयाँ लेकर जाएँ ,मिल तो सब कुछ जाता है अगर आप बार बार चल सकते हैं तो |</span><br />
<span style="font-size: large;">10.यह प्राकृतिक सम्पदा आपकी अपनी है इसे स्वच्छ रखें |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<img src="http://media2.intoday.in/aajtak/images/stories/072013/shimla_650_071213083608.jpg" height="215" width="320" /><br />
<br />
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>अलविदा दोस्तों मिलते हैं बहुत जल्दी एक और यात्रा वृतांत के साथ तब तक के लिए मस्त रहें और व्यस्त रहें ....नमस्कार ...</b></span></div>
</div>
</div>
Guzarishhttp://www.blogger.com/profile/11205127840621066197noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3773685922890348520.post-2620176392119713372014-08-26T20:59:00.000-07:002014-08-27T22:14:23.126-07:00शिमला यात्रा वृतांत भाग 2.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><b><a href="http://prabhumahima.blogspot.in/2014/08/1.html" target="_blank">भाग 1.</a></b></span></div>
<span style="font-size: large;"><b>दूसरा दिन :--</b></span><br />
<span style="font-size: large;">दूसरे दिन सब आराम से उठकर तैयार हुए , खूब बरसात होने लगी थी इसलिए होटल में ही थोडा नाश्ता ले लिया ,वैसे तो शिमला के आसपास घूमने जाने का प्रोग्राम था लेकिन बारिश के कारण 12 बज चुके थे ,इसलिए सब ने यहीं शिमला में ही घूमने का फैसला किया यहाँ तीन रोड लगभग समान्तर चलती हैं सबसे ऊपर रिज रोड ,फिर नीचे माल रोड और उसके नीचे है नीचा बाजार रोड है | रिज रोड पर लायब्रेरी है और कुछ होटल हैं ,माल रोड पर थाना , नगर निगम दफ्तर है ,फायर स्टेशन है और बहुत सारे होटल ढाबे , दुकानें हैं यह एक खुला बाजार है | </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjhfYZgemrP9lLsYoUhYKwTVXQ9s89ld4DWDlGeMyjSXB1FnmwXruIXzM1ehr4W9lXAxecl8-FveYQvWbeM0Q_kaR1Ut0RB_qCK9hDGrj6dEF8BElMSq7REp88Ii35DeKegpwE9NyfSLW4G/s1600/DSC08200.JPG" imageanchor="1" style="font-size: x-large; margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjhfYZgemrP9lLsYoUhYKwTVXQ9s89ld4DWDlGeMyjSXB1FnmwXruIXzM1ehr4W9lXAxecl8-FveYQvWbeM0Q_kaR1Ut0RB_qCK9hDGrj6dEF8BElMSq7REp88Ii35DeKegpwE9NyfSLW4G/s1600/DSC08200.JPG" height="400" width="300" /></a></div>
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<br /></div>
<div style="text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi33464b1NedEE9Awsw_ZSVx0Xz12v2qKJXQe8dBo3aL15-1Fzo4sz_ptCAVN3Cy6hPge74HWXNQIYKBHzYF3ix5TxUua_1vMOilz2vz8Ef9I8g8xFHMq4tbDjSFTo7b7XNgxUoWR1Lg0AM/s1600/DSC08198.JPG" imageanchor="1" style="font-size: x-large; margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi33464b1NedEE9Awsw_ZSVx0Xz12v2qKJXQe8dBo3aL15-1Fzo4sz_ptCAVN3Cy6hPge74HWXNQIYKBHzYF3ix5TxUua_1vMOilz2vz8Ef9I8g8xFHMq4tbDjSFTo7b7XNgxUoWR1Lg0AM/s1600/DSC08198.JPG" height="240" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6j921d02Fcm3gZEyMW5s563dYIH1ZEa4UZjX38GrTwCQrJBL1FmeBa07OX4Wece1jVmIN9Wq4430ajXrxN-u73bls9AHmFZpk8RLHuQ0BNM2C6VWBAb970aeWLDkuaAOyWVQ0YO5j7W7N/s1600/DSC08206.JPG" imageanchor="1" style="font-size: x-large; margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6j921d02Fcm3gZEyMW5s563dYIH1ZEa4UZjX38GrTwCQrJBL1FmeBa07OX4Wece1jVmIN9Wq4430ajXrxN-u73bls9AHmFZpk8RLHuQ0BNM2C6VWBAb970aeWLDkuaAOyWVQ0YO5j7W7N/s1600/DSC08206.JPG" height="240" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="font-size: large;">इसके ठीक नीचे छोटा बाजार है जो दिल्ली के चांदनी चौंक की तरह तंग बाजार है और ये दुकानों से पटा हुआ है ,यहाँ बाकी दुकानों के इलावा कपडे की,जूतों की और किताबों की बहुत दुकानें हैं ,शौपिंग के लिए यह एक परफेक्ट बाजार है | </span><br />
<span style="font-size: large;">यहाँ शॉपिंग करने के बाद और खाना वगेरह खाने के बाद हम घूमते हुए वापिस होटल पहुँच गए | आराम करने के बाद शाम ढलने के साथ ही हम वापिस पहुंचे चौंक पर यहाँ बिलकुल इंडिया गेट जैसा माहौल रहता है काफी चहल पहल थी बच्चे घुड़सवारी का मजा ले रहे थे ,धुंध धीरे धीरे बढ़ने लगी और मौसम सुहावना होता गया , सब लोग वहां मौसम का मजा ले रहे थे | कोई फोटो के पोज़ ले रहा था कोई कुछ खाने का मजा ले रहे थे | वहां लकड़ी से बने बेंच लगे हुए हैं ,यहाँ जब कोई प्रोग्राम वगेरह होता है तो सब इन पर बैठ सकते हैं | ऐसे ही घूमते फिरते ,खाते पीते सब ने खूब मजे किये | </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"> इसके ठीक पीछे की तरफ है लक्कड़ बाजार ,यहाँ लकड़ी से बना हुआ सामान मिलता है खासकर यह बाजार स्मृति चिन्हों के लिए प्रसिद्ध है यहाँ से आप शिमला के उपहार खरीद कर ले जा सकते हैं भेंट स्वरुप देने के लिए | कुछ कपड़े की भी यहाँ दुकानें हैं शिमला में ज्यादा दुकानें सरदार चलाते हैं क्योंकि यह चंडीगढ़ के पास है |</span><br />
<span style="font-size: large;"> हम लोग खरीदारी करके फिर वापिस होटल पहुँच गए और थोड़ा आराम करने के बाद रात को वापिस निकले भोजन करने के लिए ,यहाँ पर आपके लिए बहुत सारे आप्शन हैं जो खाना चाहें ,जैसा खाना खाना चाहें,एक तरफ ढाबे का खाना है तो एक तरफ अच्छे अच्छे रेसटोरेंट भी हैं ,सागर रत्ना भी यहाँ मौजूद है | बालूजी में खाना खाने के बाद हम वापिस होटल आ गए | </span><br />
<span style="font-size: large;"><b>तीसरा दिन :-</b>-</span><br />
<span style="font-size: large;">आज मौसम बहुत साफ़ था कोई बारिश नहीं और हमने प्रोग्राम बनाया जाखू मंदिर जाने का ,वो भी सुबह सुबह ताकि हम बच्चों के उठने से पहले होकर वापिस आ जाएँ क्योंकि बच्चों का मंदिर जाने का कोई विचार नहीं था | इसलिए हम पांच लोग जाखू मंदिर के लिए निकले |</span><br />
<span style="font-size: large;">जाखू मंदिर जाने के लिए </span><br />
<span style="font-size: large;">1.एक तो आप रिज के पास से रास्ता जाता है वहां से जा सकते हैं जो पैदल चढ़ाई करना चाहते हों ,एक दम सीधी चढ़ाई है इसलिए थोड़ी कठिन है पर दो घंटे में आप चढ़ाई कर सकते हैं |</span><br />
<span style="font-size: large;">2.दूसरा चर्च के पीछे से एक गवर्मेंट की टैक्सी चलती है वहां से जा सकते हैं वो केवल एक ही टैक्सी है जो वहां के स्थानीय लोगों के लिए सरकार द्वारा लगाई गई है उसी में वो कुछ यात्रियों को भी बिठा लेते हैं 10-10 रुपये लेकर ,उसके आते ही लोग झपट पड़ते हैं जो घुस गया वोही जा सकता है |</span><br />
<span style="font-size: large;">3.पोनी द्वारा भी आप चढ़ाई कर सकते हैं |</span><br />
<span style="font-size: large;">4. तीसरा आप किराये की टैक्सी लेकर भी वहां जा सकते हैं जिसका किराया सिर्फ वहीँ जाने के लिए 300 या 400 है ,अगर आप किसी और ट्रिप के साथ उसे लेते हैं तो इसका किराया 200 रुपये लिया जाता है | </span><span style="color: blue; font-size: large;">जाखू मंदिर जाने के लिए रिज के पास से ही रास्ता जाता है यह 2.5 किलोमीटर दूर है ,यहाँ पैदल, पोनी से या टैक्सी से जाया जा सकता है | भगवान हनुमान को समर्पित यह धार्मिक स्थल 'रिज' के निकट स्थित है।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"></span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">जाखू मंदिर, जाखू पहाड़ी पर स्थित है | बर्फीली चोटियों, घाटियों और शिमला शहर का सुंदर और मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है। यहाँ से पर्यटक सूर्योदय और सूर्यास्त के लुभावने दृश्यों का आनंद ले सकते हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"> तो जनाब हमने प्राइवेट टैक्सी लेने की सोची जो की एक किलोमीटर दूर खड़ी थी पहले वहां तक पैदल मार्च करना पड़ा हमें ,वहां पहुँचने के लिए हमें आधा घंटा लग गया </span><br />
<span style="font-size: large;">उसके बाद हम टैक्सी में बैठे ,रास्ता काफी खतरनाक था सीधी चढ़ाई थी सिर्फ 15 मिनट में ही हम पहुँच गए हनुमान जी के जाखू मंदिर | गाड़ी से उतरने से पहले ही हमें ड्राईवर ने हिदायत कर दी की चश्मा उतार कर जेब में रख लें पर्स ,बैग या तो छुपा लें या यहीं गाड़ी में छोड़ कर जायें क्योंकि वहां के बंदर बहुत बदमाश हैं वो सब छीन ले जाते हैं | मंदिर के द्वार पर ही पहुंचे की किसी ने कहा लाठी साथ लेकर चलें बंदर बहुत हैं ,तब लाठी बेचने वाले ने कहा साथ प्रसाद लेना अनिवार्य है | खैर हम चल पड़े बंदरों से बचते बचाते सीड़ियाँ चढ़ते हुए ऊपर खुले मैदान में पहुंचते ही फिर बंदर हमारे पीछे पीछे आ गए क्योंकि मैंने अपना पर्स दुपट्टे के नीचे छुपा रखा था | मेरा दुपट्टा छीनने लगे ,तभी डैडी ने अपनी बेल्ट निकाली तो तब वो थोड़ा दूर भागे | आप पर्स वगेरह कुछ ना लेकर जायें तो बंदर दूर ही रहते हैं |</span><br />
<span style="font-size: large;">तब मंदिर के बाहर ही एक कमरा बना हुआ था जिसमें चप्पल वगेरह अपना सामान रख सकते थे |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi9TGxXyxyv_xnonCRzzZj3G1ZxylhNAifrgg0KshuEb6bsNpSL1JH_Be2iX-flfm6rW1M9fUqjYMDKP-IqF1H_APSNMGwmTNMYjczrr5AyPyD5-JJsds4n_MJcxp0KNEFVypt1TXdvSsT7/s1600/DSC08622.JPG" imageanchor="1" style="font-size: x-large; margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi9TGxXyxyv_xnonCRzzZj3G1ZxylhNAifrgg0KshuEb6bsNpSL1JH_Be2iX-flfm6rW1M9fUqjYMDKP-IqF1H_APSNMGwmTNMYjczrr5AyPyD5-JJsds4n_MJcxp0KNEFVypt1TXdvSsT7/s1600/DSC08622.JPG" height="240" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="font-size: large;">उसके बाद मंदिर में गए यहाँ बाहर एक कर्मचारी वर्दी में तैनात था जो लाठी लिए हुए बंदरों को मंदिर में घुसने से हटा रहा था | मंदिर में जाकर दर्शन कर ,परिकर्मा की| वहां एक बोर्ड के ऊपर लिखा था की जब हनुमान संजीवनी बूटी लेने जा रहे थे तो यहाँ वो थोड़ी देर रुके थे | मंदिर दर्शन के बाद हम वापिस चप्पल पहन बंदरों से बचते बचाते गाड़ी तक पहुंचे | जो 15 मिनट में वापिस हमें ले आई ,उसके बाद फिर वोही आधा घंटा चल कर हम दोबारा होटल में पहुँच गए |</span><br />
<span style="font-size: large;">सभी तब तक तैयार हो चुके थे इसलिए हम सबने आसपास के दर्शनीय स्थलों को देखने का फैसला किया | इसके लिए हम रिज रोड पर आगे निकल गए क्योंकि वहां बहुत टैक्सी वाले दलाल आपको मिल जाते हैं , जिसका पता हमने लिया था उसके पास ही हम पहुँच गए उसके पास तीन चार अलग अलग ट्रिप की लिस्ट थी जिसमें से हमने पहला ट्रिप लिया जिसमें उसने हमें कुफरी,इंदिरा टूरिस्ट पार्क,चीनी बंगलो,फागू वैली ,नाग मंदिर दिखाना था | जिसका रेट 1400 रुपये बताया गया बड़ी गाड़ी का जबकि छोटी गाड़ी का रेट 1000 रुपये था ,वो 1600 रुपये में हमें ले जाने के लिए तैयार हो गया जिसमें हमने एक दूसरे ट्रिप की जगह एम्यूजमेंट पार्क भी शामिल किया था, जिसके 200 रुपये उसने फालतू लिए थे |</span><br />
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><b>कुफरी </b></span></div>
<span style="font-size: large;"> इसके बाद हम गाड़ी में बैठ निकले कुफरी की तरफ जो शिमला से 16 किलोमीटर दूर है ,रास्ते में एक जगह उसने रोक कर कहा यह ग्रीन वैली है ,हमने वापिसी में दिखाने के लिए कहा ,पहले सीधे कुफरी जाने की इच्छा जताई | कुफरी पहुँच कर उसने हमें उतार दिया गाड़ी पार्क कर दी और कहा यहाँ से घोड़े जाते हैं जो आपको फागू वैली नाग मंदिर महासू पीक एप्पल गार्डन दिखायेंगे | वहां से हमने घोड़े किये जिसका रेट तह था 380 रुपये प्रति सवारी ,घोड़े वाले ने जाने से पहले ही आगाह किया... पहुँचने में थोड़ा समय लगेगा आप लघुशंका से निवृत हो लें यहाँ पर भी उसकी सेटिंग थी ,अंदर गंदे से शौचालय में जाने के लिए 5 रुपये लिए गए |</span><br />
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="font-size: large;"> अब चले हम घोड़ों पर होकर सवार फागू वैली के लिए |हम आठ लोगों के साथ सिर्फ दो घोड़ों के रखवाले थे और रास्ता इतना गन्दा ,ऊँचा नीचा ,गहरे खड्डे और कहीं कहीं घुटनों घुटनों तक दलदल | जिसमें से सब राम राम करते ही निकल रहे थे | बचते बचाते हुए,घोड़ेवाले के निर्देशों का पालन करते हुए ...जैसे चढ़ाई के वक्त वो बोलता आगे झुको और पैर पीछे उतराई के वक्त वो बोलता पीछे को झुको और पैर आगे रखो ...</span><br />
<span style="font-size: large;">आखिर पहुंचे हम सब फागू वैली यहाँ घोड़े वाले ने उतार दिया और बोला एक घंटे बाद फ़ोन कर दें उसे बुलाने के लिए |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEisPXxMPZDBi8YGBClKkhp7zFjJRnZa8RoV7sJcW3G6pVWMj2QfEFj8zHYdxrW0hCUS04zOViiuw2hO_UKe1PEzSe8IN14P1I2D6X9L_ArQAqcsGDRKJPLrFtabTIYyroXIiMuNd0o3MPBC/s1600/DSC08412.JPG" imageanchor="1" style="font-size: x-large; margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEisPXxMPZDBi8YGBClKkhp7zFjJRnZa8RoV7sJcW3G6pVWMj2QfEFj8zHYdxrW0hCUS04zOViiuw2hO_UKe1PEzSe8IN14P1I2D6X9L_ArQAqcsGDRKJPLrFtabTIYyroXIiMuNd0o3MPBC/s1600/DSC08412.JPG" height="240" width="320" /></a><br />
<br />
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiIoYVx-zE7kRmKOrU9gRFYwYdhGgN3iooAvszY0Xlmeg97NwvD51CFTXwr96m0-9GrG-K_SsjTyJt2wxquJeE4aq1og0QZhNtVy9ZP7aDgrpar3Fx2kcz5k25J6lAnQ30NZxjcsUj2GuBO/s1600/DSC08436.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiIoYVx-zE7kRmKOrU9gRFYwYdhGgN3iooAvszY0Xlmeg97NwvD51CFTXwr96m0-9GrG-K_SsjTyJt2wxquJeE4aq1og0QZhNtVy9ZP7aDgrpar3Fx2kcz5k25J6lAnQ30NZxjcsUj2GuBO/s1600/DSC08436.JPG" height="320" width="240" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="font-size: large;">फागू वैली एक उजड़े हुए खेत के सिवाए कुछ भी नहीं था ,यहाँ दो याक थे जिस पर लोग फोटो खिंचवा रहे थे ,कुछ स्टाल टाइप की दुकानें जिन पर मैग्गी ,पेप्सी वगेरह मिल रही थी | एक दो दुकानों पर शाल स्वेटर भी रखे थे ,क्योंकि बारिश में ऊपर ठण्ड हो जाती होगी | वहां बैठे बैठे सबने मैग्गी वगेरह ले ली थी | फिर सब इधर उधर घूमने लगे ,हम कुछ लोग ऊपर नाग मंदिर चले गए |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjNKGhPmY6l341VWBFB6WZwiFuut3I0L6a5wWO-gyT1WD24bJqg0vwvZFEazGwtY2t7fy0fVRbLZCZGJbEla82RtizKc4nAy9LDvSDdhTnnVpdj-F9rzvMwzuUccb1QyJgsWjlnJxf80sd3/s1600/DSC08487.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjNKGhPmY6l341VWBFB6WZwiFuut3I0L6a5wWO-gyT1WD24bJqg0vwvZFEazGwtY2t7fy0fVRbLZCZGJbEla82RtizKc4nAy9LDvSDdhTnnVpdj-F9rzvMwzuUccb1QyJgsWjlnJxf80sd3/s1600/DSC08487.JPG" height="400" width="357" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="font-size: large;">थोड़ी दूरी पर ही यह मंदिर सामने ही नजर आता है वहां 20..25 सीड़ियाँ हैं यहाँ जाकर हम माथा टेक वापिस आ गए फोटो खींचते खिंचाते हुए ,यहीं साथ ही सेबों के बहुत से पेड़ हैं जिसे एप्पल वेल्ली के नाम से जाना जाता है |यहाँ भी बंदर बहुत नजर आते हैं |</span><br />
<span style="font-size: large;"> यहाँ से हम वापिस लौटे और फिर आकर घोड़े वाले को फ़ोन किया जो 15..20 मिनट में आ गया | फिर से हमें घोड़ों पर चढ़ाया गया पैर फंसाये गए और हिदायतें देते हुए हमें नीचे उतारने लगे घोड़े वाले |घोड़े अपनी मन मर्जी से चलते हुए हमें ढो कर चल ही रहे थे ,जब हम पहुँचने ही वाले थे तभी बेटे अभिषेक का घोड़ा गिर पड़ा और वो पता नही कैसे अपने पैर निकाल कर एक साइड को उछल गया यहाँ घोड़े वाले ने उसे एक दम से पकड़ लिया और वो ओंधे मुंह गिरने से बच गया | बस 5 मिनट बाद ही हम सब भी नीचे पहुँच गए और घोड़ों से उतर गए | </span><br />
<span style="font-size: large;"> <b>यहाँ घोड़ों पर चढ़ना बिलकुल भी सुरक्षित नहीं है इनके चक्कर में ना आयें | एक तो वहां देखने लायक कुछ भी नहीं दूसरा वहां पहुँचने का रास्ता बिल्कुल असुरक्षित है |सर्दिओं में यहाँ बर्फ़बारी देखने लोग आ सकते हैं | </b>इसे देखने के बाद हम दोबारा गाड़ी में बैठ कर पहुँचे चिड़ियाघर देखने ,यहाँ की टिकट 10 रुपये थी ,हमने टिकट ले ली और चले जानवरों से रूबरू होने ..यह काफी बड़ी जगह में फैला हुआ है और जानवर खुले में पता नहीं कहाँ कहाँ छुपे बैठे थे उनके आसपास काफी बड़ी बाड़ लगी हुई थी | वहां ज्यादा जानवर नहीं हैं | </span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjrmaApvkweGpGz4VqQP9wchJ7OFD-aeYAhi9HWzun7xyHt29n30ug4jvkMuDwcz-_h_PGqJJSMwF680YfsL3Y_Yr7fStQ4olMMTvqQjB4jpRVFWEbOfqsH8AnV9CAiOHlxo9QSTt8RoJUP/s1600/DSC08544.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjrmaApvkweGpGz4VqQP9wchJ7OFD-aeYAhi9HWzun7xyHt29n30ug4jvkMuDwcz-_h_PGqJJSMwF680YfsL3Y_Yr7fStQ4olMMTvqQjB4jpRVFWEbOfqsH8AnV9CAiOHlxo9QSTt8RoJUP/s1600/DSC08544.JPG" height="240" width="320" /></a></div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgD9-n-RyGyqbOnJcnuXWPxWy1BfkDv3Y3nubh38nGm86FJ3wOATxklBcA93nkcPoUwNd__16jURGs5_RFdvgJ5vpggsumbtSbncJBgALggYBrBU-SG_o3-zsxc-GZb5tC1DaSEUH9eIUg-/s1600/DSC08548.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgD9-n-RyGyqbOnJcnuXWPxWy1BfkDv3Y3nubh38nGm86FJ3wOATxklBcA93nkcPoUwNd__16jURGs5_RFdvgJ5vpggsumbtSbncJBgALggYBrBU-SG_o3-zsxc-GZb5tC1DaSEUH9eIUg-/s1600/DSC08548.JPG" height="240" width="320" /></a></div>
<br />
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="font-size: large;">इसे देखने के बाद हम वापिस आ गए क्योंकि चीनी बंगले में कुछ देखने लायक था नहीं सिर्फ एक पुराना बंगला है जिसमे अब रेस्तौरेंट बना दिया गया है | यहाँ खाने को भी ख़ास कुछ नहीं मिलता | </span><br />
<span style="font-size: large;">हम वापिस शिमला की तरफ चल पड़े | रास्ते में ही कुफरी से आते हुए 'हिप हिप हुर्रे' के नाम से एक एम्यूजमेंट पार्क है जिसमें बच्चों के लिए करने को काफी कुछ है ,इसकी प्रवेश टिकट तो 20 रुपये है लेकिन अंदर झूले लेने की या कुछ गेम के पैकज हैं जो 250 रुपये से 450 रुपये प्रति व्यक्ति टिकट है | इसमें एक रेस्तोरेंट भी है जिसमें आप चाय नाश्ता ले सकते हैं या खाना भी खा सकते हैं |यहाँ एक कपड़े की और एक मिठाई की दुकान है यहाँ कई प्रकार के फलों की बर्फी मिलती है | यहाँ सबने खूब मस्ती की ,फिर चाय पकौड़े लिए और बर्फी लेकर उसके बाद दोबारा हम बाहर आकर गाड़ी में बैठ गए |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhWQZ3Z1-fQPi9tlrQY5yphgW3wDn8reDRPQGzqXEQzk4VFOkkiVMoURF8uDYTqRoCDYs3SiBm7qLENRFNioviflzTZcSxdZJfEuM85m3EAZvps3SZyBa4cw2OpDj_PcA5ADm06AsK7SGCz/s1600/IMG_0934.JPG" imageanchor="1" style="font-size: x-large; margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhWQZ3Z1-fQPi9tlrQY5yphgW3wDn8reDRPQGzqXEQzk4VFOkkiVMoURF8uDYTqRoCDYs3SiBm7qLENRFNioviflzTZcSxdZJfEuM85m3EAZvps3SZyBa4cw2OpDj_PcA5ADm06AsK7SGCz/s1600/IMG_0934.JPG" height="239" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjAQ9jboygKessaJLuvgpeNuX5ZAvx0SBAv8bZDRiww3VxcBhbZ0NOZJpCDFhW_mvC2rPtae6LYQmaOtB-DQkvYOp_VZbThfFGPRYIc4ZpcJUdJWqeLWzRbKhJblm3eGzKNV8FuPvNqFFzD/s1600/IMG_0923.JPG" imageanchor="1" style="font-size: x-large; margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjAQ9jboygKessaJLuvgpeNuX5ZAvx0SBAv8bZDRiww3VxcBhbZ0NOZJpCDFhW_mvC2rPtae6LYQmaOtB-DQkvYOp_VZbThfFGPRYIc4ZpcJUdJWqeLWzRbKhJblm3eGzKNV8FuPvNqFFzD/s1600/IMG_0923.JPG" height="320" width="239" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiUHC9CbgMaR1iTTIaZfL4X2-4cc7-WBbppfH0ShMH51R3NNzP7AmuzsHUtt8p6RPQ4pbMmygEGxanfv4TcbZffLF0kHAwjYdA8sXdr9pWMjB5Fjzn39eOKzTfjAbMQ61ANMdNHLSY0QxHw/s1600/IMG_0902.JPG" imageanchor="1" style="font-size: x-large; margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiUHC9CbgMaR1iTTIaZfL4X2-4cc7-WBbppfH0ShMH51R3NNzP7AmuzsHUtt8p6RPQ4pbMmygEGxanfv4TcbZffLF0kHAwjYdA8sXdr9pWMjB5Fjzn39eOKzTfjAbMQ61ANMdNHLSY0QxHw/s1600/IMG_0902.JPG" height="239" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="font-size: large;"> रास्ते में शिमला से कुछ किलोमीटर ही दूर ग्रीन वैल्ली है यहाँ गाड़ी रोकी गई ,वहां सड़क पर ही खड़े होकर आप बस पीछे के हरे भरे पेड़ों की तस्वीर ले सकते हैं इसी को ग्रीन वैल्ली कहते हैं | </span><br />
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg7R-dH-0mmHNz5D5AKPLGgqMAS1kSv9uxZ0Li92imyY06k-TT1uf5JXPFgNWYCY1Z0w0-HmGNn12fhMlrFmQ27eZZvlv-SJVchcC3IeU4kMwXKSK71bs0GOSWEk6PwDZSq17e_spFMFXfv/s1600/IMG_0970.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg7R-dH-0mmHNz5D5AKPLGgqMAS1kSv9uxZ0Li92imyY06k-TT1uf5JXPFgNWYCY1Z0w0-HmGNn12fhMlrFmQ27eZZvlv-SJVchcC3IeU4kMwXKSK71bs0GOSWEk6PwDZSq17e_spFMFXfv/s1600/IMG_0970.JPG" height="320" width="239" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
<br /></div>
<span style="font-size: large;"> इसके बाद हम सब वापिस पहुँचे शिमला के टैक्सी स्टैंड की तरफ जो लक्कड़ बाजार के पास है | वहां टैक्सी वाले ने हमें उतार दिया ,यहाँ से फिर पैदल चल कर आपको जाना पड़ता है ,यहाँ से आगे गाड़ियाँ नहीं जाती हैं | हम वापिस बाजार में घूमते हुए वापिस होटल पहुँचे और कुछ चाय पकौड़े का दौर चला और साथ ही सब पैकिंग वगेरह करने लगे क्योंकि सुबह हमें निकलना था ,थोड़ी देर सबने आराम किया और फिर रात को हम सब खाना खाने के लिए निकले | हमने खाना खाया और वापिस होटल पहुँच गए और बाकी की पैकिंग हमने कर ली और सो गए |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<img alt="Shimla photos, Night view of Shimla" src="http://www.nativeplanet.com/photos/600x450/2012/12/_13563389391.jpg" height="240" width="320" /><br />
<br />
शिमला रात का नजारा </div>
<div style="text-align: center;">
<br />
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b><a href="http://prabhumahima.blogspot.in/2014/08/3.html" target="_blank">शिमला यात्रा वृतांत भाग 3.</a>क्रमशः...</b></span></div>
</div>
</div>
Guzarishhttp://www.blogger.com/profile/11205127840621066197noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3773685922890348520.post-54495105661976321772014-08-25T23:30:00.001-07:002015-05-16T11:54:30.653-07:00शिमला यात्रा वृतांत भाग 1.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">दोस्तों वैसे तो आपने बहुत यात्रा वृतांत पढ़े होंगे लेकिन उनका लाभ कभी नहीं उठाया होगा क्योंकि उसे पढने के बाद एक आम कहानी की तरह पढ़ कर उसे भूल जाते हैं लेकिन मैं अपने यात्रा वृतांत में कोशिश करती हूँ उसमें आई समस्याओं का ,उसमें मिले आनंद का सीधा सीधा अनुभव आप सबसे बाँटने का | </span><br />
<span style="font-size: large;">दिल्ली में गर्मी का मौसम भी सर्दी की तरह ही अपने पूरे शबाब पर होता है फिर साथ में स्कूल की छुट्टियाँ तो भला कौन नहीं जाना चाहेगा अपने मनपसंद पर्वतीय स्थल की यात्रा पर ,वैसे तो दिल्ली वाले सबसे नजदीक मंसूरी में एक दो छुट्टी मिलते ही पहुँच जाते हैं | लेकिन अब गर्मी से थोड़ी राहत पाने के लिए हमने फैसला किया शिमला जाने का | कालका शताब्धि की 8 टिकटे पहले से ही बुक करवा ली गईं थीं |</span><br />
<div style="text-align: center;">
<span style="color: blue; font-size: large;"><b>शिमला </b></span></div>
<span style="color: blue; font-family: sans-serif; font-size: large;"><span style="background-color: white; line-height: 22.399999618530273px;"> </span><span style="line-height: 22.399999618530273px;">शिमला, हिमाचल प्रदेश प्रान्त की राजधानी है। शिमला की खोज अंग्रेजों ने सन 1819 में की।</span></span><span style="color: blue; font-family: sans-serif; font-size: large; line-height: 22.399999618530273px;">1864 में, शिमला को भारत में ब्रिटिश राज की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया गया था। एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल, शिमला को अक्सर ' पहाड़ों की रानी ' के रूप में जाना जाता है। शिमला हिमाचल प्रदेश प्रान्त की राजधानी है| शिमला एक पर्यटक स्थल के रूप में भी मशहूर है।</span><span style="color: blue; font-family: sans-serif; font-size: large;"><span style="line-height: 22.399999618530273px;">शिमला ठंडी जलवायु, सुरम्य प्राकृतिक दृश्यों, हिमाच्छादित पहाड़ी दृश्यों, चीड़ और देवदार के जंगलों और औपनिवेशिक वास्तु के आकर्षक शहरी भूदृश्य के लिये विख्यात है। यहां का नाम देवी श्यामला के नाम पर रखा गया है जो काली का अवतार है। शिमला लगभग 7267 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और यह अर्ध चक्र आकार में बसा हुआ है |</span></span><br />
<span style="color: blue; font-family: sans-serif; font-size: large;"><span style="line-height: 22.399999618530273px;"><br /></span></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<img src="http://pryas.files.wordpress.com/2011/12/img_0121.jpg" height="240" width="320" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="font-size: large;">आखिर वो दिन आ ही गया जिसका बेसब्री से इंतज़ार था यानी शिमला जाने का | तैयारी तो तभी शुरू हो गई थी जब टिकटे बुक हुईं थी और जाने से एक दिन पहले देर रात तक चल ही रही थी ,क्योंकि हमेंने 1 जुलाई को सुबह 7.40 की ट्रेन पकड़नी थीं और घर से स्टेशन पहुँचने में लगभग 45 मिनट लग जाते हैं इसलिए सुबह 4.30 बजे ही उठकर तैयार होने लगे थे क्योंकि कोई नाश्ता खाना वगेरह नहीं ले जाना था साथ में ,कुछ सूखा खाने का सामान लिया साथ में ,5.40 बजे हम तीन लोग घर से निकल चुके थे और 6 बजे हम सब मेट्रो में थे | 6.40 पर हम नई दिल्ली स्टेशन पर थे |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"> मेट्रो से उतरकर नई दिल्ली स्टेशन तक पहुँचने में 10 से 15 मिनट लग जाते हैं क्योंकि मेट्रो की बहुत सारी सीढियां चढ़ कर ही आप बाहर निकल सकते हैं | यहाँ से अगर आप सामान नहीं उठा सकते तो आपको कुली मिल जाते हैं क्योंकि आगे प्लेटफोर्म तक पहुँचने के लिए भी आपको काफी जदोजहद करनी पड़ती है इस का सबसे बड़ा कारण है यहाँ स्वचालित सीढियां होते हुए भी उनको बंद रखा जाता है ताकि कुली लोगों की आपको जरुरत रहे | ऐसी मानसिकता के कारण ही एक मेट्रो सिटी होते हुए भी नई दिल्ली स्टेशन पर आने वाले सभी यात्री एक गलत सन्देश लेकर जाते हैं |</span><br />
<span style="font-size: large;"> तो जनाब हम पहुँच गए प्लेटफ़ॉर्म पर लेकर सब सामान ठीक 7 बजे और इंतजार करने लगे बाकी 5 सदस्यों का जिनको पास ही से आना था और 10 मिनट में वो लोग भी पहुँच चुके थे | 7.30 पर गाड़ी आ चुकी थी हम सब आराम से उसमें बैठ गए थे और 7.40 पर गाड़ी चल पड़ी थी अपने गंतव्य की ओर ....</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<span style="font-size: large;">गाड़ी चलने के कुछ मिनट बाद ही उसमें अनाउंसमेंट हुई .... यह गाड़ी कालका शताब्दि दिल्ली से कालका जा रही है हम 267 किलोमीटर की यात्रा 4 घंटे 15 मिनट में पूरी करेंगे | आपकी यात्रा शुभ हो | मेट्रो की ही तरह उसमें भी हर स्टेशन से पहले </span><span style="font-size: large;">अनाउंसमेंट हो रही थी | 8.10 पर चाय बिस्कुट दिए गए केतली में गर्म पानी और साथ में चाय बनाने का अंग्रेजी सामान जिसमें एक दूध का पाउच,एक चीनी का और एक चाय का ,अगर दोबारा इच्छा हो चाय पीने की तो यह सब सामान आप दोबारा ले सकते हैं | </span><br />
<span style="font-size: large;">8.55 पर गाड़ी पानीपत जंक्शन पर रुकी और उसके बाद 9.30 बजे नाश्ता बाँट दिया गया जिसमें था ब्रेड मक्खन ,कुछ कटलेटस और दोबारा वही गर्म पानी की केतली और साथ में अब की बार चाय के साथ कॉफ़ी के भी पाउच थे जो मन चाहे ले सकते हैं | मेरे जैसे चाय कॉफ़ी ना पीने वाले लोग गर्म पानी में दूध और चीनी डाल कर ले सकते हैं |</span><br />
<span style="font-size: large;">9.40 पर कुरुक्षेत्र जंक्शन पहुँच गए | इसके बाद भोजन बांटने वाले एक पेपर </span><span style="font-size: large;">ले कर आ गए जिस पर लिखना था कि खाना कैसा लगा और टिप भी मांगी जा रही थी आपको सर्व करने की | </span><br />
<span style="font-size: large;">फिर 10.25 पर आ गया अम्बाला कैंट और 11.20 पर पहुंचे चंडीगढ़ गाड़ी 5 से 8 मिनट तक रुकी और फिर रवाना हुई अपने असली मुकाम की ओर ,और ठीक 12 बजे हम कालका स्टेशन पर उतर गए |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="color: blue; font-size: large;">अब कालका से आपके पास कई साधन हैं शिमला पहुँचने के जिसकी दूरी लगभग 96 किलोमीटर रेल मार्ग से और 99 किलोमीटर सड़क मार्ग से है | बस अड्डे के लिए आपको स्टेशन से ऑटो मिल जाते हैं |</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span>
<span style="color: blue; font-size: large;">1. टॉय ट्रेन :- छोटी ट्रेन जो कालका से शिमला तक आपको पहुंचाती है | इसका आम किराया 50 रुपये है और आरक्षित सीट का किराया 250 रुपये है जिसकी सीट कुछ सुविधाजनक है |</span><br />
<span style="color: blue;"><span style="font-size: large;">2. यहीं से चलती है डीलक्स </span><span style="font-size: large;">रेल कार जिसमे एक ही डिब्बा होता है और 18 सीट होती हैं ,जिसका किराया है 650 रुपये प्रति यात्री जो वातानुकूलित है और उसमें आपको चाय नाश्ता भी दिया जाता है |</span><span style="font-size: large;"> डीलक्स रेल मोटर कार की छत पारदर्शी फाइबर-ग्लास की बनी है, जिससे आसमान बिल्कुल साफ दिखता है। यह विदेशी, खासकर ब्रिटिश पर्यटकों और भारतीय उद्योगपतियों में बहुत लोकप्रिय है। पूरी मोटर कार भी बुक करवाई जा सकती है। कालका से शिमला तक की दूरी तय करने में इसे चार घंटे और 25 मिनट का समय लगता है।</span></span><br />
<span style="font-size: large;"><span style="color: blue;">3. आप टैक्सी करके जा सकते हैं जो आपसे 2500 रुपये से 3000 रुपये तक ले लेते हैं और लगभग 3 घंटे में आपको पहुंचा देते हैं | कुशल ड्राईवर ही लें यहाँ से |</span></span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">4. आप रोडवेज की बस पकड़ कर भी जा सकते हैं जिसका आम बस का किराया 100 रुपये है और डीलक्स बस का किराया लगभग 200 रुपये है | यह आपको लगभग 3.30 घंटे में शिमला पहुंचाती है |</span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">हमने टॉय ट्रेन से जाने का फैसला किया इसलिए उसकी आठ टिकट ले ली गई 50 रुपये प्रति टिकट | एक गाड़ी जाने को तैयार खड़ी थी | दूसरी 12.45 पर जाने वाली थी , जब गाड़ी देखने लगे तो पता चला इसकी सीट आरक्षित भी हो सकती हैं उसका किराया 250 रुपये है प्रति टिकट जिसमे कोई ख़ास फर्क हमें नजर नहीं आया सिवाए इसके की उसकी सीट थोड़ी खुली लग रही थी फिर भी हमने 1600 रुपये और देकर सीट आरक्षित करवा ली जिसका अलग काउंटर लगा हुआ था | अब समय हो चुका था इसलिए हम सब गाडी में बैठ गए और शुरू हुआ हमारा कालका से शिमला का सफ़र ,यह सीटें कुछ खुली तो जरुर थीं पर दो लोग सही से इस पर बैठ भी नही पा रहे थे इसमें 30 सीट थीं और एक छोटा सा शौचालय भी इसमें था | </span><br />
<span style="font-size: large;">टॉय ट्रेन नैरो गेज पर चलती है इसकी रफ़्तार 20 किलोमीटर प्रति घंटा रहती है ऐसा बताया जाता है लेकिन यह बीच में बहुत बार रूकती हुई जाती है ताकि दूसरी तरफ से आने वाली ट्रेन क्रॉस कर सके | </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgyQXPO54ql-KrxXYBMOD8OFCbn5jwEqnbgPf7o9dWVPByBsQBW4U-hieNyfa2XVZaHBGqv7HgC5XUaPcN36-FKC8HbYzkKdU8uPI7dpdr0zlX_hihFJ9gs4SLCuSlMTDGFa6Dz9JvfPNUw/s1600/IMG_0637.JPG" imageanchor="1" style="font-size: x-large; margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="239" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgyQXPO54ql-KrxXYBMOD8OFCbn5jwEqnbgPf7o9dWVPByBsQBW4U-hieNyfa2XVZaHBGqv7HgC5XUaPcN36-FKC8HbYzkKdU8uPI7dpdr0zlX_hihFJ9gs4SLCuSlMTDGFa6Dz9JvfPNUw/s1600/IMG_0637.JPG" width="320" /></a><br />
<br />
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhLMhRvizzo_8bt3NasPaIJma7r3ePaeQsUtHqYfIIjBwtLiq9nRdvTjibcXQHhBbK9h3f9ESk3kJSpyHFLTbMYzRnwMKtxdifq08dM3Qljf5wEuEfftkn6ttov_ZaCtCx6uOIpSZtnFZD1/s1600/IMG_0660.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhLMhRvizzo_8bt3NasPaIJma7r3ePaeQsUtHqYfIIjBwtLiq9nRdvTjibcXQHhBbK9h3f9ESk3kJSpyHFLTbMYzRnwMKtxdifq08dM3Qljf5wEuEfftkn6ttov_ZaCtCx6uOIpSZtnFZD1/s1600/IMG_0660.JPG" width="239" /></a><br />
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<br /></div>
<span style="font-size: large;">कालका से शिमला के बीच आने वाले स्टेशन</span><br />
<span style="font-size: large;"></span><br />
<span style="font-size: large;">1. कालका 2. टकसाल 3. गुम्मन 4. कोटी 5. जाबली 6. सनवारा 7. धर्मपुर 8. डगशांई 9. बड़ोग 10. सोलन ब्रूरी 11. सलोगड़ा 12. कंडाघाट 13. कैथलीघाट 14. शोधी 15. तारादेवी 16. जलोग 17. समरहिल 18. शिमला</span><br />
<span style="font-size: large;"> कोटी क्रासिंग स्टेशन जो सबसे पहले आया उस पर जब रुकने के बाद ट्रेन दोबारा चली तो 2 बज चुके थे | धीरे धीरे कछुआ चाल से अपने गंतव्य की तरफ हम आगे बढ़ रहे थे रेल मार्ग में 103 छोटी बड़ी सुरंग आती हैं जब क्रासिंग स्टेशन पर गाड़ी रूकती तो कुछ खोमचे वाले अपना सामान बेचते हैं ,<b>बाकि रास्ते में खाने की कोई सुविधा नही है अगर आप बच्चों के साथ हैं तो खाने का कुछ प्रबंध कर के ही जाइये |</b> सब लोग बहुत थक चुके थे क्योंकि इस रास्ते से दोगुना समय लगा यानि लगभग 7 घंटे, हम ठीक 7 बजे शिमला स्टेशन पर पहुँच चुके थे | </span><br />
<span style="font-size: large;">यहाँ से बाहर निकलने के लिए और ऊपर होटल तक पहुँचने के लिए हमने कुली से सामान उठवाया और पहुँच गए माल रोड के शुरू में हम सब वहां बैठकर इंतज़ार करने लगे और 2 लोग होटल वगेरह देखने चले गए कुली के साथ| </span><br />
<span style="font-size: large;">8 बज चुके थे सब बुरी तरह से थक चुके थे एक होटल रिज व्यू पसंद आया चर्च के पीछे ऊपर जाकर ठीक रिज चौंक के पास जिसके लिए लगभग 3 किलोमीटर सबको चल कर जाना था क्योंकि वहां कोई रिक्शा वगेरह की सुविधा नहीं है सभी को पहले ही रोक दिया जाता है ,कोई गाड़ी वगेरह भी अंदर प्रवेश नहीं कर सकती | आखिरकार चलते चलते हम 9 बजे होटल पहुँचे बुरी तरह से थकान से चूर चूर | </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEheiPIovbFpr_83NsfSgFsD9_Ye8NTQDgi6G2CLZOVnlaqEZdANDWYV1n8bcu-7_d4RHIdrVpAMZprF5XJC8lvtF5duwmx9pgw7QGmEvxb51Q9-wNUfVozbdGb4BNRJYJKiB7IbNe84jAVR/s1600/IMG_0733.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEheiPIovbFpr_83NsfSgFsD9_Ye8NTQDgi6G2CLZOVnlaqEZdANDWYV1n8bcu-7_d4RHIdrVpAMZprF5XJC8lvtF5duwmx9pgw7QGmEvxb51Q9-wNUfVozbdGb4BNRJYJKiB7IbNe84jAVR/s1600/IMG_0733.JPG" width="239" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="font-size: large;">उसके बाद वहीँ हमने खाना मंगवा लिया क्योंकि दोबारा उतरकर नीचे जाना और फिर वापिस आना सबके लिए मुश्किल था ,टॉय ट्रेन ने हमें टॉय की तरह ही तोड़ कर रख दिया था | </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;"><b><a href="http://prabhumahima.blogspot.in/2014/08/2.html" target="_blank">शिमला यात्रा भाग 2. क्रमशः</a> ..</b>.</span></div>
Guzarishhttp://www.blogger.com/profile/11205127840621066197noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3773685922890348520.post-86275269195304989612014-07-28T03:24:00.000-07:002014-07-28T03:24:41.971-07:00हरिद्वार यात्रा भाग 4.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><a href="https://www.blogger.com/"><span id="goog_283987114"></span>भाग 3.<span id="goog_283987115"></span></a></span></div>
<span style="font-size: large;"><b>बड़ा बाजार :-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">यह हरिद्वार का तड़क-भड़क वाला बाजार है। यहां फेरीवाले विभिन्न प्रकार के व्यंजन, आयुर्वेदिक दवाएं, पीतल का सामान, कांच की चूड़ियां, शालें, लकड़ी से बनी विभिन्न वस्तुएं और बांस से बनी टोकरियां बेचते नज़र आते हैं। इसी बाजार में ही सभी पण्डे बसे हुए हैं जो हिन्दू वंशावलियो की पंजिका रखते हैं |</span><span style="color: blue; font-size: large;"></span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>हरिद्वार में हिन्दू वंशावलियों की पंजिका---</b></span><br />
<span style="font-size: large;">वह जो अधिकतर भारतीयों व वे जो विदेश में बस गए को आज भी पता नहीं, प्राचीन रिवाजों के अनुसार हिन्दू परिवारों की पिछली कई पीढियों की विस्तृत वंशावलियां हिन्दू ब्राह्मण पंडितों जिन्हें पंडा भी कहा जाता है द्वारा हिन्दुओं के पवित्र नगर हरिद्वार में हस्त लिखित पंजिओं में जो उनके पूर्वज पंडितों ने आगे सौंपीं जो एक के पूर्वजों के असली जिलों व गांवों के आधार पर वर्गीकृत की गयीं सहेज कर रखी गयीं हैं. प्रत्येक जिले की पंजिका का विशिष्ट पंडित होता है. यहाँ तक कि भारत के विभाजन के उपरांत जो जिले व गाँव पाकिस्तान में रह गए व हिन्दू भारत आ गए उनकी भी वंशावलियां यहाँ हैं. कई स्थितियों में उन हिन्दुओं के वंशज अब सिख हैं, तो कई के मुस्लिम अपितु ईसाई भी हैं. किसी के लिए किसी की अपितु सात वंशों की जानकारी पंडों के पास रखी इन वंशावली पंजिकाओं से लेना असामान्य नहीं है.</span><br />
<span style="font-size: large;">शताब्दियों पूर्व जब हिन्दू पूर्वजों ने हरिद्वार की पावन नगरी की यात्रा की जोकि अधिकतर तीर्थयात्रा के लिए या/ व शव- दाह या स्वजनों के अस्थि व राख का गंगा जल में विसर्जन जोकि शव- दाह के बाद हिन्दू धार्मिक रीति- रिवाजों के अनुसार आवश्यक है के लिए की होगी. अपने परिवार की वंशावली के धारक पंडित के पास जाकर पंजियों में उपस्थित वंश- वृक्ष को संयुक्त परिवारों में हुए सभी विवाहों, जन्मों व मृत्युओं के विवरण सहित नवीनीकृत कराने की एक प्राचीन रीति है |</span><br />
<br />
<br />
<div>
<span style="font-family: Verdana, Arial; font-size: large;"><b>खरीददारी :-</b></span><br />
<span style="font-family: Verdana, Arial; font-size: large;">हर की पौडी और रेलवे स्टेशन के बीच अनेक दुकानें हैं जहां तीर्थयात्रा से संबधित सामान मिलता है। यहां से पूजा के कृत्रिम आभूषण, पीतल और कांसे के बर्तन, कांच की चूड़ियां आदि खरीदी जा सकती हैं। यहां बहुत सी मिठाई की दुकानें हैं जहां से स्वादिष्ट पेडों की खरीददारी के साथ चूरण और आम पापड़ भी खरीदे जा सकते हैं। सामान्यत: तीर्थ यात्री यहां से कंटेनर खरीदकर गंगाजल भरकर घर ले जाते हैं |</span></div>
<br />
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="font-size: large;"><b>आइये जानें हरिद्वार के आसपास लगते कुछ और देखने योग्य स्थान </b></span><br />
<span style="font-size: large;"><b>पतंजलि योगपीठ :---</b></span><br />
<span style="font-size: large;">पतंजलि योगपीठ हरिद्वार से लगभग 25 किलोमीटर दूर है इसलिए टेम्पो वाले ने 30 रुपये प्रति सवारी लिए वहां जाने के लिए | पतंजलि योग पीठ एक नजर में .....</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><b>पतंजलि योगपीठ फेज 1</b></span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">6 अप्रेल 2006 को भारत के उपराष्ट्रपति द्वारा देश के 17 मुख्यमंत्री व राज्यपाल आदि विशिष्ट लोगों की उपस्थिति में पतंजलि योगपीठ, प्रथम चरण का उदघाटन।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">योग एवं आयुर्वेद ओ.पी.डी.में छ: हजार से दस हजार रोगियों को निःशुल्क चिकित्सा परामर्श की सुविधा उपलब्ध।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">निःशुल्क आयुर्वेद व योग चिकित्सा परामर्श सुयोग्य वैद्यों द्वारा।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">आयुर्वेद के अंतर्गत पंचकर्म चिकित्सा, षट्कर्म चिकित्सा, शल्य चिकित्सा (क्षार-सूत्र, कर्णभेदन व अग्निकर्म आदि), दंत चिकित्सा व नेत्र चिकित्सा सेवायें न्यूनतम मूल्य पर उपलब्ध।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">दिव्य फार्मेसी द्वारा निर्मित उच्च गुणवत्ता युक्त आयुर्वेदिक औषधियाँ न्यूनतम मूल्य पर उपलब्ध है।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">अत्याधुनिक मशीनों व उपकरणों से युक्त विश्व की आधुनिकतम पैथोलाजी लैब, रेडियोलाजी व कार्डियोलाजी लैब में विभिन्न रोगों के चिकित्सीय परीक्षण न्यूनतम मूल्यों पर उपलब्ध है ।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">आई.पी.डी/अतिथि ग्रह में न्यूनतम मूल्यों पर, वातानुकूलित व साधारण आवास व्यवस्था, दैनिक यज्ञ एवं योगकक्षा के साथ उपलब्ध है।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">पुस्तकालय व वाचनालय की सुन्दर व्यवस्था साइबर कैफे के साथ उपलब्ध है।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">अन्नपूर्णा में शुध्द देशी घी/तेल से निर्मित सभी तरह के शुध्द सात्विक आहार एवं मिष्ठान उचित मूल्य पर उपलब्ध है।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">पतंजलि योगपीठ के समीप में स्थित दिव्य औषधीय उद्यान में भ्रमण व औषधीय पौधों की उपलब्धता की व्यवस्था है।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">पतंजलि योगपीठ में व्यवस्थित व विशाल पार्किंग व अमानती घर की व्यवस्था है।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><b>पतंजलि योगपीठ फेज 2</b></span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">950 कक्षों में आगन्तुकों की वातानुकूलित व गैर वातानुकूलित आवास व्यवस्था।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">1000 लोगों की आवास व्यवस्था वाली एक निःशुल्क धर्मधाला।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">20 हजार वर्ग फीट के आकार का भव्य लंगर हाल, जहाँ आगन्तुक निःशुल्क भोजन प्रसाद ग्रहण कर सकते है ।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">प्रतिदिन 5000 आगन्तुकों की भोजन व्यवस्था की विशाल अन्नपूर्णा।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">4 हजार वर्ग फीट में निर्मित भव्य यज्ञशाला।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">वानप्रस्थ आश्रम के अन्तर्गत स्वस्थ, समर्थ व समर्पित वरिष्ठ नागरिकों की आवास व्यवस्था हेतु 350 अपार्टमेन्ट।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">50 हजार वर्ग फीट में निर्मित भव्य संग्रहालय।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">11 हजार वर्ग फीट आकार का योग, आयुर्वेद व प्राच्य विधाओं पर आधारित साहित्य व सामग्री हेतु विक्रय केन्द्र।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">भारत माता नमन स्थल (निर्माणाधीन), जहाँ भारत के 600 से अधिक जनपदों से एकत्रित की गई पवित्र मिट्टी रखी जाएगी।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"></span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">यहाँ 2 लाख वर्ग फ़ीट का विशाल नवीन ऑडिटोरियम बनाया गया है जिसमें 10 हजार साधक एक साथ बैठकर योग कर सकते है। इसी प्रकार 60 हजार वर्ग फीट का वृहत वातानुकूलित आडिटोरियम का निर्माण कराया गया है , जहाँ हजारों साधक एक साथ बैठकर योग, प्राणायाम व ध्यान आदि कर सकेंगे। 44 हजार वर्ग फीट का विशालकाय पंचकर्म व षट्कर्म केन्द्र, जहाँ लगभग 1000 व्यक्ति प्रतिदिन पंचकर्म व षट्कर्म का लाभ प्राप्त कर सकेंगे।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span>
<span style="color: blue; font-size: large;"><b>शांतिकुंज :-</b></span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">शांति कुञ्ज</span> <span style="color: blue; font-size: large;">संस्थान का विवरण :-</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">गंगा की गोद, हिमालय की छाया में विनिर्मित गायत्री तीर्थ- शांतिकुंज, हरिद्वार-ऋषिकेश मार्ग पर रेलवे स्टेशन से छह किलोमीटर दूरी पर स्थित है, जो युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य (1911-1990) एवं माता भगवती देवी शर्मा (1926-1994) की प्रचंड तप साधना की ऊर्जा से अनुप्राणित है। यह जागृत तीर्थ लाखों-करोड़ों गायत्री साधकों का गुरुद्वारा है।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span><span style="color: blue; font-size: large;">1971 में स्थापित शांतिकुंज एक आध्यात्मिक सैनिटोरियम के रूप में विकसित किया गया है, जहाँ शरीर, मन एवं अंतःकरण को स्वस्थ, समुन्नत बनाने के लिए अनुकूल वातावरण, मार्गदर्शन एवं शक्ति अनुदानों का लाभ उठाया जा सकता है।यहाँ गायत्री माता का भव्य देवालय, सप्तर्षियों की प्रतिमाओं की स्थापना के साथ एक भटके हुए देवता का मंदिर भी है। गायत्री साधक यहाँ के साधना प्रधान नियमित चलने वाले सत्रों में भाग लेकर नवीन प्रेरणाएँ तथा दिव्य प्राण ऊर्जा के अनुदान पाकर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति में सहायता पाते हैं।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span><span style="color: blue; font-size: large;">सन् 1926 से प्रज्ज्वलित अखंड दीप यहाँ स्थापित है, जिसके सान्निध्य में पूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने कठोर तपस्या करके इसे विशाल गायत्री परिवार की सारी महत्वपूर्ण उपलब्धियों का मूल स्रोत बनाया। इसके सान्निध्य में 2400 करोड़ से अधिक गायत्री जप संपन्न हो चुके हैं। इसके दर्शन मात्र से दिव्य प्रेरणा एवं शक्ति संचार का लाभ सभी को मिलता है।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span><span style="color: blue; font-size: large;">आश्रम की तीन विराट यज्ञशालाओं में नित्य नियमित रूप से हजारों साधक गायत्री यज्ञ संपन्न करते हैं। भारतीय संस्कृति के अंतर्गत सभी संस्कार जैसे- पुंसवन, नामकरण, अन्नप्राशन, मुंडन, शिखास्थापन, विद्यारंभ, यज्ञोपवीत, विवाह, वानप्रस्थ तथा श्राद्ध कर्म आदि यहाँ निःशुल्क संपन्न कराए जाते हैं। इनके व्यावहारिक तत्वदर्शन से प्रभावित होकर यहाँ नित्य बड़ी संख्या में संस्कारों के लिए लोग आते हैं।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span><span style="color: blue; font-size: large;">शांतिकुंज के भव्य जड़ी-बूटी उद्यान में 300 से भी अधिक प्रकार की दुर्लभ-सर्वोपयोगी वनौषधियाँ लगाई गई हैं। विश्वभर के आयुर्वेद कॉलेजों के शिक्षार्थी तथा वैज्ञानिक यहाँ का वनौषधि उद्यान देखने आते हैं। विभिन्न ग्रह-नक्षत्रों के लिए भिन्न प्रकार की दिव्य औषधियों का एक ज्योतिर्विज्ञान सम्मत उद्यान यहाँ की एक विलक्षणता है। सभी आगंतुकों की शारीरिक-मानसिक जाँच-पड़ताल निष्णात चिकित्सकों द्वारा यहाँ निःशुल्क की जाती है तथा साधना के साथ-साथ वनौषधि प्रधान उपचार-परामर्श भी दिया जाता है।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span><span style="color: blue; font-size: large;">यहाँ के विशाल भोजनालय में प्रतिदिन प्रायः पाँच हचार से अधिक आगंतुक श्रद्धालु तथा अनुमति लेकर आए शिक्षार्थी बिना मूल्य भोजन प्रसाद पाते हैं। यहाँ का पत्राचार विद्यालय भारत एवं विश्वभर में बैठे जिज्ञासुओं, प्रज्ञा परिजनों को दिनोदिन जीवन की उलझनों को सुलझाने का मार्गदर्शन देता रहता है।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span><span style="color: blue; font-size: large;">अध्यात्म के गूढ़ विवेचनों की सरल व्याख्या कर उन्हें जीवन में कैसे उतारा जाए, अपने चिंतन, चरित्र एवं व्यवहार में उत्कृष्टता लाकर व्यक्तित्व को कैसे प्रभावकारी बनाया जाए, इसका सतत प्रशिक्षण यहाँ के नौ दिवसीय संजीवनी साधना सत्रों में चलता है, जो यहाँ वर्षभर संपादित होते रहते हैं। ये सत्र 1 से 9, 11 से 19, 21 से 29 की तारीखों में प्रति माह चलते हैं।पाँच दिवसीय मौन अंतः ऊर्जा जागरण सत्र यहाँ की विशेषता है। इनमें 60 साधक प्रति सत्र उच्चस्तरीय साधना करते हैं। ये ठंडक में आश्विन से चैत्र नवरात्र तक चलते हैं।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span><span style="color: blue; font-size: large;">केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों के विभिन्न पदाधिकारियों को यहाँ नैतिक बौद्धिक तथा व्यक्तित्व परिष्कार का शिक्षण पाँच दिवसीय सत्रों में दिया जाता है। अब तब अस्सी हजार से अधिक अधिकारीगण इन मूल्यपरक शिक्षणों से लाभ पा चुके हैं। यहाँ हिमालय की एक दिव्य विराट प्रतिमा स्थापित की गई है, जिसमें सभी तीर्थों का दिग्दर्शन साधकों को वहाँ के इतिहास की पृष्ठभूमि के साथ मल्टीमीडिया प्रोजेक्शन पर किया जाता है। प्रायः साठ फुट चौड़ी, पंद्रह फुट ऊँची प्रतिमा के समक्ष बैठकर ध्यान करने का अपना अलग ही आनंद है। समीप स्थित देवसंस्कृति दिग्दर्शन में मिशन के वर्तमान स्वरूप व भावी योजनाओं का चित्रण किया गया है।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span><span style="color: blue; font-size: large;">यहाँ से 'अखंड ज्योति' एवं 'युग निर्माण योजना' नामक हिंदी मासिक तथा ‘युग शक्ति गायत्री’ गुजराती, मराठी, उड़िया, बांग्ला, तमिल, अंग्रेजी एवं तेलुगू भाषाओं में तथा ‘प्रज्ञा अभियान’ पाक्षिक हिंदी व गुजराती में प्रकाशित होती हैं। भारत और विश्व में इन सभी पत्रिकाओं के पाठकों की संख्या लगभग पच्चीस लाख है।कृषि मंत्रालय भारत सरकार द्वारा शांतिकुंज को 'आपदा निवारण सलाहकार परिषद' की सदस्यता प्रदान की गई है। भूकंप व अन्य दैवी आपदाओं में केंद्र ने जन व शक्ति से सदैव मदद की है। कारगिल संकट पर पूरे भारत से गायत्री परिवार ने सवा करोड़ रुपए की राशि राष्ट्रीय सुरक्षा कोष में दी। भुज कच्छ में प्रायः पाँच करोड़ रुपए से पुनर्वास के कार्य किए गए।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span><span style="color: blue; font-size: large;">लगभग एक हजार उच्च शिक्षित कार्यकर्ता शांतिकुंज में स्थायी रूप से सपरिवार निवास करते हैं। निर्वाह हेतु वे औसत भारतीय स्तर का भत्ता मात्र संस्था से लेते हैं।इस प्रकार शांतिकुंज एक ऐसी स्थापना है, जिसे सच्चे अर्थों में युग तीर्थ कहा जा सकता है। यहाँ आने वाला व्यक्ति कृतकृत्य होकर जाता है एवं नैसर्गिक सौंदर्य तथा आध्यात्मिक ऊर्जा से अनुप्राणित वातावरण में बार-बार आने के लिए लालायित रहता है। </span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">संसाधन </span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">लगभग हजार वर्गमीटर में निर्मित, निर्माणाधीन और प्रस्तावित भवनों का क्षेत्र है। आवास, आयुर्वेद-अनुसंधान, फार्मेसी, प्रशासनिक, स्वावलंबन, सभागार, ध्यान कक्ष आदि भवनों के स्थान सुरक्षित हैं, जो दिव्य स्वरूप प्रदान करते हैं।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span><span style="color: blue; font-size: large;">कर्मचारियों हेतु आवास की पूर्ण व्यवस्था है। अतिथिगृह के साथ-साथ यज्ञशाला की व्यवस्था है। खेलकूद तथा व्यायामशाला के लिए आवश्यक सुविधाएँ विद्यमान हैं।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span>
<span style="color: blue; font-size: large;"><b>शैक्षणिक संस्थान---</b></span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">हरिद्वार और आसपास के क्षेत्रों में में निम्नलिखित शिक्षा संस्थान है:-</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की - 30 किमी भूतपूर्व रुड़की इंजीनियरी कॉलेज, जो अब एक आई॰आई॰टी बन चुका है, यह भारत में प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उच्च शिक्षा का एक महत्वपूर्ण संस्थान है जो हरिद्वार से ३० मिनट की दूरी पर रुड़की में स्थित है।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग (कोएर) - 14 किमी एक निजी अभियांतिकी संस्थान जो हरिद्वार और रुड़की के बीच राष्ट्रीय महामार्ग 58 पर स्थित है।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय - 4 किमी कनखल में गंगा नदी के तट पर हरिद्वार-ज्वालापुर बाइपास सड़क पर स्थित।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">चिन्मय डिग्री कॉलेज हरिद्वार से 10 किमी दूर स्थित शिवालिक नगर में बसा यह हरिद्वार के विज्ञान कोलेजों में से एक है।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">विश्व संस्कृत विद्यालय संस्कृत विश्विद्यालय, हरिद्वार जिसकी स्थापन उत्तराखंड सरकार द्वारा की गई थी विश्व का एकमात्र विश्वविद्यालय है जो पूर्णतः प्राचीन संस्कृत ग्रंथों, पुस्तकों की शिक्षा को समर्पित है। इसके पाठ्यक्रम के अंतर्गत हिन्दू रीतियों, संस्कृति, और परंपराओं की शिक्षा दी जाती है, और इसका भव्य भवन प्राचीन हिन्दू वास्तुशिल्प पर आधारित है।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">दिल्ली पब्लिक स्कूल, रानीपुर क्षेत्र के प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में से यह एक है जो विश्वव्यापी दिल्ली पब्लिक स्कूल परिवार का भाग है। यह अपनी उत्कृष्ट शैक्षणिक उपलब्धियों, खेलों, पाठ्यक्रमेतर क्रियाकलापों के साथ-साथ सर्वोत्तम सुविधाओं, प्रयोगशालाओं, और शैक्षणिक वातावरन के लिए जाना जाता है।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">डी॰ए॰वी सैन्टेनरी पब्लिक स्कूल जगजीत्पुर में स्थित यह विद्यालय शिक्षा के साथ-साथ अपने विद्यार्थियों कों नैतिकता का पाठ भी सिखाता है ताकी यहाँ से निकला हर विद्यार्थी संसार के हर कोने को प्रकाशित कर सके।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">केन्द्रीय विद्यालय, बी॰एच॰ई॰एल केन्द्रिय विद्यालय, बी॰एच॰ई॰एल, हरिद्वार के प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में से एक है, जिसकी स्थापना 7 जुलाई, 1975 को की गई थी। केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से संबद्धीकृत, इस विद्यालय में प्री-प्राइमरी से 12वीं तक 2,००० से अधिक विद्यार्थी पढ़ते है।</span><br />
<br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;">हरिद्वार नगर, हरिद्वार जनपद का मुख्यालय है। यह नगर हिन्दुओं का एक अति प्राचीन तीर्थ एवं धार्मिक स्थल है। संस्कत भाषा तथा हिन्दुओं के अन्य धार्मिक कलापों का भी प्रमुख केन्द्र है। वर्तमान में इस नगर में कुछ उधोगों का विकास हुआ है। यह नगर मेरठ से 141 किमी0 सहारनपुर से 81 किमी0 लखनउ से 494 किमी0 तथा देहरादून से 52 किमी0 पर स्थित है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;">नगर की आबादी मुख्यतः चार भागों में विभाजित हैं 1- हरिद्वार 2- ज्वालापुर 3- कनखल 4- भारत हैवी इलैक्ट्रिकल टाउनशिप।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;">हरिद्वार नगर पश्चिम उत्तर प्रदेश में जडी बूटियों एवं जंगल से प्राप्त लकडी की एक प्रमुख मण्डी है। यह नगर राजकीय राजमार्ग संख्या 45 दिल्ली से प्रारम्भ होकर मेरठ, मुजपफरनगर, रूडकी, हरिद्वार होती हुई भारत तिब्बत सीमा पर स्थित नीतीपास नामक स्थान पर जाकर समाप्त होती है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;"><b>जलवायु :-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">हरिद्वार की जलवायु उत्तर प्रदेश के मैदानी क्षेत्र के लगभग समान है जो अत्यन्त स्वास्थ्यप्रद है। मई तथा जून के महीनों में भीषण गर्मी पडती है। नगर का तापमान 1.3 से 41.1 डिग्री सेंटीग्रेट के मध्य रहता है। नगर में पानी की सतह की औसत गहराई 25x35 फीट है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;"><b>पर्व :-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">गहन धार्मिक महत्व के कारण हरिद्वार में वर्ष भर में कई धार्मिक त्यौहार आयोजित होते हैं जिनमें प्रमुख हैं :- कवद मेला, सोमवती अमावस्या मेला, गंगा दशहरा, गुघल मेला जिसमें लगभग 20-25 लाख लोग भाग लेते हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;">इस के अतिरिक्त यहाँ कुंभ मेला भी आयोजित होता है बार हर बारह वर्षों में मनाया जाता है जब बृहस्पति ग्रह कुम्भ राशिः में प्रवेश करता है। कुंभ मेले के पहले लिखित साक्ष्य चीनी यात्री, हुआन त्सैंग (602 - 664 ई.) के लेखों में मिलते हैं जो 639 ई. में भारत की यात्रा पर आया था।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;">भारतीय शाही राजपत्र (इम्पीरियल गज़टर इंडिया), के अनुसार 1812 के महाकुम्भ में हैजे का प्रकोप हुआ था जिसके बाद मेला व्यवस्था में तेजी से सुधार किये गए और, 'हरिद्वार सुधार सोसायटी' का गठन किया गया, और 1903 में लगभग 4,00,000 लोगों ने मेले में भाग लिया। 1980 के दशक में हुए एक कुम्भ में हर-की-पौडी के निकट हुई एक भगदड़ में 600 लोग मारे गए और बीसियों घायल हुए। 1998 के महा कुंभ मेले में तो 8 करोड़ से भी अधिक तीर्थयात्री पवित्र गंगा नदी में स्नान करने के लिए यहाँ आये। </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;"><b>परिवहन :-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">हरिद्वार अच्छी तरह सड़क मार्ग से राष्ट्रीय राजमार्ग 58 से जुड़ा है जो दिल्ली और मानापस को आपस में जोड़ता है। निकटतम ट्रेन स्टेशन हरिद्वार में ही स्थित है जो भारत के सभी प्रमुख नगरों को हरिद्वार से जोड़ता है। निकटतम हवाई अड्डा जौली ग्रांट, देहरादून में है लेकिन नई दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को प्राथमिकता दी जाती है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;"><b>उद्योग :-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">जबसे राज्य सरकार की सरकारी संस्था, सिडकुल (उत्तराखंड राज्य ढांचागत और औद्योगिक विकास निगम लिमिटेड) द्वारा एकीकृत औद्योगिक एस्टेट की स्थापना इस ज़िले में की गई है, तबसे हरिद्वार बहुत तेजी से उत्तराखंड के महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र के रूप में विकसित हो रहा है, जो देशभर के कई महत्वपूर्ण औद्योगिक घरानों को आकर्षित कर रहा है, जो यहाँ विनिर्माण सुविधाओं की स्थापना कर रहे हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"></span><span style="font-size: large;">हरिद्वार पहले से ही एक संपन्न औद्योगिक क्षेत्र में स्थित है जो बाईपास रोड के किनारे बसा है जहाँ पर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, भेल की मुख्य सहायक इकाइयां स्थापित है जो यहाँ 1964 में स्थापित की गयी थी और आज यहाँ 8,000 से अधिक लोग प्रयुक्त हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><strong style="font-family: Verdana, Arial; font-size: x-large;">कब जाएं</strong><span style="font-family: Verdana, Arial; font-size: large;">- </span><br />
<span style="font-family: Verdana, Arial; font-size: large;">वैसे तो हरिद्वार में पर्यटन के लिहाज से साल में कभी भी जाया जा सकता है। लेकिन सर्दियों में यहां भीड़ कम होती है। अक्टूबर से मार्च की अवधि यहां आने के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है।</span><br />
<div>
<span style="font-family: Verdana, Arial; font-size: large;"><br /></span></div>
<div>
<span style="font-family: Verdana, Arial; font-size: large;"><b>कुछ सावधानियाँ :--</b></span></div>
<div>
<span style="font-family: Verdana, Arial; font-size: large;">1. अपनी यात्रा के लिए उचित समय चुनें यानि अक्तूबर से मार्च का समय अगर कोई बंदिश नहीं है तो ,यात्रा सुबह शुरू करें तो बहुत बढ़िया |</span></div>
<div>
<span style="font-family: Verdana, Arial; font-size: large;">2. हरिद्वार यात्रा का पूरा आनन्द लेना चाहते हैं तो 4-5 दिन का कार्यक्रम बनायें ,तभी आप आसपास के दर्शनीय स्थलों का आनंद ले सकते हैं |</span></div>
<div>
<span style="font-family: Verdana, Arial; font-size: large;">3. सामान कम लेकर जाएँ ,कुछ जरुरी दवाईयां अवश्य साथ रखें | </span></div>
<div>
<span style="font-family: Verdana, Arial; font-size: large;">4. अपनी सुविधानुसार जिस धर्मशाला या होटल में ठहरें वो हर की पौढ़ी के पास हो तो अति उत्तम ,आप जब चाहें गंगा स्नान कर के आ सकते हैं |बच्चों को बाजार में घुमा सकते हैं ,कोई त्यौहार हो तो झाँकियाँ दिखा सकते हैं |</span></div>
<div>
<span style="font-family: Verdana, Arial; font-size: large;">5. सामन किसी के भरोसे छोड़ कर गंगा स्नान को न जाएँ ,वहां पण्डे बैठे हैं उनके पास ही अपना सामान रखें |</span></div>
<div>
<span style="font-family: Verdana, Arial; font-size: large;">6. नहाने के लिए सूती कपड़े ना लेकर जाएँ ,इसके लिए रेशमी कपड़े हों तो बहुत खूब |</span></div>
<div>
<span style="font-family: Verdana, Arial; font-size: large;">7. कहीं भी देवी देवता के दर्शनों में बंदरों से सावधान रहें |</span></div>
<div>
<span style="font-family: Verdana, Arial; font-size: large;">8. साफ़ सफाई का ख़ास ख्याल रखें ,धार्मिक स्थलों को और गंगा को गन्दा होने से बचाएं ,इसमें आपका योगदान अहम् एवं अनिवार्य है |</span></div>
<div>
<span style="font-family: Verdana, Arial; font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><b>चतुर्थ दिन </b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>आज हमारी सुबह 6.20 की वापिसी की गाड़ी थी ,इसलिए सबको 4 बजे उठा दिया गया था और 5 बजे तक सब धर्मशाला के प्रांगन में इक्कठे हो चुके थे | अब धर्मशाला के प्रबंधकों ने पहले से ही कुछ टेम्पो वालों को बोल रखा था वो सब वहां आ गए थे वैसे आपको हर समय टेम्पो उपलब्ध रहते हैं आप आराम से स्टेशन या बस स्टैंड पहुँच सकते हैं | सब टेम्पो में सात सात लोग बैठकर 5.40 तक स्टेशन पहुँच चुके थे | सबने 30-30 रुपये टेम्पो वाले को दिए और प्लेटफार्म नंबर 2 पर पहुँच गए यहाँ हमारी गाड़ी आने वाली थी | जब वहां पहुंचे तो ट्रैक पर कोई बूढा भिखारी शायद मरा पड़ा था इसलिए पुलिस के आने के बाद उसकी लाश वहां से उठाई गई इसलिए गाड़ी चलने में थोड़ी देरी हो गई थी |गाड़ी लगभग 6.40 तक चल पी थी |</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b> गाड़ी में बैठने के थोड़ी देर बाद ही सब नाश्ता करने लगे थे जो बहुत ही प्यार से धर्मशाला में ही हम सबके लिए पूरियाँ और आचार पैक कर के बाँट दिया गया था | </b></span><b style="font-size: x-large;">गाड़ी हमारी जन शताब्दी थी और गर्मी अपने चरम पर थी जैसे जैसे दिन बढ़ रहा था गर्मी भी बढती जा रही थी और वैसे भी घर वापिसी में हमेशा थकान ही महसूस होती है और घर पहुँचने की जल्दी भी </b></div>
<div>
<span style="font-family: Verdana, Arial; font-size: large;">गाड़ी के पहुँचने का समय था 11.30 बजे का लेकिन थोड़ी देरी के कारण गाड़ी पहुंची लगभग 12.30 बजे | वहां से सब मेट्रो स्टेशन पहुंचे और फिर अपने अपने घर कुछ सुनहरी यादों के साथ |</span></div>
<div>
<span style="font-family: Verdana, Arial; font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="font-size: large;">चलिए दोस्तो मिलते हैं एक और यात्रा वृतांत के साथ तब तक सबको राम राम |</span></div>
Guzarishhttp://www.blogger.com/profile/11205127840621066197noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3773685922890348520.post-28595964313133201152014-07-26T03:38:00.000-07:002014-07-29T07:17:19.141-07:00हरिद्वार यात्रा भाग 3.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><a href="http://prabhumahima.blogspot.in/2014/07/2.html" target="_blank">भाग 2.</a></span></div>
<span style="font-size: large;">दर्शनीय स्थल :--</span><br />
<span style="font-size: large;">इस भाग में हम हरिद्वार और उसके आसपास के दर्शनीय स्थलों के बारे जानेंगे |</span><br />
<br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><b>हर की पौडी:---</b></span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">यह पवित्र घाट राजा विक्रमादित्य ने पहली शताब्दी ईसा पूर्व में अपने भाई भ्रिथारी की याद में बनवाया था. मान्यता है कि भ्रिथारी हरिद्वार आया था और उसने पावन गंगा के तटों पर तपस्या की थी. जब वह मरे, उनके भाई ने उनके नाम पर यह घाट बनवाया, जो बाद में हरी- की- पौड़ी कहलाया जाने लगा. हर की पौड़ी का सबसे पवित्र घाट ब्रह्मकुंड है. संध्या समय गंगा देवी की हरी की पौड़ी पर की जाने वाली आरती किसी भी आगंतुक के लिए महत्वपूर्ण अनुभव है. स्वरों व रंगों का एक कौतुक समारोह के बाद देखने को मिलता है जब तीर्थयात्री जलते दीयों को नदी पर अपने पूर्वजों की आत्मा की शान्ति के लिए बहाते हैं. विश्व भर से हजारों लोग अपनी हरिद्वार यात्रा के समय इस प्रार्थना में उपस्थित होने का ध्यान रखते हैं. </span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><b>मनसा देवी मंदिर :---</b></span><br />
<span style="background-color: white; font-size: large; text-align: justify;">मनसा देवी मंदिर एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है जो हरिद्वार शहर से लगभग 3 किमी दूर स्थित है। यह मंदिर हिंदू देवी मनसा देवी को समर्पित है जो ऋषी कश्यप के दिमाग की उपज है। कश्यप ऋषी प्राचीन वैदिक समय में एक महान ऋषी थे। मनसा देवी, सापों के राजा नाग वासुकी की पत्नी हैं।</span><br />
<span style="background-color: white; font-size: large; text-align: justify;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<img src="http://images.jagran.com/images/29_04_2013-mansaevihri.jpg" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="font-size: large;">मनसा देवी जाने के लिए लोग पैदल या उड़नखटोले से जा सकते हैं लेकिन उड़नखटोले के लिए लगभग दो दो घंटे लाइन में लगना पड़ता है इसलिए लोग सुबह सुबह पैदल ही निकल जाते हैं </span><br />
<span style="font-size: large;">मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप में पूजा जाता है। इनका प्रादुर्भाव मस्तक से हुआ है इस कारण इनका नाम मनसा पड़ा। इनके पति जगत्कारु तथा पुत्र आस्तिक जी हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><b>रूप:-</b></span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">मनसा देवी आस्तिक को गोद में लिए हुए, 10वीँ सदी पाल वंश, बिहार।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">मनसा देवी मुख्यत: सर्पों से आच्छादित तथा कमल पर विराजित हैं 7 नाग उनके रक्षण में सदैव विद्यमान हैं। कई बार देवी के चित्रों तथा भित्ति चित्रों में उन्हें एक बालक के साथ दिखाया गया है जिसे वे गोद में लिये हैं, वह बालक देवी का पुत्र आस्तिक है।</span><span style="color: blue; font-size: large;"></span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<img src="http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/0/0c/Manasa-popular.JPG/300px-Manasa-popular.JPG" /><br />
<br />
<br /></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; padding: 0px 0px 20px; text-align: justify; vertical-align: baseline;">
<span style="font-size: large;"> यह मंदिर शिवालिक पहाड़ियों के बिल्व पर्वत पर स्थित है और इस मंदिर में देवी की दो मूर्तियाँ हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;">एक मूर्ती की पांच भुजाएं एवं तीन मुहं है एवं दूसरी अन्य मूर्ती की आठ भुजाएं हैं। 52 शक्तिपीठों(हिंदू देवी सती या शक्ति की पूजा किये जाने वाले स्थल) में से एक यह मंदिर सिद्ध पीठ त्रिभुज के चरम पर स्थित है। यह त्रिभुज माया देवी, चंडी देवी एवं मनसा देवी मंदिरों से मिलकर बना है।</span><br />
<span style="font-size: large;"> इस मंदिर में भ्रमण के दौरान भक्त एक पवित्र वृक्ष के चारों ओर एक धागा बांधते हैं एवं भगवान् से अपनी मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना करते हैं। मनोकामना पूर्ण होने के बाद वृक्ष से इस धागे को खोलना आवश्यक है। पर्यटक इस मंदिर तक केबल कार द्वारा पहुँच सकते हैं। केबल कार यहाँ ‘देवी उड़नखटोला’ के नाम से प्रसिद्ध है।</span><br />
<span style="font-size: large;">मंदिर के खुलने का समय : सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक है और 12 बजे से 2 बजे तक भोजन के लिए मंदिर बंद रहता है |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<img src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhslM6oTtYdv3bGPZaOTdOn7IsEhSGobmrZxmrCYnTTG4rGWYKRqN2efJ1eBGuY1wnY4ZGK4cq6kjABkvvsuwVfxOCajmGZiMuYa7DA2-Qc7aTmSMfLhiR6TmRSgzE2Mt0KTCk34udSnaU/s400/IMG_7129.JPG" height="300" width="400" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="font-size: large;">उड़न खटोला का समय :-</span><br />
<span style="font-size: large;">गर्मी में :</span><br />
<span style="font-size: large;">अप्रैल से अक्तूबर ... सुबह 7 बजे से रात 8 बजे तक </span><br />
<span style="font-size: large;">सर्दी में :</span><br />
<span style="font-size: large;">नवम्बर से मार्च ......सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक </span><br />
<span style="font-size: large;">किराया :- दोनों तरफ का केबल कार का किराया 65 रुपये और एक तरफ का किराया 45 रुपये है |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;">चढाई के रास्ते में कई स्कूटर या बाइक वाले भी 50 या 70 रुपये लेकर एक एक सवारी को दरबार तक छोड़ देते हैं |</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><b>मनसा देवी से जुड़ी मान्यताएं :--</b></span><br />
<span style="background-color: transparent; color: blue; font-size: large; text-align: left;">महाभारत:-</span><br />
<span style="background-color: transparent; color: blue; font-size: large; text-align: left;">जन्मेजय का सर्पेष्ठी यज्ञ</span><br />
<span style="background-color: transparent; color: blue; font-size: large; text-align: left;">पाण्डुवंश में पाण्डवों में से एक धनुर्धारी अर्जुन और उनकी द्वितीय पत्नि सुभद्रा जो श्री कृष्ण की बहन हैं, उनके पुत्र अभिमन्यु हुआ जो महाभारत के युद्ध में मारा गया। अभिमन्यु का पुत्र परीक्षित हुआ, जिसकी मृत्यु तक्षक सर्प के काटने से हुई। परीक्षित पुत्र जन्मेजय ने अपने छ: भाइयों के साथ प्रतिशोध में सर्प जाति के विनाश के लिये सर्पेष्ठी यज्ञ किया। वासुकी ने अपनी बहन मनसा का विवाह किया तथा उसके पुत्र आस्तिक नें सर्पों को यज्ञ से बचाया।</span><br />
<span style="background-color: transparent; color: blue; font-size: large; text-align: left;">राजा युधिष्ठिर ने भी माता मानसा की पूजा की थी जिसके फल स्वरूप वह महाभारत के युद्ध में विजयी हुए। जहाँ युधिष्ठिर ने पूजन किया वहाँ सालवन गाँव में भव्य मंदिर का निर्माण हुआ।</span><br />
<span style="background-color: transparent; color: blue; font-size: large; text-align: left;">पुराण:-</span><br />
<span style="background-color: transparent; color: blue; font-size: large; text-align: left;">अलग अलग पुराणों में मनसा की अलग अलग किंवदंती है। पुराणों में बताया गया है कि इनका जन्म कश्यप के मस्तिष्क से हुआ तथा मनसा किसी भी विष से अधिक शक्तिशाली थी इसलिये ब्रह्मा ने इनका नाम विषहरी रखा।</span><br />
<span style="background-color: transparent; color: blue; font-size: large; text-align: left;">विष्णु पुराण:-</span><br />
<span style="background-color: transparent; color: blue; font-size: large; text-align: left;">विष्णु पुराण के चतुर्थ भाग में एक नागकन्या का वर्णन है जो आगे चलकर मनसा के नाम से प्रतलित हुई।</span><br />
<span style="background-color: transparent; color: blue; font-size: large; text-align: left;"><br /></span><span style="background-color: transparent; color: blue; font-size: large; text-align: left;"><b>चंडी देवी मंदिर :--</b></span><br />
<span style="background-color: transparent; color: blue; font-size: large; text-align: left;">चंडी देवी मंदिर नील पर्वत के शिखर पर स्थित है। यह देश के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है एवं इसे कश्मीर के तत्कालीन शासक द्वारा वर्ष 1929 में बनवाया गया था। हालांकि ऐसा कहा जाता है कि मंदिर में जो मूर्ति है उसे महान संत आदि शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में स्थापित किया था।</span><br />
<span style="background-color: transparent; color: blue; font-size: large; text-align: left;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<img src="http://3.bp.blogspot.com/-105csNpBzNo/UkEi9juFmtI/AAAAAAAAAFQ/4dvcgLvvWNM/s1600/Haridwar-Chandi+Devi+Temple-5.jpg" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">रेलवे स्टेशन से करीब छह किलोमीटर दूरी पर हरिद्वार-नजीबाबाद रोड पर शिवालिक पर्वत माला के एक शिखर पर स्थापित इस मंदिर के लिए पैदल और उडऩ खटोले से जाने की व्यवस्था है। स्टेशन से मंदिर के रास्ते के लिए ऑटो, टेम्पो, टैक्सी, साइकिल रिक्शा और तांगा उपलब्ध</span><span style="font-size: large;"> हैं|</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="background-color: transparent; font-size: large;"> चंडी घाट से तीन किलोमीटर की ट्रैकिंग है या उड़न खटोले से भी यहाँ जाया जा सकता है | पूरे हरिद्वार में कहीं भी आप ठहरे हैं टेम्पो ,टैक्सी आपको मिल जाते हैं जो आपके गंतव्य तक पहुंचाते हैं |</span></div>
<span style="background-color: transparent; color: blue; font-size: large; text-align: left;"> धार्मिक मान्यता है कि जहां मनसादेवी होंगी, वहां चंडी देवी का होना अनिवार्य है। पौराणिक कथाओं के अनुसार तंत्र-मंत्र की सिद्धिरात्री चंडीदेवी ने इसी स्थान पर शुंभ-निशुंभ नामक असुरों का वध किया था। शिवालिक पर्वत श्रृंखला पर स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर के पास शुंभ और निशुंभ नाम के दो पर्वत आज भी हैं। मंदिर में मां काली की प्रतिमा विराजमान है। इसके पास ही हनुमान जी की माता अंजनी देवी का मंदिर भी स्थित है। मां चंडी देवी की रात में विशेष पूजा होती है। भक्तगण अपनी खास पूजा के लिए मंदिर समिति से संपर्क इस खास अनुष्ठान को अपने तथा अपने परिवार के लिए भी करा सकते हैं। नवरात्रों में इस विशेष पूजा का खास महत्व है। इसके मद्देनजर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। विशेष पूजा करने वालों की संख्या ज्यादा होती है। मान-मनौती के लिए मंदिर की बड़ी आस्था है।</span><br />
<span style="background-color: transparent; color: blue; font-size: large; text-align: left;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<img src="http://4.bp.blogspot.com/-o40bvcadoXA/UkEi9oiZ5vI/AAAAAAAAAFU/L6YOMfMx0k4/s1600/chandi-devi-temple.jpg" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">मंदिर में मां की चुनरी को बांध मनौती मांगने की परंपरा है। इसकी बड़ी मान्यता है। चुनरी बांध कर मन की इच्छा पूर्ति की देवी से प्रार्थना करने पर वो अवश्य पूरी होती है। मनौती पूरी होने पर देवी दर्शन तत्पश्चात चुनरी खोलने की भी परंपरा है। नवरात्रों में इसका विशेष महत्व है।</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="color: blue; font-size: large;"><b>माया देवी मंदिर :---</b></span></div>
<br />
<div style="text-align: left;">
<span style="text-align: justify;"><span style="color: blue; font-size: large;">हरिद्वार की रक्षा के लिए एक अद्भुत त्रिकोण विद्यमान है। इस त्रिकोण के दो बिंदु पर्वतों पर मनसा और चंडी के रूप में स्थित है। त्रिकोण उल्टा है और उसका शिखर धरती पर है। उसी अधोमुख शिखर पर भगवती माया आसीन हैं। </span></span><span style="color: blue; font-size: large;">अधोमुख त्रिभुज के शिखर पर स्थापित माया देवी के नाम पर ही हरिद्वार का प्राचीन नाम मायापुरी पड़ा। यह 52 शक्तिपीठों में से एक है जो हिंदू देवी सती या शक्ति द्वारा पवित्र किया गया भक्ति स्थल है। यह मंदिर हिंदू देवी अधिष्ठात्री को समर्पित है एवं इसका इतिहास 11वीं शताब्दी से उपलब्ध है। ब्रह्मपुराण में सप्त पुरियोंको मोक्षदायिनी बताया है। इनमें मायापुरी भी शामिल है।</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<img src="http://www.nativeplanet.com/photos/600x450/2012/07/_13425033950.jpg" height="300" width="400" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="color: blue; font-size: large;"></span><br />
<div>
<span style="color: blue; font-size: large;"> प्रचलित मान्यता के अनुसार, एक बार दक्ष प्रजापति ने हरिद्वार स्थित कनखल में यज्ञ किया। यज्ञ में शिव शंकर के अपमान से कुपित होकर माता सती ने हवनकुंड में आहुति दे दी। इस पर शिव शंकर व्यधित होकर पत्नी के वियोग में खो गए। कहते हैं कि वियोग में भोले शंकर सती के मृत शरीर को लेकर जगह-जगह भटकने लगे।</span></div>
<span style="color: blue; font-size: large;"></span><br />
<div>
<span style="color: blue; font-size: large;">इसपर विष्णु भगवान ने शिव शंकर के वियोग को समाप्त करने के लिए सुदर्शन चक्र से सती के मृत काया के 51 हिस्से कर दिए। ये हिस्से जहां-जहां गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। मान्यता है कि माया देवी मंदिर में सती की मृत काया की नाभि गिरी थी और यह जगह माया देवी के रूप में विख्यात हुई। </span></div>
<span style="color: blue; font-size: large;"></span><br />
<div>
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="color: blue; font-size: large;"></span><br />
<div style="text-align: center;">
<span style="color: blue; font-size: large;"><img src="http://images.jagran.com/images/17_10_2012-mayadevi.jpg" /></span></div>
<span style="color: blue; font-size: large;">
</span></div>
<br />
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">प्राचीन काल से माया देवी मंदिर में देवी की पिंडी विराजमान है। 18वीं सदी में इस मंदिर में देवी की मूर्तियां की भी प्राण-प्रतिष्ठा की गई। मंदिर के बगल में आनंद भैरव का मंदिर भी है। पर्व-त्योहारों के समय बड़ी संख्या में श्रद्धालु माया देवी मंदिर के दर्शन करने को पहुंचते हैं।</span></div>
<br />
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">इस मंदिर का अनेक बार जीर्णोद्धार किया गया। वर्तमान समय में मंदिर का प्रबंध जूना-भैरव अखाड़ा देखता है। मंदिर में सायं कालीन आरती देखने योग्य होती है। विशेषकर गुजरात, राजस्थान, पश्चिमी बंगाल और उड़ीसा से आने वाले यात्री माया देवी का दर्शन अवश्य करते हैं। </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;"><b>सप्तऋषि आश्रम:-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">इस आश्रम के सामने गंगा नदी सात धाराओं में बहती है इसलिए इस स्थान को सप्त सागर भी कहा जाता है। माना जाता है कि जब गंगा नदी बहती हुई आ रही थीं तो यहाँ सात ऋषि गहन तपस्या में लीन थे। गंगा ने उनकी तपस्या में विघ्न नहीं डाला और स्वयं को सात हिस्सों में विभाजित कर अपना मार्ग बदल लिया। इसलिए इसे 'सप्त सागर' भी कहा जाता है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div>
<span style="font-size: large;"><b>दक्ष महादेव मंदिर:-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">यह प्राचीन मंदिर नगर के दक्षिण में स्थित है। सती के पिता राजा दक्ष की याद में यह मंदिर बनवाया गया है। किवदंतियों के अनुसार सती के पिता राजा दक्ष ने यहाँ एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया था। यज्ञ में उन्होंने शिव को नहीं आमन्त्रित किया। अपने पति का अपमान देख सती ने यज्ञ कुण्ड में आत्मदाह कर लिया। इससे शिव के अनुयायी गण उत्तेजित हो गए और दक्ष को मार डाला। बाद में शिव ने उन्हें पुनर्जीवित कर दिया।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<img src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhUdhxZQ9njAwX8xJ3Du6Apbl_jUOseaZfCxK7M8Dg5FELOS9vXLKIycVQ7mf24kr43WOGx8lxrp3r6ykJbSKIYO9FMPZ6lV65Dj8eVCuH3gssvM8d90yK4QD7JlOSggVlrvRG-piq9PY0/s400/2.jpg" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
</div>
</div>
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;"><b>परमेश्वर महादेव मंदिर :-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">यह मंदिर हरिद्वार से लगभग 4 कि.मी. दूर है, यहां पारे से बना एक पवित्र शिवलिंग है।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;"><b>पवन धाम मंदिर :-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">शहर से लगभग 2 कि.मी. दूर पवन धाम मंदिर है। उत्कृष्ट आईनों और शीशे पर किए गए कार्य के लिए प्रसिद्ध इस मंदिर में व्यापक रूप से अलंकृत मूर्तियां हैं। इसे शीशे वाला मंदिर भी कहते हैं | </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;"><b>लाल माता मंदिर :-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">यह मंदिर जम्मू-कश्मीर में स्थित वैष्णों देवी मंदिर का प्रतिरूप है। यहां एक नकली पहाड़ी और बर्फ से जमाया हुआ शिवलिंग है जो अमरनाथ के शिवलिंग का प्रतिरूप है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;"></span>
<span style="font-size: large;">यहां अनेक दर्शनीय मंदिर हैं जिनमें दक्ष महादेव मंदिर, भारत माता मंदिर और चंदा देवी प्रमुख हैं। जय राम आश्रम, आनंदमयी मां आश्रम, सप्त ऋषि आश्रम और परमार्थ आश्रम अन्य दर्शनीय स्थल हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>कनखल :-</b></span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">कनखल, हरिद्वार शहर से बिलकुल सटा हुआ है। कनखल के विशेष आकर्षण प्रजापति मंदिर, सती कुंड एवं दक्ष महादेव मंदिर हैं। कनखल आश्रमों तथा विश्व प्रसिद्ध गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के लिए भी जाना जाता है।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><b>कनखल का पौराणिक महत्त्व:-</b></span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">महाराजा शिव की राजधानी कनखल (हरिद्वार) में थी। शिव से सती का सती होना सहन नहीं हुआ ,शिव ने वीरभद्र को बुलाया और कहा कि मेरी गण सेना का नेतृत्व करो और दक्ष का यज्ञ नष्ट कर दो. वीरभद्र शिव के गणों के साथ गए और यज्ञ को नष्ट कर दक्ष का सर काट डाला।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"></span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"> कनखल में सभी हिन्दू दाह संस्कार के बाद अस्थियाँ प्रवा</span><span style="color: blue; font-size: large;">ह करते हैं जिससे ऐसा माना जाता है की आत्मा की मुक्ति होती है |</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<div style="text-align: left;">
<b style="color: blue; font-size: x-large;">ऋषिकेश :--</b></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">ऋषिकेश हरिद्वार से लगभग 25 किलोमीटर दूर है ,यहाँ के लिए आपको आराम से टेम्पो मिल जाते हैं जो आपको 45-50 मिनट में ही ऋषिकेश पहुंचा देते हैं | आप सीधे ऋषिकेश भी जा सकते हैं | या हरिद्वार यात्रा के साथ भी इसका आनंद ले सकते हैं |</span></div>
</div>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
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<div style="text-align: center;">
<img src="http://sphotos-c.ak.fbcdn.net/hphotos-ak-prn1/23868_366711046750976_702034775_n.jpg" height="230" width="320" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br />
<br />
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><b>कैसे जाएं----</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">वायुमार्ग-</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">ऋषिकेश से 18 किमी. की दूरी पर देहरादून के निकट जौली ग्रान्ट एयरपोर्ट नजदीकी एयरपोर्ट है। एयर इंडिया, किंगफिशर, जेट एवं स्पाइसजेट की फ्लाइटें इस एयरपोर्ट को दिल्ली से जोड़ती है।</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">रेलमार्ग-</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">ऋषिकेश का नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जो शहर से 5 किमी. दूर है। ऋषिकेश देश के प्रमुख रेलवे स्टेशनों से जुड़ा हुआ है।</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">सड़क मार्ग-</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">दिल्ली के कश्मीरी गेट से ऋषिकेश के लिए डीलक्स और निजी बसों की व्यवस्था है। राज्य परिवहन निगम की बसें नियमित रूप से दिल्ली और उत्तराखंड के अनेक शहरों से ऋषिकेश के लिए चलती हैं।</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
</div>
<span style="font-size: large;">हिमालय का प्रवेश द्वार, ऋषिकेश जहाँ पहुँचकर गंगा पर्वतमालाओं को पीछे छोड़ समतल धरातल की तरफ आगे बढ़ जाती है। ऋषिकेश का शांत वातावरण कई विख्यात आश्रमों का घर है। </span><br />
<span style="font-size: large;">ऋषिकेश को केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री का प्रवेशद्वार माना जाता है। कहा जाता है कि इस स्थान पर ध्यान लगाने से मोक्ष प्राप्त होता है। हर साल यहाँ के आश्रमों के बड़ी संख्या में तीर्थयात्री ध्यान लगाने और मन की शान्ति के लिए आते हैं। विदेशी पर्यटक भी यहाँ आध्यात्मिक सुख की चाह में नियमित रूप से आते रहते हैं। ऋषिकेश के दर्शनीय स्थल </span><br />
<span style="font-size: large;">देखे बिना आप आ ही नही सकते |</span><br />
<span style="font-size: large;"><b>लक्ष्मण झूला :-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">गंगा नदी के एक किनार को दूसर किनार से जोड़ता यह झूला नगर की विशिष्ट की पहचान है। इसे 1939 में बनवाया गया था। कहा जाता है कि गंगा नदी को पार करने के लिए लक्ष्मण ने इस स्थान पर जूट का झूला बनवाया था। झूले के बीच में पहुंचने पर वह हिलता हुआ प्रतीत होता है। 450 फीट लंबे इस झूले के समीप ही लक्ष्मण और रघुनाथ मंदिर हैं। झूले पर खड़े होकर आसपास के खूबसूरत नजारों का आनंद लिया जा सकता है। लक्ष्मण झूला के समान राम झूला भी नजदीक ही स्थित है। यह झूला शिवानंद और स्वर्ग आश्रम के बीच बना है। इसलिए इसे शिवानंद झूला के नाम से भी जाना जाता है।ऋषिकेश मैं गंगाजी के किनारे की रेट बड़ी ही नर्म और मुलायम है ,इस पर बैठने से यह माँ की गोद जैसी स्नेहमयी और ममतापूर्ण लगती है,यहाँ बैठकर दर्शन करने मात्र से ह्रदय मैं असीम शांति और रामत्व का उदय होने लगता है ...</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<img src="http://www.shrinews.com/uploads/%E0%A4%8B%E0%A4%B7%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%B6.JPG" height="240" width="320" /><br />
<br />
<br />
<br />
<div style="text-align: left;">
<b><span style="font-size: large;">राम झूला :-</span></b></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">राम झूला उत्तराखंड राज्य के ऋषिकेश शहर में शिवानंद और स्वर्ग आश्रम के बीच बना है। इसलिए इसे 'शिवानंद झूला' के नाम से भी जाना जाता है।</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">शिवानंद आश्रम के सामने एक झूलेनुमा पुल बना हुआ है, जिसे राम झूले के नाम से जाना जाता हैं। राम झूला लक्ष्मण झूला के नज़दीक स्थित है।</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">स्वर्गाश्रम क्षेत्र में जाने हेतु राम झूला गंगा के उस पार से इस पार ले जाने का रास्ता है। राम झूला भार भी झेल सकता है। दुपहिया वाहन इसके ऊपर से अक्सर निकलते देखे जा सकते हैं। राम झूले (पुल) पर जब लोग चलते है तो यह झूलता हुआ प्रतीत होता है। हिचकोले खाते हुए, राम झूले के ऊपर से नीचे बह रही गंगा का विहंगम दृश्य का आनंद लिया जा सकता है।</span></div>
<br />
<img alt="चित्र:Ram-Jhula-1.jpg" src="http://bharatdiscovery.org/w/images/thumb/7/72/Ram-Jhula-1.jpg/800px-Ram-Jhula-1.jpg" height="240" width="320" /></div>
<span style="font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;"><b>त्रिवेणी घाट :-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">ऋषिकेश में स्नान करने का यह प्रमुख घाट है जहां प्रात: काल में अनेक श्रद्धालु पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाते हैं। कहा जाता है कि इस स्थान पर हिन्दु धर्म की तीन प्रमुख नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है। इसी स्थान से गंगा नदी दायीं ओर मुड़ जाती है। शाम को होने वाली यहां की आरती का नजारा बेहद आकर्षक होता है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<img src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgFW7RNjZZGEs76Iuqfx8VKhgTWV9UpkArVK3sVc2oMo3_UxXKMCvoeCYa3ZS11kmcsNqIKLWTW4SNmf5Sv44FputV0cBjAe_8sNbMApO0TTf1FpCtdAujUwn2F9hu5sMGJPP9U503_CZY/s320/DSCF3900.JPG" height="240" width="320" /></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="font-size: large;"><b>स्वर्ग आश्रम-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">स्वामी विशुद्धानन्द द्वारा स्थापित यह आश्रम ऋषिकेश का सबसे प्राचीन आश्रम है। स्वामी जी को काली कमली वाले नाम से भी जाना जाता था। इस स्थान पर बहुत से सुन्दर मंदिर बने हुए हैं। यहां खाने पीने के अनेक रस्तरां हैं जहां सिर्फ शाकाहारी भोजन ही परोसा जाता है। आश्रम की आसपास हस्तशिल्प के सामान की बहुत सी दुकानें हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<img src="http://photos.wikimapia.org/p/00/01/90/37/64_big.jpg" height="240" width="320" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;"><b>नीलकंठ महादेव मंदिर-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">लगभग 5500 फीट की ऊंचाई पर स्वर्ग आश्रम की पहाड़ी की चोटी पर नीलकंठ महादेव मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने इसी स्थान पर समुद्र मंथन से निकला विष ग्रहण किया गया था। विषपान के बाद विष के प्रभाव के से उनका गला नीला पड़ गया था और उन्हें नीलकंठ नाम से जाना गया था। मंदिर परिसर में पानी का एक झरना है जहां भक्तगण मंदिर के दर्शन करने से पहले स्थान करते हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<img src="http://www.ghughuti.com/file/sns_uploads/694/images/Neelkanth%20mahdev%20rishekesh.jpg" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="font-size: large;"><b>भरत मंदिर-</b></span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">यह ऋषिकेश का सबसे प्राचीन मंदिर है जिसे 12 शताब्दी में आदि गुरू शंकराचार्य ने बनवाया था। भगवान राम के छोटे भाई भरत को समर्पित यह मंदिर त्रिवेणी घाट के निकट ओल्ड टाउन में स्थित है। मंदिर का मूल रूप 1398 में तैमूर आक्रमण के दौरान क्षतिग्रस्त कर दिया गया था। हालांकि मंदिर की बहुत सी महत्वपूर्ण चीजों को उस हमले के बाद आज तक संरक्षित रखा गया है। मंदिर के अंदरूनी गर्भगृह में भगवान विष्णु की प्रतिमा एकल शालीग्राम पत्थर पर उकेरी गई है। आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा रखा गया श्रीयंत्र भी यहां देखा जा सकता है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;"><b>कैलाश निकेतन मंदिर-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">लक्ष्मण झूले को पार करते ही कैलाश निकेतन मंदिर है। 12 खंड़ों में बना यह विशाल मंदिर ऋषिकेश के अन्य मंदिरों से भिन्न है। इस मंदिर में सभी देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;"><b>वशिष्ठ गुफा-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">ऋषिकेश से 22 किमी. की दूरी पर 3000 साल पुरानी वशिष्ठ गुफा बद्रीनाथ-केदारनाथ मार्ग पर स्थित है। इस स्थान पर बहुत से साधुओं विश्राम और ध्यान लगाए देखे जा सकते हैं। कहा जाता है यह स्थान भगवान राम और बहुत से राजाओं के पुरोहित वशिष्ठ का निवास स्थल था। वशिष्ठ गुफा में साधुओं को ध्यानमग्न मुद्रा में देखा जा सकता है। गुफा के भीतर एक शिवलिंग भी स्थापित है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;"><b>गीता भवन-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">राम झूला पार करते ही गीता भवन है जिसे 1950 ई. में श्रीजयदयाल गोयन्काजी ने बनवाया गया था। यह अपनी दर्शनीय दीवारों के लिए प्रसिद्ध है। यहां रामायण और महाभारत के चित्रों से सजी दीवारें इस स्थान को आकर्षण बनाती हैं। यहां एक आयुर्वेदिक डिस्पेन्सरी और गीताप्रेस गोरखपुर की एक शाखा भी है। प्रवचन और कीर्तन मंदिर की नियमित क्रियाएं हैं। शाम को यहां भक्ति संगीत की आनंद लिया जा सकता है। तीर्थयात्रियों के ठहरने के लिए यहां सैकड़ों कमरे हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;"><b>रिवर राफ्टिंग -</b></span><br />
<span style="font-size: large;">ऋषिकेश को रिवर राफ्टिंग का मक्का कहा जाता है और यहां हर साल हजारों एडवेंचर लवर राफ्टिंग के लिए पहुंचते हैं. लेकिन न तो सरकार अब तक चेती है और न राफ्टिंग कारोबारी सुरक्षा के पूरे उपाय कर पाए हैं. अप्रशिक्षित और युवा गाइडों के साथ कामचलाऊ सुरक्षा उपकरणों के सहारे देसी-विदेशी पर्यटकों की जान को खतरे में डाला जा रहा है| गर्मी का मौसम शुरू होते ही पर्यटक व्हाइट वॉटर राफ्टिंग के लिए आते हैं| </span><br />
<span style="font-size: large;">1984-85 में जब ऋषिकेश में राफ्टिंग का काम शुरू हुआ, तब यहां सिर्फ 2-3 कंपनियां थीं और सिर्फ विदेशी पर्यटक ही राफ्टिंग करने के लिए आते थे | लेकिन आज यहां 140 रजिस्टर्ड राफ्टिंग कंपनियां और करीब 500 राफ्टिंग बुकिंग काउंटर हैं.’’ राफ्टिंग की हरसत इसलिए भी एडवेंचर लवर्स को खींच लाती है क्योंकि यहां आठ महीने का सबसे लंबा राफ्टिंग सीजन होता है.</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<img src="https://encrypted-tbn2.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcSGrzYtb0lS7Iy4G1vXSn_hgmT5ZIpUPAgGZ8Z_dVtFAgvWwacv6g" /></div>
<div style="text-align: center;">
</div>
<span style="font-size: large;"></span><br />
<div style="text-align: center;">
</div>
<br />
<span style="font-size: large;"><b>खरीददारी :-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">ऋषिकेश में हस्तशिल्प का सामान अनेक छोटी दुकानों से खरीदा जा सकता है। यहां अनेक दुकानें हैं जहां से साड़ियों, बेड कवर, हैन्डलूम फेबरिक, कॉटन फेबरिक आदि की खरीददारी की जा सकती है। ऋषिकेश में सरकारी मान्यता प्राप्त हैन्डलूम शॉप, खादी भंडार, गढ़वाल वूल और क्राफ्ट की बहुत सी दुकानें हैं जहां से उच्चकोटि का सामान खरीदा जा सकता है |</span><br />
<span style="font-size: large;">ऋषिकेश देखने के बाद सभी धर्मशाला पहुँच चुके थे | अगले भाग में जानते हैं हरिद्वार के कुछ और आकर्षण ...</span><br />
<br />
<span style="font-family: Verdana, Arial; font-size: large;"><a href="http://prabhumahima.blogspot.in/2014/07/4_28.html" target="_blank">हरिद्वार यात्रा भाग 4.</a> क्रमशः ...</span></div>
Guzarishhttp://www.blogger.com/profile/11205127840621066197noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3773685922890348520.post-61652962945214142802014-07-19T01:36:00.001-07:002014-08-06T03:57:17.347-07:00हरिद्वार यात्रा भाग 2.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><b><a href="http://prabhumahima.blogspot.in/2014/06/1.html" target="_blank">भाग 1.</a></b></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">दूसरा दिन </span></div>
<span style="font-size: large;">दूसरा दिन शुरू हुआ 5.30 बजे शाखा के कार्यक्रम से जिसमें हलका फुल्का व्यायाम करवाया गया और उसके बाद चाय तैयार थी जो पीना चाहे | इसके बाद लगभग 6.30 बजे सभी गंगा स्नान के लिए हर की पौढ़ी की तरफ चल दिए यहाँ सुविधा से जाने के लिए टेम्पो जो 10 रुपये सवारी लेते हैं एक अच्छा साधन है अगर भीड़ का समय नही है तो यह आपको हर की पौड़ी के बाहर ही उतार देते हैं और अगर भीड़ का समय है तो आपको भीमगौडा पर ही रोक दिया जाता है उसके आगे के लिए आप दोबारा रिक्शा कर सकते हैं | </span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">हर की पौड़ी :---</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">वह स्थान जहाँ पर अमृत की बूंदें गिरी थी उसे हर-की-पौडी पर ब्रह्म कुंड माना जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है 'ईश्वर के पवित्र पग'। हर-की-पौडी, हरिद्वार के सबसे पवित्र घाट माना जाता है और पूरे भारत से भक्तों और तीर्थयात्रियों के जत्थे त्योहारों या पवित्र दिवसों के अवसर पर स्नान करने के लिए यहाँ आते हैं। यहाँ स्नान करना मोक्ष प्राप्त करने के लिए आवश्यक माना जाता है।</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEglRARXylW55erL_TesgeWXMe7fQov3ZTOtfacypw19WbpnrQ34yneaYrjEDB-e7kfuUcvrgJY3PjQfYgUgAiE49-ON7_U1TjhkkBEl_jwUzvzbSAl6sTAj6ajBNiwK4oX4aYckgrbMCvcG/s1600/2014-06-14+07.09.08.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEglRARXylW55erL_TesgeWXMe7fQov3ZTOtfacypw19WbpnrQ34yneaYrjEDB-e7kfuUcvrgJY3PjQfYgUgAiE49-ON7_U1TjhkkBEl_jwUzvzbSAl6sTAj6ajBNiwK4oX4aYckgrbMCvcG/s1600/2014-06-14+07.09.08.jpg" height="240" width="320" /></a></div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEilFpqaxKheIgHqxnhRjtKq-mg2IA7PAPfyou8r7t36PoVN7Nw9p3w9OjUgTmveW-4SR9cWqF1ZAJABJ6AAqXdOhXjGiaU45GZiOVS-FQ6LlKgHPfBHne8vnJa8iE8rZuVO7UwdeFAgsFer/s1600/2014-06-14+07.47.26.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEilFpqaxKheIgHqxnhRjtKq-mg2IA7PAPfyou8r7t36PoVN7Nw9p3w9OjUgTmveW-4SR9cWqF1ZAJABJ6AAqXdOhXjGiaU45GZiOVS-FQ6LlKgHPfBHne8vnJa8iE8rZuVO7UwdeFAgsFer/s1600/2014-06-14+07.47.26.jpg" height="240" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="font-size: large;">यहाँ से हमने दोबारा रिक्शा किया और पहुँच गए हर की पौड़ी के बाहर </span><br />
<span style="font-size: large;">हर की पौड़ी पर पहुँचने के लिए काफी सारी सीड़ियाँ नीचे उतरनी पड़ती हैं यहाँ हर सीढ़ी पर भिखारी अपना कब्ज़ा किये बैठे हैं और गन्दगी तो बेशुमार है यहाँ प्रशासन की ओर से कमी अभी भी खलती है यहाँ कोई कूड़ादान नजर नही आता है यहाँ खाली दूध की थैलियाँ, फूल पत्ते और बाकी कचरा फैंका जा सके |</span><br />
<span style="font-size: large;">कुछ सीडियां उतर कर जूता स्टैंड है यहाँ आप अपने जूते जमा कराकर हर की पौड़ी पर स्नान के लिए जा सकते हैं दो जूता घर हैं दोनों तरफ से आने वालों के लिए लेकिन जूते अगर ज्यादा हों तो इनके पास कोई बोरी या थैले की सुविधा नही है और आपका सामान वगेरह रखने की कोई सुविधा यहाँ नहीं है जो लोग अकेले आते हैं वो घाट पर बैठे किसी भी पण्डे के पास अपना कीमती सामान रख सकते हैं जिसके वो निसंदेह पैसे लेते हैं मुफ्त सुविधा कोई नहीं है |</span><br />
<span style="font-size: large;">हर की पौड़ी पर ही एक महिला घाट है जो बस नाम मात्र का है जिसमें पहले रेत भरी रहती थी अब उसमें पानी ही नही है इसलिए सब महिलाएं बाहर नहाना ही पसंद करती हैं | महिला घाट के अन्दर कुछ तख़्त पड़े हैं जिन पर मोटी मोटी पंडिताईन बैठी हैं जो आपका सामान रखने का आपसे पैसा लेती हैं | यहाँ महिलाएं सिर्फ कपडे बदलने के लिए आती हैं |</span><br />
<span style="font-size: large;">हमने सबने बारी बारी स्नान किया और फिर बाहर आ गए और दोबारा अपने जूते वापिस लेकर हम सीड़ियाँ चढकर बाहर पहुँच गए और फिर हमने यहाँ से टेम्पो किया धर्मशाला के लिए जो आने के लिए तो प्रति सवारी दस रुपये किराया ले रहा था लेकिन वापिसी में प्रति सवारी बीस रुपये किराया लिया गया | खैर हम सब 8 बजे तक धर्मशाला पहुँच गए थे | </span><br />
<span style="font-size: large;"> 8.30 बजे नाश्ते के लिए जाना था इसलिए सब दोबारा स्नान कर तैयार होने चले गए क्योंकि गंगा नहाने के बाद कपड़ों में रेत आ जाती है | इसके बाद नाश्ता किया गया नमकीन और मीठे दलिए के साथ |</span><span style="font-size: large;">इसके बाद हर कोई स्वतंत्र था यहाँ भी कोई जाना चाहे | कुछ लोग नीलकंठ चले गए कुछ मनसा देवी ,कुछ ऋषिकेश और हमारा ग्रुप तैयार हुआ पतंजलि योगपीठ जाने के लिए |</span><br />
<span style="font-size: large;">पतंजलि योगपीठ यहाँ से लगभग 25 किलोमीटर दूर है इसलिए नाश्ता करने के बाद लगभग 9.30 बजे हम सब निकल पड़े ताकि दोपहर के भोजन तक हम वापिस धर्मशाला में आ सकें |</span><br />
<span style="font-size: large;"> यहाँ जाने के लिए हमने दो टेम्पो किये क्योंकि एक में सात लोग बैठ सकते हैं सभी लोग इसमें बैठ कर निकल पड़े वहां पहुँचने में हमें लगभग 45 मिनट लगे |टेम्पो वाले ने वहां जाने के लिए प्रति सवारी 30 रुपये लिए |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjbaqbmoRpOCSLxh_UYJe_zbI5aK4-3ZCtFwnIEGd27FGhC0EgfZIBuHYeCFJg1rpnQZCk9q3Tz_dOTK2wr2dgzEab2cEIcO24L4GX2kGACVXoPUvSDef660LWVtj280IWRnWiiCabLyXRC/s1600/2014-06-14+11.37.19.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjbaqbmoRpOCSLxh_UYJe_zbI5aK4-3ZCtFwnIEGd27FGhC0EgfZIBuHYeCFJg1rpnQZCk9q3Tz_dOTK2wr2dgzEab2cEIcO24L4GX2kGACVXoPUvSDef660LWVtj280IWRnWiiCabLyXRC/s1600/2014-06-14+11.37.19.jpg" height="240" width="320" /></a></div>
<br />
<span style="font-size: large;">यहाँ पहुंचने के बाद थोडा घूम कर हमने इसे देखा फिर जलपान के लिए पहुंचे इसकी कैंटीन में जिसका नाम है 'अन्नपूर्णा ' यहाँ की शुद्ध घी से निर्मित जलेबी का स्वाद आप चखे बिन नहीं रह सकते | सबने यहाँ फ्रूट चाट ,गोलगप्पे, जलेबी और चाट पकौड़ी खाई सभी स्वादिष्ट बना हुआ था यहाँ शुद्ध घी से निर्मित मिठाइयाँ भी मिलती हैं |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<img height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhOzdO-ogJ0TANm0vBUF4U_AI6Ql9UzsQm35hnOMGMzu3l3FMdgamAcNbOOy4OHJkdJ_A2reTAP1EPj0zgDayLpGx1TgI_AZQyTHS0Wc9MSGQrz7lewW-6kfRNsnmUdm1Jhd-atPc-4y5lV/s1600/2014-06-14+11.33.44.jpg" width="320" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="font-size: large;"> इसके बाद हम दवाइयां लेने पहुंचे जिसको जो भी सामान चाहिए था लिया और फिर वापिस पहुंचे टेम्पो वाले के पास जो हमारा इन्तजार कर रहे थे क्योंकि धूप बहुत अधिक थी इसलिए कोई भी और घूमने के लिए तैयार नहीं था |</span><br />
<span style="font-size: large;">वापिसी में काफी गर्मी थी और ट्रैफिक जाम भी बहुत था इसलिए थोड़ा देर से पहुंचे हम धर्मशाला | फिर थोडा विश्राम करने के बाद भोजन का समय हो चूका था इसलिए हम सबने भोजन किया और अपने अपने कमरे में चले गए |</span><br />
<span style="font-size: large;">शाम के समय जो नील कंठ गए थे उनको काफी देर हो गई आने में और इतनी गर्मी के कारण कहीं भी जाने का मन नहीं हुआ इसलिए हम धर्मशाला के बाहर ही कुर्सी लगा कर बैठ गए और ठंडी तजि हवा का आनन्द लिया | कुछ लोग उस समय हर की पौढ़ी और कुछ पास वाले घाट पर नहाने के लिए चले गए |</span><br />
<span style="font-size: large;">अब सब अपने अपने कमरे में चले गए आराम करने | रात को 9 बजे फिर सभी भोजन के लिए पहुँचे |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg9dNPLD_7r15NOq5YxigO5HIiYBxPUpnnKs4WQKIBw2lhZVk3hKrs_qADvxJqAQE9GBWXyNDZ5747pkcpAhQaHKW5Ctjsfb9xCOh_X0MRHslcblIo5Tw9ti-mLjXfrsk6L7TrSdMSZ0CEQ/s1600/2014-06-14+20.53.27.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg9dNPLD_7r15NOq5YxigO5HIiYBxPUpnnKs4WQKIBw2lhZVk3hKrs_qADvxJqAQE9GBWXyNDZ5747pkcpAhQaHKW5Ctjsfb9xCOh_X0MRHslcblIo5Tw9ti-mLjXfrsk6L7TrSdMSZ0CEQ/s1600/2014-06-14+20.53.27.jpg" height="240" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="font-size: large;">उसके बाद बाहर बरामदे में ही भजन कीर्तन का कार्यक्रम चलता रहा | उसके बाद सभी सोने के लिए चले गए |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: x-large;">तीसरा दिन </span></div>
<span style="font-size: large;">आज सुबह सभी उठकर अपने कार्यों से निवृत होकर नाश्ता करने चले गए | उसके बाद लगभग 9 बजे सभी अपने अपने गंतव्य की ओर बढ़ गए | हम कुछ लोगों ने शांतिकुंज जाने का कार्यक्रम बनाया जो धर्मशाला से केवल 10-12 किलोमीटर की दूरी पर ही था ,इसलिए सबने टेम्पो ले लिया और 10..10 रुपए देकर वहां पहुँच गए |</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">शांतिकुंज :-</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">रेलवे स्टेशन/बस स्टैण्ड से हर की पौड़ी पहुंचने के बाद यहाँ से बाई पास रोड़ में सूखी नदी तथा भारतमाता मन्दिर पार करके उसी मार्ग पर शांतिकुंज स्थित है। यहाँ पर कार से पँहुचने में 15 मिनट, रिक्शा से पँहुचने में 30 मिनट, एवं पैदल पँहुचने में 45 मिनट लगते है। </span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">संस्थान की स्थापना :</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">पं. श्रीराम शर्मा आचार्य एवं माता भगवती देवी शर्मा द्वारा इस आश्रम की स्थापना 1971में की गई थी।</span><br />
<span style="font-size: large;">अंदर जाने से पहले प्रवेश सूचना देनी होती है रजिस्टर में लिख कर कितने लोग जा रहे हैं | बहुत ही साफ़ सफाई और सुव्यवस्था का संगम है शांतिकुंज ,यहाँ बहुत सारे लोग अपनी वृद्ध अवस्था में आकर रहते हैं ,यहाँ रहने की बहुत ही सुंदर व्यवस्था है | जैसे अंदर पूरा एक क़स्बा बस्ता है | इसके अंदर ही दो कैंटीन हैं एक कैंटीन में कुछ सस्ता सामान मिलता है इसके साथ ही भोजनालय है यहाँ पर दिन में दो बार मुफ्त भोजन की व्यवस्था है यहाँ पर कुछ लोग आकर दान रूप में भोजन वितरण भी करते हैं | अंदर ही आयुर्वेदिक दवाइयां जो यहाँ निर्मित होती हैं उचित मूल्य पर मिलती हैं | बहुत सारे विभाग हैं यहाँ ,जिनमे लोग रहते हैं ,उनको ऋषिओं के नाम पर नाम दिया गया है | यहाँ जूते रखने की व्यवस्था बहुत ही उत्तम है | शांति कुञ्ज की कुछ झलकियाँ ...</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZKix0d1-Vz46ch7gUUgOEuUJUVyjobM72XZaKyEfzXQBVRvViSMlcArKhFM6okerZuEXlkgRXVbF9optDVBhyxEDELvBr0DEZ1N4OIqJMEweAQlunYmlie2q5yK99V5Z0WCg5d9AOc9iX/s1600/2014-06-15+10.07.50.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZKix0d1-Vz46ch7gUUgOEuUJUVyjobM72XZaKyEfzXQBVRvViSMlcArKhFM6okerZuEXlkgRXVbF9optDVBhyxEDELvBr0DEZ1N4OIqJMEweAQlunYmlie2q5yK99V5Z0WCg5d9AOc9iX/s1600/2014-06-15+10.07.50.jpg" height="240" width="320" /></a></div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgwkf4F6xOK4Xi8-GjvgHrLPb_4lTsrlW8QLKmPbcOSEC6bVO0dPA0-ay4A2cxISVhWOiqXAeaW65xhe-yaKK8v0zQYCTqGzlKcCEVeZ12JB1y5r0wOVipz-suffrUIImYZJQCnW8gzdmZR/s1600/2014-06-15+10.28.57.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgwkf4F6xOK4Xi8-GjvgHrLPb_4lTsrlW8QLKmPbcOSEC6bVO0dPA0-ay4A2cxISVhWOiqXAeaW65xhe-yaKK8v0zQYCTqGzlKcCEVeZ12JB1y5r0wOVipz-suffrUIImYZJQCnW8gzdmZR/s1600/2014-06-15+10.28.57.jpg" height="240" width="320" /></a></div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiBSeeYDOf8sBAziMsoi0SYUgbeRK3NSyNR4GG_mNYmH7csUCMbOTr9Jt_dMpVf0fQULA50VugwHdGJGm7uQaq7s9y3sA5TRDcPxTvxbCldeE3I3TYmx3RF_COdwPW8m1-_paRqqCeX8Nfh/s1600/2014-06-15+10.02.56.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiBSeeYDOf8sBAziMsoi0SYUgbeRK3NSyNR4GG_mNYmH7csUCMbOTr9Jt_dMpVf0fQULA50VugwHdGJGm7uQaq7s9y3sA5TRDcPxTvxbCldeE3I3TYmx3RF_COdwPW8m1-_paRqqCeX8Nfh/s1600/2014-06-15+10.02.56.jpg" height="240" width="320" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
<span style="font-size: large;">जैसे की गर्मी बहुत अधिक हो रही थी इसलिए हमने जल्दी वापिस आना ही उचित समझा | वापिस आकर हमने दोपहर का भोजन लिया और वापिस अपने अपने कमरे में चले गए | </span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
<span style="font-size: large;">शाम को गंगा आरती देखने का प्रोग्राम था जिसे देखने के लिए लोग बहुत दूर दूर से हर की पौढ़ी पर पहुंचते हैं | क्योंकि आरती का समय 7 बजे के बाद का रहता है और हमें बाजार से कुछ सामान भी लेना था इसलिए हम 5 बजे तक धर्मशाला से निकल चुके थे ,क्योंकि भीमघोड़ा सड़क पर चप्पल की बहुत अच्छी दुकाने हैं यहाँ मोल भाव करके बहुत मजबूत चप्पलें आप ले सकते हैं |उसके बाद हमने दोबारा रिक्शा किया हर की पौढ़ी के लिए |</span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
<span style="font-size: large;">आरती शुरू होने वाली थी ,इसलिए सबको गंगा किनारे बिठाने के लिए वहां काफी कार्यकर्त्ता तैनात थे वहां प्लास्टिक की पन्निओं की बनी चादरें बिछा दी गई थीं ,जिस पर सब बैठ गए आरती का आनंद लेने के लिए और लोग जो आते रहे सब पीछे खड़े होते गए | तभी मन्त्र उच्चारण के साथ शुरू हुई गंगा आरती जिसमें 11 या 13 पंडितों ने भाग लिया ,रात होने को थी और कल कल बहती गंगा के किनारे जगमगा उठे थे लहरों पर भी दिए सवार होकर निकल पड़े थे दूसरे गंतव्य को सभी अपलक इस दृश्य को अपने अपने कैमरे में कैद करने लग गए थे | जो सेवक तैनात थे सबकी व्यवस्था करने में लगे थे ,सबके हाथ में एक एक पुस्तिका थी यानि दान पर्ची ,जो आरती के उपलक्ष्य में जलाये जाने वाले दिओं के लिए दान स्वरुप ली जा रही थी | आइये आपको ले चलें गंगा किनारे आरती दर्शन के लिए कुछ झलकियों के साथ ....</span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg3LMMMLbJ1alIEzXij4sJRtl3WztL2uCrmUADlS8011gFeg5RAMS3958H4xLFWQh09JvvKIUqIFdRQZknoLzHLpamJTW2DoZHmJLw7ilkJK2pq-anOuJLugis_KggGo0C5R44RPTbhSRlg/s1600/2014-06-15+19.36.47.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg3LMMMLbJ1alIEzXij4sJRtl3WztL2uCrmUADlS8011gFeg5RAMS3958H4xLFWQh09JvvKIUqIFdRQZknoLzHLpamJTW2DoZHmJLw7ilkJK2pq-anOuJLugis_KggGo0C5R44RPTbhSRlg/s1600/2014-06-15+19.36.47.jpg" height="240" width="320" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">आरती से फ्री होकर हम सब वापिस धर्मशाला के लिए चले ,वापिसी में बहुत मुश्किल से रिक्शा मिली भीमगौडा तक वो भी दुगने पैसों के साथ और वहां से आगे कोई टेम्पो 200 रुपये से कम जाने को तैयार नही हो रहा था जिसकी आने की कीमत हमने सिर्फ 70 रुपये दी थी | वहां कोई आपको सुनने वाला नही है | बहुत मुश्किल से हम धर्मशाला पहुंचे और खाना खाकर अपने अपने कमरे में चले गए |</span></div>
<div style="text-align: left;">
<br /></div>
</div>
<span style="font-size: large;"><b><a href="http://prabhumahima.blogspot.in/2014/07/3.html" target="_blank">हरिद्वार यात्रा भाग 3.</a>क्रमशः ....</b></span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<!-- Blogger automated replacement: "https://images-blogger-opensocial.googleusercontent.com/gadgets/proxy?url=http%3A%2F%2F1.bp.blogspot.com%2F-gMn1elzBtso%2FU8opjlrFOuI%2FAAAAAAAAC-0%2FYR-GrbLvEzA%2Fs1600%2F2014-06-14%2B11.33.44.jpg&container=blogger&gadget=a&rewriteMime=image%2F*" with "https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhOzdO-ogJ0TANm0vBUF4U_AI6Ql9UzsQm35hnOMGMzu3l3FMdgamAcNbOOy4OHJkdJ_A2reTAP1EPj0zgDayLpGx1TgI_AZQyTHS0Wc9MSGQrz7lewW-6kfRNsnmUdm1Jhd-atPc-4y5lV/s1600/2014-06-14+11.33.44.jpg" -->Guzarishhttp://www.blogger.com/profile/11205127840621066197noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3773685922890348520.post-73508929404619522272014-06-25T05:36:00.001-07:002014-08-02T05:01:20.774-07:00हरिद्वार यात्रा भाग 1.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">दोस्तों वादे के अनुसार एक और धार्मिक यात्रा वृतांत के साथ आप सबके समक्ष हाजिर हूँ पहले हरिद्वार यात्रा का थोड़ा सा जिक्र मुल्तान ज्योत महोत्सव के तौर पर कर चुकी हूँ जिसमें मुख्य बिंदु ज्योत महोत्सव के ही रहे ,अब लेकर आई हूँ हरिद्वार यात्रा संस्मरण और उसके आसपास के दर्शनीय स्थल तो चलिए बढ़ते हैं अपने पहले पड़ाव की ओर ....</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><b>हरिद्वार </b></span></div>
<span style="color: blue; font-size: large;">पवित्र गंगा नदी के किनारे बसे 'हरिद्वार' का शाब्दिक अर्थ है- 'हरि तक पहुँचने का द्वार'। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, हरिद्वार वह स्थान है जहाँ अमृत की कुछ बूँदें भूल से घडे से गिर गयीं जब खगोलीय पक्षी गरुड़ उस घडे को समुद्र मंथन के बाद ले जा रहे थे। चार स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरीं, और ये स्थान हैं:- उज्जैन, हरिद्वार, नासिक, और प्रयाग| </span><br />
<span style="font-size: large;"><span style="color: blue;"></span></span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">हरिद्वार एक अंतरराष्ट्रीय तीर्थ स्थान होने के कारण यहाँ साल भर लाखों करोड़ों की संख्या में श्रद्धालू देश विदेश से आते है |</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<img src="http://yatrasalah.com/CityImages/Images/14.jpg" /><br />
<br />
<br />
<div style="text-align: left;">
<span style="color: blue; font-size: large;"><b>स्थिति :---</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="color: blue; font-size: large;">हरिद्वार, हरिद्वार जिला, उत्तराखण्ड, भारत में एक पवित्र नगर और नगर निगम बोर्ड है। हिन्दी में, हरिद्वार का अर्थ हरि "(ईश्वर)" का द्वार होता है। हरिद्वार हिन्दुओं के सात पवित्र स्थलों में से एक है। हरिद्वार जिला, सहारनपुर डिवीजनल कमिशनरी के भाग के रूप में २८ दिसंबर १९८८ को अस्तित्व में आया। २४ सितंबर १९९८ के दिन उत्तर प्रदेश का पुनर्गठन किया गया , और इस प्रकार ९ नवंबर, २०००, के दिन हरिद्वार भारतीय गणराज्य के २७वें नवगठित राज्य उत्तराखंड (तब उत्तरांचल), का भाग बन गया।</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="color: blue; font-size: large;"><b>भूगोलिक स्थिति :---</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="color: blue; font-size: large;">३१३९ मीटर की ऊंचाई पर स्थित अपने स्रोत गौमुख (गंगोत्री हिमनद) से २५३ किमी की यात्रा करके गंगा नदी हरिद्वार में गंगा के मैदानी क्षेत्रो में प्रथम प्रवेश करती है, इसलिए हरिद्वार को गंगाद्वार के नाम सा भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है वह स्थान जहाँ पर गंगाजी मैदानों में प्रवेश करती हैं।</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="color: blue; font-size: large;"><b>पहुँचने के साधन :---</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="color: blue; font-size: large;">हरिद्वार देश के विभिन्न स्थलों से रेल एवं सड़क मार्ग से जुड़ा है। </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">रेल द्वारा :-</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><span style="color: blue;">दिल्ली से हरिद्वार तक की दूरी रेल द्वारा लगभग 225 किलोमीटर है |</span></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="color: blue; font-size: large;">हरिद्वार के लिए दिल्ली से लगभग 20 गाड़ियाँ निकलती हैं जिसका आम किराया 92 रुपये से 160 रुपये तक है थोड़ी सुविधा के साथ इसका किराया लगभग 466 रुपये और 661 रुपये है और थोड़ी और ज्यादा सुविधा के साथ इसका किराया 1083 से लेकर 1103 रुपये तक है |</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">बस द्वारा :-</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="color: blue; font-size: large;">बस से हरिद्वार की दूरी लगभग 208 किलोमीटर है डीटीसी बस सर्विस सुबह 7.30 बजे से शुरू होकर रात को 7 बजे तक उपलब्ध है जिसका किराया 143 रुपये है | </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="color: blue;"><span style="font-size: large;">बहुत सारी प्राइवेट बस सेवा</span><span style="font-size: large;"> भी उपलब्ध हैं जिनका किराया 250 रुपये से लेकर 750 रुपये तक है |</span></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">हवाई मार्ग द्वारा :-</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="color: blue; font-size: large;">विदेशी पर्यटकों के लिए हरिद्वार का निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट हवाई अड्डा देहरादून में है जो कि दिल्ली और देश के अन्य मुख्य हवाई अड्डों से जुड़ा हुआ है इसकी हरिद्वार से दूरी मात्र 34 किलोमीटर है और देहरादून के लिए दिल्ली से सप्ताह में चार उड़ानें होती हैं जेट लाइट और स्पाइस जेट द्वारा और इसका किराया लगभग 1000 रुपये है |</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">अपनी गाड़ी द्वारा :-</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="color: blue; font-size: large;">बहुत सारे लोग एकादशी,अमावस्या और पूर्णमाशी के लिए हर महीने हरिद्वार जाते हैं इसलिए सुविधा अनुसार अपनी गाड़ी उठाते हैं और चल देते हैं | </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="color: blue; font-size: large;"><b>जलवायु :---</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="color: blue; font-size: large;">तापमान</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="color: blue; font-size: large;">ग्रीष्मकाल: 15 डिग्री से- 42 डिग्री तक </span></div>
<div style="text-align: left;">
<br /></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="color: blue; font-size: large;">शीतकाल: 6 डिग्री से- 16.6 डिग्री तक</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="color: blue; font-size: large;"><b>ठहरने के स्थान :---</b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="color: blue; font-size: large;">यहां उत्तरांचल सरकार ने पर्यटकों के लिए आवास गृह बनाए हैं। पर्यटक अपने बजट के हिसाब से ठहरने के स्थान का चयन कर सकते हैं। यहाँ लगभग हर धर्म हर प्रान्त की धर्मशाला हैं , बहुत होटल भी उपलब्ध हैं किसी भी धर्मशाला में आप अपने पहचान के आधार पर रह सकते हैं | लगभग सभी धर्मशालाओं में खाने की व्यवस्था रहती है इसलिए आपको घर जैसा खाना मिल जाता है |</span></div>
<br /></div>
<span style="font-size: large;">वैसे तो हरिद्वार की बहुत बार यात्रा की है लेकिन सेवा भारती के साथ जाने का यह पहला अवसर था | </span><span style="font-size: large;">सेवा भारती वर्ष में दो बार अपने शिक्षिकों निरीक्षकों एवं अन्य सदस्यों को यात्रा पर लेकर जाता है जिसमें शिविर या अभ्यास वर्ग भी लगाया जाता है पर इस बार की यात्रा एक स्वतंत्र यात्रा के रूप में थी | सेवा भारती के साथ हरिद्वार का कार्यक्रम पूर्व नियोजित था इसलिए हमारी जनशताब्दी देहरादून से आने जाने की टिकटें पहले से बुक कर ली गई थीं | 13 जून को हमारा जाना और 16 जून को हमारी वापिसी निश्चित की गई थी |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="color: blue; font-size: large;"><b>सेवा भारती :---</b></span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">सेवा भारती वैसे तो किसी परिचय का मोहताज नहीं परन्तु जिनका कभी इससे परिचय नहीं हुआ तो उनके लिए इतना कहना है कि यह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा चालित एक प्रकल्प है जो मुख्यतः बनवासी क्षेत्रों में कार्य करता है | </span><span style="font-size: large;"><span style="color: blue;">पूरे देश में इसके लगभग एक लाख से ज्यादा केंद्र कार्यरत हैं |</span></span><br />
<span style="color: blue;"><span style="font-size: large;">मुख्य कार्य </span><span style="font-size: large;">:---</span><span style="font-size: large;"> </span><span style="font-size: large;">इसके मुख्य कार्य शिक्षा, संस्कार, सामाजिक जागरूकता, धर्म-परिवर्तन से वनवासियों की रक्षा आदि हैं </span><span style="font-size: large;">| इसमें मुख्यता बाल संस्कार , महिलाओं के लिए सौन्दर्य प्रसाधन की शिक्षा ,सिलाई की शिक्षा एवं कंप्यूटर की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाता है |</span><span style="font-size: large;"> </span></span><br />
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><b>पहला दिन </b></span></div>
<span style="font-size: large;">हम कुल 105 लोग थे जिसमें पश्चिमी जिले के छः विभाग के कार्यकर्त्ता ही सम्मलित थे | सबको अपने आप नई दिल्ली स्टेशन पर पहुंचना था | हमारी गाड़ी का चलने का समय था दोपहर 3.25 का इसलिए इस भीषण गर्मी से पार पाने के लिए घर से रिक्शा कर मेट्रो लेना ही उचित समझा ठीक 2.14 बजे हम मेट्रो में बैठ चुके थे .....</span><br />
<span style="font-size: large;">राजीव चौक से येलो लाइन बदल कर एक स्टेशन बाद ही हम नई दिल्ली मेट्रो स्टेशन पर 2.45 पर पहुंचे | यहाँ से बाहर निकल कर हमने प्लेटफोर्म संख्या 11 का रुख किया यहाँ पर हमारी गाड़ी जन शताब्दी लग चुकी थी ,पर यहाँ की अव्यवस्था ,बहुत सारी सीडियां और कोई भी लिफ्ट ना होने के कारण हम 3.14 पर ही गाड़ी के अन्दर पहुँच पाए | इतने में हम पसीने से लथपथ हो चुके थे जिसे सूखने में काफी देर लगी गाड़ी अपने निर्धारित समय पर चल चुकी थी | </span><br />
<span style="font-size: large;"> हम सब अपनी अपनी सीट पर बैठ चुके थे | गाड़ी वाताअनुकूलित नहीं थी इसलिए काफी गर्मी रही पर बातों में सफ़र कट गया पता ही नहीं चला गाड़ी का पहुँचने का समय था शाम 7.35 पर ,लेकिन 45 मिनट की देरी से पहुंची यानि 8.14 पर | </span><br />
<b style="font-size: x-large;">हम हरिद्वार स्टेशन पर उतर चुके थे और यहाँ की जो सबसे अच्छी बात रही वोह यह की यहाँ पर कोई सीढ़ी ना होकर केवल स्लाइड ही थी जिससे सभी वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को और सबको ही उतरने में बहुत सुविधा रही | </b><span style="font-size: large;">प्लेटफॉर्म से बाहर निकलते ही स्टेशन के बरामदों में और बाहर भी नजारा कुछ इस तरह था सब ने अपना रैन बसेरा बना रखा था और जमीन पर चादरें बिछा कर आराम से सो रहे थे |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhCc4AlQ11_242jT3D320SVtQUgt_GVUBUs2cde0oGY2-PbETOlubMsIdGS5Y83GZpzXK9pqUWVkd4TPJbAzj6kLlM96CJw7Bshehccsee5G-EjUm3Y_HwW3dla7vFE4pljr0BRjr6j0er9/s1600/2014-06-13+20.23.56.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhCc4AlQ11_242jT3D320SVtQUgt_GVUBUs2cde0oGY2-PbETOlubMsIdGS5Y83GZpzXK9pqUWVkd4TPJbAzj6kLlM96CJw7Bshehccsee5G-EjUm3Y_HwW3dla7vFE4pljr0BRjr6j0er9/s1600/2014-06-13+20.23.56.jpg" height="240" width="320" /></a></div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh3l7-YXxQ2-3fgjd9iTaaEFPcj4ZSKh28K6rDLgcxCONDApzN28JAOn-ZOI_NHd46vs4isQD3o1yH5eMu2VGNbJskM_vsYlzoZVLdNQJjIdh5ZzG9JDrySxWyaYHxtHoJZhxON6boV3z7T/s1600/2014-06-13+20.36.16.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh3l7-YXxQ2-3fgjd9iTaaEFPcj4ZSKh28K6rDLgcxCONDApzN28JAOn-ZOI_NHd46vs4isQD3o1yH5eMu2VGNbJskM_vsYlzoZVLdNQJjIdh5ZzG9JDrySxWyaYHxtHoJZhxON6boV3z7T/s1600/2014-06-13+20.36.16.jpg" height="240" width="320" /></a></div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhvcbSuI6hoGD4o-gtrfp-SQPZTw-SmisQUD6_pNFviA6GZUciF9EHjDwvitJP33hN831I6Gb1AZRyv3UhGYFHXPC2cmwTIzrtyPMNSndzVbw2F-lLy586e7oCx2uf_8sFZNrgZ40L8I5Nx/s1600/2014-06-13+20.37.52.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhvcbSuI6hoGD4o-gtrfp-SQPZTw-SmisQUD6_pNFviA6GZUciF9EHjDwvitJP33hN831I6Gb1AZRyv3UhGYFHXPC2cmwTIzrtyPMNSndzVbw2F-lLy586e7oCx2uf_8sFZNrgZ40L8I5Nx/s1600/2014-06-13+20.37.52.jpg" height="240" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="font-size: large;">जब सभी इक्कट्ठे हो गए तो स्टेशन से बाहर निकल धर्मशाला तक जाने का कार्यक्रम शुरू हुआ | कुछ ऑटो जिसमें सात सीट होती हैं वहीँ पर सात सात लोगों को लेकर धर्मशाला पहुँचने लगे जिसका हरेक को 30 रुपये किराया देना था | </span><br />
<span style="font-size: large;">हमारी धर्मशाला<b> दूधाधारी मंदिर के सामने आश्रम बाबा जोध सचियार </b>जोकि ऋषिकेश जाने वाले प्रमुख मार्ग पर स्थित थी जिसमें सेवा भारती द्वारा पहले से व्यवस्था की गई थी | </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj6VqQrSXyH2hDzpTlCywNk8q-8jQu1h9k_rcGeCUVbwKsqR-MHhyphenhyphenr_AN6-IgJ74J766dojqkJR3wBUxPrYQmb3MgWqZJ3gVOVRlWrsvglAdrWugNjzPK5h3OwgLra6kExGTJRin1Nf1nwy/s1600/2014-06-13+22.31.30.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj6VqQrSXyH2hDzpTlCywNk8q-8jQu1h9k_rcGeCUVbwKsqR-MHhyphenhyphenr_AN6-IgJ74J766dojqkJR3wBUxPrYQmb3MgWqZJ3gVOVRlWrsvglAdrWugNjzPK5h3OwgLra6kExGTJRin1Nf1nwy/s1600/2014-06-13+22.31.30.jpg" height="240" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="font-size: large;">सबको कमरे मिल जाने के बाद सबने सामान रखा और पहुँच गए भोजनशाला में यहाँ खाने की व्यवस्था की गई थी |</span><br />
<span style="font-size: large;">भोजन के बाद सभी अपने अपने कमरे में सोने के लिए चले गए |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b><a href="http://prabhumahima.blogspot.in/2014/07/2.html" target="_blank">हरिद्वार यात्रा भाग 2.</a>क्रमशः.....</b></span><br />
<br /></div>
Guzarishhttp://www.blogger.com/profile/11205127840621066197noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3773685922890348520.post-21747067881124437232014-02-04T20:39:00.000-08:002014-02-05T03:19:34.386-08:00गढ़ मुक्तेश्वर <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;"><span style="color: blue;">कार्तिक का महीना एक पवित्र महीना माना जाता है जिसमें गंगा स्नान का विशेष महत्व रहा है | 12 नवम्बर का दिन हमने भी चुना इस बार गढ़ मुक्तेश्वर जाने के लिए | अपनी ही गाड़ी में हमने जाने का फैसला किया | लगभग 9 बजे हम निकल पड़े घर से ,फिर पटेल नगर से बाकी सदस्यों को लेते हुए हम 9.30 बजे वहाँ से रवाना हो गए अपने नये गंतव्य गढ़ मुक्तेश्वर की ओर | </span></span><br />
<span style="font-size: large;"><span style="color: blue;"><br /></span></span>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjY9iT98YjschYXyT0pLVyeLf88OBi6wn1t5F122uLynBs72pUOcFtxoQPyzgui7JJxcrc2KbhHVblQ3nlLH9RQTp1FFIiZgm3fZVjwjs-1NlQ4cG9BA22Uo_LTj_N6nLBbkI6awLTEel1d/s1600/DSC07197.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjY9iT98YjschYXyT0pLVyeLf88OBi6wn1t5F122uLynBs72pUOcFtxoQPyzgui7JJxcrc2KbhHVblQ3nlLH9RQTp1FFIiZgm3fZVjwjs-1NlQ4cG9BA22Uo_LTj_N6nLBbkI6awLTEel1d/s1600/DSC07197.JPG" height="240" width="320" /></a></div>
<span style="font-size: large;"><span style="color: blue;"><br /></span></span>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjDGmW7JITMps9orvmYPZbrfRQPsl9ZQhve59ZOvPesjt_uxWftPPz9KpF-n-YFJT0RWa-UN8ZIoFB2NXOicsIJ988BLiCwwmYJ_2__iKBVHAlV_3gDFcqzSyTbOxrnXTHm7pl3jRlTPoOG/s1600/DSC07184.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjDGmW7JITMps9orvmYPZbrfRQPsl9ZQhve59ZOvPesjt_uxWftPPz9KpF-n-YFJT0RWa-UN8ZIoFB2NXOicsIJ988BLiCwwmYJ_2__iKBVHAlV_3gDFcqzSyTbOxrnXTHm7pl3jRlTPoOG/s1600/DSC07184.JPG" height="240" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="font-size: large;"><b>परिचय एवं स्थिति :---</b></span><br />
<span style="font-size: large;">गढ़मुक्तेश्वर भारत के उत्तरप्रदेश राज्य के हापुड़ जिले का शहर है। इसे गढवाल जाटों ने बसाया था। गंगा नदी के किनारे बसा यह शहर गढवाल राजाओं की राजधानी था। बाद में पृथ्वीराज चौहान ने हड़प लिया। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सौ किलोमीटर दूर 'राष्ट्रीय राजमार्ग 24' पर 'गढ़मुक्तेश्वर' नामक नगर बसा है जो हापुड़ ज़िले का एक तहसील मुख्यालय है। गढ़मुक्तेश्वर मेरठ से 42 किलोमीटर दूर स्थित है और गंगा नदी के दाहिने किनारे पर बसा है। विकास की दृष्टि से गढ़मुक्तेश्वर सबसे पिछड़ी तहसील मानी जाती है, किंतु सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यहाँ कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाला गंगा स्नान पर्व उत्तर भारत का सबसे बड़ा मेला माना जाता है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<img alt="Garhmukteshwar is located in Uttar Pradesh" src="http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/7/7f/India_Uttar_Pradesh_location_map.svg/250px-India_Uttar_Pradesh_location_map.svg.png" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="color: blue; font-size: large;">दिल्ली से इसकी दूरी लगभग 85 किलोमीटर है ,क्योंकि सुबह का समय था तो इतनी भीड़ नहीं थी और हमने खाना गाड़ी में ही रख लिया था इसलिए जल्दी से हम बढते जा रहे थे | किसी अच्छे ढाबे जा होटल की तलाश करते करते हम तीन घंटे में वहाँ पहुँच गए थे |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>कैसे पहुंचें :---</b></span><br />
<span style="font-size: large;">सड़क मार्ग से :-</span><br />
<span style="font-size: large;">दिल्ली से यहां की दूरी लगभग 85 किलोमीटर है। उत्तर प्रदेश रोडवेज की नियमित बसें 'आनन्द विहार बस अड्डा, दिल्ली से चलती हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;">रेल मार्ग से :-</span><br />
<span style="font-size: large;">यहाँ दो रेलवे स्टेशन हैं गढ़मुक्तेश्वर सिटी और बृजघाट रेलवे स्टेशन |</span><br />
<span style="font-size: large;">बृजघाट रेलवे स्टेशन यहां से 6 किलोमीटर की दूरी पर है। </span><span style="font-size: large;">यह दिल्ली मुरादाबाद रूट पर पड़ता है | यह बड़े बड़े शहरों जैसे लखनऊ ,इलाहाबाद ,रोहतक ,सहारनपुर ,मुज्जफरपुर से जुदा हुआ है | </span><br />
<span style="font-size: large;">अपनी गाड़ी :-</span><br />
<span style="font-size: large;">यह विकल्प तो है ही हमेशा अपने अनुसार चलने के लिए |</span><br />
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span>
<span style="font-size: large;"><b>निवास :---</b></span><br />
<span style="font-size: large;">यहाँ पर कुछ अच्छे होटल हैं जो हाईवे पर हैं और सभी जरुरी सुविधायों से सुसज्जित हैं जैसे राही टूरिस्ट बंगलो ,होटल क्रिस्टल पैलेस, राजमहल होटल,होटल कृष्णा सागर आदि लेकिन घाट के पास कोई भी अच्छा निवास अच्छी सुविधाओं के साथ उपलब्ध नहीं है |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>पौराणिक महत्त्व :---</b></span><br />
<span style="font-size: large;">भागवत पुराण व महाभारत के अनुसार यह कुरु की राजधानी हस्तिनापुर का भाग था। आज पर्यटकों को यहां की ऐतिहासिकता और आध्यात्मिकता के साथ-साथ प्राकृतिक ख़ूबसूरती भी खूब लुभाती है। मुक्तेश्वर शिव का एक मन्दिर और प्राचीन शिवलिंग कारखण्डेश्वर यहीं पर स्थित है। काशी, प्रयाग, अयोध्या आदि तीर्थों की तरह 'गढ़मुक्तेश्वर' भी पुराण उल्लिखित तीर्थ है। शिवपुराण के अनुसार 'गढ़मुक्तेश्वर' का प्राचीन नाम 'शिववल्लभ' (शिव का प्रिय) है, किन्तु यहां भगवान मुक्तीश्वर (शिव) के दर्शन करने से अभिशप्त शिवगणों की पिशाच योनि से मुक्ति हुई थी, इसलिए इस तीर्थ का नाम 'गढ़मुक्तीश्वर' (गणों की मुक्ति करने वाले ईश्वर) विख्यात हो गया। </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>कथा :---</b></span><br />
<span style="font-size: large;">शिवगणों की शापमुक्ति की संक्षिप्त कथा इस प्रकार है- प्राचीन समय की बात है क्रोधमूर्ति महर्षि दुर्वासा मंदराचल पर्वत की गुफा में तपस्या कर रहे थे। भगवान शंकर के गण घूमते हुए वहां पहुंच गये। गणों ने तपस्यारत महर्षि का कुछ उपहास कर दिया। उससे कुपित होकर दुर्वासा ने गणों को पिशाच होने का शाप दे दिया। कठोर शाप को सुनते ही शिवगण व्याकुल होकर महर्षि के चरणों पर गिर पड़े और प्रार्थना करने लगे। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर दुर्वासा ने उनसे कहा - हे शिवगणो! तुम हस्तिनापुर के निकट खाण्डव वन में स्थित 'शिववल्लभ' क्षेत्र में जाकर तपस्या करो तो तुम भगवान आशुतोष की कृपा से पिशाच योनि से मुक्त हो जाओगे। पिशाच बने शिवगणों ने शिववल्लभ क्षेत्र में आकर कार्तिक पूर्णिमा तक तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन उन्हें दर्शन दिए और पिशाच योनि से मुक्त कर दिया। तब से शिववल्लभ क्षेत्र का नाम 'गणमुक्तीश्वर' पड़ गया। बाद में 'गणमुक्तीश्वर' का अपभ्रंश 'गढ़मुक्तेश्वर' हो गया। गणमुक्तीश्वर का प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर आज भी इस कथा का साक्षी है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="color: blue; font-size: large;">यहाँ पहुँचने के बाद हमने गाड़ी घाट की तरफ ले जानी चाही क्योंकि घाट तक जाने के लिए पैदल चलना पड़ता और पार्किंग काफी दूर थी हाई वे के बाई तरफ यहाँ कुछ गेस्ट हाउस वगेरह भी थे तो वहाँ पुलिस वाले खड़े थे अवरोध लगाकर उन्होंने गाड़ी अन्दर ले जाने के लिए रोका फिर वोही हुआ गाड़ी एक साइड खड़ी करके आए और उससे बात करके गए तब उसने गाड़ी ले जाने दी क्योंकि उसकी मुट्ठी गरम कर दी गई थी मात्र सौ रुपये देकर |</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">वहाँ पहुंचकर हमने घाट के नजदीक कोई होटल या गेस्ट हाउस वगेरह ढूंडना चाहा एक ही गेस्ट हाउस मिला वो भी इतना गन्दा था की हमने उसे ना लेने का निर्णय बनाया क्योंकि हमें सिर्फ कपड़े वगेरह बदलने के लिए ही इसकी जरुरत थी |वैसे घाट के पास बहुत सारी फानूस की बनी हुई झोंपड़ीयां हैं जो किराये पर मिलती हैं जैसा की चित्रों में दिखाया गया है |</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj1UTiTamZCOPikb2UZtj6f-nZOTeblz7sDfnyJ5yjWD5_nQ0C-IvDbS52uWyftNHLhkcj2oTgh-fKQ4Z9PZpg5R-5y4GsFcsAs3Kz5BHtNBsvrd-CGpOxv2r5OuEjgsOtPfoACkVLm4YvH/s1600/DSC07183.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj1UTiTamZCOPikb2UZtj6f-nZOTeblz7sDfnyJ5yjWD5_nQ0C-IvDbS52uWyftNHLhkcj2oTgh-fKQ4Z9PZpg5R-5y4GsFcsAs3Kz5BHtNBsvrd-CGpOxv2r5OuEjgsOtPfoACkVLm4YvH/s1600/DSC07183.JPG" height="240" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="color: blue; font-size: large;">क्योंकि कार्तिक माह चल रहा था इसलिए काफी स्त्रियाँ हवन यज्ञ में व्यस्त नज़र आईं | सब मिलकर हवन कर रहीं थी |</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<img height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgoawj8RYggpQO-bmiHXrPROiPbKPNqZ_ZK7C0LsZ_HKDKXAkl_PgshtDQGjZ-KTqJ9VaxRuEZMFKVpGK0hMI_2A8EyceiZz0ESWvzp-P5t7NwKRwMmgTEGZMSV-yPQQ4mwGTzuvroK7GGa/s1600/DSC07166.JPG" width="320" /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="color: blue; font-size: large;">हमने घाट के उस पार जाकर नहाने का मन बनाया |हम घाट की तरफ बढ़ गए और नाव वाले से पूरी नाव दूसरे पार ले जाने का मूल्य पूछा जबकि एक सवारी का मूल्य 40 रुपये लिखा हुआ था और हम कुल 6 लोग थे हमने उससे 200 रुपये में बात करली | </span><span style="color: blue; font-size: large;">उस पार पहुँचने के लिए रास्ते में ज्यादा पानी नहीं था कभी कभी नाव ले जाने वाला उतरकर पानी में खड़ा हो जाता नाव को ठेलने के लिए | </span><span style="color: blue; font-size: large;">और वो हमें उस पार छोड़ आया | </span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<img height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjoCPyTJqJ7N_MBlHyfzleUY7Y0l6VNwMOD4wHtjoyyRULeBx3nfoaPCofhMOjFwXSvYg5k1TAmW6yq2FVkXNOA6I7cBCsYyH7gM-BnU35-kkceVTjFsaMduFWi5_MuyZ0Do4lgf7jSvXY2/s1600/DSC07185.JPG" width="320" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="color: blue; font-size: large;">यहाँ पर बहुत सारे तख्तपोश लगे हुए हैं जिस पर आप सामान रख सकते हैं बैठ सकते हैं खाना खा सकते हैं |यहाँ पहुंचकर हमने जूते वगेरह उतारकर एक तख्तपोश पर सारा सामान रख दिया | जो नहाने के इच्छुक थे वो नहाने के लिए चल पड़े | हमने स्नान किया आराम से क्योंकि पानी ना तो गहरा था ना ही उसमें बहाव था |</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<img height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgwYNK3ETn_g4WbTpqhJ-n4RKSCoZ2b-LtoSsRPO0HFkg-nT23Bkulwqk5Y7b4yU0UtJtD4pHTXscGWEeaDEARHuGBI0rOfdVVSbpHqWIJ0w8UXw-Z1M2kIWKZvcBF_KWGbM6F-SToqG-sy/s1600/DSC07208.JPG" width="320" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
<img height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjFwoSLYmL8ho_jLgVA4APFcKljBls32YuiWm4lhYsAi5C1jd0LnBoLD3vLtpjSZYAlB2Sp3-B1-LG3cfXDhB8mtlka1D1Ry9wKHXcvwbCsDiSaFw47Ki9RkC4wnlwrLrVfWeqmWs763psn/s1600/DSC07220.JPG" width="320" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="color: blue; font-size: large;">उसके बाद एक फानूस के पत्तों से बने कमरे में जिसमें साड़ी या दुपट्टे का पर्दा लगा था उसमें जाकर कपड़े बदले |</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">तब तक खाने की इच्छा प्रबल हो चुकी थी हमने खाना जो साथ लेकर आए थे वो खोला और पूरी पिकनिक की तरह उसका आनंद उठाया |</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh7ZvJqbPY2We8wmyayeqc5FfBCQISmAFb724ie6VAfDil71iCGm75fKqQsFHni38waa9CBIuZ4AVRfOYhRXby38x90kPiVBXzoSbnLGB7taGdLMJFp9gpA6plp29O07zEsS8rsTA2-LpG0/s1600/DSC07230.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh7ZvJqbPY2We8wmyayeqc5FfBCQISmAFb724ie6VAfDil71iCGm75fKqQsFHni38waa9CBIuZ4AVRfOYhRXby38x90kPiVBXzoSbnLGB7taGdLMJFp9gpA6plp29O07zEsS8rsTA2-LpG0/s1600/DSC07230.JPG" height="240" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="color: blue; font-size: large;">पेट पूजा होने तक नाव दोबारा हमें लेने पहुँच चुकी थी हमने वहीँ पूजा की और नाव में बैठकर वापिस उसी किनारे पहुँच गए |</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<img height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj0sU5rZ_yTjeioFIh4ObK8yNhpWAVCrgxmkE3iZqHIWdmeTRHHvZOMyOvMTrzWRGVLY9hwyyKrMorFUP1rcXcFp0rnzn0_EHmYMrmlrrhna0XvJQ_vyx-CYroaVhL8TnIW6sbtHAGFHuzF/s1600/DSC07236.JPG" width="320" /></div>
<div style="text-align: center;">
</div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
<img height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhA5D735rHyXn1u7kL6nAhkjBe8JsdcphaxWHdNucpFSLaXIuOWmKw9dg9MnKPfi0RODpGfKCVFYzCghYMQ38b2KjcX-evgKQK6cayQs-OBtOK5BM4vFSitWeNhcuOdNPt90boeasihvFtr/s1600/DSC07240.JPG" width="320" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<b style="font-size: x-large;">गंगा मेला :---</b><br />
<span style="font-size: large;">इसी महत्व के कारण यहां प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक एक पखवाडे का विशाल मेला लगता है, जिसमें दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब आदि राज्यों से लाखों श्रद्धालु मेले में आते हैं और पतित पावनी गंगा में स्नान कर भगवान 'गणमुक्तीश्वर' पर गंगाजल चढ़ाकर पुण्यार्जन करते हैं।</span><br />
<br />
<span style="font-size: large;"><b>धार्मिक कृत्य :---</b></span><br />
<span style="font-size: large;">यहां 'मुक्तीश्वर महादेव' के सामने पितरों को पिंडदान और तर्पण (जल-दान) करने से गया श्राद्ध करने की जरूरत नहीं रहती। पांडवों ने महाभारत के युद्ध में मारे गये असंख्य वीरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान यहीं मुक्तीश्वरनाथ के मंदिर के परिसर में किया था। यहां कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को पितरों की शांति के लिए दीपदान करने की परम्परा भी रही है सो पांडवों ने भी अपने पितरों की आत्मशांति के लिए मंदिर के समीप गंगा में दीपदान किया था तथा कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक यज्ञ किया था। तभी से यहां कार्तिक पूर्णिमा </span><span style="font-size: large;">पर मेला लगना प्रारंभ हुआ। कार्तिक पूर्णिमा पर अन्य नगरों में भी मेले लगते हैं, किन्तु गढ़मुक्तेश्वर का मेला उत्तर भारत का सबसे बड़ा मेला माना जाता है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>व्यापार :---</b></span><br />
<span style="font-size: large;">यह गंगा के जल मार्ग से व्यापार का मुख्य केन्द्र था। उन दिनों यहां इमारती लकड़ी, बांस आदि का व्यापार होता था, जिसका आयात दून और गढ़वाल से किया जाता था। इसके साथ ही यहां गुड़ - गन्ने की बड़ी मंडी थी। यहां का मूढा़ उद्योग भी अति प्राचीन है। यहां के बने मूढे़ कई देशों में निर्यात किए जाते रहे हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><b>साक्षरता एवं भाषा :--- </b></span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">यहाँ की कुल जनसंख्या 60,000 के लगभग है |यहाँ पर साक्षरता रेट 82 % है जोकि राष्ट्रीय साक्षरता रेट से भी अधिक है जोकि 74% है | इसमें पुरुषों का प्रतिशत अधिक है | यहाँ की भाषा हिंदी है |</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">यहाँ आकर उनका रहन सहन देखकर आपको नहीं लगता की आप किसी पढे लिखे राज्य में आए हैं जबकि यहाँ पर बहुत सारे स्कूल और कॉलेज हैं| </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="color: blue; font-size: large;"><b>जलवायु :---</b></span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">यहाँ की जलवायु गर्मिओं में बहुत गरम और सर्दिओं में बहुत सर्द रहती है ,अप्रैल से जून तक यहाँ खूब गर्मी पड़ती है और जून से सितम्बर मध्य तक बरसात और अक्तूबर से मार्च तक खूब सर्दी होती है |</span><br />
<div>
<br />
<span style="font-size: large;"><b>दर्शनीय स्थल :---</b></span><br />
<span style="font-size: large;">गढ़मुक्तेश्वर में गंगा किनारे स्थित देवी गंगा को समर्पित मुक्तेश्वर महादेव मंदिर, गंगा मंदिर, मीराबाई की रेती, गुदडी़ मेला, बृज घाट, झारखंडेश्वर महादेव, कल्याणेश्वर महादेव का मंदिर आदि दर्शनीय स्थल हैं। </span></div>
<div>
<span style="font-size: large;">मुक्तेश्वर महादेव मंदिर :-</span></div>
<div>
<span style="font-size: large;">यह मंदिर गढ़मुक्तेश्वर के प्राचीन शिव मंदिरों में से है |ऐसा माना जाता है की यह मंदिर राजा शिवि ने बनाया था |इस मंदिर में शिव लिंग स्थापित है जोकि संत परशुराम ने बनाया था ऐसा कहा जाता है |</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div>
<div style="text-align: center;">
<img alt="None" src="http://farm9.staticflickr.com/8496/8326295762_56703b6bbc.jpg" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
</div>
<div>
<span style="font-size: large;">गंगा मंदिर :-</span></div>
<div>
<span style="font-size: large;">गंगा मंदिर एक प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल है इसमें 101 सीड़ियाँ बनी हुई थी जोकि गनगा में उअतारती हैं ,उसमें से 85 अभी हैं | ब्रह्मा की सफ़ेद पत्थर से बनी मूर्ति देखने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से यात्री आते हैं नहुष कूप :-</span></div>
<div>
<span style="font-size: large;">मंदिर में राजा नहुष द्वारा यज्ञ किया गया और यहाँ एक कूप का भी निर्माण किया गया जिसमें पानी की पूर्ति गंगा के पानी से होती है | इसलिए इसे नहुष कूप कहा जाता है |</span></div>
<div>
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<img alt="None" src="http://farm9.staticflickr.com/8223/8448585052_bfb177f4b5.jpg" height="240" width="320" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div>
<span style="font-size: large;">मीरा बाई की रेती :-</span></div>
<div>
<span style="font-size: large;">मुकतेश्वर मंदिर के बिल्कुल कुल सामने मीरा बाई की रेती के नाम से जाना जाने वाला दर्शनीय स्थल है यहाँ पूरे रेत ही फैली हुई है ऐसा कहा जाता है की यहाँ पर मीरा बाई ने भक्ति की थी |यह एक सुन्दर मंदिर है |</span></div>
<div>
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<img alt="None" src="http://farm4.staticflickr.com/3237/3089314593_3a9899f486.jpg" height="240" width="320" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div>
<span style="font-size: large;">बृजघाट :-</span></div>
<div>
<span style="font-size: large;">बृजघाट एक सुन्दर दर्शनीय स्थल है | यहाँ वेदांत मंदिर, अमृत परिसर हनुमान मंदिर जैसे बहुत सारे मंदिर हैं |गंगा घाट सबसे सुन्दर घाट है |</span></div>
<div>
<span style="font-size: large;">कल्पवृक्ष :-</span></div>
<div>
<span style="font-size: large;">यह एक दिव्य वृक्ष है जो वेदांत मंदिर में विजयमल बघेल ने लगाया था |इसका धार्मिक ,आध्यात्मिक एवं औषधीय महत्व है |यह एक दुर्लभ जाति का पौधा है | </span></div>
<div>
<span style="color: blue; font-size: large;">घाट से वापिस लौटते हुए हमने बाजार का एक चक्कर लगाया यहाँ कुछ ऐसा नहीं था जो ख़रीदा जा सके | कोई भी ऐसा साफ़ सुथरा रेसटोरेंट नहीं था यहाँ खाना खाया जा सके इसलिए अपना खाना साथ ले जाना ना भूलें |</span></div>
<div>
<span style="color: blue; font-size: large;">वापिस गाड़ी में बैठ जब निकलने लगे तो भिखारिओं को कुछ पैसे दे रहे थे तो एक भिखारी को ज्यादा ही लाचार जान जब उसे 100 रुपये देने की कोशिश की तो उसने लेने से इनकार कर दिया यह कहकर बाबूजी मैं इतने संभाल नहीं पायूँगा ,फिर उसे खुले पैसे कहीं से लेकर 10 रुपये दिए उस भिखारी के लिए सब नतमस्तक हो गए ,यह सोचते हुए कि दुनिया में ईमानदारी अभी भी कायम है |</span></div>
<div>
<span style="color: blue; font-size: large;">इसके बाद हम वापिस दिल्ली के लिए निकल पड़े समय हो गया था 4 बजे का | धार्मिकता से ओतप्रोत हो थके हुए ठीक तीन घंटे में हम अपने घर पहुँच चुके थे | </span></div>
</div>
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<span style="font-size: large;">भारत विभिन्न ऋतुओं और त्योहारों का देश है प्रत्येक ऋतू परिवर्तन पर कोई न कोई </span><span style="font-size: large;">त्योहार</span><span style="font-size: large;"> मनाया जाता है जिसका कोई न कोई वैज्ञानिक महत्व है और प्रकृति से भी इनका गहरा सम्बन्ध रहा है | </span><br />
<span style="font-size: large;">त्योहार सामाजिक बंधनों को प्रगाढ़ बनाने का एक माध्यम है। यह एक बहाना है अपनों से मिलने का, लड़ाई-झगड़ा भूलाकर एक होने का और ईश्वर की आराधना का। </span><br />
<span style="font-size: large;"><b>संक्रांति का अर्थ:---</b></span><br />
<span style="font-size: large;">'संक्रान्ति' का अर्थ है सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाना, अत: वह राशि जिसमें सूर्य प्रवेश करता है, संक्रान्ति की संज्ञा से विख्यात है। राशियाँ बारह हैं, यथा मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक , धनु, मकर, कुम्भ, मीन। इसी तरह वर्ष भर की 12 संक्रान्तियाँ चार श्रेणियों में विभक्त हैं-</span><br />
<span style="font-size: large;">दो अयन संक्रान्तियाँ- मकर संक्रान्ति, जब उत्तरायण का आरम्भ होता है एवं कर्कट संक्रान्ति, जब दक्षिणायन का आरम्भ होता है।</span><br />
<span style="font-size: large;">दो विषुव संक्रान्तियाँ अर्थात मेष एवं तुला संक्रान्तियाँ, जब रात्रि एवं दिन बराबर होते हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;">वे चार संक्रान्तियाँ, जिन्हें षडयीतिमुख अर्थात् मिथुन, कन्या, धनु एवं मीन कहा जाता है तथा</span><br />
<span style="font-size: large;">विष्णुपदी या विष्णुपद अर्थात् वृषभ, सिंह, वृश्चिक एवं कुम्भ नामक संक्रान्तियाँ।</span><br />
<span style="font-size: large;">औपनिषदिक ग्रंथों में उत्तरायण के छ: मासों का उल्लेख है इसमें 'अयन' शब्द आया है, जिसका अर्थ है 'मार्ग' या 'स्थल। गृह्यसूत्रों में 'उदगयन' उत्तरायण का ही द्योतक है, जहाँ स्पष्ट रूप से उत्तरायण आदि कालों में संस्कारों के करने की विधि वर्णित है। </span><br />
<span style="font-size: large;"><b>मकर सक्रांति:---</b></span><br />
<span style="font-size: large;">मकर सक्रांति भी एक प्रमुख त्यौहार है यह पर्व प्रत्येक वर्ष जनवरी के महीने में समस्त भारत में मनाया जाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण होता है, जब उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है। परम्परा से यह विश्वास किया जाता है कि इसी दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। यह वैदिक उत्सव है। इस त्यौहार का सम्बन्ध प्रकृति, ऋतु परिवर्तन और कृषि से है। ये तीनों चीज़ें ही जीवन का आधार हैं। प्रकृति के कारक के तौर पर इस पर्व में सूर्य देव को पूजा जाता है, जिन्हें शास्त्रों में भौतिक एवं अभौतिक तत्वों की आत्मा कहा गया है। इन्हीं की स्थिति के अनुसार ऋतु परिवर्तन होता है और धरती अनाज उत्पन्न करती है, जिससे जीव समुदाय का भरण-पोषण होता है। यह एक अति महत्त्वपूर्ण धार्मिक कृत्य एवं उत्सव है। </span><br />
<span style="font-size: large;">सूर्य पूर्व दिशा से उदित होकर 6 महीने दक्षिण दिशा की ओर से तथा 6 महीने उत्तर दिशा की ओर से होकर पश्चिम दिशा में अस्त होता है। </span><br />
<span style="font-size: large;">उत्तरायण का समय देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन का समय देवताओं की रात्रि होती है, वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा गया है। मकर संक्रांति के बाद माघ मास में उत्तरायण में सभी शुभ कार्य किए जाते हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;">ऐसा मानना है कि इस दिन के बाद हर दिन तिल तिल बढता है इसलिए इसे तिल सक्रांति भी कहते हैं |</span><br />
<span style="font-size: large;">कुछ मान्यताओं अनुसार देश भर में लोग मकर संक्रांति के पर्व पर अलग-अलग रूपों में तिल, चावल, उड़द की दाल एवं गुड़ का सेवन करते हैं। इन सभी सामग्रियों में सबसे ज़्यादा महत्व तिल का दिया गया है। इस दिन कुछ अन्य चीज़ भले ही न खाई जाएँ, किन्तु किसी न किसी रूप में तिल अवश्य खाना चाहिए। इस दिन तिल के महत्व के कारण मकर संक्रांति पर्व को "तिल संक्राति" के नाम से भी पुकारा जाता है। </span><br />
<span style="font-size: large;">इसे खिचड़ी सक्रांति भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन खिचड़ी बनती और खिलाई जाती है |चावल व मूंग की दाल को पकाकर खिचड़ी बनाई जाती है। इस दिन खिचड़ी खाने का प्रचलन व विधान है। घी व मसालों में पकी खिचड़ी स्वादिष्ट, पाचक व ऊर्जा से भरपूर होती है। इस दिन से शरद ऋतु क्षीण होने लगती है |मकर सक्रान्ति से मौसम बदलता है। जब भी मौसम बदले, मन व स्वास्थ्य की दृष्टि से खानपान में संयम जरूरी होता है। वर्षा से सर्दी आने पर पहले श्राद्ध का संयम और फिर नवरात्र के उपवास। इधर पौष की शांति और फिर मकर सक्रान्ति को खानपान की सादगी। सर्दी से गर्मी ऋतु परिवर्तन का महीना चैत्र का खरवास फिर रामनवमी। इनके बहाने ये संयम कायम रखने का प्रावधान है। न सिर्फ शारीरिक संयम बल्कि मानसिक संयम भी। ऐसे ही संयम सुनिश्चित करने के लिए कमोबेश इन्ही दिनों इस्लाम में रोजा और ईसाई धर्म में गुड फ्राइडे के दिन बनाये गये हैं है। विज्ञान धार्मिक आस्था में विभेद नहीं करता है। अलग-अलग धर्मिक आस्थायें अलग-अलग भूगोल में स्वरूप लेने के कारण थोड़ी भिन्न जरूर होती हैं, लेकिन इनका विज्ञान एक ही है|</span><br />
<span style="font-size: large;"><b>मकर संक्रान्ति का धार्मिक महत्व:---</b></span><br />
<span style="font-size: large;">किवदंतियां है कि इस दिन भगवान सूर्य (भास्कर) अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन को ही चुना था। इसी दिन को ही गंगा भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं।</span><br />
<span style="font-size: large;">भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायण का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि उत्तरायण के छह मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त हैं। </span><br />
<span style="font-size: large;">इसके विपरीत सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुनः जन्म लेना पड़ता है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><b>मकर सक्रांति का वैज्ञानिक महत्व :---</b></span><br />
<span style="font-size: large;">मकर सक्रान्ति के दिन लाखों लोगों द्वारा एक साथ स्नान से नदियों में होने वाले वाष्पन का वैज्ञानिक महत्व है। इस दिन से भारत में सूर्य के प्रभाव में अधिकता आनी शुरू होती है। सूर्य के प्रभाव में अधिकता का प्रारंभ और ठीक उसी समय नदियों में एक साथ वाष्पन की क्रिया एक-दूसरे के सहयोगी हैं। दोनों मौसम के तापमान को प्रभावित करते हैं। इससे ठीक एक दिन पहले एक साथ-समय पूरे पंजाब में लोहड़ी मनाते हैं। इन क्रियाओं के आपसी तालमेल का प्रभाव यह होता है कि उत्तर भारत के मैदानों में मकर सक्रान्ति से ठंड उतरनी शुरू हो जाती है। ध्यान देने की बात है कि इस ठंड की विदाई भी हम होली पर पूरे उत्तर भारत में एक खास मुहुर्त पर व्यापक अग्नि प्रज्वलन से करते हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><b>विभिन्न राज्यों में मकर संक्रांति:---</b></span><br />
<span style="font-size: large;">मकर संक्रान्ति भारत के भिन्न-भिन्न लोगों के लिए भिन्न-भिन्न अर्थ रखती है। किन्तु सदा की भॉंति, नानाविधी उत्सवों को एक साथ पिरोने वाला एक सर्वमान्य सूत्र है, जो इस अवसर को अंकित करता है। यदि दीपावली ज्योति का पर्व है तो संक्रान्ति शस्य पर्व है, नई फ़सल का स्वागत करने तथा समृद्धि व सम्पन्नता के लिए प्रार्थना करने का एक अवसर है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><b>पंजाब में:-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">मकर संक्रान्ति भारत के अन्य क्षेत्रों में भी धार्मिक उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है। पंजाब में इसे 'लोहड़ी' कहते हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में नई फ़सल की कटाई के अवसर पर मनाया जाता है। पुरुष और स्त्रियाँ गाँव के चौक पर उत्सवाग्नि के चारों ओर परम्परागत वेशभूषा में लोकप्रिय नृत्य भांगड़ा का प्रदर्शन करते हैं। स्त्रियाँ इस अवसर पर अपनी हथेलियों और पाँवों पर आकर्षक आकृतियों में मेहंदी रचाती हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><b>बंगाल में:-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">पश्चिम बंगाल में मकर सक्रांति के दिन देश भर के तीर्थयात्री गंगासागर द्वीप पर एकत्र होते हैं, जहाँ गंगा बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। एक धार्मिक मेला, जिसे 'गंगासागर मेला' कहते हैं, इस समारोह की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस संगम पर डुबकी लगाने से सारा पाप धुल जाता है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><b>कर्नाटक में:-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">कर्नाटक में भी फ़सल का त्योहार शान से मनाया जाता है। बैलों और गायों को सुसज्जित कर उनकी शोभा यात्रा निकाली जाती है। नये परिधान में सजे नर-नारी, ईख, सूखा नारियल और भुने चने के साथ एक दूसरे का अभिवादन करते हैं। पंतगबाज़ी इस अवसर का लोकप्रिय परम्परागत खेल है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><b>गुजरात में:-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">गुजरात का क्षितिज भी संक्रान्ति के अवसर पर रंगबिरंगी पंतगों से भर जाता है। </span><br />
<div style="text-align: center;">
<img src="https://encrypted-tbn3.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcRvYsnswVmFPHhzyvFqo1kFSDCCVW4E7TAQRaXL_Lv0JQKhwGdo9g" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="font-size: large;">गुजराती लोग संक्रान्ति को एक शुभ दिवस मानते हैं और इस अवसर पर छात्रों को छात्रवृतियाँ और पुरस्कार बाँटते हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><b>केरल में:-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">केरल में भगवान अयप्पा की निवास स्थली सबरीमाला की वार्षिक तीर्थयात्रा की अवधि मकर संक्रान्ति के दिन ही समाप्त होती है, जब सुदूर पर्वतों के क्षितिज पर एक दिव्य आभा ‘मकर ज्योति’ दिखाई पड़ती है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><b>महाराष्ट्र में:-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">इस दिन सभी पुराने गिले-शिकवे भूलाकर तिल-गुड़ से मुँह मीठा कर दोस्ती का एक नया रिश्ता कायम किया जाता है। समूचे महाराष्ट्र में इस त्योहार को रिश्तों की एक नई शुरुआत के रूप में मनाया जाता है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><b>मध्यप्रदेश में:- </b></span><br />
<span style="font-size: large;">बचपन की यादें ताजा करने व दोस्तों के साथ फिर से हँसी-ठहाके करने का त्योहार मकर सक्रांति है। गिल्ली-डंडे के खेल के रूप में मौज-मस्ती के एक बहाने के रूप में म.प्र. में यह त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार पर परिवार के बच्चे से लेकर बूढ़े सभी एक साथ गिल्ली-डंडे के इस खेल का आनंद उठाते हैं। </span><br />
<span style="font-size: large;"><b>तमिलनाडु में:-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">,'पोंगल` तमिल लोगो का सबसे बड़ा पर्व है | तमिल मे 'पोगु ' शब्द का अर्थ है उबलना कुछ दूसरी चीजो के साथ विशेष कर दूध मे उबाले गये चावल को तमिल मे 'पोंगल' कहते है | इसलिये इस पर्व का नाम भी पोंगल पड़ा है </span><br />
<div style="text-align: center;">
<img height="320" src="http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/6/69/Office_Pongal_celebration.jpg" width="240" /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="font-size: large;">'पोंगल' मुलता एक फसल सम्बन्धी त्यौहार है | खास तौर पर पोंगल के दिन पशुधन व घर के हर जानवर को साफ-स्वच्छ और स्नान कराया जाता है। </span><span style="font-size: large;"> </span><br />
<span style="font-size: large;">पोंगल पर्व तीन दिन तक मनाया जाता है | </span><span style="font-size: large;">तमिलनाडु में 'पोंगल' के रूप में इस त्योहार को मनाते हुए प्रकृति देवता का नमन किया जाता है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><b>असम में:-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">माघ बिहू के पहले दिन को उरुका कहा जाता है। इस दिन लोग नदी के किनारे अथवा खुली जगह में धान की पुआल से अस्थाई छावनी बनाते हैं जिसे भेलाघर कहते हैं। </span><br />
<div style="text-align: center;">
<img 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/></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="font-size: large;">गांव के सभी लोग यहां रात्रिभोज करते हैं। इस छावनी के पास ही चार बांस लगाकर उस पर पुआल एवं लकड़ी से ऊंचे गुम्बज का निर्माण करते हैं जिसे मेजी कहते हैं। उरुका के दूसरे दिन सुबह स्नान करके मेजी जलाकर माघ बिहू का शुभारंभ किया जाता है। गांव के सभी लोग इस मेजी के चारों और एकत्र होकर भगवान से मंगल की कामना करते हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"></span><br />
<span style="font-size: large;">अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए लोग विभिन्न वस्तुएं भी मेजी में भेंट चढ़ाते हैं। मेजी की अधचली लकडिय़ों और भस्म को खेतों में छिड़का जाता है। मान्यता के अनुसार ऐसा करने से जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। बिहू उत्सव के दौरान वहां के लोग अपनी खुशी का इजहार करने के लिए लोकनृत्य भी करते हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><b>मकर संक्रांति पर खान-पान:---</b></span><br />
<span style="font-size: large;">मकर सक्रांति पर सब प्रान्तों में कुछ मिलता जुलता ही खाना बनाया जाता है |</span><br />
<div style="text-align: center;">
<img src="https://encrypted-tbn1.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcT0d5iYCiXFLtuaqdjYzdKc7ZD5PpjqmxhtQwqxAOucFjTaILN-" /></div>
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<br /></div>
<span style="font-size: large;"><b>बिहार तथा उत्तर प्रदेश:-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">बिहार एवं उत्तर प्रदेश में खान-पान लगभग एक जैसा होता है। दोनों ही प्रांत में इस दिन अगहनी धान से प्राप्त चावल और उड़द की दाल से खिचड़ी बनाई जाती है। कुल देवता को इसका भोग लगाया जाता है। लोग एक-दूसरे के घर खिचड़ी के साथ विभिन्न प्रकार के अन्य व्यंजनों का आदान-प्रदान करते हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग मकर संक्राति को "खिचड़ी पर्व" के नाम से भी पुकारते हैं। इस प्रांत में मकर संक्राति के दिन लोग चूड़ा-दही, गुड़ एवं तिल के लड्डू भी खाते हैं। चूड़े एवं मुरमुरे की लाई भी बनाई जाती है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><b>मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़:-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मकर संक्रांति के दिन बिहार और उत्तर प्रदेश की ही तरह खिचड़ी और तिल खाने की परम्परा है। यहाँ के लोग इस दिन गुजिया भी बनाते हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><b>दक्षिण भारत:-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">दक्षिण भारतीय प्रांतों में मकर संक्राति के दिन गुड़, चावल एवं दाल से पोंगल बनाया जाता है। विभिन्न प्रकार की कच्ची सब्जियों को लेकर मिश्रित सब्ज़ी बनाई जाती है। इन्हें सूर्य देव को अर्पित करने के पश्चात सभी लोग प्रसाद रूप में इसे ग्रहण करते हैं। इस दिन गन्ना खाने की भी परम्परा है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><b>पंजाब एवं हरियाणा:-</b></span><br />
<span style="font-size: large;">पंजाब एवं हरियाणा में इस पर्व में विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में मक्के की रोटी एवं सरसों के साग को विशेष तौर पर शामिल किया जाता है। इस दिन पंजाब एवं हरियाणा के लोगों में तिलकूट, रेवड़ी और गजक खाने की भी परम्परा है। मक्के का लावा, मूँगफली एवं मिठाईयाँ भी लोग खाते हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">हर त्योहार हमारे लिए कुछ न कुछ संदेश लेकर आता है। मकर सक्रांति का त्योहार भी हमें भेदभाव भुलाकर एकजुट होने का संदेश देता है। तो क्यों न इस दिन हम सभी एक-दूसरे के साथ प्रेम, आत्मीयता व सम्मान का एक नया रिश्ता कायम करें।</span></div>
Guzarishhttp://www.blogger.com/profile/11205127840621066197noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3773685922890348520.post-10601084531392478572014-01-13T05:48:00.000-08:002014-01-13T05:52:28.778-08:00'' लोहड़ी ''<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;">लोहड़ी उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध त्योहार है। यह मकर संक्रान्ति के एक दिन पहले मनाया जाता है। मकर संक्रान्ति की पूर्वसंध्या पर इस त्यौहार का उल्लास रहता है। विशेषतः पंजाब के लोगों के लिए लोहड़ी की महत्ता एक पर्व से भी अधिक है। पंजाबी लोग हंसी मज़ाक पसंद, तगड़े, ऊर्ज़ावान, जोशीले व स्वाभाविक रूप से हंसमुख होते हैं। </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
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<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><img src="https://encrypted-tbn1.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcSKywNSDGFDGo7hFl1Ao7JkxJ1cA0MLemv34cCDoUUGaYa-X-uMLg" /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="font-size: large;"><b>परिचय:---</b></span><br />
<span style="font-size: large;">लोहड़ी पौष के अंतिम दिन, सूर्यास्त के बाद (माघ संक्रांति से पहली रात) यह पर्व मनाया जाता है। यह प्राय: १२ या १३ जनवरी को पड़ता है। यह मुख्यत: पंजाब का पर्व है, यह द्योतार्थक (एक्रॉस्टिक) शब्द लोहड़ी की पूजा के समय व्यवहृत होने वाली वस्तुओं के द्योतक वर्णों का समुच्चय जान पड़ता है, जिसमें ल (लकड़ी) +ओह (गोहा = सूखे उपले) +ड़ी (रेवड़ी) = 'लोहड़ी' के प्रतीक हैं। श्वतुर्यज्ञ का अनुष्ठान मकर संक्रांति पर होता था, संभवत: लोहड़ी उसी का अवशेष है। पूस-माघ की कड़कड़ाती सर्दी से बचने के लिए आग भी सहायक सिद्ध होती है-यही व्यावहारिक आवश्यकता 'लोहड़ी' को मौसमी पर्व का स्थान देती है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><b>लोहड़ी की लोककथायें:---</b></span><br />
<span style="font-size: large;">लोहड़ी से संबद्ध परंपराओं एवं रीति-रिवाजों से ज्ञात होता है कि प्रागैतिहासिक गाथाएँ भी इससे जुड़ गई हैं। एक प्रचलित लोककथा है कि मकर संक्रान्ति के दिन कंस ने कृष्ण को मारने के लिए लोहिता नामक राक्षसी को गोकुल में भेजा था, जिसे कृष्ण ने खेल–खेल में ही मार डाला था। उसी घटना की स्मृति में लोहिता का पावन पर्व मनाया जाता है। </span><br />
<span style="font-size: large;">सिन्धी समाज में भी मकर संक्रान्ति से एक दिन पूर्व 'लाल लाही' के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है।</span><br />
<span style="font-size: large;">दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि-दहन की याद में ही यह अग्नि जलाई जाती है। </span><br />
<span style="font-size: large;">लोहड़ी को दुल्ला भट्टी की एक कहानी से भी जोड़ा जाता हैं। दुल्ला भट्टी मुग़ल शासक अकबर के समय में पंजाब में रहता था। उसे पंजाब के नायक की उपाधि से सम्मानित किया गया था। उस समय संदल बार के जगह पर लड़कियों को ग़ुलामी के लिए बल पूर्वक अमीर लोगों को बेच जाता था जिसे दुल्ला भट्टी ने एक योजना के तहत लड़कियों को न केवल मुक्त ही करवाया बल्कि उनकी शादी भी हिन्दू लड़कों से करवाई और उनके शादी की सभी व्यवस्था भी करवाई। दुल्ला भट्टी एक विद्रोही था और जिसकी वंशावली भट्टी राजपूत थे। उसके पूर्वज पिंडी भट्टियों के शासक थे जो कि संदल बार में था। अब संदल बार पाकिस्तान में स्थित हैं। वह सभी पंजाबियों का नायक था।</span><br />
<span style="font-size: large;">यह भी कहा जाता है कि संत कबीर की पत्नी लोई की याद में यह पर्व मनाया जाता है. इसीलिए इसे लोई भी कहा जाता है। </span><br />
<span style="font-size: large;"><b>अग्नि का पूजन:---</b></span><br />
<span style="font-size: large;">जैसे होली जलाते हैं, उसी तरह लोहड़ी की संध्या पर होली की तरह लकड़ियाँ एकत्रित करके जलायी जाती हैं और तिलों से अग्नि का पूजन किया जाता है। इस त्योहार पर बच्चों के द्वारा घर–घर जाकर लकड़ियाँ एकत्र करने का ढंग बड़ा ही रोचक है। बच्चों की टोलियाँ लोहड़ी गाती हैं, और घर–घर से लकड़ियाँ माँगी जाती हैं। वे एक गीत गाते हैं, जो कि बहुत प्रसिद्ध है —</span><br />
<span style="font-size: large;">सुंदर मुंदरिये ! ..................हो</span><br />
<span style="font-size: large;">तेरा कौन बेचारा, .................हो</span><br />
<span style="font-size: large;">दुल्ला भट्टी वाला, ...............हो</span><br />
<span style="font-size: large;">दुल्ले घी व्याही, ..................हो</span><br />
<span style="font-size: large;">सेर शक्कर आई, .................हो</span><br />
<span style="font-size: large;">कुड़ी दे बाझे पाई, .................हो</span><br />
<span style="font-size: large;">कुड़ी दा लाल पटारा, ...............हो</span><br />
<span style="font-size: large;">यह गीत गाकर दुल्ला भट्टी की याद करते हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="//www.youtube.com/embed/x_-5AJrROmM" width="420"></iframe>
<span style="font-size: large;"><br /></span><br />
<br /></div>
<span style="font-size: large;"><b>रीति रिवाज :---</b></span><br />
<span style="font-size: large;">पंजाब में लोहड़ी पर विशेषतया शादीशुदा लड़किओं को तिल पट्टी ,मूंगफली ,मक्के के दाने मिष्ठान फल वगेरह और कपड़े आदि उपहार स्वरुप दिए जाते हैं </span><br />
<span style="font-size: large;">जिन परिवारों में लड़के का विवाह होता है अथवा जिन्हें पुत्र प्राप्ति होती है, उनसे पैसे लेकर मुहल्ले या गाँव भर में बच्चे ही बराबर बराबर रेवड़ी बाँटते हैं। लोहड़ी के दिन या उससे दो चार दिन पूर्व बालक बालिकाएँ बाजारों में दुकानदारों तथा पथिकों से 'मोहमाया' या महामाई (लोहड़ी का ही दूसरा नाम) के पैसे माँगते हैं, इनसे लकड़ी एवं रेवड़ी खरीदकर सामूहिक लोहड़ी में प्रयुक्त करते हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;">शहरों के शरारती लड़के दूसरे मुहल्लों में जाकर 'लोहड़ी' से जलती हुई लकड़ी उठाकर अपने मुहल्ले की लोहड़ी में डाल देते हैं। यह 'लोहड़ी व्याहना' कहलाता है। </span><br />
<span style="font-size: large;">आजकल इस त्यौहार ने एक बड़ा स्वरूप ले लिया है पार्टिओं का दौर चल पड़ा है जिनकी पहली शादी होती है या पहली संतान के रूप में भी इस त्यौहार को मनाने के लिए सबको निमंत्रण भेजकर खूब धूम ह्दाम से इसे मनाते हैं| </span><br />
<span style="font-size: large;"><b>मान्यताएँ :---</b></span><br />
<span style="font-size: large;">लोहड़ी त्यौहार की उत्पत्ति के बारे में काफी मान्यताएं हैं जो की पंजाब के त्यौहार से जुडी हुई मानी जाती हैं। कई लोगो का मानना हैं की यह त्यौहार जाड़े की ऋतू के आने का द्योतक के रूप में मनाया जाता हैं। </span><br />
<span style="font-size: large;">इस दिन शीत ऋतु अपनी चरम सीमा पर होती है। तापमान शून्य से पाँच डिग्री सेल्सियस तक होता है तथा घने कोहरे के बीच सब कुछ ठहरा सा प्रतीत होता है। लेकिन इस शीत ग्रस्त सतह के नीचे जोश की लहर महसूस की जा सकती है। विशेषकर हरियाणा, पंजाब व हिमाचल प्रदेश में लोग लोहड़ी की तैयारी बहुत ही ख़ास तरीके से करते हैं। आग के बड़े–बड़े अलाव कठिन परिश्रम के बाद बनते हैं। इन अलावों में जीवन की गर्म-जोशी छिपी रहती है। क्योंकि अब समय रबी (शीत) की फ़सल काटने का होता है। विश्राम व हर्ष की भावना को लोग रोक नहीं पाते हैं। लोहड़ी पौष मास की आख़िरी रात को मनायी जाती है। कहते हैं कि हमारे बुज़ुर्गों ने ठंड से बचने के लिए मंत्र भी पढ़ा था। इस मंत्र में सूर्यदेव से प्रार्थना की गई थी कि वह इस महीने में अपनी किरणों से पृथ्वी को इतना गर्म कर दें कि लोगों को पौष की ठंड से कोई भी नुक़सान न पहुँच सके। वे लोग इस मंत्र को पौष माह की आख़िरी रात को आग के सामने बैठकर बोलते थे कि सूरज ने उन्हें ठंड से बचा लिया। </span><br />
<span style="font-size: large;">श्रीमद्भागवदगीता के अनुसार, श्रीकृष्ण ने अपना विराट व अत्यन्त ओजस्वी स्वरूप इसी काल में प्रकट किया था। हिन्दू इस अवसर पर गंगा में स्नान कर अपने सभी पाप त्यागते हैं। गंगासागर में इन दिनों स्नानार्थियों की अपार भीड़ उमड़ती है। उत्तरायणकाल की महत्ता का वर्णन हमारे शास्त्रकारों ने अनेक ग्रन्थों में किया है।</span><br />
<span style="font-size: large;"><b>संगीत और भांगड़ा:---</b></span><br />
<span style="font-size: large;">जनवरी की तीखी सर्दी में जलते हुए अलाव अत्यन्त सुखदायी व मनोहारी लगते हैं। सभी लोग रंग-बिरंगे वस्त्रों में बन ठन के आते हैं। पुरुष पजामा व कुरता पहनते हैं। कुरते के ऊपर जैकेट पर शीशे के गोल विन्यास होते हैं। जिनके चारों ओर गोटा लगा होता है। इसी से मेल खाती बड़ी–बड़ी पगड़ियाँ होती हैं। सज–धजकर पुरुष अलाव के चारों ओर एकत्रित होकर भांगड़ा नृत्य करते हैं। चूँकि अग्नि ही इस पर्व के प्रमुख देवता हैं, इसलिए चिवड़ा, तिल, मेवा, गजक आदि की आहूति भी स्वयं अग्निदेव को चढ़ायी जाती है। भांगड़ा नृत्य आहूति के बाद ही प्रारम्भ होता है। नगाड़ों की ध्वनि के बीच यह नृत्य एक लड़ी की भाँति देर रात तक चलता रहता है तथा लगातार नए नृत्य समूह इसमें सम्मिलित होते हैं। पारम्परिक रूप से स्त्रियाँ भांगड़े में सम्मिलित नहीं होती हैं। वे अलग आँगन में अलाव जलाती हैं तथा सम्मोहक गिद्दा नृत्य प्रस्तुत करती हैं।</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="//www.youtube.com/embed/VXLXYXe_BFU" width="420"></iframe>
<span style="font-size: large;"><br /></span><br />
<br />
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">उत्सव प्रेम व हल्की छेड़–छाड़ तथा स्वच्छंदता ही लोहड़ी पर्व का प्रतीक है। आधुनिक समय में लोहड़ी का दिन लोगों को अपनी व्यस्तता से बाहर खींच लाता है। लोग एक-दूसरे से मिलकर अपना सुख-दुःख बाँटते हैं।</span><br />
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">*****</span></div>
</div>
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Guzarishhttp://www.blogger.com/profile/11205127840621066197noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3773685922890348520.post-80563090401468975942013-11-27T21:38:00.000-08:002013-11-27T21:38:29.819-08:00हनुमान मंदिर चलिया भाग 13.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">भाग 12.</span></div>
<span style="font-size: large;"><b>आज शुक्रवार है ..... 8.11.2013....</b></span><br />
<span style="font-size: large;">समय हो गया 7.50</span><br />
<span style="font-size: large;">आज फिर भीड़ मिलेगी क्योंकि देर हो गई है ....</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">जैसा कि हर मेट्रो स्टेशन पर 5... 6 मशीन रख दी गई हैं जिससे आप अपने आप smart card को रिचार्ज कर सकते हैं ....</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">भीड़ से बचने आज चलते हैं रिचार्ज करने मशीन से ....</span><br />
<br />
<div style="text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgsAY3QnxAFw7mJWKC30dmUaYm2MG8T48aFL1YIboFqY3sE0tAOfThzZOHvrjE7yoGSqtAdv-JKYWxZ0x52ODxEaoq28aTwMx9C48DxSbBYBvmyMxAacTMO12NcphNdsW1I07NbFAo5KDR3/s1600/2013-11-08+08.15.08.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgsAY3QnxAFw7mJWKC30dmUaYm2MG8T48aFL1YIboFqY3sE0tAOfThzZOHvrjE7yoGSqtAdv-JKYWxZ0x52ODxEaoq28aTwMx9C48DxSbBYBvmyMxAacTMO12NcphNdsW1I07NbFAo5KDR3/s320/2013-11-08+08.15.08.jpg" width="320" /></a><br />
<br />
<div style="text-align: left;">
<span style="color: blue; font-size: large;">सबसे पहले आपके सामने मशीन पर लिखा आता है..</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="color: blue; font-size: large;">Token sale और add value और </span><span style="color: blue; font-size: large;">साथ ही नीचे लिखा है </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="color: blue; font-size: large;">English हिन्दी </span></div>
</div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEivXLOxDbE0q9g5qHEguUbXR6GpwFaJQffHIdYkZwUEHWCEMMuStg08ecZb9rEIRq8nZEeWIw5w5mHWU-YWF5wlDJtO_1uKYohhiw9ZyD4WjCCfGgxR-ZkLwFSJAJvZxfyhK1uKMhKFc__a/s1600/2013-11-08+08.14.40.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEivXLOxDbE0q9g5qHEguUbXR6GpwFaJQffHIdYkZwUEHWCEMMuStg08ecZb9rEIRq8nZEeWIw5w5mHWU-YWF5wlDJtO_1uKYohhiw9ZyD4WjCCfGgxR-ZkLwFSJAJvZxfyhK1uKMhKFc__a/s320/2013-11-08+08.14.40.jpg" width="320" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg7H2nEYlJNzKZhIXIzmQN6RWNkEAIu-X5kZpcHh9JN6cCl0sOCJ1inzLgPSoxJP2vkFMkxOXoUNVdq9xFxVwsrgsHClsWPvO6THXfRPgnIre_usGSFqMcRXB3aYl_u_MJME_mhyphenhyphenD4n7Na_/s1600/2013-11-11+08.40.08.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg7H2nEYlJNzKZhIXIzmQN6RWNkEAIu-X5kZpcHh9JN6cCl0sOCJ1inzLgPSoxJP2vkFMkxOXoUNVdq9xFxVwsrgsHClsWPvO6THXfRPgnIre_usGSFqMcRXB3aYl_u_MJME_mhyphenhyphenD4n7Na_/s320/2013-11-11+08.40.08.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiz1771AKMocihfNwA15nYvR9l18m9e7krEPE9DMgcaNi5sDNlhW9fjgxkLwInU_lQh2c1lF7dbdU_XMxXz2YN_WT27LNlSQXEmtuqXQTf1-prelRu5BEK2-gTFuVg-xknjYLQgNEqvRCGm/s1600/2013-11-11+08.40.46.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiz1771AKMocihfNwA15nYvR9l18m9e7krEPE9DMgcaNi5sDNlhW9fjgxkLwInU_lQh2c1lF7dbdU_XMxXz2YN_WT27LNlSQXEmtuqXQTf1-prelRu5BEK2-gTFuVg-xknjYLQgNEqvRCGm/s320/2013-11-11+08.40.46.jpg" width="320" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="font-size: large;">कार्ड और नोट डालने के लिए स्लिट्स </span></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="color: blue; font-size: large;">आप उसमें जो सेलेक्ट करेंगे वैसे ही आपको सूचना मिलेगी फिर दिखाएगा ..</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">फिर कार्ड यहाँ डालना है वहां लाइट जलती है आप कार्ड डालते हैं तो </span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">value पूछेगा </span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">100 / 150 / 200 /</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">आप चुनिए जितने का रिचार्ज कराना है आप 10 रुपये से शुरू कर सकते हैं फिर उतने का नोट उसमें डालिए यहाँ लाइट जलती है मशीन नोट अन्दर खींच लेती है और प्रोसेस शुरू हो जाता है अगर आपको reciept चाहिए तो वहां टच कीजिए आपकी रसीद नीचे आ जाएगी ...</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">कार्ड रिचार्ज हो गया है और बाहर आ जाता है आप उसे ले सकते हैं ...</span><br />
<span style="font-size: large;">मैंने कार्ड रिचार्ज कर लिया है और लाइन से बच गई हूँ जो रिचार्ज के लिए लगती है या टोकन के लिए लगती है .....</span><br />
<span style="font-size: large;">मेट्रो लेकर पहुँच गई मंदिर......</span><br />
<span style="font-size: large;">मंदिर से होकर वापिस आ गई हूँ ....आज मेट्रो आती बार काफी खाली है सीटें तो भरी हुई हैं पर बीच में खाली है .....</span><br />
<span style="font-size: large;">सीट मिल गई है मैं घर पहुँच गई हूँ ....</span><br />
<span style="font-size: large;">मिलते हैं कल नए मुद्दों के साथ ...</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">हनुमान मंदिर चलिया भाग 14.क्रमशः....</span><br />
<br /></div>
Guzarishhttp://www.blogger.com/profile/11205127840621066197noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3773685922890348520.post-633356478034766822013-11-27T20:58:00.000-08:002013-11-27T20:58:04.772-08:00हनुमान मंदिर चलिया भाग 12.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><a href="http://prabhumahima.blogspot.in/2013/11/11.html" target="_blank">भाग 11.</a></span></div>
<span style="font-size: large;"><b>आज वीरवार है .... 7.11.2013...</b></span><br />
<span style="font-size: large;">आज भी कार्यदिवस है ,आज 7.10 पर निकली हूँ ...</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">मेट्रो स्टेशन पर ऊपर पहुँचने के लिए 30 सीढियां पहले चढती हूँ ,वैसे दूसरी साइड से अगर जाते हैं तो वहां लिफ्ट उपलब्ध है .....</span><br />
<span style="font-size: large;"><span style="color: blue;">फिर वहां चेकिंग और टोकन गेट से निकल कर 30 सीढियां और चढ़ती हूँ ,यहाँ से लिफ्ट भी है जो प्लेटफ़ॉर्म तक जाती है ...</span>.</span><br />
<span style="font-size: large;">देरी की वजह से आज मेट्रो स्टेशन पर भीड़ ज्यादा बढ़ गई है |</span><br />
<span style="font-size: large;">ठीक लगभग 35 मिनट में राजीव चौंक पहुँच गई हूँ ..अब बाहर जा रही हूँ <span style="color: blue;">.... </span></span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">बाहर जाने के लिए एक स्वचालित सीढियां हैं और एक दूसरी हैं जो 4</span><span style="color: blue; font-size: large;">0 सीढियां हैं .....</span><br />
<span style="font-size: large;">यहाँ से ज्यादातर स्वचालित सीढियां ही लेती हूँ .....</span><br />
<span style="font-size: large;">यहाँ से 9 मिनट की दूरी पर है हनुमान मंदिर ... एक चौंक पार करना पड़ता है ...</span><br />
<span style="font-size: large;">लो पहुँच गई हूँ .....</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">आज गर्भ गृह के अन्दर बाकी तस्वीरों के बारे आपको बताती हूँ ...</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">श्री राम , सीता और लक्ष्मण की तस्वीर के बगल में है राधा कृष्ण की मनमोहक तस्वीर ...</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg5tIw-xDci6Bk-hCfaFZrrBzcFU-6Z-kdFud5MDIiQozogfi0YBo7n89EZ0eUebI_5Wf2GlGNJZrAB9FmvSTHPUdmJkqckzcVJJtzaiM9ILgm_f7KAWddHhgKb4UvCuG5YOIicC4bf7eYS/s1600/2013-11-03+15.07.27.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg5tIw-xDci6Bk-hCfaFZrrBzcFU-6Z-kdFud5MDIiQozogfi0YBo7n89EZ0eUebI_5Wf2GlGNJZrAB9FmvSTHPUdmJkqckzcVJJtzaiM9ILgm_f7KAWddHhgKb4UvCuG5YOIicC4bf7eYS/s320/2013-11-03+15.07.27.jpg" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<b><span style="font-size: large;">राधा कृष्ण </span></b></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="color: blue; font-size: large;">और इसके बगल में है अंजनी माँ के साथ हनुमान बाल रूप में ..</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;">इसके ठीक आगे है एक छोटी तस्वीर में हनुमान पर्वत उठाये हुए हैं ..... </span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-b-1U5rG63TSt3mDOKwW1skAA0GCW0OrPSWvMoZHF45B_IKhJC_44ZNf9MyySz7tKFy1p6v6aYilOPLZZ9yGuFwP9mfoBeSHVi59DcDfLCY3Ps8RcH0sQI-akcI2xOfV-08Sc3bBItsO4/s1600/2013-11-20+09.21.03.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-b-1U5rG63TSt3mDOKwW1skAA0GCW0OrPSWvMoZHF45B_IKhJC_44ZNf9MyySz7tKFy1p6v6aYilOPLZZ9yGuFwP9mfoBeSHVi59DcDfLCY3Ps8RcH0sQI-akcI2xOfV-08Sc3bBItsO4/s320/2013-11-20+09.21.03.jpg" width="240" /></a><span style="color: blue; font-size: large;"> </span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><b>हनुमान पर्वत उठाये </b></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span></div>
<span style="color: blue; font-size: large;">हनुमान की मुख्य प्रतिमा के साथ एक लोहे का डंडा और फट्टा सा लगा है जिस पर नारियल तोड़ा जाता है ,इसे नारियल तोड़ने का उपकरण भी कह सकते हैं |</span><br />
<span style="color: blue; font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: center;">
<img src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhsnj2vUumTe4ya1g2Pb6l5lbHgWayi7Um7yGjfQpz5WN0xrXAI0-p58Z8ecpdsfQ3dlcsFbxZyNgrH5WRJUvBJO1ygWwoGCu7ZlRZYHjCMO3QU2vAT8u5BAZpp-JtGzbsHk-bnuRhxfj2p/s320/2013-11-07+08.04.53.jpg" /><br />
<b><span style="font-size: large;">नारियल तोड़ने का स्टैंड </span></b></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<span style="font-size: large;">माथा टेक कर बाहर आ गई हूँ .....</span><br />
<span style="font-size: large;">मेट्रो ले ली है ....और पहुँच गई हूँ घर... पैदल चलते हुए ....</span><br />
<span style="font-size: large;">मिलते हैं कल मंदिर की कुछ और झांकिओं के साथ ...</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;">हनुमान मंदिर चलिया भाग 13. क्रमशः....</span></div>
Guzarishhttp://www.blogger.com/profile/11205127840621066197noreply@blogger.com0